HI/760810 बातचीत - श्रील प्रभुपाद तेहरान में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760810R1-TEHRAN_ND_01.mp3</mp3player>|प्रभुपाद: संयुक्त राष्ट्र के ये सभी सदस्य, हर कोई शारीरिक अवधारणा में सोच रहा है, 'मैं अमेरिकी हूँ', 'मैं भारतीय हूँ', 'मैं चीनी हूँ'। तो एकता कैसे होगी? वहाँ नहीं हो सकता। यही कारण है कि हम प्रस्ताव कर रहे हैं, कि जीवन की शारीरिक अवधारणा में नहीं सोचने । ब्रह्मभूत: प्रसन्नात्मा न शोचति([[Vanisource: BG 18.54 (1972) |भ.गी.१८.५४.]]): हम सिखा रहे हैं। लेकिन वे सोच रहे हैं कि वे संयुक्त राष्ट्र में गए हैं, लेकिन वे खुद को कुत्तों के रूप में रख रहे हैं। कोई शांति नहीं हो सकती।उन्हें एक दूसरे के खिलाफ भौंकना चाहिए। यह सब है। <br /> नवा-यवन: वे सोच रहे हैं कि उन्हें अपने तथाकथित प्रभाव की रक्षा करनी है। <br /> प्रभुपाद: तो कुत्ता भी सोच रहा है। तीन मील से वह भौंकने लगा, 'तुम यहाँ क्यों आ रहे हो? मत आओ। मैं अपनी रुचि की रक्षा कर रहा हूं ’। वह मानसिकता कुत्ते में है; तो तुम कुत्ते से कैसे बड़े हो?|Vanisource:760810 - Conversation A - Tehran|760810 - बातचीत A - तेहरान}} | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760810R1-TEHRAN_ND_01.mp3</mp3player>|प्रभुपाद: संयुक्त राष्ट्र के ये सभी सदस्य, हर कोई शारीरिक अवधारणा में सोच रहा है, 'मैं अमेरिकी हूँ', 'मैं भारतीय हूँ', 'मैं चीनी हूँ'। तो एकता कैसे होगी? वहाँ नहीं हो सकता। यही कारण है कि हम प्रस्ताव कर रहे हैं, कि जीवन की शारीरिक अवधारणा में नहीं सोचने । ब्रह्मभूत: प्रसन्नात्मा न शोचति([[Vanisource: BG 18.54 (1972) |भ.गी.१८.५४.]]): हम सिखा रहे हैं। लेकिन वे सोच रहे हैं कि वे संयुक्त राष्ट्र में गए हैं, लेकिन वे खुद को कुत्तों के रूप में रख रहे हैं। कोई शांति नहीं हो सकती।उन्हें एक दूसरे के खिलाफ भौंकना चाहिए। यह सब है। <br /> नवा-यवन: वे सोच रहे हैं कि उन्हें अपने तथाकथित प्रभाव की रक्षा करनी है। <br /> प्रभुपाद: तो कुत्ता भी सोच रहा है। तीन मील से वह भौंकने लगा, 'तुम यहाँ क्यों आ रहे हो? मत आओ। मैं अपनी रुचि की रक्षा कर रहा हूं ’। वह मानसिकता कुत्ते में है; तो तुम कुत्ते से कैसे बड़े हो?|Vanisource:760810 - Conversation A - Tehran|760810 - बातचीत A - तेहरान}} |
Latest revision as of 23:26, 20 September 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
प्रभुपाद: संयुक्त राष्ट्र के ये सभी सदस्य, हर कोई शारीरिक अवधारणा में सोच रहा है, 'मैं अमेरिकी हूँ', 'मैं भारतीय हूँ', 'मैं चीनी हूँ'। तो एकता कैसे होगी? वहाँ नहीं हो सकता। यही कारण है कि हम प्रस्ताव कर रहे हैं, कि जीवन की शारीरिक अवधारणा में नहीं सोचने । ब्रह्मभूत: प्रसन्नात्मा न शोचति(भ.गी.१८.५४.): हम सिखा रहे हैं। लेकिन वे सोच रहे हैं कि वे संयुक्त राष्ट्र में गए हैं, लेकिन वे खुद को कुत्तों के रूप में रख रहे हैं। कोई शांति नहीं हो सकती।उन्हें एक दूसरे के खिलाफ भौंकना चाहिए। यह सब है। नवा-यवन: वे सोच रहे हैं कि उन्हें अपने तथाकथित प्रभाव की रक्षा करनी है। प्रभुपाद: तो कुत्ता भी सोच रहा है। तीन मील से वह भौंकने लगा, 'तुम यहाँ क्यों आ रहे हो? मत आओ। मैं अपनी रुचि की रक्षा कर रहा हूं ’। वह मानसिकता कुत्ते में है; तो तुम कुत्ते से कैसे बड़े हो? |
760810 - बातचीत A - तेहरान |