HI/761115 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्  
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्
 
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति
:([[Vanisource:BG 5.29 (1972)|भ.गी . ५.२९.]])
(भ.गी . ५.२९.)


यह शांति का सूत्र है। लोगों को पता होना चाहिए कि आखिरकार मालिकाना हक कौन है। हम इस भूमि के स्वामित्व का दावा कर रहे हैं, लेकिन हम वास्तव में मालिक नहीं हैं। वास्तव में स्वामी कृष्ण हैं, भगवान् का सर्वोच्च व्यक्तित्व।
यह शांति का सूत्र है। लोगों को पता होना चाहिए कि वास्तव में स्वामी कौन है। हम इस भूमि के स्वामित्व का दावा कर रहे हैं, परंतु हम स्वामी नहीं हैं। वास्तव में स्वामी कृष्ण हैं, जो ईश्वरत्व का सर्वोच्च व्यक्तित्व हैं।
|Vanisource:761115 - Lecture SB 05.05.28 - Vrndavana|761115 - प्रवचन श्री. भा. ०५.०५.२८ - वृंदावन}}
|Vanisource:761115 - Lecture SB 05.05.28 - Vrndavana|761115 - प्रवचन श्री. भा. ०५.०५.२८ - वृंदावन}}

Latest revision as of 05:29, 4 February 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
भगवद गीता में शांति सूत्र दिया गया है,

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति (भ.गी . ५.२९.)

यह शांति का सूत्र है। लोगों को पता होना चाहिए कि वास्तव में स्वामी कौन है। हम इस भूमि के स्वामित्व का दावा कर रहे हैं, परंतु हम स्वामी नहीं हैं। वास्तव में स्वामी कृष्ण हैं, जो ईश्वरत्व का सर्वोच्च व्यक्तित्व हैं।

761115 - प्रवचन श्री. भा. ०५.०५.२८ - वृंदावन