HI/761125 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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:कृष्ण सूर्य समा; माया हया अंधकार
:कृष्ण सूर्य समा; माया हया अंधकार
:यहां कृष्ण, तहाँ नाही मायारा अधिकार
:यहां कृष्ण, तहाँ नाही मायारा अधिकार
:([[Vanisource:CC Madhya 22.31|चै.च. मद्य २२.३१]])
:([[Vanisource:CC Madhya 22.31|चै.च. मद्य २२.३१]])
अगर आप हमेशा कृष्ण को अपने मन में रखते हैं, कृष्ण के चरण कमल... आप कृष्ण के चरण कमल, विग्रह, बलदेव, बलराम को देख सकते हैं, वे कैसे खूबसूरती से खड़े हैं। आप सुन्दर चरण कमल देख सकते हैं। अचानक चेहरा देखने की कोशिश मत करिये। कोशिश करिये, चरण कमल को निरंतर देखने का अभ्यास करिये।”|Vanisource:761125 - Lecture SB 05.06.03 - Vrndavana|761125 - प्रवचन SB 05.06.03 - वृंदावन}}
अगर आप हमेशा कृष्ण को अपने मन में रखते हैं, कृष्ण के चरण कमल... आप कृष्ण के चरण कमल, विग्रह, बलदेव, बलराम को देख सकते हैं, वे कैसे खूबसूरती से खड़े हैं। आप सुन्दर चरण कमल देख सकते हैं। अचानक चेहरा देखने की कोशिश मत करिये। कोशिश करिये, चरण कमल को निरंतर देखने का अभ्यास करिये।”|Vanisource:761125 - Lecture SB 05.06.03 - Vrndavana|761125 - प्रवचन श्री.भा. ०५.०६.०३ - वृंदावन}}

Latest revision as of 23:28, 20 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कृष्ण का अर्थ है प्रकाश। अंधकार..., आप अंधेरे में पीड़ित हैं। इसलिए किसी तरह अगर आप प्रकाश फैलाते हैं, तो कोई अंधकार नहीं है।
कृष्ण सूर्य समा; माया हया अंधकार
यहां कृष्ण, तहाँ नाही मायारा अधिकार
(चै.च. मद्य २२.३१)

अगर आप हमेशा कृष्ण को अपने मन में रखते हैं, कृष्ण के चरण कमल... आप कृष्ण के चरण कमल, विग्रह, बलदेव, बलराम को देख सकते हैं, वे कैसे खूबसूरती से खड़े हैं। आप सुन्दर चरण कमल देख सकते हैं। अचानक चेहरा देखने की कोशिश मत करिये। कोशिश करिये, चरण कमल को निरंतर देखने का अभ्यास करिये।”

761125 - प्रवचन श्री.भा. ०५.०६.०३ - वृंदावन