HI/770105 बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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" द्वैते भद्राभद्र साकली समान "। जगत का द्वंद्व , भौतिक जगत । हमने कुछ निर्मित किया है, " यह अच्छा है , यह बुरा है । यह नैतिक है , यह अनैतिक है " लेकिन चैतन्य-चरितामृत के लेखक ने कहा , " ये सभी मानसिक संकल्‍प हैं । सब कुछ समान है । भौतिक है । भौतिक का अर्थ है बुरा ।  
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" द्वैते भद्राभद्र सकली समान "। जगत का द्वंद्व , भौतिक जगत । हमने कुछ निर्मित किया है, " यह अच्छा है , यह बुरा है । यह नैतिक है , यह अनैतिक है " लेकिन चैतन्य-चरितामृत के लेखक ने कहा , " ये सभी मानसिक संकल्‍प हैं । सब कुछ समान है । भौतिक है । भौतिक का अर्थ है बुरा ।  
लेकिन हमने कुछ अधिवेशन किए हैं " यह अच्‍छा है , ये बुरा है " ।|Vanisource:770105 - Conversation B - Bombay|770105 - बातचीत B - बॉम्बे}}
लेकिन हमने कुछ अधिवेशन किए हैं " यह अच्‍छा है , ये बुरा है " ।|Vanisource:770105 - Conversation B - Bombay|770105 - बातचीत B - बॉम्बे}}

Latest revision as of 05:02, 17 October 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भौतिक संसार में, 'यह पाप है, यह पुण्य है । यह मानसिक मनगढ़ंत है । सब कुछ पाप है ।

" द्वैते भद्राभद्र सकली समान "। जगत का द्वंद्व , भौतिक जगत । हमने कुछ निर्मित किया है, " यह अच्छा है , यह बुरा है । यह नैतिक है , यह अनैतिक है " लेकिन चैतन्य-चरितामृत के लेखक ने कहा , " ये सभी मानसिक संकल्‍प हैं । सब कुछ समान है । भौतिक है । भौतिक का अर्थ है बुरा । लेकिन हमने कुछ अधिवेशन किए हैं " यह अच्‍छा है , ये बुरा है " ।

770105 - बातचीत B - बॉम्बे