HI/770228b - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मन का असली स्वभाव सबको ज्ञात है। संकल्प-विकल्प। कभी किसी चीज़ को स्वीकार करता है और फिर उसी चीज़ को ठुकरा देता है। यही मन का स्वभाव है। कभी-कभी यह उछलकर सत्त्व-गुण में चला जाता है तो कभी रजो-गुण में और कभी तमो-गुण में । इस प्रकार हम तरह-तरह की मानसिकताएं प्राप्त करते है। अंततः जब हम इस देह का त्याग करेंगे, तब मृत्यु के समय हमारी मानसिकता यह सुनिश्चित करेगी कि अगला शरीर सत्त्व-गुण, रजो-गुण या तमो-गुण में होगा। यही प्रक्रिया है आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने का। तो अगला शरीर मिलने से पहले हमे अपने मन को सही प्रशिक्षण देना होगा। यदि हमारा मन केवल भगवान कृष्ण पर केंद्रित रहता है तो हम सुरक्षित है। अन्यथा दुर्घटना घट सकती है।"
770228 - प्रवचन SB 07.09.08 - मायापुर