HI/770329 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७७]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७७]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - बॉम्बे]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/770329SB-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"यह वैदिक संस्कृति, भगवद्गीता का उपदेश, भारतवर्ष की भूमि पर दिया गया था, हालाँकि यह किसी विशेष वर्ग के लोगों या किसी विशेष देश के लिए नहीं है। यह सभी के लिए है- मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये ([[Vanisource:भ गी 7.3 (1972)|भ गी 7.3]])—- विशेष रूप से मनुष्य के लिए। तो हमारा अनुरोध है कि हम राजनीतिक पूर्वाग्रह के लिए आपस में लड़ सकते हैं, लेकिन क्यों हमें अपनी वास्तविक संस्कृति को, वैदिक संस्कृति को, कृष्णभावनामृत को भूलना चाहिए? हमारा यही अनुरोध है। समाज के सभी महत्वपूर्ण पुरुषों नेताओं को इस वैदिक संस्कृति को, कृष्णभावनामृत को स्वीकार करना चाहिए और न केवल अपने देश में, अपितु पूरे विश्व में इसका प्रचार करना चाहिए।"|Vanisource:770329 - Lecture SB 05.05.03-4 - Bombay|770329 - प्रवचन SB 05.05.03-4 - बॉम्बे}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/770216 बातचीत - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|770216|HI/770416 बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|770416}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/770329SB-BOMBAY_ND_01.mp3</mp3player>|"यह वैदिक संस्कृति, भगवद्गीता का उपदेश, भारतवर्ष की भूमि पर दिया गया था, हालाँकि यह किसी विशेष वर्ग के लोगों या किसी विशेष देश के लिए नहीं है। यह सभी के लिए है- मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये (भ गी 7.3)—- विशेष रूप से मनुष्य के लिए। तो हमारा अनुरोध है कि हम राजनीतिक पूर्वाग्रह के लिए आपस में लड़ सकते हैं, लेकिन क्यों हमें अपनी वास्तविक संस्कृति को, वैदिक संस्कृति को, कृष्णभावनामृत को भूलना चाहिए? हमारा यही अनुरोध है। समाज के सभी महत्वपूर्ण पुरुषों नेताओं को इस वैदिक संस्कृति को, कृष्णभावनामृत को स्वीकार करना चाहिए और न केवल अपने देश में, अपितु पूरे विश्व में इसका प्रचार करना चाहिए।"|Vanisource:770329 - Lecture SB 05.05.03-4 - Bombay|770329 - प्रवचन SB 05.05.03-4 - बॉम्बे}}

Latest revision as of 03:49, 13 February 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह वैदिक संस्कृति, भगवद्गीता का उपदेश, भारतवर्ष की भूमि पर दिया गया था, हालाँकि यह किसी विशेष वर्ग के लोगों या किसी विशेष देश के लिए नहीं है। यह सभी के लिए है- मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये (भ गी 7.3)—- विशेष रूप से मनुष्य के लिए। तो हमारा अनुरोध है कि हम राजनीतिक पूर्वाग्रह के लिए आपस में लड़ सकते हैं, लेकिन क्यों हमें अपनी वास्तविक संस्कृति को, वैदिक संस्कृति को, कृष्णभावनामृत को भूलना चाहिए? हमारा यही अनुरोध है। समाज के सभी महत्वपूर्ण पुरुषों नेताओं को इस वैदिक संस्कृति को, कृष्णभावनामृत को स्वीकार करना चाहिए और न केवल अपने देश में, अपितु पूरे विश्व में इसका प्रचार करना चाहिए।"
770329 - प्रवचन SB 05.05.03-4 - बॉम्बे