HI/770515 - श्रील प्रभुपाद Hrishikesh में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/770515ED-HRISHIKESH_ND_01.mp3</mp3player>|"कुछ लोग समझते है कि ऋषिकेश जैसे तीर्थ स्थान का महत्त्व केवल गंगा में स्नान करना होता है। ये गलत तो नहीं है परंतु असली उद्देश्य कुछ और है। यत तीर्थ बुद्धि सलिले न करहिचिज जनेष्व अभिज्ञेषु सा एव गो खरः ([[Vanisource:SB 10.84.13|श्री.भा १०.८४.१३]])। यत तीर्थ बुद्धि सलिले। हर तीर्थ स्थान में गंगा अथवा यमुना बहती है। कम से कम भारत में पवित्र नदियों के तट पर असंख्य तीर्थ स्थान है। तो हमारी मानसिकता पशुओं कि भांति होगी यदि हम केवल पवित्र नदी का लाभ उठाए, यत तीर्थ बुद्धि सलिले, और वहाँ पर रहने वाले महान साधु-संतों का आश्रय ग्रहण न करे। "|Vanisource:770515 - Conversation - Hrishikesh|770515 - बातचीत - | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/770515ED-HRISHIKESH_ND_01.mp3</mp3player>|"कुछ लोग समझते है कि ऋषिकेश जैसे तीर्थ स्थान का महत्त्व केवल गंगा में स्नान करना होता है। ये गलत तो नहीं है परंतु असली उद्देश्य कुछ और है। यत तीर्थ बुद्धि सलिले न करहिचिज जनेष्व अभिज्ञेषु सा एव गो खरः ([[Vanisource:SB 10.84.13|श्री.भा १०.८४.१३]])। यत तीर्थ बुद्धि सलिले। हर तीर्थ स्थान में गंगा अथवा यमुना बहती है। कम से कम भारत में पवित्र नदियों के तट पर असंख्य तीर्थ स्थान है। तो हमारी मानसिकता पशुओं कि भांति होगी यदि हम केवल पवित्र नदी का लाभ उठाए, यत तीर्थ बुद्धि सलिले, और वहाँ पर रहने वाले महान साधु-संतों का आश्रय ग्रहण न करे। "|Vanisource:770515 - Conversation - Hrishikesh|770515 - बातचीत - ऋषिकेश}} |
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कुछ लोग समझते है कि ऋषिकेश जैसे तीर्थ स्थान का महत्त्व केवल गंगा में स्नान करना होता है। ये गलत तो नहीं है परंतु असली उद्देश्य कुछ और है। यत तीर्थ बुद्धि सलिले न करहिचिज जनेष्व अभिज्ञेषु सा एव गो खरः (श्री.भा १०.८४.१३)। यत तीर्थ बुद्धि सलिले। हर तीर्थ स्थान में गंगा अथवा यमुना बहती है। कम से कम भारत में पवित्र नदियों के तट पर असंख्य तीर्थ स्थान है। तो हमारी मानसिकता पशुओं कि भांति होगी यदि हम केवल पवित्र नदी का लाभ उठाए, यत तीर्थ बुद्धि सलिले, और वहाँ पर रहने वाले महान साधु-संतों का आश्रय ग्रहण न करे। " |
770515 - बातचीत - ऋषिकेश |