HI/BG 18.77: Difference between revisions

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Revision as of 10:01, 18 August 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 77

j

शब्दार्थ

तत्—उस; च—भी; संस्मृत्य—स्मरण करके; संस्मृत्य—स्मरण करके; रूपम्—स्वरूप को; अति—अत्यधिक; अद्भुतम्—अद्भुत; हरे:—भगवान् कृष्ण के; विस्मय:—आश्चर्य; मे—मेरा; महान्—महान; राजन्—हे राजा; हृष्यामि—हॢषत हो रहा हूँ; च—भी; पुन: पुन:—फिर-फिर, बारम्बार।

अनुवाद

हे राजन्! भगवान् कृष्ण के अद्भुत रूप का स्मरण करते ही मैं अधिकाधिक आश्चर्यचकित होता हूँ और पुनःपुनः हर्षित होता हूँ |

तात्पर्य

ऐसा प्रतीत होता है कि व्यास की कृपा से संजय ने भी अर्जुन को दिखाये गये कृष्ण के विराट रूप को देखा था | निस्सन्देह यह कहा जाता है कि इसके पूर्व भगवान् कृष्ण ने कभी ऐसा रूप प्रकट नहीं किया था | यह केवल अर्जुन को दिखाया गया था, लेकिन उस समय कुछ महान भक्त भी उसे देख सके तथा व्यास उनमें से एक थे | वे भगवान् के परम भक्तों में से हैं और कृष्ण के शक्त्यावेश अवतार माने जाते हैं | व्यास ने इसे अपने शिष्य संजय के समक्ष प्रकट किया जिन्होंने अर्जुन को प्रदर्शित किये गये कृष्ण के उस अद्भुत रूप को स्मरण रखा और वे बारम्बार उसका आनन्द उठा रहे थे |