HI/Prabhupada 0062 - चौबीस घंटे कृष्ण को देखें

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Lecture on SB 1.8.18 -- Chicago, July 4, 1974

प्रभुपाद: अाराधितो यदि हरिस तपसा ततह किम्। अगर तुम श्री कृष्ण की पूजा करने में सक्षम हो, तो कोइ अन्य अधिक तपस्या की कोई जरूरत नहीं है ... क्योंकि आत्म बोध या भगवान को जानने के लिए इतनी सारी प्रक्रियाऍ, तपस्याऍ हैं। कभी कभी हम जंगल में जाते हैं, जंगल में जाते हैं भगवान को देखने के लिए, ... तो विभिन्न प्रक्रियाओं हैं, लेकिन शास्त्र कहते हैं कि वास्तव में अगर तुम कृष्ण की पूजा कर रहे हो, अाराधितो यदि हरिस तपसा ततह किम्, तो तुम्हे गंभीर तपस्या से गुज़रने की आवश्यकता नहीं है। अौर नाराधितो, नाराधितो यदि हरिस तपसा ततह किम्, और अंत में गंभीर तपस्याअों से गुज़रने के बाद, अगर तुम कृष्ण को नहीं जान पाते हो, तो क्या फायदा? यह बेकार है। नाराधितो यदि हरिस तपसा ततह किम्, अंतर बहिर यदि हरिस तपसा ततह किम्। इसी तरह, अगर तुम अपने भीतर और बाहर, चौबीस घंटे कृष्ण को देख सकते हो, तो तब यह सब तपस्या का अंत है। तो यहाँ कृष्ण फिर कहते हैं, कुंती कहती हैं कि "हॉलाकि कृष्ण भीतर और बाहर हैं, क्योंकि उनहें देखने के लिए हमारे पास आँखें नहीं है, "अलक्ष्‍यम्" "अदृश्य" जैसे यहाँ कृष्ण, कुरुक्क्षेत्र की लड़ाई में उपस्थित थे, केवल पांच पांडव और उनकी मां कुंती, वे समझ सकते थे कि कृष्ण देवत्व के सर्वोच्च व्यक्तित्व हैं। और कुछ अन्य व्यक्ति। तो हॉलािक कृष्ण मौजूद थे, किसी ने साधारण इंसान के रूप में उन्हे समझा। अवजा..., अवजानन्ति माम् मूढा मानुशिम् तनुम् अाशृ़तम्। क्योंकि वह मानव समाज के प्रति बहुत दयालु थे, वह व्यक्तिगत रूप से आए। फिर भी उन्हें देखने के लिए उनके पास आँखें नहीं थी, वे नहीं देख सके। इसलिए कुंती कहती हैं अलक्ष्‍यम्, "आप दिखाई नहीं देते हो, हॉलाकि अाप अंतह बहिह सर्व भूतानाम्।" ऐसा नहीं है कि अंतह बहिह भक्त के - सबके। हर किसी के दिल में कृष्ण स्थित है, ईष्वरह सर्व भूतानाम् ह्रद-देशे। इशारा करते हुए, ह्रद-देशे, यहाँ दिल में, कृष्ण हैं। अब, इसलिए, ध्यान, योग सिद्धांत, है कि कैसे दिल के भीतर कृष्ण का पता लगाऍ। यही ध्यान कहा जाता है। तो कृष्ण की स्थिति हमेशा उत्कृष्ट है। अगर हम इस दिव्य प्रक्रिया, कृष्ण चेतना, को स्वीकार करते हैं, नियामक सिद्धांतों, और पापमय जीवन से मुक्त बनने के लिए प्रयास करें। क्योंकि तुम कृष्ण को देख नहीं सकते या समझ नहीं सकते जब तक तुम सब पापी गतिविधियों में भागिदार हो। यह मुम्किन नहीं। न माम् दुष्क्रितिनो मूढा प्रपद्यन्ते नराधमाह। जो दुष्क्रितिनह...क्रिति मतलब योग्यता, सराहनीय। पर दुष्क्रिति, लेकिन योग्यता जब पापी गतिविधियों में लगाई जाए तो, हम इसलिए अनुरोध ... हम अनुरोध नहीं करते, यह हमारे, मेरे कहने का मतलब है, नियम और विनियमन हैं, हर एक को पापी गतिविधियों से मुक्त होना चाहिए। पापी गतिविधियॉ, पापी जीवन के चार स्तंभ, अवैध यौन जीवन, मांस खाना, नशा और जुए हैं। तो हमारे छात्रों को सलाह दी जाती है ..., सलाह नहीं दी, उन्हें पालन करना होगा, अन्यथा वे नीचे गिर जाऍगे। क्योंकि एक पापी मनुष्य भगवान को नहीं समझ सकता है। एक तरफ हमें, नियामक सिद्धांतों और भक्ति प्रक्रिया का अभ्यास करना चाहिए, दूसरे पक्ष हमें पापी गतिविधियों से बचना चाहिए। तब कृष्ण मौजूद हैं, और तुम कृष्ण के साथ बात कर सकते हो, हम कृष्ण के साथ हो सकते हैं। कृष्ण बहुत दयालु हैं। जैसे कुंती अपने भतीजे कृष्ण के साथ बात कर रही है, इसी तरह तुम कृष्ण के साथ बात कर सकते हो, अपने बेटे के रूप में, अपने पति के रूप में, अपने प्रेमी के रूप में, अपने दोस्त के रूप में, अपने मालिक के रूप में, जैसे तुम चाहो। तो मैं बहुत खुश हुँ शिकागो मंदिर को देख कर, आप सब बहुत अच्छा कर रहे हैं, और हॉल भी बहुत अच्छा है। तो अपनी सेवा भावना जारी रखो और कृष्ण का बोध करो। तो फिर तुम्हारा जीवन सफल होगा। बहुत बहुत धन्यवाद।

भक्त जन: जया! हरि बोल!