HI/Prabhupada 0064 - सिद्धि का अर्थ है जीवन का सिद्ध होना

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Lecture on SB 6.1.15 -- Denver, June 28, 1975

केचित का अर्थ है "कोई एक" । "बहुत दुर्लभ" । "कोई एक" का अर्थ है "बहुत दुर्लभ" । वासुदेव-परायणा: बनना इतना आसान नहीं है । कल मैंने समझाया कि भगवान, कृष्ण, कहते हैं कि

यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेति तत्वत:
मनुष्याणां सहस्रेशु कश्चिद्यतति सिद्धये
(भ गी ७.३ )।

सिद्धि का अर्थ है जीवन का सिद्ध होना । आम तौर पर वे इसे योग अभ्यास की अष्ट-सिद्धि समझते हैं - अणिमा, लघिमा, महिमा, प्राप्ति, सिद्धि, ईशित्व, वशित्व, प्राकाम्य । तो इन्हें सिद्धि कहा जाता है, योग सिद्धि । योग-सिद्धि का अर्थ है आप छोटे से छोटे हो सकते हैं । हमारा वास्तव में आकार बहुत-बहुत छोटा है । तो योग-सिद्धि से, यह भौतिक शरीर होने के बावजूद, एक योगी, सबसे छोटे आकार में आ सकता है, और कहीं भी आप उसे बंद रखो, वह बाहर आ जाएगा । यही अणिमा-सिद्धि कही जाती है । इसी तरह, महिमा-सिद्धि, लघिमा-सिद्धि है । वह कपास की पट्टी से भी अधिक हल्का हो सकता है । योगी, वे इतने हल्के हो जाते हैं ।

अाज भी भारत में योगी हैं । हाँ, हमारे बचपन में हमने एक योगी देखा था, वह मेरे पिताजी से मिलने अाता था । तो उसने कहा कि वह कुछ सेकंड के भीतर कहीं भी जा सकता है । और कभी-कभी वे प्रात: काल, हरिद्वार, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम् जाते हैं, और अपना स्नान करते हैं गंगा में और दूसरी विभिन्न नदियों में । यही लघिमा-सिद्धि कही जाती है । आप बहुत हल्के हो जाते हैं । वह कहा करता था कि, "हम अपने गुरु के साथ बैठे हैं और बस छू रहे हैं । हम यहाँ बैठे हैं और कुछ सैकंड के बाद, हम एक अलग स्थान में बैठते हैं ।" यही लघिमा-सिद्धि कही जाती है ।

तो योग सिद्धियाँ कई होती हैं । लोग इन योग सिद्धियों को देखकर बहुत हैरान हो जाते हैं । लेकिन कृष्ण कहते हैं, यततामपि सिद्धानां। (भ गी ७.३ ) ऐसे कई सिद्धों में से, जो योग सिद्धि प्राप्त कर चुके हैं," यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेति तत्वत: (भ गी ७.३ ) "कोई एक मुझे जान पाता है ।"

तो कोई वयक्ति कुछ योग-सिद्धि प्राप्त कर सकता है; फिर भी कृष्ण को समझना संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । कृष्ण को केवल ऐसे व्यक्ति ही समझ सकते हैं जिन्होंने सब कुछ कृष्ण को समर्पित कर दिया है। इसलिए कृष्ण चाहते हैं कि, अनुरोध करते हैं, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं (भ गी १८.६६) । कृष्ण कवेल उनके शुद्ध भक्तों द्वारा ही समझे जा सकते हैं, किसी और से नहीं।