HI/Prabhupada 0067 - गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0067 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1974 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in USA]]
[[Category:HI-Quotes - in USA]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0066 - हमें कृष्ण की इच्छाओं से सेहमत होना है|0066|HI/Prabhupada 0068 - हर किसी को काम करना पड़ता है|0068}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
'''<big>[[Vaniquotes:Sleeping is not good. The Gosvamis used to sleep only two hours. I also write at night book, and I also sleep, not more then three hours. But I take sometimes little, sleep more|Original Vaniquotes page in English]]</big>'''
'''<big>[[Vaniquotes:Sleeping is not good. The Gosvamis used to sleep only two hours. I also write at night book, and I also sleep, not more than three hours. But I take sometimes little, sleep more|Original Vaniquotes page in English]]</big>'''
</div>
</div>
----
----
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|h9Uu7ET_xp0|The Gosvamis Used to Sleep Only Two Hours - Prabhupāda 0067}}
{{youtube_right|BErwJrrDG1o|गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थें <br /> - Prabhupāda 0067}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/740123SB.HAW_clip.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/740123SB.HAW_clip.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->     
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->     
तो जो कुछ भी कृष्ण चेतना आंदोलन आगे जा रहा है, यह श्री चैतन्य महाप्रभु की उदार दया की वजह से है इस काली-युग में पीड़ित अभागे लोगों के लिए। अन्यथा, कृष्ण के प्रति जागरूक बनना, बहुत आसान काम नहीं है, आसान नहीं है। तो जिन लोगों को श्री कृष्ण के प्रति जागरूक बनने का मौका मिल रहा है ,श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से, उन्हें यह अवसर गंवाना नहीं चाहिए। यह आत्मघाती होगा। नीचे मत गिरो। यह बहुत आसान है। बस, हरे कृष्ण मंत्र के जप से, हमेशा नहीं, चौबीस घंटे, हालांकि यह चैतन्य महाप्रभु की सिफारिश है, कीर्तनीय सदा हरि: ( चै च अादि १७।३१)। यही सिद्धांत है। लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हम इतना कलि के प्रभाव से अभिभूत हैं। तो कम से कम सोलह माला का जाप। यह चूकना नहीं। यह चूकना नहीं। क्या कठिनाई है, सोलह माला का जाप करने में? ज्यादा से ज्यादा इसमे दो घंटे का समय लगेग। तुम्हारे पास चौबीस घंटे हैं। तुम सोना चाहते हैं, ठीक है, सो, दस घंटे की नींद। यह सिफारिश नहीं है। छह घंटे से अधिक नींद करें। लेकिन वे सोना चाहता हैं। वे चौबीस घंटे सोना चाहते हैं। इस काली-युग में यह उनकी इच्छा है। लेकिन, नहीं। तो आप समय बर्बाद करोगे। न्यूनतम खाना, सोना, संभोग और बचाव। जब यह नहीं के बराबर है, तो वह पूर्णता है। क्योंकि यह शारीरिक आवश्यकताऍ हैं। भोजन, सोना, संभोग, बचाव यह शारीरिक आवश्यकताऍ हैं। पर मैं यह शरीर नहीं हूँ। देहिनो अस्मिन् यथा देहे कौमारम्....(भ गी २।१३) तो यह अहसास होने में समय लगता है। लेकिन जब हम वास्तव में कृष्ण चेतना में आगे बढ़ रहे हैं, हमें अपने कर्तव्य का पता होना चाहिए। छह घंटे से अधिक नहीं सोना। अत्यंत आठ घंटे। अत्यंत, जो नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। लेकिन दस घंटे, बारह घंटे, पंद्रह घंटे, नहीं। तब इसका उपयोग क्या है ...? कोइ व्यक्ति एक उन्नत भक्त को देखने के लिए चला गया, और नौ बजे वह सो रहा था। और वह उन्नत भक्त है। एह? है क्या? तो क्या है ...? वह किस तरह का भक्त है? भक्तों को सुबह जल्दी उठना चाहिए चार बजे तक। पाँच बजे तक अपने स्नान और अन्य चीजों को खत्म करना चाहिए। फिर वह जप और बाकि सब... चौबीस घंटे व्यस्त रहना चाहिए। इसलिए सोने अच्छा नहीं है। वह गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे। मैं भी रात को पुस्तक लिखता हूँ, और मैं भी तीन घंटे से अधिक तो नहीं सोता हूँ। लेकिन मैं , कभी कभी थोड़ा और अधिक सोता हूँ। एसे नहीं ... मैं गोस्वामी की नकल नहीं करता हूँ। यह संभव नहीं है। लेकिन जहां तक ​​संभव हो, तो हर किसि को बचने की कोशिश करनी चाहिए। और सोने से बचने का मतलब है अगर हम कम खाते हैं, तो हम बच पाऍगे। खाना, सोना। खाने के बाद, सोना है। हम और अधिक खाते हैं , तो और अधिक सोऍगे। हम कम खाते हैं, तो कम सोऍगे। संभोग, सोना, भोजन और संभोग से परहेज किया जाना चाहिए. यह एक महान निषेध है। सेक्स जीवन जहॉ तक संभव है कम से कम करना चाहिए। इसलिए हमने यह प्रतिबंध लगया है, "कोई भी अवैध सेक्स नहीं।" सेक्स जीवन, हम नहीं कहते हैं कि "तुम ऐसा नहीं कर सकते हो।" कोई भी नहीं कर सकता है। इसलिए सेक्स जीवन का मतलब है विवाहित जीवन, एक छोटी से रियायत। एक लाइसेंस, "ठीक है, तुम यह लाइसेंस लो।" लेकिन अवैध सेक्स नहीं। तो तुम सक्षम कभी नहीं होगे। तो खाना, सोना, संभोग और बचाव। और बचाव, हम तो कई मायनों में बचाव कर रहे हैं, लेकिन अभी भी युद्ध है, और भौतिक प्रकृति के हमले ... तुम्हारे देश नें तो अच्छी तरह से बचाव किया है, लेकिन अब पेट्रोल छीन लिया है.तुम रक्षा नहीं कर सकते हो। इसी तरह, सब कुछ किसी भी क्षण में दूर हो सकता है। तो रक्षा के लिए कृष्ण पर निर्भर करो। अवश्य रक्शिबे कृष्ण। इसे आत्मसमर्पण कहा जाता है। आत्मसमर्पण, इसका मतलब है ... कृष्ण कहते हैं "तुम मुझे पर्यत आत्मसमर्पण करो।" सर्व-धर्मान् परित्यज्य (भ गि १८।६६) हमें इस पर विश्वास करना चाहिए कि "कृष्ण आत्मसमर्पण करने को कह रहे हैं। " मुझे आत्मसमर्पण करना है। उसे खतरे में मेरी रक्षा करेनी पडेगी। " यही समर्पण कहा जाता है।
तो जितना भी कृष्णभावनामृत आंदोलन अग्रसर हो रहा है, यह श्री चैतन्य महाप्रभु की उदार दया की वजह से है इस कलि-युग में पीड़ित अभागे लोगों के लिए । अन्यथा, कृष्णभावनाभावित बनना, बहुत आसान कार्य नहीं है, आसान नहीं है । तो जिन लोगों को कृष्णभावनाभावित बनने का मौका मिल रहा है, श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से, उन्हें यह अवसर गँवाना नहीं चाहिए । यह आत्मघातक होगा । नीचे मत गिरो । यह बहुत आसान है । केवल जप करने से, हरे कृष्ण मंत्र का हमेशा नहीं, चौबीस घण्टे, हालांकि यह चैतन्य महाप्रभु की संस्तुति है, कीर्तनीय: सदा हरि: ([[Vanisource:CC Adi 17.31|चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१ ]]), निरन्तर जप करो । यही सिद्धांत है ।
 
लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हम कलि के प्रभाव से अभिभूत हैं । तो कम से कम सोलह माला का जाप । इसे न छोड़ें । इसे न छोड़ें । क्या कठिनाई है, सोलह माला का जप करने में ? ज्य़ादा से ज्य़ादा इसमे दो घंटे का समय लगेगा । आपके पास चौबीस घंटे हैं । आप सोना चाहते हैं, ठीक है, सो जाअो, दस घंटे की नींद । इसकी संस्तुति नहीं की गई है ।  छह घंटे से अधिक न सोएँ । लेकिन वे सोना चाहता हैं ।  वे चौबीस घंटे सोना चाहते हैं । कलि-युग में उनकी यह इच्छा है । लेकिन, नहीं । तब आप समय बर्बाद करोगे ।
 
खाना, सोना, संभोग और बचाव करना कम करें। जब यह शून्य हो जाएगा, तब पूर्णता है । क्योंकि यह शारीरिक आवश्यकताएँ हैं । खाना, सोना, संभोग, बचाव यह शारीरिक आवश्यकताएँ हैं । परन्तु मैं यह शरीर नहीं हूँ । देहिनो अस्मिन् यथा देहे कौमारं...([[HI/BG 2.13|भ गी २.१३ ]]) तो यह अनुभूति होने में समय लगता है । लेकिन जब हम वास्तव में कृष्णभावनामृत में आगे बढ़ रहे हैं, हमें अपने कर्तव्य का पता होना चाहिए । छह घंटे से अधिक न सोना । ज़्यादा से ज़्यादा आठ घंटे ।  ज़्यादा से ज़्यादा, जो नियंत्रित नहीं कर सकते हैं । लेकिन दस घंटे, बारह घंटे, पंद्रह घंटे, नहीं । तब इसका क्या फायदा हुअा... ?
 
कोई व्यक्ति एक उन्नत भक्त के दर्शन करने के लिए गया और नौ बजे वह सो रहा था । और वह उन्नत भक्त है । एह ? क्या वह नहीं ? तो क्या है ...? वह किस तरह का भक्त है ? भक्त को सुबह जल्दी उठना चाहिए, चार बजे तक । पाँच बजे तक, उसे अपना स्नान और अन्य चीजों को पूरा करना चाहिए । फिर वह जप करता है और अन्य कई... चौबीस घंटे व्यस्त रहना चाहिए । तो सोना अच्छा नहीं है । गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे । मैं भी रात को पुस्तक लिखता हूँ और मैं भी तीन घंटे से अधिक नहीं सोता हूँ । लेकिन मैं, कभी कभी थोड़ा और अधिक सोता हूँ । ऐसा नहीं ... मैं गोस्वामियों की नकल नहीं करता हूँ ।  यह संभव नहीं है । लेकिन जहाँ तक ​​संभव हो, तो हर किसी को बचने का प्रयास करना चाहिए । और सोने से बचने का अर्थ है यदि हम कम खाते हैं, तो हम बच पाएँगे ।
 
खाना, सोना । खाने के बाद, सोना है । तो अगर हम ज़्यादा खाते हैं, तो और अधिक सोएँगे । यदि हम कम खाते हैं, तो कम सोएँगे । खाना, सोना, संभोग । और संभोग से परहेज़ किया जाना चाहिए यह एक प्रधान निषेध है । जहाँ तक संभव हो यौन जीवन को कम किया जाना चाहिए । इसलिए हमने यह प्रतिबंध लगया है, "कोई अवैध संबंध नहीं ।" यौन जीवन, हम नहीं कहते हैं कि "आप ऐसा नहीं कर सकते " कोई भी नहीं कर सकता इसलिए यौन जीवन का अर्थ है विवाहित जीवन, थोड़ी-सी छूट । एक अनुज्ञापत्र, "ठीक है, आप यह लाइसेंस लो ।" लेकिन अवैध संग नहीं । तो आप कभी सक्षम नहीं होंगे ।
 
तो खाना, सोना, संभोग और बचाव करना । और बचाव करना, हम कई तरीकों से बचाव कर रहे हैं, लेकिन फिर भी भी युद्ध हो रहे हैं, और भौतिक प्रकृति के हमले... आपका देश बहुत अच्छी तरह से बचाव कर रहा है, लेकिन अब पेट्रोल छीन लिया गया है । आप रक्षा नहीं कर सकते इसी तरह, किसी भी क्षण सब कुछ छीन लिया जा सकता है ।
 
तो रक्षा के लिए कृष्ण पर निर्भर रहो, रक्षा । अवश्य रक्षिबे कृष्ण । इसे शरणागति कहा जाता है । शरणगति का अर्थ है... कृष्ण कहते हैं, "तुम मेरी शरण में आओ ।" सर्वधर्मान्परित्यज्य ([[HI/BG 18.66|गी १८.६६ ]]) । आइए हम इस पर विश्वास करें कि, "कृष्ण शरणागत होने के लिए कह रहे हैं । मुझे शरणगत होना है । उन्हे संकट की स्थिति में मेरी रक्षा करनी होगी ।" इसे शरणागति कहते हैं ।
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 18:04, 17 September 2020



Lecture on SB 1.16.26-30 -- Hawaii, January 23, 1974

तो जितना भी कृष्णभावनामृत आंदोलन अग्रसर हो रहा है, यह श्री चैतन्य महाप्रभु की उदार दया की वजह से है इस कलि-युग में पीड़ित अभागे लोगों के लिए । अन्यथा, कृष्णभावनाभावित बनना, बहुत आसान कार्य नहीं है, आसान नहीं है । तो जिन लोगों को कृष्णभावनाभावित बनने का मौका मिल रहा है, श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से, उन्हें यह अवसर गँवाना नहीं चाहिए । यह आत्मघातक होगा । नीचे मत गिरो । यह बहुत आसान है । केवल जप करने से, हरे कृष्ण मंत्र का हमेशा नहीं, चौबीस घण्टे, हालांकि यह चैतन्य महाप्रभु की संस्तुति है, कीर्तनीय: सदा हरि: (चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१ ), निरन्तर जप करो । यही सिद्धांत है ।

लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हम कलि के प्रभाव से अभिभूत हैं । तो कम से कम सोलह माला का जाप । इसे न छोड़ें । इसे न छोड़ें । क्या कठिनाई है, सोलह माला का जप करने में ? ज्य़ादा से ज्य़ादा इसमे दो घंटे का समय लगेगा । आपके पास चौबीस घंटे हैं । आप सोना चाहते हैं, ठीक है, सो जाअो, दस घंटे की नींद । इसकी संस्तुति नहीं की गई है । छह घंटे से अधिक न सोएँ । लेकिन वे सोना चाहता हैं । वे चौबीस घंटे सोना चाहते हैं । कलि-युग में उनकी यह इच्छा है । लेकिन, नहीं । तब आप समय बर्बाद करोगे ।

खाना, सोना, संभोग और बचाव करना कम करें। जब यह शून्य हो जाएगा, तब पूर्णता है । क्योंकि यह शारीरिक आवश्यकताएँ हैं । खाना, सोना, संभोग, बचाव यह शारीरिक आवश्यकताएँ हैं । परन्तु मैं यह शरीर नहीं हूँ । देहिनो अस्मिन् यथा देहे कौमारं...(भ गी २.१३ ) । तो यह अनुभूति होने में समय लगता है । लेकिन जब हम वास्तव में कृष्णभावनामृत में आगे बढ़ रहे हैं, हमें अपने कर्तव्य का पता होना चाहिए । छह घंटे से अधिक न सोना । ज़्यादा से ज़्यादा आठ घंटे । ज़्यादा से ज़्यादा, जो नियंत्रित नहीं कर सकते हैं । लेकिन दस घंटे, बारह घंटे, पंद्रह घंटे, नहीं । तब इसका क्या फायदा हुअा... ?

कोई व्यक्ति एक उन्नत भक्त के दर्शन करने के लिए गया और नौ बजे वह सो रहा था । और वह उन्नत भक्त है । एह ? क्या वह नहीं ? तो क्या है ...? वह किस तरह का भक्त है ? भक्त को सुबह जल्दी उठना चाहिए, चार बजे तक । पाँच बजे तक, उसे अपना स्नान और अन्य चीजों को पूरा करना चाहिए । फिर वह जप करता है और अन्य कई... चौबीस घंटे व्यस्त रहना चाहिए । तो सोना अच्छा नहीं है । गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे । मैं भी रात को पुस्तक लिखता हूँ और मैं भी तीन घंटे से अधिक नहीं सोता हूँ । लेकिन मैं, कभी कभी थोड़ा और अधिक सोता हूँ । ऐसा नहीं ... मैं गोस्वामियों की नकल नहीं करता हूँ । यह संभव नहीं है । लेकिन जहाँ तक ​​संभव हो, तो हर किसी को बचने का प्रयास करना चाहिए । और सोने से बचने का अर्थ है यदि हम कम खाते हैं, तो हम बच पाएँगे ।

खाना, सोना । खाने के बाद, सोना है । तो अगर हम ज़्यादा खाते हैं, तो और अधिक सोएँगे । यदि हम कम खाते हैं, तो कम सोएँगे । खाना, सोना, संभोग । और संभोग से परहेज़ किया जाना चाहिए । यह एक प्रधान निषेध है । जहाँ तक संभव हो यौन जीवन को कम किया जाना चाहिए । इसलिए हमने यह प्रतिबंध लगया है, "कोई अवैध संबंध नहीं ।" यौन जीवन, हम नहीं कहते हैं कि "आप ऐसा नहीं कर सकते ।" कोई भी नहीं कर सकता । इसलिए यौन जीवन का अर्थ है विवाहित जीवन, थोड़ी-सी छूट । एक अनुज्ञापत्र, "ठीक है, आप यह लाइसेंस लो ।" लेकिन अवैध संग नहीं । तो आप कभी सक्षम नहीं होंगे ।

तो खाना, सोना, संभोग और बचाव करना । और बचाव करना, हम कई तरीकों से बचाव कर रहे हैं, लेकिन फिर भी भी युद्ध हो रहे हैं, और भौतिक प्रकृति के हमले... आपका देश बहुत अच्छी तरह से बचाव कर रहा है, लेकिन अब पेट्रोल छीन लिया गया है । आप रक्षा नहीं कर सकते । इसी तरह, किसी भी क्षण सब कुछ छीन लिया जा सकता है ।

तो रक्षा के लिए कृष्ण पर निर्भर रहो, रक्षा । अवश्य रक्षिबे कृष्ण । इसे शरणागति कहा जाता है । शरणगति का अर्थ है... कृष्ण कहते हैं, "तुम मेरी शरण में आओ ।" सर्वधर्मान्परित्यज्य (भ गी १८.६६ ) । आइए हम इस पर विश्वास करें कि, "कृष्ण शरणागत होने के लिए कह रहे हैं । मुझे शरणगत होना है । उन्हे संकट की स्थिति में मेरी रक्षा करनी होगी ।" इसे शरणागति कहते हैं ।