HI/Prabhupada 0067 - गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे: Difference between revisions
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तो | तो जितना भी कृष्णभावनामृत आंदोलन अग्रसर हो रहा है, यह श्री चैतन्य महाप्रभु की उदार दया की वजह से है इस कलि-युग में पीड़ित अभागे लोगों के लिए । अन्यथा, कृष्णभावनाभावित बनना, बहुत आसान कार्य नहीं है, आसान नहीं है । तो जिन लोगों को कृष्णभावनाभावित बनने का मौका मिल रहा है, श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से, उन्हें यह अवसर गँवाना नहीं चाहिए । यह आत्मघातक होगा । नीचे मत गिरो । यह बहुत आसान है । केवल जप करने से, हरे कृष्ण मंत्र का हमेशा नहीं, चौबीस घण्टे, हालांकि यह चैतन्य महाप्रभु की संस्तुति है, कीर्तनीय: सदा हरि: ([[Vanisource:CC Adi 17.31|चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१ ]]), निरन्तर जप करो । यही सिद्धांत है । | ||
लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हम कलि के प्रभाव से अभिभूत हैं । तो कम से कम सोलह माला का जाप । इसे न छोड़ें । इसे न छोड़ें । क्या कठिनाई है, सोलह माला का जप करने में ? ज्य़ादा से ज्य़ादा इसमे दो घंटे का समय लगेगा । आपके पास चौबीस घंटे हैं । आप सोना चाहते हैं, ठीक है, सो जाअो, दस घंटे की नींद । इसकी संस्तुति नहीं की गई है । छह घंटे से अधिक न सोएँ । लेकिन वे सोना चाहता हैं । वे चौबीस घंटे सोना चाहते हैं । कलि-युग में उनकी यह इच्छा है । लेकिन, नहीं । तब आप समय बर्बाद करोगे । | |||
खाना, सोना, संभोग और बचाव करना कम करें। जब यह शून्य हो जाएगा, तब पूर्णता है । क्योंकि यह शारीरिक आवश्यकताएँ हैं । खाना, सोना, संभोग, बचाव यह शारीरिक आवश्यकताएँ हैं । परन्तु मैं यह शरीर नहीं हूँ । देहिनो अस्मिन् यथा देहे कौमारं...([[HI/BG 2.13|भ गी २.१३ ]]) । तो यह अनुभूति होने में समय लगता है । लेकिन जब हम वास्तव में कृष्णभावनामृत में आगे बढ़ रहे हैं, हमें अपने कर्तव्य का पता होना चाहिए । छह घंटे से अधिक न सोना । ज़्यादा से ज़्यादा आठ घंटे । ज़्यादा से ज़्यादा, जो नियंत्रित नहीं कर सकते हैं । लेकिन दस घंटे, बारह घंटे, पंद्रह घंटे, नहीं । तब इसका क्या फायदा हुअा... ? | |||
कोई व्यक्ति एक उन्नत भक्त के दर्शन करने के लिए गया और नौ बजे वह सो रहा था । और वह उन्नत भक्त है । एह ? क्या वह नहीं ? तो क्या है ...? वह किस तरह का भक्त है ? भक्त को सुबह जल्दी उठना चाहिए, चार बजे तक । पाँच बजे तक, उसे अपना स्नान और अन्य चीजों को पूरा करना चाहिए । फिर वह जप करता है और अन्य कई... चौबीस घंटे व्यस्त रहना चाहिए । तो सोना अच्छा नहीं है । गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे । मैं भी रात को पुस्तक लिखता हूँ और मैं भी तीन घंटे से अधिक नहीं सोता हूँ । लेकिन मैं, कभी कभी थोड़ा और अधिक सोता हूँ । ऐसा नहीं ... मैं गोस्वामियों की नकल नहीं करता हूँ । यह संभव नहीं है । लेकिन जहाँ तक संभव हो, तो हर किसी को बचने का प्रयास करना चाहिए । और सोने से बचने का अर्थ है यदि हम कम खाते हैं, तो हम बच पाएँगे । | |||
खाना, सोना । खाने के बाद, सोना है । तो अगर हम ज़्यादा खाते हैं, तो और अधिक सोएँगे । यदि हम कम खाते हैं, तो कम सोएँगे । खाना, सोना, संभोग । और संभोग से परहेज़ किया जाना चाहिए । यह एक प्रधान निषेध है । जहाँ तक संभव हो यौन जीवन को कम किया जाना चाहिए । इसलिए हमने यह प्रतिबंध लगया है, "कोई अवैध संबंध नहीं ।" यौन जीवन, हम नहीं कहते हैं कि "आप ऐसा नहीं कर सकते ।" कोई भी नहीं कर सकता । इसलिए यौन जीवन का अर्थ है विवाहित जीवन, थोड़ी-सी छूट । एक अनुज्ञापत्र, "ठीक है, आप यह लाइसेंस लो ।" लेकिन अवैध संग नहीं । तो आप कभी सक्षम नहीं होंगे । | |||
तो खाना, सोना, संभोग और बचाव करना । और बचाव करना, हम कई तरीकों से बचाव कर रहे हैं, लेकिन फिर भी भी युद्ध हो रहे हैं, और भौतिक प्रकृति के हमले... आपका देश बहुत अच्छी तरह से बचाव कर रहा है, लेकिन अब पेट्रोल छीन लिया गया है । आप रक्षा नहीं कर सकते । इसी तरह, किसी भी क्षण सब कुछ छीन लिया जा सकता है । | |||
तो रक्षा के लिए कृष्ण पर निर्भर रहो, रक्षा । अवश्य रक्षिबे कृष्ण । इसे शरणागति कहा जाता है । शरणगति का अर्थ है... कृष्ण कहते हैं, "तुम मेरी शरण में आओ ।" सर्वधर्मान्परित्यज्य ([[HI/BG 18.66|भ गी १८.६६ ]]) । आइए हम इस पर विश्वास करें कि, "कृष्ण शरणागत होने के लिए कह रहे हैं । मुझे शरणगत होना है । उन्हे संकट की स्थिति में मेरी रक्षा करनी होगी ।" इसे शरणागति कहते हैं । | |||
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Latest revision as of 18:04, 17 September 2020
Lecture on SB 1.16.26-30 -- Hawaii, January 23, 1974
तो जितना भी कृष्णभावनामृत आंदोलन अग्रसर हो रहा है, यह श्री चैतन्य महाप्रभु की उदार दया की वजह से है इस कलि-युग में पीड़ित अभागे लोगों के लिए । अन्यथा, कृष्णभावनाभावित बनना, बहुत आसान कार्य नहीं है, आसान नहीं है । तो जिन लोगों को कृष्णभावनाभावित बनने का मौका मिल रहा है, श्री चैतन्य महाप्रभु की कृपा से, उन्हें यह अवसर गँवाना नहीं चाहिए । यह आत्मघातक होगा । नीचे मत गिरो । यह बहुत आसान है । केवल जप करने से, हरे कृष्ण मंत्र का हमेशा नहीं, चौबीस घण्टे, हालांकि यह चैतन्य महाप्रभु की संस्तुति है, कीर्तनीय: सदा हरि: (चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१ ), निरन्तर जप करो । यही सिद्धांत है ।
लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हम कलि के प्रभाव से अभिभूत हैं । तो कम से कम सोलह माला का जाप । इसे न छोड़ें । इसे न छोड़ें । क्या कठिनाई है, सोलह माला का जप करने में ? ज्य़ादा से ज्य़ादा इसमे दो घंटे का समय लगेगा । आपके पास चौबीस घंटे हैं । आप सोना चाहते हैं, ठीक है, सो जाअो, दस घंटे की नींद । इसकी संस्तुति नहीं की गई है । छह घंटे से अधिक न सोएँ । लेकिन वे सोना चाहता हैं । वे चौबीस घंटे सोना चाहते हैं । कलि-युग में उनकी यह इच्छा है । लेकिन, नहीं । तब आप समय बर्बाद करोगे ।
खाना, सोना, संभोग और बचाव करना कम करें। जब यह शून्य हो जाएगा, तब पूर्णता है । क्योंकि यह शारीरिक आवश्यकताएँ हैं । खाना, सोना, संभोग, बचाव यह शारीरिक आवश्यकताएँ हैं । परन्तु मैं यह शरीर नहीं हूँ । देहिनो अस्मिन् यथा देहे कौमारं...(भ गी २.१३ ) । तो यह अनुभूति होने में समय लगता है । लेकिन जब हम वास्तव में कृष्णभावनामृत में आगे बढ़ रहे हैं, हमें अपने कर्तव्य का पता होना चाहिए । छह घंटे से अधिक न सोना । ज़्यादा से ज़्यादा आठ घंटे । ज़्यादा से ज़्यादा, जो नियंत्रित नहीं कर सकते हैं । लेकिन दस घंटे, बारह घंटे, पंद्रह घंटे, नहीं । तब इसका क्या फायदा हुअा... ?
कोई व्यक्ति एक उन्नत भक्त के दर्शन करने के लिए गया और नौ बजे वह सो रहा था । और वह उन्नत भक्त है । एह ? क्या वह नहीं ? तो क्या है ...? वह किस तरह का भक्त है ? भक्त को सुबह जल्दी उठना चाहिए, चार बजे तक । पाँच बजे तक, उसे अपना स्नान और अन्य चीजों को पूरा करना चाहिए । फिर वह जप करता है और अन्य कई... चौबीस घंटे व्यस्त रहना चाहिए । तो सोना अच्छा नहीं है । गोस्वामी केवल दो घंटे सोते थे । मैं भी रात को पुस्तक लिखता हूँ और मैं भी तीन घंटे से अधिक नहीं सोता हूँ । लेकिन मैं, कभी कभी थोड़ा और अधिक सोता हूँ । ऐसा नहीं ... मैं गोस्वामियों की नकल नहीं करता हूँ । यह संभव नहीं है । लेकिन जहाँ तक संभव हो, तो हर किसी को बचने का प्रयास करना चाहिए । और सोने से बचने का अर्थ है यदि हम कम खाते हैं, तो हम बच पाएँगे ।
खाना, सोना । खाने के बाद, सोना है । तो अगर हम ज़्यादा खाते हैं, तो और अधिक सोएँगे । यदि हम कम खाते हैं, तो कम सोएँगे । खाना, सोना, संभोग । और संभोग से परहेज़ किया जाना चाहिए । यह एक प्रधान निषेध है । जहाँ तक संभव हो यौन जीवन को कम किया जाना चाहिए । इसलिए हमने यह प्रतिबंध लगया है, "कोई अवैध संबंध नहीं ।" यौन जीवन, हम नहीं कहते हैं कि "आप ऐसा नहीं कर सकते ।" कोई भी नहीं कर सकता । इसलिए यौन जीवन का अर्थ है विवाहित जीवन, थोड़ी-सी छूट । एक अनुज्ञापत्र, "ठीक है, आप यह लाइसेंस लो ।" लेकिन अवैध संग नहीं । तो आप कभी सक्षम नहीं होंगे ।
तो खाना, सोना, संभोग और बचाव करना । और बचाव करना, हम कई तरीकों से बचाव कर रहे हैं, लेकिन फिर भी भी युद्ध हो रहे हैं, और भौतिक प्रकृति के हमले... आपका देश बहुत अच्छी तरह से बचाव कर रहा है, लेकिन अब पेट्रोल छीन लिया गया है । आप रक्षा नहीं कर सकते । इसी तरह, किसी भी क्षण सब कुछ छीन लिया जा सकता है ।
तो रक्षा के लिए कृष्ण पर निर्भर रहो, रक्षा । अवश्य रक्षिबे कृष्ण । इसे शरणागति कहा जाता है । शरणगति का अर्थ है... कृष्ण कहते हैं, "तुम मेरी शरण में आओ ।" सर्वधर्मान्परित्यज्य (भ गी १८.६६ ) । आइए हम इस पर विश्वास करें कि, "कृष्ण शरणागत होने के लिए कह रहे हैं । मुझे शरणगत होना है । उन्हे संकट की स्थिति में मेरी रक्षा करनी होगी ।" इसे शरणागति कहते हैं ।