HI/Prabhupada 0140 - एक रास्ता धार्मिक है, एक पथ अधर्मिक है कोई तीसरा रास्ता नहीं है

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Lecture on SB 6.1.45 -- Laguna Beach, July 26, 1975

यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। हम लोगों को सिखा रहे हैं कि तुम हर एक जन्म में बार बार पीडित हो रहे हो। अब मानव समाज की स्थिति यहॉ आ गई है कि वे जानते ही नहीं कि पुनर जीवन होता है। वे इतनी उन्नती कर चुके हैं। बिल्कुल बिल्लियों और कुत्तों की तरह, वे जानते नहीं कि पुनर जीवन होता है। यही यहां बताया गया है: यन यावान् यथाधर्मो धर्मो वेह समीहित: इह, इह का मतलब है "इस जीवन में ।" स एव तत् फलम् भुन्क्ते तथा तावत् अमुत्र वै। अमुत्र का मतलब है "अगला जन्म।" इसलिए हम इस जन्म में हमारे अगले जन्म की तैयारी कर रहे हैं ... यथा अधर्म:, यथा धर्म: । दो बातें हैं: तुम धार्मिक या अधार्मिक रूप से कार्य कर सकते हो। कोई तीसरा रास्ता नहीं है। एक रास्ता धार्मिक है, एक पथ अधार्मिक है। यहाँ दोनों का उल्लेख कर रहे हैं। यथा अधर्म:, यथा धर्म: । धर्म का मतलब है स्वाभाविक। धर्म का अर्थ यह नहीं है जो किसी अंग्रेजी शब्दकोश में कहा गया है, "आस्था की तरह।" आस्था अंधी हो सकती है। यह धर्म नहीं है।

धर्म का मतलब है मूल, स्वाभाविक । यही धर्म है। मैंने कई बार कहा है ... जैसे पानी की तरह। पानी तरल है। यह उसका धर्म है। जल, यदी अकस्मात् ठोस, बर्फ बन जाता है, लेकिन फिर भी यह फिर से तरल बनने की कोशिश करता है क्योंकि यह उसका धर्म है, तुम बर्फ डाल दो, और धीरे - धीरे यह तरल बन जाएगा। इसका मतलब है कि पानी की यह ठोस हालत कृत्रिम है। कुछ रासायनिक संरचना से पानी ठोस बन गया है, लेकिन प्राकृतिक पाठ्यक्रम से यह तरल हो जाता है।

तो हमारी वर्तमान स्थिति ठोस है: "भगवान के बारे में कुछ भी नहीं सुनना है। " लेकिन प्राकृतिक स्थिति में हम परमेश्वर के दास हैं। क्योंकि हम मालिक को ढूढ रहे हैं ... सर्वोच्च मालिक कृष्ण हैं। भोक्तारम् यज्ञ तपसाम् सर्व लोक महेश्वरम (भ गी ५.२९) | कृष्ण कहते हैं "मैं पूरी सृष्टि का मालिक हूँ। मैं भोक्ता हूँ।" वह मालिक है। चैतन्य-चरितामृत भी कहता है, एकले ईश्वर कृष्ण । ईश्वर का अर्थ है नियंत्रक या मालिक। एकल ईश्वर कृष्ण अार सब भ्रत्य: "कृष्ण को छोड़कर, कोई भी छोटा या बड़ा जीव, वे सब नौकर है, कृष्ण को छोड़कर।" इसलिए तुम देखोगे: कृष्ण किसी की भी सेवा नहीं कर रहे हैं। वह बस आनंद ले रहे हैं। भोक्तारम् यज्ञ तपसाम् सर्व लोक .... हमारे जैसे दूसरे, सब से पहले वे बहुत कठिन काम करते हैं, और फिर आनंद लेते हैं। कृष्ण कभी काम नहीं करते। न तस्य कार्यम कारणम् च विद्यते। फिर भी, वह आनंद लेते हैं। यही श्री कृष्ण है।

न तस्य......यह वैदिक जानकारी है। न तस्य कार्यम कारणम् च विद्यते। "भगवान, कृष्ण, उसके पास करने को कुछ नहीं है। " तुम इसलिए देखते हो, कृष्ण हमेशा गोपियों के साथ नृत्य और चरवाहे लड़कों के साथ खेल रहे हैं। और जब वह थकान महसूस करते हैं, तब वह यमुना पर लेट जाते हैं और तुरंत उनके दोस्त आते हैं। कोई पंखा दे रहा है, कोई मालिश कर रहा है। इसलिए वह मालिक है। कहीं भी वह चले जाए, वह मालिक है। एकल ईश्वर: कृष्ण । ईश्वर: परम: कृष्ण: (ब्रह्मसंहिता ५.१) सर्वोच्च नियंत्रक कृष्ण है। "तो फिर नियंत्रक कौन है?" नहीं, उनका कोई नियंत्रक नहीं है। यही श्री कृष्ण है। यहाँ हम फलाना निदेशक हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका के अध्यक्ष हैं, लेकिन मैं सर्वोच्च नियंत्रक नहीं हूँ। जैसे ही जनता चाहे, मुझे तुरंत नीचे खींच सकती है। हमें यह समझ में नहीं आता कि हम स्वामी नियंत्रक के रूप में अपने अाप को प्रस्तुत कर रहे हैं, लेकिन मैं किसी और के द्वारा नियंत्रित हूँ। तो वह नियंत्रक नहीं है। यहाँ हमें कुछ हद तक एक नियंत्रक मिलेगा, लेकिन वह एक और नियंत्रक द्वारा नियंत्रित किया जाता है। तो कृष्ण का मतलब है वह नियंत्रक है, लेकिन कोई भी उन्हें नियंत्रित करने के लिए नहीं है। यही श्री कृष्ण हैं, यही भगवान हैं। यह समझ का विज्ञान है। भगवान का मतलब है वह हर एकके नियंत्रक हैं , लेकिन उनका कोई नियंत्रक नहीं है।