HI/Prabhupada 0143 - लाखों अरबों ब्रह्मांड हैं: Difference between revisions
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" हे मेरे प्रभु , सब जीवन के निर्वाहक, आपका असली चेहरा आपकी चमकदार प्रभा द्वारा छिप जाता है । कृपया यह आवरण को हटाऍ और अपने शुद्ध भक्त को अपना दर्शन दीजिए । | "हे मेरे प्रभु, सब जीवन के निर्वाहक, आपका असली चेहरा आपकी चमकदार प्रभा द्वारा छिप जाता है । कृपया यह आवरण को हटाऍ और अपने शुद्ध भक्त को अपना दर्शन दीजिए । यहां वैदिक सबूत है। यह इशोपनिषद् वेद है, यजुर्वेद का हिस्सा है । तो यहॉ यह कहा गया है, हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य अपिहितम् मुखम् । जैसे सूरज की तरह । वहाँ है, सूर्य ग्रह में, एक प्रबल देवता हैं जिनका नाम विवस्वान् है । यह जानकारी हमें मिलती है भगवद गीता से विवस्वान मनवे प्राह ([[HI/BG 4.1|भ.गी. ४.१]])। तो हर ग्रह में एक प्रबल देवता है । अपने इस ग्रह की तरह, देवता नहीं, राष्ट्रपति की तरह । पूर्व में, इस ग्रह पर केवल एक राजा थे, महाराजा परीक्षित तक । एक राजा था ... इस पूरे ग्रह पर केवल एक ही झंडे का शासन था । इसी तरह, हर ग्रह में एक प्रबल देवता है । तो यहाँ कहा जाता है कि यह सर्वोच्च प्रबल देवता कृष्ण हैं, आध्यात्मिक जगत में, सर्वोच्च ग्रह आध्यात्मिक अंतरिक्ष में । ये भौतिक अंतरिक्ष है । भौतिक अंतरिक्ष में यह सारे ब्रह्माण्डो में से एक है । लाखों अरबों ब्रह्मांड हैं । और इस ब्रह्मांड में लाखों अरबों ग्रह हैं । यस्य प्रभा प्रभवतो जगद-अंड-कोटि (ब्रह्मसंहिता ५.४०) । | ||
जगद-अंड । जगद-अंड का मतलब है ब्रह्मांड । अंड: बस एक अंडे की तरह, यह पूरा ब्रह्मांड । तो कोटि । कोटि का मतलब है सैकड़ों हज़ारों । तो ब्रह्मज्योति में सैकड़ों हजारों एसे ब्रह्मांड हैं और इस ब्रह्मांड के भीतर सैकड़ों हजारों ग्रह हैं । इसी तरह, आध्यात्मिक अंतरिक्ष में भी सैकड़ों हजारों असीमित संख्यामें वैकुण्ठ ग्रह हैं । प्रत्येक वैकुण्ठ ग्रह के स्वामी पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं । कृष्ण ग्रह को छोड़कर अन्य सभी वैकुण्ठ ग्रहों में नारायण प्रबल हैं । और प्रत्येक नारायण के अलग अलग नाम हैं । जिनमें से कुछ हम जानते हैं । जैसे अभी हमने बोला प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, संकर्षण... हमारे पास केवल चौबीस नाम हैं, लेकिन कई अन्य हैं । अद्वैतम् अच्युतम् अनादिम् अनन्त-रुपम् (ब्रह्मसंहिता ५.३३) | | |||
तो यह सारे ग्रह ब्रह्मज्योति प्रभा द्वारा छिपे हैं । तो यहाँ यह प्रार्थना की जा रही है कि हिरण्मयेन | तो यह सारे ग्रह ब्रह्मज्योति प्रभा द्वारा छिपे हैं । तो यहाँ यह प्रार्थना की जा रही है कि हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य अपिहितम् । अपिहितम् का मतलब है छिपा हुअा । वैसे ही जैसे तुम इस चमकदार धूप के कारण सूर्यके गोले को नहीं देख सकते हो, इसी तरह, कृष्ण ग्रह, यहाँ तस्वीर है । कृष्ण ग्रह से प्रभा आ रही है । व्यक्ति को इस प्रभा में प्रवेश करना पड़ेगा । यही यहां प्रार्थना की जा रही है । हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य । वास्तविक परम निरपेक्ष सत्य, कृष्ण, उनका ग्रह ब्रह्म प्रभा द्वारा छिप जाता है । तो भक्त प्रार्थना कर रहा है "कृपया इसे हटाऍ । " मैं वास्तव में आप को देख सकूँ तो इसे हटा दीजिए । तो ब्रह्मज्योति, मायावाद दार्शनिक, उन्हे पता नहीं है कि ब्रह्मज्योति के परे कुछ है । यहां वैदिक सबूत है, कि ब्रह्मज्योति सिर्फ स्वर्ण प्रभा है । हिरण्मयेन पात्रेण । यह परम भगवान का असली चेहरा ढंक देती है । तत् त्वम् पुशन्न अपावृणु । तो, "आप निर्वाहक हैं, आप अनुरक्षक हैं । तो कृपया इसे अनावरण करिए ताकि मैं वास्तव में अापका चेहरा देख सकूँ ।" | ||
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Latest revision as of 18:12, 17 September 2020
Sri Isopanisad, Mantra 13-15 -- Los Angeles, May 18, 1970
"हे मेरे प्रभु, सब जीवन के निर्वाहक, आपका असली चेहरा आपकी चमकदार प्रभा द्वारा छिप जाता है । कृपया यह आवरण को हटाऍ और अपने शुद्ध भक्त को अपना दर्शन दीजिए । यहां वैदिक सबूत है। यह इशोपनिषद् वेद है, यजुर्वेद का हिस्सा है । तो यहॉ यह कहा गया है, हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य अपिहितम् मुखम् । जैसे सूरज की तरह । वहाँ है, सूर्य ग्रह में, एक प्रबल देवता हैं जिनका नाम विवस्वान् है । यह जानकारी हमें मिलती है भगवद गीता से विवस्वान मनवे प्राह (भ.गी. ४.१)। तो हर ग्रह में एक प्रबल देवता है । अपने इस ग्रह की तरह, देवता नहीं, राष्ट्रपति की तरह । पूर्व में, इस ग्रह पर केवल एक राजा थे, महाराजा परीक्षित तक । एक राजा था ... इस पूरे ग्रह पर केवल एक ही झंडे का शासन था । इसी तरह, हर ग्रह में एक प्रबल देवता है । तो यहाँ कहा जाता है कि यह सर्वोच्च प्रबल देवता कृष्ण हैं, आध्यात्मिक जगत में, सर्वोच्च ग्रह आध्यात्मिक अंतरिक्ष में । ये भौतिक अंतरिक्ष है । भौतिक अंतरिक्ष में यह सारे ब्रह्माण्डो में से एक है । लाखों अरबों ब्रह्मांड हैं । और इस ब्रह्मांड में लाखों अरबों ग्रह हैं । यस्य प्रभा प्रभवतो जगद-अंड-कोटि (ब्रह्मसंहिता ५.४०) ।
जगद-अंड । जगद-अंड का मतलब है ब्रह्मांड । अंड: बस एक अंडे की तरह, यह पूरा ब्रह्मांड । तो कोटि । कोटि का मतलब है सैकड़ों हज़ारों । तो ब्रह्मज्योति में सैकड़ों हजारों एसे ब्रह्मांड हैं और इस ब्रह्मांड के भीतर सैकड़ों हजारों ग्रह हैं । इसी तरह, आध्यात्मिक अंतरिक्ष में भी सैकड़ों हजारों असीमित संख्यामें वैकुण्ठ ग्रह हैं । प्रत्येक वैकुण्ठ ग्रह के स्वामी पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं । कृष्ण ग्रह को छोड़कर अन्य सभी वैकुण्ठ ग्रहों में नारायण प्रबल हैं । और प्रत्येक नारायण के अलग अलग नाम हैं । जिनमें से कुछ हम जानते हैं । जैसे अभी हमने बोला प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, संकर्षण... हमारे पास केवल चौबीस नाम हैं, लेकिन कई अन्य हैं । अद्वैतम् अच्युतम् अनादिम् अनन्त-रुपम् (ब्रह्मसंहिता ५.३३) |
तो यह सारे ग्रह ब्रह्मज्योति प्रभा द्वारा छिपे हैं । तो यहाँ यह प्रार्थना की जा रही है कि हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य अपिहितम् । अपिहितम् का मतलब है छिपा हुअा । वैसे ही जैसे तुम इस चमकदार धूप के कारण सूर्यके गोले को नहीं देख सकते हो, इसी तरह, कृष्ण ग्रह, यहाँ तस्वीर है । कृष्ण ग्रह से प्रभा आ रही है । व्यक्ति को इस प्रभा में प्रवेश करना पड़ेगा । यही यहां प्रार्थना की जा रही है । हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्य । वास्तविक परम निरपेक्ष सत्य, कृष्ण, उनका ग्रह ब्रह्म प्रभा द्वारा छिप जाता है । तो भक्त प्रार्थना कर रहा है "कृपया इसे हटाऍ । " मैं वास्तव में आप को देख सकूँ तो इसे हटा दीजिए । तो ब्रह्मज्योति, मायावाद दार्शनिक, उन्हे पता नहीं है कि ब्रह्मज्योति के परे कुछ है । यहां वैदिक सबूत है, कि ब्रह्मज्योति सिर्फ स्वर्ण प्रभा है । हिरण्मयेन पात्रेण । यह परम भगवान का असली चेहरा ढंक देती है । तत् त्वम् पुशन्न अपावृणु । तो, "आप निर्वाहक हैं, आप अनुरक्षक हैं । तो कृपया इसे अनावरण करिए ताकि मैं वास्तव में अापका चेहरा देख सकूँ ।"