HI/Prabhupada 0181 - मैं भगवान के साथ परिचित संबंध जोडूँगा

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Evening Darsana -- August 9, 1976, Tehran

प्रभुपाद: आध्यात्मिक प्रशिक्षण का मतलब है सब से पहले तुम्हे थोडा विश्वास होना चाहिए कि "मेरा भगवान के साथ घनिष्ठ संबंध होना चाहिए ।" जब तक तुम्हे विश्वास न हो, आध्यात्मिक प्रशिक्षण का सवाल ही नहीं है । अगर तुम बस संतुष्ट रहते हो, "ईश्वर महान है, उन्हे अपने घर में रहने दो, मैं भी अपने घर में रहूँ ," यह प्यार नहीं है । तुम्हे उत्सुक होना चाहिए भगवान के बारे में जानने के लिए अधिक से घनिष्ठता से । इसके बाद अगला चरण है, कैसे भगवान के बारे में पता लगाऍ जब तक तुम उन लोगों के साथ सहयोग न करो जो भगवान के कार्य में बस व्यस्त हैं । उन्हे कोई अन्य व्यवसाय नहीं है ।

जैसे हम प्रशिक्षण दे रहे हैं लोगों को, वे बस भगवान के कार्य के लिए हैं । उन्हे कोई अन्य व्यवसाय नहीं है । लोग भगवान के बारे में कैसे समझेंगे, वे लाभान्वित होंगे कैसे, वे केवल कई तरीके से योजना बना रहे हैं । तो हमें इस तरह के व्यक्तियों के साथ संबद्ध बनाना चाहिए जो भगवान के बारे में आश्वस्त हैं और दुनिया भर में उनके ज्ञान का प्रसार करने की कोशिश कर रहे हैं । तुम्हे उनके साथ मिलना चाहिए, संग करो । सबसे पहले, तुम्हे यह विश्वास होना चाहिए, कि "इस जीवन में मैं भगवान के बारे में अच्छी तरह से समझूँगा ।" फिर उन लोगों के साथ सहयोग करो जो भगवान के कार्य में व्यस्त हैं । फिर तुम भी उनके जैसे काम करो । फिर तुम्हाराी भौतिक जीवन की गलत धारणा खत्म हो जाएगी । तो फिर तुम्हे लगाव होगा । फिर तुम्हे स्वाद होगा । इस तरह तुम परमेश्वर के प[रै प्रति प्रेम को विकसित करोगे ।

अली: मैं पहले से ही भरोसा रखता हूँ ।

प्रभुपाद: तुमको यह बढ़ाना होगा । केवल प्रारंभिक विश्वास, यह बहुत अच्छा है, लेकिन जब तक इस विश्वास कि अधिक से अधिक वृद्धि नहीं होती, तब तक कोई प्रगति नहीं होती ।

परिव्राजकाचार्य: उस विश्वास को खोने का खतरा है ।

प्रभुपाद: हाँ । अगर तुम प्रगति न करो और उत्तरोत्तर आगे जाने की कोशिश न करो, फिर खतरा है कि जो भी थोडा विश्वास है वह भी कम हो जाएगा ।