HI/Prabhupada 0207 - गैर जिम्मेदाराना जीवन मत जिअो: Difference between revisions

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हम शुद्धिकरण की प्रक्रिया पर चर्चा कर रहे हैं । विभिन्न तरीके वर्णित किया गए हैं, प्रायश्चित द्वारा और तपस्या से । हम चर्चा की है । और फिर केवलया भक्त । भक्ति में सब कुछ शामिल है - कर्म, ज्ञान, योग, सब कुछ । और इसकी विशेष रूप से सिफारिश की गई है, कि तपस्या और अन्य तरीकों से, संभावना है, लेकिन शायद यह सफल न हो। लेकन अगर हम इस प्रक्रिया, भक्ति सेवा को अपनाऍ, तो यह निश्चित है । तो इस परिशोधक प्रक्रिया का मतलब है निवृत्ति-मार्ग । और प्रवृत्ति मार्ग का मतलब है जहां किसी भी ज्ञान के बिना कि हम कहॉ जा रहे हैं, भागते चले जाना - हम सब कुछ कर रहे हैं, कुछ भी । यही प्रवृति-मार्ग कहा जाता है । लोग आम तौर पर प्रवृतिi-मार्ग में लगे हुए हैं । विशेष रूप से इस युग में, आगे क्या होने वाला है उन्हे परवाह नहीं है । इसलिए वे राहत महसूस करते हैं कि "मृत्यु के बाद कोई जीवन नहीं है । हमें सर्वश्रेष्ठ क्षमता से इस जीवन का आनंद लेना चाहिए । फिर मौत के बाद जो होगा, कोई बात नहीं ।" सबसे पहले, वे अगले जन्म पर विश्वास करने से इनकार करते हैं । और अगर अगला जीवन हो भी, और मैं बिल्लि और कुत्ता बनने जा रहा हूँ, उन्हे कोई आपत्ति नहीं है । यह इस आधुनिक युग का अनुभव है, गैर जिम्मेदाराना जीवन । लेकिन हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को सिखा रही है कि "गैर जिम्मेदाराना जीवन मत जिअो ।" आप कह सकते हैं कि, उदाहरण के लिए, "जीवन नहीं है ।" लेकिन मैं तर्क रखता हूँ, "जीवन है मान लीजिए ..." अब यह भी अनुमान है, क्योंकि कोई भी नहीं ... जो अज्ञानता में हैं, वे नहीं जानते हैं कि जीवन है या नहीं । तो तुम बहस कर रहे हो, " कोई जीवन नहीं है," लेकिन तुम्हे पता नहीं है कि जीवन है या नहींं । यह तुम्हारे ज्ञान में नहीं है । तो तुम दोनों तरीकों से लेना है और इस पर विचार करना है ... तुम बस कोई जीवन नहीम है इस मुद्दे पर सोच रहे हो । तुम मेरे प्रस्ताव को क्यों नहीं लेते "अगर जीवन है?" क्योंकि तुम निशचित नहीं हो कि जीवन है या नहीं ।हम कहते हैं कि जीवन है । हम उदाहरण लेते हैं: जैसे इस बच्चे का अगला जीवन है । बच्चा कह सकता है, "कोई जीवन नहीं है, अगला जीवन ।" लेकिन वास्तव में यह तथ्य नहीं है । तथ्य यह है कि, जीवन है । बच्चा यह शरीर बदलेगा और वह एक लड़का बन जाएगा । और लड़का शरीर बदलेगा, वह युवक हो जाएगा । यह एक तथ्य है । लेकिन बस अड़ियल रवैये से कोई कहे कि जीवन नहीं है ... आप कह सकते हैं । लेकिन यह तर्क लो: अगर जीवन है, तो कितने गैर जिम्मेदाराना तरीके से तुम अपने जीवन के भविष्य को इतना अंधेरा कर रहे हो ? वही उदाहरण: अगर एक बच्चा स्कूल नहीं जाता है, शिक्षा नहीं लेता है अगर वह सोचता है, "इस जीवन के अलावा कोई अन्य जीवन नहीं है, मैं पूरे दिन खेलूँगा । क्यों मुझे स्कूल जाना चाहिए?" वह यह कह सकता है, लेकिन जीवन है, और वह शिक्षा नहीं लेता है तो अगले जन्म में, जब वह युवक है, अगर वह एक अच्छी स्थिति में तैनात नहीं किया जाता है, तो वह ग्रस्त है । यह गैर जिम्मेदाराना जीवन है । तो हमारा अगला जीवन मिलनेसे पहले, हमें सब पापी जीवन से मुक्त होना चाहिए । अन्यथा हमे< बेहतर जीवन नहीं मिलेगा । विशेष रूप से घर के लिए वापस जाना, वापस देवत्व के लिए, हमें इस जीवन में अपने पापों की प्रतिक्रिया को ख्तम करना होगा । भगवद गीता में तुम पाअोगे, येशाम तु अंत-गतम पापम् जनानाम् पुणय-कर्मणाम ते द्वन्द्व-मोह-निर्मुक्त भजन्ते माम दृढ-व्रता: :([[Vanisource:BG 7.28|भगी ७।२८]]) कृष्ण के एक परम भक्त भक्त बनने के लिए, कृष्ण का पूर्ण भक्त, का मतलब है हमें पापी जीवन के सभी प्रतिक्रिया से मुक्त होना होगा । येशाम तु अंत-गतम पापम् । कोई भी पापी गतिविधियों को न करना । और जो पापी गतिविधियों उसने अपने पिछले जीवन में किया था, वह भी नकार दिया जाता है । वह भी नकार दिया जाता है । अौर प्रतिक्रिया नहीं होती है । येशाम तु अंत-गतम पापम् जनानाम् पुणय-कर्मणाम तो लोगों पापी गतिविधियों में या पवित्र गतिविधियों में लगे हुए हैं । जिनके पिछले पापी कामों की प्रतिक्रिया समाप्त नहीं हुई है लेकिन वर्तमान समय में, वे बस धार्मिक गतिविधियों में लगे हुए हैं ऐसे व्यक्ति, येशाम तु अंत-गतम पापम् जनानाम् पुणय-कर्मणाम ते, ऐसे व्यक्ति, द्वन्द्व-मोह-निर्मुक्त, बिना किसी झिझक के, बिना किसी शक के, भजन्ते माम दृढ-व्रता: यही है, तो जो दृढ़ विश्वास और भक्ति के साथ कृष्ण की सेवा में लगे हुए हैं, हम समझ सकते हैं कि वह अब पापी गतिविधियों की सभी प्रतिक्रिया से मुक्त है ।
हम शुद्धिकरण की प्रक्रिया पर चर्चा कर रहे हैं । विभिन्न तरीके वर्णित किये  गए हैं, प्रायश्चित द्वारा और तपस्या से । हमने चर्चा की है । और फिर केवलया भक्त । भक्ति में सब कुछ शामिल है - कर्म, ज्ञान, योग, सब कुछ । और इसकी विशेष रूप से सिफारिश की गई है, कि तपस्या और अन्य तरीकों से, संभावना है, लेकिन शायद यह सफल न हो। लेकन अगर हम इस प्रक्रिया, भक्ति सेवा को अपनाऍ, तो यह निश्चित है । तो इस शुद्धिकरण की प्रक्रिया का मतलब है निवृत्ति-मार्ग । और प्रवृत्ति मार्ग का मतलब है जहां किसी भी ज्ञान के बिना कि हम कहॉ जा रहे हैं, भागते चले जाना - हम सब कुछ कर रहे हैं, जो हमें ठीक लगे यही प्रवृति-मार्ग कहा जाता है । लोग आम तौर पर प्रवृति-मार्ग में लगे हुए हैं । विशेष रूप से इस युग में, आगे क्या होने वाला है उन्हे परवाह नहीं है । इसलिए वे राहत महसूस करते हैं कि "मृत्यु के बाद कोई जीवन नहीं है । हमें सर्वश्रेष्ठ क्षमता से इस जीवन का आनंद लेना चाहिए । फिर मौत के बाद जो होगा, कोई बात नहीं ।"  
 
सबसे पहले, वे अगले जन्म पर विश्वास करने से इनकार करते हैं । और अगर अगला जीवन हो भी, और मैं बिल्लि और कुत्ता बनने जा रहा हूँ, उन्हे कोई आपत्ति नहीं है । यह इस आधुनिक युग का अनुभव है, गैर जिम्मेदार जीवन । लेकिन हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को सिखा रहा है कि "गैर जिम्मेदार जीवन मत जिअो ।" आप कह सकते हैं कि, उदाहरण के लिए, "जीवन नहीं है ।" लेकिन मैं तर्क रखता हूँ, "जीवन है मान लीजिए ..." अब यह भी अनुमान है, क्योंकि कोई भी नहीं ... जो अज्ञानता में हैं, वे नहीं जानते हैं कि जीवन है या नहीं । तो तुम बहस कर रहे हो, " कोई जीवन नहीं है," लेकिन तुम्हे पता नहीं है कि जीवन है या नहींं । यह तुम्हारे ज्ञान में नहीं है । तो तुम दोनों तरीकों से लेना है और इस पर विचार करना है ... तुम बस कोई जीवन नही है इस मुद्दे पर सोच रहे हो । तुम मेरे प्रस्ताव को क्यों नहीं लेते "अगर जीवन है?" क्योंकि तुम निश्चिन्त नहीं हो कि जीवन है या नहीं ।हम कहते हैं कि जीवन है ।  
 
हम उदाहरण लेते हैं: जैसे इस बच्चे का अगला जीवन है । बच्चा कह सकता है, "कोई जीवन नहीं है, अगला जीवन ।" लेकिन वास्तव में यह तथ्य नहीं है । तथ्य यह है कि, जीवन है । बच्चा यह शरीर बदलेगा और वह एक लड़का बन जाएगा । और लड़का शरीर बदलेगा, वह युवक हो जाएगा । यह एक तथ्य है । लेकिन बस अड़ियल रवैये से कोई कहे कि जीवन नहीं है ... आप कह सकते हैं । लेकिन यह तर्क लो: अगर जीवन है, तो कितने गैर जिम्मेदार तरीके से तुम अपने जीवन के भविष्य को इतना अंधकारमय कर रहे हो ? वही उदाहरण: अगर एक बच्चा स्कूल नहीं जाता है, शिक्षा नहीं लेता है अगर वह सोचता है, "इस जीवन के अलावा कोई अन्य जीवन नहीं है, मैं पूरे दिन खेलूँगा । क्यों मुझे स्कूल जाना चाहिए?" वह यह कह सकता है, लेकिन जीवन है, और वह शिक्षा नहीं लेता है तो अगले जन्म में, जब वह युवक है, अगर वह एक अच्छी स्थिति में तैनात नहीं किया जाता है, तो वह ग्रस्त है । यह गैर जिम्मेदाराना जीवन है ।  
 
तो हमारा अगला जीवन मिलनेसे पहले, हमें सब पापी जीवन से मुक्त होना चाहिए । अन्यथा हमे बेहतर जीवन नहीं मिलेगा । विशेष रूप से भगवद धाम वापस जाने के लिए, हमें इस जीवन में अपने पापों की प्रतिक्रिया को ख्तम करना होगा । भगवद गीता में तुम पाअोगे, येशाम तु अंत-गतम पापम जनानाम् पुणय-कर्मणाम ते द्वन्द्व-मोह-निर्मुक्ता भजन्ते माम दृढ-व्रता: ([[HI/BG 7.28|भ.गी. ७।२८]]) कृष्ण के एक परम भक्त भक्त बनने के लिए, कृष्ण का पूर्ण भक्त, का मतलब है हमें पापी जीवन के सभी प्रतिक्रिया से मुक्त होना होगा । येशाम तु अंत-गतम पापम । कोई भी पापी गतिविधियों को न करना । और जो पापी गतिविधियों उसने अपने पिछले जीवन में किया था, वह भी नकार दिया जाता है । वह भी नकार दिया जाता है । अौर प्रतिक्रिया नहीं होती है । येशाम तु अंत-गतम पापम जनानाम् पुणय-कर्मणाम |
 
तो लोगों पाप कार्य में या पुण्य कार्य में लगे हुए हैं । जिनके पिछले पापी कर्मो की प्रतिक्रिया समाप्त नहीं हुई है लेकिन वर्तमान समय में, वे बस धार्मिक गतिविधियों में लगे हुए हैं ऐसे व्यक्ति, येशाम तु अंत-गतम पापम जनानाम् पुणय-कर्मणाम ते, ऐसे व्यक्ति, द्वन्द्व-मोह-निर्मुक्ता, बिना किसी झिझक के, बिना किसी शक के, भजन्ते माम दृढ-व्रता: यही है, तो जो दृढ़ विश्वास और भक्ति के साथ कृष्ण की सेवा में लगे हुए हैं, हम समझ सकते हैं कि वह अब पापी गतिविधियों की सभी प्रतिक्रिया से मुक्त है ।  
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Latest revision as of 18:19, 17 September 2020



Lecture on SB 6.1.16 -- Denver, June 29, 1975

हम शुद्धिकरण की प्रक्रिया पर चर्चा कर रहे हैं । विभिन्न तरीके वर्णित किये गए हैं, प्रायश्चित द्वारा और तपस्या से । हमने चर्चा की है । और फिर केवलया भक्त । भक्ति में सब कुछ शामिल है - कर्म, ज्ञान, योग, सब कुछ । और इसकी विशेष रूप से सिफारिश की गई है, कि तपस्या और अन्य तरीकों से, संभावना है, लेकिन शायद यह सफल न हो। लेकन अगर हम इस प्रक्रिया, भक्ति सेवा को अपनाऍ, तो यह निश्चित है । तो इस शुद्धिकरण की प्रक्रिया का मतलब है निवृत्ति-मार्ग । और प्रवृत्ति मार्ग का मतलब है जहां किसी भी ज्ञान के बिना कि हम कहॉ जा रहे हैं, भागते चले जाना - हम सब कुछ कर रहे हैं, जो हमें ठीक लगे । यही प्रवृति-मार्ग कहा जाता है । लोग आम तौर पर प्रवृति-मार्ग में लगे हुए हैं । विशेष रूप से इस युग में, आगे क्या होने वाला है उन्हे परवाह नहीं है । इसलिए वे राहत महसूस करते हैं कि "मृत्यु के बाद कोई जीवन नहीं है । हमें सर्वश्रेष्ठ क्षमता से इस जीवन का आनंद लेना चाहिए । फिर मौत के बाद जो होगा, कोई बात नहीं ।"

सबसे पहले, वे अगले जन्म पर विश्वास करने से इनकार करते हैं । और अगर अगला जीवन हो भी, और मैं बिल्लि और कुत्ता बनने जा रहा हूँ, उन्हे कोई आपत्ति नहीं है । यह इस आधुनिक युग का अनुभव है, गैर जिम्मेदार जीवन । लेकिन हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को सिखा रहा है कि "गैर जिम्मेदार जीवन मत जिअो ।" आप कह सकते हैं कि, उदाहरण के लिए, "जीवन नहीं है ।" लेकिन मैं तर्क रखता हूँ, "जीवन है मान लीजिए ..." अब यह भी अनुमान है, क्योंकि कोई भी नहीं ... जो अज्ञानता में हैं, वे नहीं जानते हैं कि जीवन है या नहीं । तो तुम बहस कर रहे हो, " कोई जीवन नहीं है," लेकिन तुम्हे पता नहीं है कि जीवन है या नहींं । यह तुम्हारे ज्ञान में नहीं है । तो तुम दोनों तरीकों से लेना है और इस पर विचार करना है ... तुम बस कोई जीवन नही है इस मुद्दे पर सोच रहे हो । तुम मेरे प्रस्ताव को क्यों नहीं लेते "अगर जीवन है?" क्योंकि तुम निश्चिन्त नहीं हो कि जीवन है या नहीं ।हम कहते हैं कि जीवन है ।

हम उदाहरण लेते हैं: जैसे इस बच्चे का अगला जीवन है । बच्चा कह सकता है, "कोई जीवन नहीं है, अगला जीवन ।" लेकिन वास्तव में यह तथ्य नहीं है । तथ्य यह है कि, जीवन है । बच्चा यह शरीर बदलेगा और वह एक लड़का बन जाएगा । और लड़का शरीर बदलेगा, वह युवक हो जाएगा । यह एक तथ्य है । लेकिन बस अड़ियल रवैये से कोई कहे कि जीवन नहीं है ... आप कह सकते हैं । लेकिन यह तर्क लो: अगर जीवन है, तो कितने गैर जिम्मेदार तरीके से तुम अपने जीवन के भविष्य को इतना अंधकारमय कर रहे हो ? वही उदाहरण: अगर एक बच्चा स्कूल नहीं जाता है, शिक्षा नहीं लेता है अगर वह सोचता है, "इस जीवन के अलावा कोई अन्य जीवन नहीं है, मैं पूरे दिन खेलूँगा । क्यों मुझे स्कूल जाना चाहिए?" वह यह कह सकता है, लेकिन जीवन है, और वह शिक्षा नहीं लेता है तो अगले जन्म में, जब वह युवक है, अगर वह एक अच्छी स्थिति में तैनात नहीं किया जाता है, तो वह ग्रस्त है । यह गैर जिम्मेदाराना जीवन है ।

तो हमारा अगला जीवन मिलनेसे पहले, हमें सब पापी जीवन से मुक्त होना चाहिए । अन्यथा हमे बेहतर जीवन नहीं मिलेगा । विशेष रूप से भगवद धाम वापस जाने के लिए, हमें इस जीवन में अपने पापों की प्रतिक्रिया को ख्तम करना होगा । भगवद गीता में तुम पाअोगे, येशाम तु अंत-गतम पापम जनानाम् पुणय-कर्मणाम ते द्वन्द्व-मोह-निर्मुक्ता भजन्ते माम दृढ-व्रता: (भ.गी. ७।२८) कृष्ण के एक परम भक्त भक्त बनने के लिए, कृष्ण का पूर्ण भक्त, का मतलब है हमें पापी जीवन के सभी प्रतिक्रिया से मुक्त होना होगा । येशाम तु अंत-गतम पापम । कोई भी पापी गतिविधियों को न करना । और जो पापी गतिविधियों उसने अपने पिछले जीवन में किया था, वह भी नकार दिया जाता है । वह भी नकार दिया जाता है । अौर प्रतिक्रिया नहीं होती है । येशाम तु अंत-गतम पापम जनानाम् पुणय-कर्मणाम |

तो लोगों पाप कार्य में या पुण्य कार्य में लगे हुए हैं । जिनके पिछले पापी कर्मो की प्रतिक्रिया समाप्त नहीं हुई है लेकिन वर्तमान समय में, वे बस धार्मिक गतिविधियों में लगे हुए हैं ऐसे व्यक्ति, येशाम तु अंत-गतम पापम जनानाम् पुणय-कर्मणाम ते, ऐसे व्यक्ति, द्वन्द्व-मोह-निर्मुक्ता, बिना किसी झिझक के, बिना किसी शक के, भजन्ते माम दृढ-व्रता: यही है, तो जो दृढ़ विश्वास और भक्ति के साथ कृष्ण की सेवा में लगे हुए हैं, हम समझ सकते हैं कि वह अब पापी गतिविधियों की सभी प्रतिक्रिया से मुक्त है ।