HI/Prabhupada 0212 - वैज्ञानिक दृष्टिकोण से , मृत्यु के बाद जीवन है

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Garden Conversation -- June 10, 1976, Los Angeles

प्रभुपाद: आधुनिक शिक्षा, वे समझ नहीं सकते कि जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी की यह पुनरावृत्ति एक परेशानी है । वे समझ नहीं पाते हैं । क्यों वे यह स्वीकार करते हैं? स्वीकार करो, वे सोचते हैं कि कोई और रास्ता नहीं है । लेकिन अगर इसे रोकने के लिए एक रास्ता है , वे इसे क्यों नहीं लेते हैं? हम्म? इस शिक्षा का मूल्य क्या है? वे सही और गलत के बीच भेद नहीं कर सकते । किसी को भी मृत्यु पसंद नहीं, लेकिन मृत्यु है ।

कोई भी बूढ़ा होना नहीं चाहता, लेकिन बुढ़ापा है । क्यों वे इन बड़ी समस्याओं को अन्देखा करते हैं और वह ज्ञान की वैज्ञानिक उन्नति पर गर्व करते हैं? किस तरह की शिक्षा है यह? अगर वे सही और गलत के बीच भेद नहीं कर सकते, तो इस शिक्षा का परिणाम क्या है? शिक्षा का मतलब है हमें सही और गलत के बीच अंतर करने में सक्षम होना चाहिए । लेकिन वे नहीं कर सकते हैं, या यहां तक ​​कि वे जानते ही नहीं कि मरना अच्छी बात नहीं है, लेकिन क्यों वे मौत को रोकने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? उन्नति कहाँ है? वे विज्ञान की उन्नति पर बहुत गर्व कर रहे हैं । उन्नति कहाँ है? तुम मौत को रोक नहीं सकते । तुम बुढ़ापे को रोक नहीं सकते । तुम उन्नत दवा का निर्माण कर सकते हो, लेकिन तुम क्यों रोग को रोकते नहीं हो? यह गोली ले लो, कोई और बीमारी नहीं होगी । एसा विज्ञान कहाँ है? हम्म?

नलिनीकंठ: वे कहते हैं कि वे इस पर काम कर रहे हैं ।

प्रभुपाद: ये एक और मूर्खता है । झांसा देना ।

गोपवृन्दपाल: जैसे हम कहते हैं कि कृष्ण भावनामृत एक क्रमिक प्रक्रिया है, उसी तरह वे कहते हैं कि उनकी वैज्ञानिक उन्नति भी एक क्रमिक प्रक्रिया है ।

प्रभुपाद: क्रमिक प्रक्रिया, लेकिन उन्हें लगता है कि वे मौत को रोकने में सक्षम होंगे ? हमें विश्वास हैं कि हम अपने घर, भगवद्धाम वापस जा रहे हैं, कृष्ण के पास। लेकिन उनका विश्वास कहाँ है कि वे मृत्यु, बुढ़ापा, बीमारी को रोकने में सक्षम होंगे ?

डॉ. वोल्फ: न्यूनतम सनक यह है कि उनका कहना है कि अब वे कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने इस तथ्य की स्थापना की है कि मृत्यु के बाद जीवन है ।

प्रभुपाद: ज़रूर है ।

डॉ. वोल्फ: वे वैज्ञानिक रूप से फिर से ऐसा करने के लिए प्रयास कर रहे हैं ।

प्रभुपाद: उन्हें करने दीजिए । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से , मृत्यु के बाद जीवन है । हम बार बार कहते हैं, कि मेरा बच्चे का शरीर मर चुका है, गायब हो गया है । मुझे एक दूसरा शरीर मिला है । तो मृत्यु के बाद जीवन है । यह व्यावहारिक है । तो कृष्ण यह कहते हैं, तथा देहान्तर-प्राप्ति: ( भ. गी. २.१३) तो इसी तरह, न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ. गी. २.२०) यह भगवान का आधिकारिक बयान है । और व्यावहारिक रूप से हम देखते हैं कि हमें एक के बाद एक शरीर मिलता है, लेकिन मैं रहता हूँ । इसलिए आपत्ति है कहाँ? तो मृत्यु के बाद जीवन है । तथाकथित मृत्यु का मतलब है शरीर का विनाश । तो अगर हम उस जीवन से जुड़े रहते हैं, कि अब कोई मौत नहीं, तो फिर उसको खोजना चाहिए । यही बुद्धिमत्ता है । यह भगवद्गीता में बताया गया है कि अगर तुम बस कृष्ण को समझते हो, और तुम योग्य हो जाते हो उनके पास वापस जाने के लिए, तो फिर दोबारा मौत नहीं ।