HI/Prabhupada 0222 - इस आंदोलन को अागे बढाना बंद मत करो: Difference between revisions

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तो यह एक अच्छा आंदोलन है । अहम् त्वाम सर्व-पपेभ्यो मोक्षयिश्यामि मा शुच: ([[Vanisource:BG 18.66|भगी १८।६६]]) । भगवद गीता कहता है, भगवान कहते हैं, लोगों के कष्ट उनकी पापी गतिविधियों की वजह से हैं, अज्ञान । अज्ञान पापी गतिविधि का कारण है । वैसे ही जैसे एक आदमी नहीं जानता है । मान लीजिए मेरे जैसे एक विदेशी अमेरिका में आता है और वह नहीं जानता है कि ... क्योंकि भारत में ... जैसे तुम्हारे देश में, जैसे कार, दाईं ओर से संचालित कि जाती है, भारत में, मैंने भी लंदन में देखा है, कार बाईं ओर से संचालित की जाती है । मान लीजिए वह नहीं जानता है, वह बाईं ओर कार ड्राइव करता है और कुछ दुर्घटना होती है, और वह पुलिस हिरासत में लिया जाता है । और वह कहता है, "सर, मैं नहीं जानता हूँ कि यहां कार दाईं ओर से संचालित की जाती है," उसे माफ़ नहीं कर सकते हैं । कानून उसे सजा देंगा । तो अज्ञान कानून को तोड़ने का या पापी गतिविधियों का कारण है । और जैसे ही तुम कुछ पापी गतिविधि करते हो, तुम्हे परिणाम भुगतना होगा । तो पूरी दुनिया अज्ञान में है, और अज्ञानता के कारण वह इतनी सारी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं में बद्ध है, अच्छे या बुरे । इस भौतिक दुनिया में अच्छा कुछ भी नहीं है, सब कुछ बुरा है । इसलिए हमने निर्मित किया है कुछ अच्छा और कुछ खराब । यहाँ ... क्योंकि भगवद गीता में से हम समझते हैं कि यह जगह दुक्खालयम अशाश्वतम ([[Vanisource:BG 8.15|भगी ८।१५]]) है । यह जगह दुख के लिए है । तो आप कैसे कहते हो, तो कैसे इस दयनीय हालत में कह सकते हो, कि "यह बुरा है ।" "यह अच्छा है ।" या सब कुछ बुरा है । तो जो व्यक्ति नहीं जानते हैं - भौतिक, सशर्त जीवन - वे, कुछ निर्माण करते हैं, "यह बुरा है, यह अच्छा है" क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि यहां सब कुछ बुरा है, कुछ अच्छा नहीं है । हमें इस भौतिक संसार के प्रति बहुत ज्यादा निराशावादी होना चाहिए । फिर हम आध्यात्मिक जीवन में अग्रिम हो सकते हैं । दुक्खालयम अशाश्वतम ([[Vanisource:BG 8.15|भगी ८।१५]]) यह जगह दुख से भरा है, और अगर तुम विश्लेषणात्मक अध्ययन करो, तो तुम पाअोगे केवल दयनीय हालत । इसलिए सारी समस्या यह है कि हमें अपनी भौतिक सशर्त जीवन का त्याग करना चाहिए, और कृष्ण भावनामृत में हमें आध्यात्मिक तरक्की के लिए प्रयास करना चाहिए और इस तरह देवत्व के राज्य के लिए योग्य बनाना चाहिए, यद गत्वा ना निवर्तन्ते तद धामम् परमम् मम ([[Vanisource:BG 15.6|भगी १५।६]]) जहाँ जाकर, कोई भी इस दुखी दुनिया में वापस नहीं आता है । और यही भगवान का परम धाम है । तो भगवद गीता में विवरण है । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन अधिकृत है, बहुत महत्वपूर्ण है । अब, तुम अमेरिकी लड़के अौर लड़कियॉ जिन्होंने इस आंदोलन को अपनाया है, कृपया इसे और अधिक गंभीरता से लें ... यही भगवान चैतन्य और मेरे गुरु महाराज का मिशन है, और हम भी परम्परा द्वारा इस वसीयत पर अमल करने की कोशिश कर रहे हैं । तुम मेरी मदद के लिए आगे आए हो । मैं तुम सभी से अनुरोध करता हूँ कि मैं दूर चला जाऊँगा , लेकिन तुम जीवित रहोगे । इस आंदोलन को अागे बढाना बंद मत करो, और तुम भगवान चैतन्य की कृपा पाअोगे और भक्तिशिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद का भी
तो यह एक अच्छा आंदोलन है । अहम त्वाम सर्व-पपेभ्यो मोक्षयिश्यामि मा शुच: ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) । भगवद गीता कहता है, भगवान कहते हैं, लोगों के कष्ट उनकी पापी गतिविधियों की वजह से हैं | अज्ञान । अज्ञान पापी गतिविधि का कारण है । वैसे ही जैसे एक आदमी नहीं जानता है । मान लीजिए मेरे जैसे एक विदेशी अमेरिका में आता है और वह नहीं जानता है कि ... क्योंकि भारत में ... जैसे तुम्हारे देश में, जैसे कार, दाईं ओर से संचालित कि जाती है, भारत में, मैंने भी लंदन में देखा है, कार बाईं ओर से संचालित की जाती है । मान लीजिए वह नहीं जानता है, वह बाईं ओर कार चलाता है और कुछ दुर्घटना होती है, और वह पुलिस हिरासत में लिया जाता है । और वह कहता है, "सर, मैं नहीं जानता हूँ कि यहां कार दाईं ओर से संचालित की जाती है," उसे माफ़ नहीं कर सकते हैं । कानून उसे सजा देंगा ।  


बहुत बहुत धन्यवाद ।
तो अज्ञान कानून को तोड़ने का या पापी गतिविधियों का कारण है । और जैसे ही तुम कुछ पापी गतिविधि करते हो,  तुम्हे परिणाम भुगतना होगा । तो पूरी दुनिया अज्ञान में है, और अज्ञानता के कारण वह इतनी सारी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं में बद्ध है, अच्छे या बुरे । इस भौतिक दुनिया में अच्छा कुछ भी नहीं है, सब कुछ बुरा है । इसलिए हमने निर्मित किया है कुछ अच्छा और कुछ खराब । यहाँ ... क्योंकि भगवद गीता में से हम समझते हैं कि यह जगह दुःखालयम अशाश्वतम ([[HI/BG 8.15|भ.गी. ८.१५]]) है । यह जगह दुख के लिए है । तो आप कैसे कहते हो, तो कैसे इस दयनीय हालत में कह सकते हो, कि "यह बुरा है ।" "यह अच्छा है ।"  सब कुछ बुरा है ।
 
तो जो व्यक्ति नहीं जानते हैं - भौतिक, बद्ध जीवन - वे, कुछ निर्माण करते हैं, "यह बुरा है, यह अच्छा है" क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि यहां सब कुछ बुरा है, कुछ अच्छा नहीं है । हमें इस भौतिक संसार के प्रति बहुत ज्यादा निराशावादी होना चाहिए ।  फिर हम आध्यात्मिक जीवन में अग्रिम हो सकते हैं । दुःखालयम अशाश्वतम ([[HI/BG 8.15|भ.गी. ८.१५]]) | यह जगह दुख से भरा है, और अगर तुम विश्लेषणात्मक अध्ययन करो, तो तुम पाअोगे केवल दयनीय हालत । इसलिए सारी समस्या यह है कि हमें अपना भौतिक बद्ध जीवन का त्याग करना चाहिए, और कृष्ण भावनामृत में हमें आध्यात्मिक तरक्की के लिए प्रयास करना चाहिए और इस तरह भगवद धाम जाने के लिए योग्य बनाना चाहिए, यद गत्वा ना निवर्तन्ते तद धामम् परमम् मम ([[HI/BG 15.6|भ.गी. १५.६]]), जहाँ जाकर, कोई भी इस दुखी दुनिया में वापस नहीं आता है । और यही भगवान का परम धाम है ।
 
तो भगवद गीता में विवरण है । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन अधिकृत है, बहुत महत्वपूर्ण है । अब, तुम अमेरिकी लड़के अौर लड़कियॉ जिन्होंने इस आंदोलन को अपनाया है, कृपया इसे और अधिक गंभीरता से लें  ... यही भगवान चैतन्य और मेरे गुरु महाराज का मिशन है, और हम भी परम्परा द्वारा इस वसीयत पर अमल करने की कोशिश कर रहे हैं । तुम मेरी मदद के लिए आगे आए हो । मैं तुम सभी से अनुरोध करता हूँ कि मैं चला जाऊँगा , लेकिन तुम जीवित रहोगे । इस आंदोलन को अागे बढाना बंद मत करो, और तुम भगवान चैतन्य की कृपा पाअोगे और भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की भी ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।  
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Latest revision as of 18:20, 17 September 2020



His Divine Grace Srila Bhaktisiddhanta Sarasvati Gosvami Prabhupada's Disappearance Day, Lecture -- Los Angeles, December 9, 1968

तो यह एक अच्छा आंदोलन है । अहम त्वाम सर्व-पपेभ्यो मोक्षयिश्यामि मा शुच: (भ.गी. १८.६६) । भगवद गीता कहता है, भगवान कहते हैं, लोगों के कष्ट उनकी पापी गतिविधियों की वजह से हैं | अज्ञान । अज्ञान पापी गतिविधि का कारण है । वैसे ही जैसे एक आदमी नहीं जानता है । मान लीजिए मेरे जैसे एक विदेशी अमेरिका में आता है और वह नहीं जानता है कि ... क्योंकि भारत में ... जैसे तुम्हारे देश में, जैसे कार, दाईं ओर से संचालित कि जाती है, भारत में, मैंने भी लंदन में देखा है, कार बाईं ओर से संचालित की जाती है । मान लीजिए वह नहीं जानता है, वह बाईं ओर कार चलाता है और कुछ दुर्घटना होती है, और वह पुलिस हिरासत में लिया जाता है । और वह कहता है, "सर, मैं नहीं जानता हूँ कि यहां कार दाईं ओर से संचालित की जाती है," उसे माफ़ नहीं कर सकते हैं । कानून उसे सजा देंगा ।

तो अज्ञान कानून को तोड़ने का या पापी गतिविधियों का कारण है । और जैसे ही तुम कुछ पापी गतिविधि करते हो, तुम्हे परिणाम भुगतना होगा । तो पूरी दुनिया अज्ञान में है, और अज्ञानता के कारण वह इतनी सारी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं में बद्ध है, अच्छे या बुरे । इस भौतिक दुनिया में अच्छा कुछ भी नहीं है, सब कुछ बुरा है । इसलिए हमने निर्मित किया है कुछ अच्छा और कुछ खराब । यहाँ ... क्योंकि भगवद गीता में से हम समझते हैं कि यह जगह दुःखालयम अशाश्वतम (भ.गी. ८.१५) है । यह जगह दुख के लिए है । तो आप कैसे कहते हो, तो कैसे इस दयनीय हालत में कह सकते हो, कि "यह बुरा है ।" "यह अच्छा है ।" सब कुछ बुरा है ।

तो जो व्यक्ति नहीं जानते हैं - भौतिक, बद्ध जीवन - वे, कुछ निर्माण करते हैं, "यह बुरा है, यह अच्छा है" क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि यहां सब कुछ बुरा है, कुछ अच्छा नहीं है । हमें इस भौतिक संसार के प्रति बहुत ज्यादा निराशावादी होना चाहिए । फिर हम आध्यात्मिक जीवन में अग्रिम हो सकते हैं । दुःखालयम अशाश्वतम (भ.गी. ८.१५) | यह जगह दुख से भरा है, और अगर तुम विश्लेषणात्मक अध्ययन करो, तो तुम पाअोगे केवल दयनीय हालत । इसलिए सारी समस्या यह है कि हमें अपना भौतिक बद्ध जीवन का त्याग करना चाहिए, और कृष्ण भावनामृत में हमें आध्यात्मिक तरक्की के लिए प्रयास करना चाहिए और इस तरह भगवद धाम जाने के लिए योग्य बनाना चाहिए, यद गत्वा ना निवर्तन्ते तद धामम् परमम् मम (भ.गी. १५.६), जहाँ जाकर, कोई भी इस दुखी दुनिया में वापस नहीं आता है । और यही भगवान का परम धाम है ।

तो भगवद गीता में विवरण है । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन अधिकृत है, बहुत महत्वपूर्ण है । अब, तुम अमेरिकी लड़के अौर लड़कियॉ जिन्होंने इस आंदोलन को अपनाया है, कृपया इसे और अधिक गंभीरता से लें ... यही भगवान चैतन्य और मेरे गुरु महाराज का मिशन है, और हम भी परम्परा द्वारा इस वसीयत पर अमल करने की कोशिश कर रहे हैं । तुम मेरी मदद के लिए आगे आए हो । मैं तुम सभी से अनुरोध करता हूँ कि मैं चला जाऊँगा , लेकिन तुम जीवित रहोगे । इस आंदोलन को अागे बढाना बंद मत करो, और तुम भगवान चैतन्य की कृपा पाअोगे और भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की भी ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।