HI/Prabhupada 0257 - तुम कैसे भगवान के कानूनों का उल्लंघन कर सकते हो: Difference between revisions
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तो हमारा कार्यक्रम है | तो हमारा कार्यक्रम है पूर्ण पुरुषोत्तम भगवन, कृष्ण, की पूजा करना । गोविन्दम अादि पुरुषम् तम अहम् भजामि । इस भौतिक दुनिया में हर कोई खुशी पाने की कोशिश कर रहा है और संकट से राहत पाने के लिए । दो बातें हो रही हैं, प्रयास । अलग प्रक्रियाएं हैं । भौतिक प्रक्रिया पूरी तरह से बेतुका है । वह पहले से ही साबित कर दिया गया है । भौतिक अाराम या खुशी कितनी भी क्यों न हो, तथाकथित खुशी, वह हमें वास्तविक खुशी नहीं दे सकती है जिसकी उत्कंठा हमें है । यह संभव नहीं है । फिर अलग अलग अन्य प्रक्रियाऍ भी हैं । हमारे भौतिक बद्ध जीवन के कारण दुख तीन प्रकार के होते हैं: अाध्यात्मिक, अाधिभौतिक, अाधिदैविक । | ||
आध्यात्मिक का मतलब है शरीर से और मन से संबंधित । जैसे जब इस शरीर के भीतर चयापचय के विभिन्न कार्यों में कुछ गड़बड़ होती है, हमें बुखार अाता है, हम कुछ दर महसूस करते हैं, सिर दर्द - ऐसी बहुत सी बातें हैं । तो ये दुख आध्यात्मिक कहा जाता है, शरीर से संबंधित । और इस आध्यात्मिक दुख का एक और पहलू मन की वजह से है । मान लीजिए मैंने एक बड़ा नुकसान सहा है । तो मन अच्छी हालत में नहीं होता है । तो यह भी पीड़ा है । | |||
तो शरीर की बीमारी की हालत, या कुछ मानसिक असंतोष, दुख हैं | अौर फिर, अाधिभौतिक - अन्य जीव द्वारा कष्ट मिलना । जैसे हम इंसान हैं, हम दैनिक कसाईखानों में लाखों गरीब जानवरों को भेज रहे हैं । वे व्यक्त नहीं कर सकते हैं, लेकिन यह अाधिभौतिक कहा जाता है, अन्य जीवों द्वारा कष्ट पाना । इसी तरह, हमें भी अन्य जीवों द्वारा दिए गए कष्टों से पीड़ा मिलती है । भगवान के कानून को तुम, मेरे कहने का मतलब है, उल्लंघन नहीं कर सकते । | |||
तो भौतिक कानून, राज्य के कानून, तुम अपने आप को छुपा सकते हो, लेकिन भगवान के कानून से तुम अपने आप को छिपा नहीं सकते । इतने सारे गवाह हैं । सूर्य तुम्हारा गवाह है, चंद्र तुम्हारा गवाह है, दिन तुम्हारा गवाह है, रात तुम्हारा गवाह है, आकाश तुम्हारा गवाह है । तो तुम कैसे भगवान के कानूनों का उल्लंघन कर सकते हो? तो ... लेकिन भौतिक प्रकृति का गठन इस तरह से किया जाता है कि हमें पीड़ित होना ही पडता है । | |||
आध्यात्मिक, मन से संबंधित, शरीर से संबंधित, और अन्य जीवों द्वारा दिए गए कष्ट, और एक अन्य पीड़ा है अाधिदैविक । अाधिदैविक, जैसे कोई भूत से पीडित है, भूत नें उस पर हमला किया है । भूत नहीं देखा जा सकता है, लेकिन वह पीड़ित है, कुछ बकवास बोल रहा है । या अकाल है, भूकंप, महामारी है, युद्ध है, है, तो कई बातें हैं । तो कष्ट हमेशा हैं । लेकिन हम ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं । कष्ट हमेशा से हैं । हर कोई कष्टों से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है, यह एक तथ्य है । | |||
अस्तित्व का पूरा संघर्ष पीड़ा से बाहर निकलना है । लेकिन नुस्खे विभिन्न प्रकार के होते हैं । कोई कहता है कि तुम इस तरह से कष्टों से बाहर निकलना, कोई कहता है कि तुम इस तरह से कष्टों से बाहर निकलना । तो दार्शनिकों द्वारा, आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा नुस्खे दिए जाते हैं, नास्तिकों या आस्तिकों द्वारा, कर्मी अभिनेताओं से, बहुत सारे हैं । लेकिन कृष्ण भावनामृत आंदोलन के अनुसार, तुम सभी कष्टों से बाहर अा सकते हो अगर तुम केवल अपनी चेतना को बदलो, बस । | |||
यही कृष्ण भावनामृत है । मैंने कई बार तुम्हे उदाहरण दिया है ... हमारे सभी कष्ट ज्ञान की कमी के कारण हैं, , अज्ञान । यह ज्ञान अच्छे अधिकारियों के संग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है । | |||
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Latest revision as of 15:17, 5 October 2018
Lecture -- Seattle, September 27, 1968
तो हमारा कार्यक्रम है पूर्ण पुरुषोत्तम भगवन, कृष्ण, की पूजा करना । गोविन्दम अादि पुरुषम् तम अहम् भजामि । इस भौतिक दुनिया में हर कोई खुशी पाने की कोशिश कर रहा है और संकट से राहत पाने के लिए । दो बातें हो रही हैं, प्रयास । अलग प्रक्रियाएं हैं । भौतिक प्रक्रिया पूरी तरह से बेतुका है । वह पहले से ही साबित कर दिया गया है । भौतिक अाराम या खुशी कितनी भी क्यों न हो, तथाकथित खुशी, वह हमें वास्तविक खुशी नहीं दे सकती है जिसकी उत्कंठा हमें है । यह संभव नहीं है । फिर अलग अलग अन्य प्रक्रियाऍ भी हैं । हमारे भौतिक बद्ध जीवन के कारण दुख तीन प्रकार के होते हैं: अाध्यात्मिक, अाधिभौतिक, अाधिदैविक ।
आध्यात्मिक का मतलब है शरीर से और मन से संबंधित । जैसे जब इस शरीर के भीतर चयापचय के विभिन्न कार्यों में कुछ गड़बड़ होती है, हमें बुखार अाता है, हम कुछ दर महसूस करते हैं, सिर दर्द - ऐसी बहुत सी बातें हैं । तो ये दुख आध्यात्मिक कहा जाता है, शरीर से संबंधित । और इस आध्यात्मिक दुख का एक और पहलू मन की वजह से है । मान लीजिए मैंने एक बड़ा नुकसान सहा है । तो मन अच्छी हालत में नहीं होता है । तो यह भी पीड़ा है ।
तो शरीर की बीमारी की हालत, या कुछ मानसिक असंतोष, दुख हैं | अौर फिर, अाधिभौतिक - अन्य जीव द्वारा कष्ट मिलना । जैसे हम इंसान हैं, हम दैनिक कसाईखानों में लाखों गरीब जानवरों को भेज रहे हैं । वे व्यक्त नहीं कर सकते हैं, लेकिन यह अाधिभौतिक कहा जाता है, अन्य जीवों द्वारा कष्ट पाना । इसी तरह, हमें भी अन्य जीवों द्वारा दिए गए कष्टों से पीड़ा मिलती है । भगवान के कानून को तुम, मेरे कहने का मतलब है, उल्लंघन नहीं कर सकते ।
तो भौतिक कानून, राज्य के कानून, तुम अपने आप को छुपा सकते हो, लेकिन भगवान के कानून से तुम अपने आप को छिपा नहीं सकते । इतने सारे गवाह हैं । सूर्य तुम्हारा गवाह है, चंद्र तुम्हारा गवाह है, दिन तुम्हारा गवाह है, रात तुम्हारा गवाह है, आकाश तुम्हारा गवाह है । तो तुम कैसे भगवान के कानूनों का उल्लंघन कर सकते हो? तो ... लेकिन भौतिक प्रकृति का गठन इस तरह से किया जाता है कि हमें पीड़ित होना ही पडता है ।
आध्यात्मिक, मन से संबंधित, शरीर से संबंधित, और अन्य जीवों द्वारा दिए गए कष्ट, और एक अन्य पीड़ा है अाधिदैविक । अाधिदैविक, जैसे कोई भूत से पीडित है, भूत नें उस पर हमला किया है । भूत नहीं देखा जा सकता है, लेकिन वह पीड़ित है, कुछ बकवास बोल रहा है । या अकाल है, भूकंप, महामारी है, युद्ध है, है, तो कई बातें हैं । तो कष्ट हमेशा हैं । लेकिन हम ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं । कष्ट हमेशा से हैं । हर कोई कष्टों से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है, यह एक तथ्य है ।
अस्तित्व का पूरा संघर्ष पीड़ा से बाहर निकलना है । लेकिन नुस्खे विभिन्न प्रकार के होते हैं । कोई कहता है कि तुम इस तरह से कष्टों से बाहर निकलना, कोई कहता है कि तुम इस तरह से कष्टों से बाहर निकलना । तो दार्शनिकों द्वारा, आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा नुस्खे दिए जाते हैं, नास्तिकों या आस्तिकों द्वारा, कर्मी अभिनेताओं से, बहुत सारे हैं । लेकिन कृष्ण भावनामृत आंदोलन के अनुसार, तुम सभी कष्टों से बाहर अा सकते हो अगर तुम केवल अपनी चेतना को बदलो, बस ।
यही कृष्ण भावनामृत है । मैंने कई बार तुम्हे उदाहरण दिया है ... हमारे सभी कष्ट ज्ञान की कमी के कारण हैं, , अज्ञान । यह ज्ञान अच्छे अधिकारियों के संग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है ।