HI/Prabhupada 0263 - अगर तुमने इस सूत्र को बहुत अच्छी तरह से अपने हाथ में लिया है, तो तुम प्रचार करते रहोगे: Difference between revisions
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प्रभुपाद: हाँ । | प्रभुपाद: हाँ । | ||
मधुद्विश : प्रभुपाद, वास्तव में भगवान चैतन्य ने क्या भविष्यवाणी की थी, जब उन्होंने कली के स्वर्ण युग की भविष्यवाणी की, (अस्पष्ट) जब लोग हरे कृष्ण मंत्र का | मधुद्विश : प्रभुपाद, वास्तव में भगवान चैतन्य ने क्या भविष्यवाणी की थी, जब उन्होंने कली के स्वर्ण युग की भविष्यवाणी की, (अस्पष्ट) जब लोग हरे कृष्ण मंत्र का जप करेंगे ? | ||
प्रभुपाद: हाँ । लोग ...वैसे ही जैसे हम अब हरे कृष्ण का प्रचार कर रहे हैं । तुम्हारे देश में ऐसा कोई प्रचार नहीं था । तो हमने यूरोप, जर्मनी, | प्रभुपाद: हाँ । लोग ...वैसे ही जैसे हम अब हरे कृष्ण का प्रचार कर रहे हैं । तुम्हारे देश में ऐसा कोई प्रचार नहीं था । तो हमने यूरोप, जर्मनी, लंडन में हमारे छात्रों को भेजा है - तुम भी फैला रहे हो । इस तरह से, यह केवल, हमारी गतिविधियॉ व्यावहारिक रूप से १९६६ से चल रही है । हमने १९६६ में संघ को पंजीकृत किया है, और यह '६८ है । तो धीरे - धीरे हम फैला रहे हैं । और बेशक, मैं बूढ़ा आदमी हूँ । मैं मर सकता हूँ । अगर तुमने इस सूत्र को बहुत अच्छी तरह से अपने हाथ में लिया है, तो तुम प्रचार करते रहोगे, और यह दुनिया भर में फैल सकता है । बहुत ही साधारण बात । बस हमें थोडी सी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता है । बस । तो कोई भी बुद्धिमान आदमी सराहना करेगा । लेकिन अगर कोई धोखा खाना चाहता है तो कैसे उसे बचाया जा सकता है, अगर कोई खुशी से धोखा खाना चाहता है ? तो उसे समझाना बहुत मुश्किल है । लेकिन जो खुले मन के हैं, वे निश्चित रूप से स्वीकार करेंगे इस अच्छे आंदोलन को, कृष्ण भावनामृत । हां । | ||
जय-गोपाल: जब हम निम्न | जय-गोपाल: जब हम निम्न शक्ति को संलग्न करते हैं, आंतरिक शक्ति, कृष्ण की सेवा में, यह अाध्यात्मिक हो जाती है, है ना ? | ||
प्रभुपाद: नहीं । जब तुम अपनी | प्रभुपाद: नहीं । जब तुम अपनी शक्ति को लगाते हो, तो यह भौतिक नहीं रहती है, यह आध्यात्मिक बन जाती है । जैसे जब कोई तांबे की तार बिजली के साथ संपर्क में अाती है, तो यह तांबा नहीं रहती है, यह बिजली है । इसलिए कृष्ण की सेवा का मतलब है कि जैसे ही तुम अपने अाप को कृष्ण की सेवा में संलग्न करते हो, तुम कृष्ण से अलग नहीं हो । यह भगवद गीता में कहा गया है: माम च अव्यभिचारेण भक्ति योगेन य: सेवते यही शब्द, सेवते । स गुणान समतीत्यैतान ब्रह्म भुयाय कल्पते ([[HI/BG 14.26|भ.गी. १४.२६]]) । "जो कोई भी गंभीरता से मेरी सेवा में खुद को संलग्न करता है, तुरंत वह भौतिक गुणों से परे हो जाता है और वह ब्रह्म के मंच पर अाता है । " ब्रह्म भूयाय कल्पते । तो जब तुम कृष्ण की सेवा में अपनी शक्ति को लगाते हो, तुम मत सोचो कि तुम्हारी भौतिक शक्ति वहाँ है । नहीं । | ||
जैसे इन फलों की तरह । ये फल, हम सोच सकते हैं, " यह प्रसाद क्या है ? इस फल को खरीदा गया है, हम भी घर पर फल खाते हैं, और यह प्रसाद है? " नहीं । क्योंकि यह कृष्ण को अर्पण किया गया है, तुरंत यह भोतिक नहीं रहता है । नतीजा? तुम कृष्ण प्रसाद खाअो और देखो कि कैसे तुम कृष्ण भावनामृत में प्रगति कर रहे हो । जैसे अगर चिकित्सक तुम्हे कुछ दवा देता है और तुम ठीक हो जाते हो, तो यह उस दवा का प्रभाव है । एक और उदाहरण है कि कैसे भौतिक चीज़ें आध्यात्मिक हो जाती हैं । एक बहुत अच्छा उदाहरण है । जैसे तुम दूध बड़ी मात्रा में लेते हो । तो तुम्हारे आंत में कुछ विकार है । तुम एक चिकित्सक के पास जाते हो । कम से कम, वैदिक प्रणाली के अनुसार...., वे तुम्हे दही से बना हुअा पदार्थ देंगे । यही दूध का पदार्थ है । | |||
वह दही थोडी सी दवा के साथ इलाज कर देगा । अब तुम्हारी बीमारी दूध की वजह से थी, और उसका इलाज भी दूध से ही होता है । क्यों? यह चिकित्सक द्वारा निर्देशित है । इसी तरह, सब कुछ ... उच्च स्तर पर पदार्थों का कोई अस्तित्व नहीं है, यह केवल भ्रम है । जैसे आज सुबह मैं सूरज और कोहरे का उदाहरण दे रहा था । कोहरा वहाँ था, सूरज नहीं देखा जा सकता था । मूर्ख व्यक्ति कहेगा "कोई सूरज नहीं है । यह बस कोहरा है ।" लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति कहेगा कि, "सूरज है, लेकिन कोहरे नें हमारी आंखों को ढक दिया है । हम सूरज को नहीं देख सकते हैं ।" इसी तरह, वास्तव में, सब कुछ कृष्ण की शक्ति है, कुछ भी भौतिक नहीं है । बस हमारी, इस मानसिकता की वजह से कि हम सब पर राज करना चाहता हैं, यह गलत है, भ्रम । यही कृष्ण के साथ हमारे संबंधों को ढक रहा है । तो यह तुम धीरे - धीरे समझ जाअोगे । सेवनमुखे हि जिह्वादौ स्वयम एव स्फुरति अद: (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.२३४) । जैसे ही तुम सेवा भाव में प्रगति करते हो, सब कुछ साफ हो जाएगा, कि कैसे तुम्हारी शक्ति अाध्यात्मिक बन गई है । | |||
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Latest revision as of 18:25, 17 September 2020
Lecture -- Seattle, September 27, 1968
प्रभुपाद: हाँ ।
मधुद्विश : प्रभुपाद, वास्तव में भगवान चैतन्य ने क्या भविष्यवाणी की थी, जब उन्होंने कली के स्वर्ण युग की भविष्यवाणी की, (अस्पष्ट) जब लोग हरे कृष्ण मंत्र का जप करेंगे ?
प्रभुपाद: हाँ । लोग ...वैसे ही जैसे हम अब हरे कृष्ण का प्रचार कर रहे हैं । तुम्हारे देश में ऐसा कोई प्रचार नहीं था । तो हमने यूरोप, जर्मनी, लंडन में हमारे छात्रों को भेजा है - तुम भी फैला रहे हो । इस तरह से, यह केवल, हमारी गतिविधियॉ व्यावहारिक रूप से १९६६ से चल रही है । हमने १९६६ में संघ को पंजीकृत किया है, और यह '६८ है । तो धीरे - धीरे हम फैला रहे हैं । और बेशक, मैं बूढ़ा आदमी हूँ । मैं मर सकता हूँ । अगर तुमने इस सूत्र को बहुत अच्छी तरह से अपने हाथ में लिया है, तो तुम प्रचार करते रहोगे, और यह दुनिया भर में फैल सकता है । बहुत ही साधारण बात । बस हमें थोडी सी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता है । बस । तो कोई भी बुद्धिमान आदमी सराहना करेगा । लेकिन अगर कोई धोखा खाना चाहता है तो कैसे उसे बचाया जा सकता है, अगर कोई खुशी से धोखा खाना चाहता है ? तो उसे समझाना बहुत मुश्किल है । लेकिन जो खुले मन के हैं, वे निश्चित रूप से स्वीकार करेंगे इस अच्छे आंदोलन को, कृष्ण भावनामृत । हां ।
जय-गोपाल: जब हम निम्न शक्ति को संलग्न करते हैं, आंतरिक शक्ति, कृष्ण की सेवा में, यह अाध्यात्मिक हो जाती है, है ना ?
प्रभुपाद: नहीं । जब तुम अपनी शक्ति को लगाते हो, तो यह भौतिक नहीं रहती है, यह आध्यात्मिक बन जाती है । जैसे जब कोई तांबे की तार बिजली के साथ संपर्क में अाती है, तो यह तांबा नहीं रहती है, यह बिजली है । इसलिए कृष्ण की सेवा का मतलब है कि जैसे ही तुम अपने अाप को कृष्ण की सेवा में संलग्न करते हो, तुम कृष्ण से अलग नहीं हो । यह भगवद गीता में कहा गया है: माम च अव्यभिचारेण भक्ति योगेन य: सेवते यही शब्द, सेवते । स गुणान समतीत्यैतान ब्रह्म भुयाय कल्पते (भ.गी. १४.२६) । "जो कोई भी गंभीरता से मेरी सेवा में खुद को संलग्न करता है, तुरंत वह भौतिक गुणों से परे हो जाता है और वह ब्रह्म के मंच पर अाता है । " ब्रह्म भूयाय कल्पते । तो जब तुम कृष्ण की सेवा में अपनी शक्ति को लगाते हो, तुम मत सोचो कि तुम्हारी भौतिक शक्ति वहाँ है । नहीं ।
जैसे इन फलों की तरह । ये फल, हम सोच सकते हैं, " यह प्रसाद क्या है ? इस फल को खरीदा गया है, हम भी घर पर फल खाते हैं, और यह प्रसाद है? " नहीं । क्योंकि यह कृष्ण को अर्पण किया गया है, तुरंत यह भोतिक नहीं रहता है । नतीजा? तुम कृष्ण प्रसाद खाअो और देखो कि कैसे तुम कृष्ण भावनामृत में प्रगति कर रहे हो । जैसे अगर चिकित्सक तुम्हे कुछ दवा देता है और तुम ठीक हो जाते हो, तो यह उस दवा का प्रभाव है । एक और उदाहरण है कि कैसे भौतिक चीज़ें आध्यात्मिक हो जाती हैं । एक बहुत अच्छा उदाहरण है । जैसे तुम दूध बड़ी मात्रा में लेते हो । तो तुम्हारे आंत में कुछ विकार है । तुम एक चिकित्सक के पास जाते हो । कम से कम, वैदिक प्रणाली के अनुसार...., वे तुम्हे दही से बना हुअा पदार्थ देंगे । यही दूध का पदार्थ है ।
वह दही थोडी सी दवा के साथ इलाज कर देगा । अब तुम्हारी बीमारी दूध की वजह से थी, और उसका इलाज भी दूध से ही होता है । क्यों? यह चिकित्सक द्वारा निर्देशित है । इसी तरह, सब कुछ ... उच्च स्तर पर पदार्थों का कोई अस्तित्व नहीं है, यह केवल भ्रम है । जैसे आज सुबह मैं सूरज और कोहरे का उदाहरण दे रहा था । कोहरा वहाँ था, सूरज नहीं देखा जा सकता था । मूर्ख व्यक्ति कहेगा "कोई सूरज नहीं है । यह बस कोहरा है ।" लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति कहेगा कि, "सूरज है, लेकिन कोहरे नें हमारी आंखों को ढक दिया है । हम सूरज को नहीं देख सकते हैं ।" इसी तरह, वास्तव में, सब कुछ कृष्ण की शक्ति है, कुछ भी भौतिक नहीं है । बस हमारी, इस मानसिकता की वजह से कि हम सब पर राज करना चाहता हैं, यह गलत है, भ्रम । यही कृष्ण के साथ हमारे संबंधों को ढक रहा है । तो यह तुम धीरे - धीरे समझ जाअोगे । सेवनमुखे हि जिह्वादौ स्वयम एव स्फुरति अद: (भक्तिरसामृतसिन्धु १.२.२३४) । जैसे ही तुम सेवा भाव में प्रगति करते हो, सब कुछ साफ हो जाएगा, कि कैसे तुम्हारी शक्ति अाध्यात्मिक बन गई है ।