HI/Prabhupada 0293 - रस बारह प्रकार के होते हैं, भाव

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Lecture -- Seattle, October 4, 1968

कृष्ण का मतलब है "सर्व-आकर्षक " वे प्रेमी के लिए आकर्षक हैं, वे बुद्धिमान के लिए आकर्षक हैं, वे राजनेता के लिए आकर्षक हैं, वह वैज्ञानिक के लिए आकर्षक हैं, वे बदमाशों के लिए आकर्षक हैं । बदमाशों के लिए भी । जब कृष्ण कंस के क्षेत्र में प्रवेश किए, विभिन्न प्रकार के लोगों नें अलग ढंग से उन्हे देखा । वृन्दावन से जो आमंत्रित थे, वे युवा लड़किया थी । उन्होंने कृष्ण को देखा, "ओह, सबसे सुंदर व्यक्ति ।" पहलवानों थे जो लोग, उन्होमणे वज्र के रूप में कृष्ण को देखा । उन्होंने भी कृष्ण को देखा, लेकिन वे कहते हैं, "ओह, यहां वज्र हैं ।" जैसे, कितने भी तुम बलवान क्यों न हो, लेिकन अगर वज्र गिरता है तो सब कुछ समाप्त हो जाता है ।

तो उन्होंने वज्र के रूप में कृष्ण को देखा, पहलवानों नें । हां । और बुजुर्ग व्यक्ति, बुजुर्ग महिलाऍ, उन्होंने प्यारे बच्चे के रूप में कृष्ण को देखा । तो तुम कृष्ण के साथ किसी भी तरह से संबंध स्थापित कर सकते हो । रस बारह प्रकार के होते हैं, भाव । जैसे कभी कभी हम कुछ नाटक में बहुत दयनीय दृश्य देखना चाहते हैं, कुछ भयानक दृश्य । कोई किसी की हत्या कर रहा है और हम उसे देखने में आनंद लेते हैं । व्यक्ति कुछ प्रकार के होते हैं ... खेल के विभिन्न प्रकार होते हैं । मॉन्ट्रियल में हमारा एक छात्र है, वह कह रहा था कि उसके पिता स्पेन में सांड की लड़ाई में अानन्द पाते हैं । जब सांड लड़ाई में मारा जाता है, वह खुशी पा रहे थे - पुरुषों के विभिन्न प्रकार । एक व्यक्ति देख रहा है "यह भयानक है," दूसरा व्यक्ति मज़ा ले रहा है "ओह, यह बहुत अच्छा है ।" तुम देखते हो? तो कृष्ण अनुरूप कर सकते हैं । अगर तुम भयानक बातें से प्रेम करना चाहते हो, कृष्ण प्रस्तुत हो सकते हैं तुम्हारे सामने नरसिंहदेव, "अाह" । (हंसी) हाँ ।

अौर अगर तुम कृष्ण को देखना चाहते हो एक बहुत प्यारे दोस्त के रूप में, तो वे वंशी-धारी, वृन्दावन-विहारी । अगर तुम श्री कृष्ण को एक प्यारे बच्चे के रूप में चाहते हो, तो वे गोपाल हैं । अगर तुम बच्चे के रूप में प्यारा दोस्त चाहते हो, वे अर्जुन हैं । जैसे अर्जुन और कृष्ण । तो भाव बारह प्रकार के होते हैं । कृष्ण सभी भावों में हैं, इसलिए उनका नाम है अखिल-रसामृत-सिंधु है । अखिल-रसामृत-सिंधु. अखिल का मतलब है, सार्वभौमिक: रस का मतलब है मधुर, भाव; और सागर । जैसे अगर तुम पानी को खोजने की कोशिश कर रहे हो, और तुम प्रशांत महासागर पहुंचते हो, ओह, असीमित पानी । वहाँ कितना पानी है कोई तुलना नहीं है ।

इसी तरह, अगर तुम कुछ चाहते हो और तुम कृष्ण कि शरण में जाते हो, तो तुम्हे असीमित आपूर्ति मिलेगी, असीमित आपूर्ति, जैसे सागर की तरह । इसलिए यह भगवद गीता में कहा गया है, यम लभ्ध्वा चापरम लाभम मन्यते नाधिकम् तत: | अगर कोई परम निरपेक्ष को प्राप्त कर सकता है, तो वह संतुष्ट हो जाएगा और वह कहेगा, "ओह, अब कोई उत्कंठा नहीं है ।" मुझे पूरा सब कुछ मिल गया है, पूर्ण संतुष्टि ।" यम लभ्ध्वा चापरम लाभम मन्यते नाधिकम् तत: यस्मिन स्थिते । अौर अगर कोई दिव्य स्थिति में स्थित है, तो क्या होता है? गुरुणापि दुःखेन न विचाल्यते (भ.गी. ६.२०-२३) | अगर संकट का बहुत गंभीर परीक्षण है, तो वह नहीं है, कहने का मतलब है, लडखडाता नहीं ।

श्रीमद-भागवत में ऐसे कई उदाहरण हैं । जैसे भगवद गीता में पांडवों को इतनी सारी व्यथित हालत में रखा गया था, लेकिन वे कभी लडखडाए नहीं थे । उन्होंने श्री कृष्ण से कभी नहीं पूछा, " मेरे प्यारे कृष्ण, अाप मेरे दोस्त हैं । आप हमारे दोस्त हैं, पांडवों के । क्यों हमें कठिनाइयों के इतने गंभीर परीक्षण के दौर से गुजरना पड रहा है? " नहीं । उन्होंने कभी नहीं पूछा । क्योंकि वे आश्वस्त थे कि "इन सभी कठिनाइयों के बावजूद, हम विजयी होंगे क्योंकि कृष्ण हैं हमारे साथ । क्योंकि श्री कृष्ण हैं । यह आत्मविश्वास । यही शरणागति कहा जाता है, आत्मसमर्पण ।