HI/Prabhupada 0294 - कृष्ण को आत्मसमर्पण करने के छह अंक हैं

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Lecture -- Seattle, October 4, 1968

कृष्ण को आत्मसमर्पण करने के छह अंक हैं । एक मुद्दा समर्पण का यह है कि विश्वास करना "कृष्ण मेरी रक्षा करेंगे ।" वैसे ही जैसे एक छोटे से बच्चा को अपनी मां पर पूरा विश्वास है: "मेरी माँ है । कोई खतरा नहीं है ।" आत्मविश्वास । मैंने देखा है । हर कोई । मुझे मिला है ... मैं एक व्यावहारिक अनुभव बयान करता हूँ । कलकत्ता में, मेरी जवानी के दिनों में, मैं ट्राम में यात्रा कर रहा था, और मेरा सबसे छोटा बेटा, वह मेरे साथ था । वह केवल दो साल का था, या ढाई साल का । तो मजाक में कंडक्टर नें उस से पूछा, "मुझे अपना किराया दो ।" तो सब से पहले उसने इस तरह से कहा: "मेरे पास पैसे नहीं हैं ।" तो कंडक्टर ने कहा, "तो फिर तुम नीचे उतर जाओ ।" उसने तुरंत कहा, "ओह, यहाँ मेरे पिता हैं ।" (हंसी) तुमने देखा । "तुम मुझे नीचे नहीं उतार सकते हो । मेरे पिताजी यहाँ हैं ।" तुम देख रहे हो? तो यह मनोविज्ञान है ।

अगर तुमने कृष्ण से संपर्क किया है, तो सबसे बड़ा डर भी तुम्हे नहीं सताएगा । यह एक तथ्य है । तो कृष्ण ऐसे है । इस सबसे बड़ा वरदान को प्राप्त करने का प्रयास करें, कृष्ण | और कृष्ण क्या कहते हैं? कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति (भ.गी. ९.३१) | "मेरे प्रिय कौन्तेय, कुंती के पुत्र, अर्जुन, दुनिया में घोषणा करो कि मेरे भक्त कभी परास्त नहीं होते हैं ।" परास्त नहीं होते हैं । कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्त: प्रणश्यति । इसी तरह, भगवद गीता में कई कथन हैं | मैं इस किताब से बयान दे रहा हूँ क्योंकि भगवद गीता दुनिया भर में बहुत लोकप्रिय है, और ... समझने की कोशिश करो, इस पुस्तक को पढो, ज्ञान की बहुत मूल्यवान किताब । तो कृष्ण कहते हैं:

अहम् सर्वस्य प्रभवो
मत्त: सर्वम प्रवर्तते
इति मत्वा भजन्ते माम
बुधा भाव-समन्वित:
(भ.गी. १०.८)

कौन कृष्ण की पूजा कर सकता है ? यही यहाँ वर्णित है है, कि बुधा । बुधा का मतलब है सबसे बुद्धिमान व्यक्ति । बोध, बोध का मतलब है ज्ञान, और बुधा इसका मतलब है जो ज्ञान से भरा हो, जो बुद्धिमान है । हर कोई ज्ञान के पीछे है । यहाँ तुम्हारा वॉशिंगटन विश्वविद्यालय है । कई छात्र हैं । वे ज्ञान प्राप्त करने के लिए यहां आए हैं । तो जिसने ज्ञान हासिल कर लिया है या ज्ञान के सर्वोच्च मंच की पूर्णता को, वह बुधा कहा जाता है । इतना ही नहीं, केवल बुधा नहीं पर भाव-समान्वित: भाव का मतलब है परमानंद । व्यक्ति बहुत कुछ सीखा हुअा होना चाहिए और बुद्धिमान होना चाहिए, अौर साथ साथ आध्यात्मिक परमानंद महसूस करना चाहिए । "इस तरह का व्यक्ति," कृष्ण कहते हैं, इति मत्वा भजन्ते माम । "इस तरह के व्यक्ति मेरी पूजा करते हैं या मुझे प्रेम करते हैं ।" जो बहुत बुद्धिमान है, अौर जो अनुभव या तर्क से परे होकर परमानंद से भरा हुआ है, ऐसा व्यक्ति कृष्ण को प्यार करता हैं, या कृष्ण को पूजता हैं । क्यों? क्योंकि इति मत्वा, "इस समझ से ।" यह क्या है? अहम् सर्वस्य प्रभवो (भ.गी. १०.८) , "मैं सब कुछ का मूल हूँ, सर्वस्य ।" तुम कुछ भी ले कर अाअो, बाहर खोजो, तो तुम पाअोगे कि अंत में कृष्ण मिलेंगे । वेदांत भी एक ही बात कहते हैं । ब्रह्म क्या है? अथातो ब्रह्म जिझासा ।