HI/Prabhupada 0295 - एक जीव अन्य सभी जीव की सभी मांगों की आपूर्ति कर रहा है: Difference between revisions

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{{youtube_right|gVXl4bYU1vI|One Living Force is Supplying all the Demands of all other Living Entities - Prabhupāda 0295}}
{{youtube_right|5-jZbT5ER0M|एक जीव अन्य सभी जीव की सभी मांगों की आपूर्ति कर रहा है - Prabhupāda 0295}}
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यह जीवन, यह मानव जीवन ... अब हम ... अन्य जीवन में हमनें पूरी हद तक इन्द्रिय सुख भोगा है । हम इस मानव जीवन में क्या आनंद ले सकते हैं? अन्य जीवन में ... बेशक, डार्विन के सिद्धांत के अनुसार, इस मानव जीवन से पहले बंदर जीवन था । तो बंदर ... तुम्हे कोई अनुभव नहीं है । भारत में हमें अनुभव है । प्रत्येक बंदर के साथ कम से कम सौ लड़कियॉ है । सौ, एक सौ ।


तो हम क्या सक्षम है आनंद लेने में? हर, हर, उनके दल है, और हर दल, एक बंदर के साथ हैं कम से कम पचास, साठ, पच्चीस से कम नहीं । तो एक सूअर का जीवन, उनकी भी डज़नो हैं ... डज़नो । और उनमे कोई भेदभाव नहीं है "कौन मेरी माँ है, मेरी बहन है, मेरे रिश्तेदार हैं ।" तुम देखते हो? तो वे आनंद ले रहे हैं । तो तुम्हारे कहने का मतलब है कि मानव जीवन इस तरह बिताने के लिए है - जैसे बंदर और सुअर और बिल्लि और कुत्ते की तरह? क्या ये मानव जीवन की पूर्णता है, इन्द्रिय संतुष्टि को पूरा करना ? नहीं । यह हमने जीवन के विभिन्न रूपों में अानन्द लिया है ।
अब? वेदांत कहते हैं, अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । यह जीवन ब्रह्म के बारे में पूछताछ करने और समझने के लिए है | वह ब्रह्म क्या है? ईश्वर: परम: ब्रह्म या परम, ईश्वर: परम: कृष्ण: (ब्रह्मसंहिता ५.१) | और कृष्ण पर-ब्रह्म हैं । ब्रह्म, हम सभी ब्रह्म हैं, लेकिन वे पर-ब्रह्म हैं, परम ब्रह्म । ईश्वर: परम: कृष्ण: (ब्रह्मसंहिता ५.१) । जैसे तुम सभी अमेरिकी हो, लेकिन तुम्हारे राष्ट्रपति जॉनसन परम अमेरिकी हैं । यह स्वाभाविक है । वेद कहते हैं कि हर किसी से सर्वोच्च भगवान हैं ।
नित्यो नि्त्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) | भगवान कौन हैं? वे सबसे उत्तम अनन्त हैं, सबसे पूर्ण हैं, जीवित शक्ति । यही भगवान हैं । एको बहुनाम विदधाति कामान । एको बहुनाम विदधाति कामान । अर्थ यह है कि एक जीव अन्य सभी जीव की सभी मांगों की आपूर्ति कर रहे है । जैसे एक परिवार में, पिता अपने पत्नी, बच्चों, नौकर की जरूरतों की आपूर्ति कर रहा है - छोटा परिवार । इसी तरह, तुम इसका विस्तार करो सरकार या राज्य या राजा सभी नागरिकों की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रहा है । लेकिन सब कुछ अधूरा है । सब कुछ अधूरा है ।
तुम अपने परिवार की आपूर्ति कर सकते हो, तुम अपने देश की आपूर्ति कर सकते हो, तुम अपने समाज की आपूर्ति कर सकते हो, लेकिन तुम सभी की आपूर्ति नहीं कर सकते । लेकिन लाखों और अरबों जीव हैं । कौन खाद्य आपूर्ति कर रहा है? कौन तुम्हारे कमरे में छेद के भीतर सैकड़ों और हजारों चींटियों की आपूर्ति कर रहा है? कौन खाद्य आपूर्ति कर रहा है? जब तुम ग्रीन लेक पर जाते हो, हजारों बतख हैं । उनका ख़याल कौन रख रहा है? लेकिन वे जी रहे हैं । लाखों चिडियॉ, पक्षी, जानवर, हाथी हैं । एक समय में वह १०० पाउंड खाता है । कौन खाद्य आपूर्ति कर रहा है? यहां ही नहीं , लेकिन हर जगह लाखों और अरबों ग्रह और ब्रह्मांड हैं । यही भगवान हैं ।
नित्यो नित्यानाम एको बहुनाम विदधाति कामान । . हर कोई उन पर निर्भर है, और वे सभी आवश्यकता की आपूर्ति कर रहे हैं, सभी आवश्यकताओं की । सब कुछ पूर्ण है । जैसे इस ग्रह की तरह, सब कुछ पूर्ण है । पूर्णम इदम पूर्णम अद: पूर्णात पूर्णम उद्च्यते पूर्णस्य पूर्णम अादाय पूर्णम एवावशिश्यते (ईशोपनिषद मंगलाचरण) हर ग्रह इस तरह से बना है कि वह अपने में पूर्ण है । पानी है, समुद्र और महासागरों में सुरक्षित । वह पानी धूप से चला जाता है । यहां ही नहीं, अन्य ग्रहों में भी, वही प्रक्रिया चल रही है । यह बादल में तब्दील हो जाता है, तो सारे देश भर में वितरित होता है, और सब्जियॉ, फल और पौधे, सब कुछ उगता है । तो सब कुछ पूरी व्यवस्था है । हमें समझना होगा कि, किसने हर जगह यह पूरी व्यवस्था बनाई है । सूर्य समय से उगता है, चाँद समय से उगता है, मौसम समय से बदल रहे हैं । तो तुम कैसे कह सकते हो? वेदों में सबूत है कि भगवान हैं ।
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 4, 1968

यह जीवन, यह मानव जीवन ... अब हम ... अन्य जीवन में हमनें पूरी हद तक इन्द्रिय सुख भोगा है । हम इस मानव जीवन में क्या आनंद ले सकते हैं? अन्य जीवन में ... बेशक, डार्विन के सिद्धांत के अनुसार, इस मानव जीवन से पहले बंदर जीवन था । तो बंदर ... तुम्हे कोई अनुभव नहीं है । भारत में हमें अनुभव है । प्रत्येक बंदर के साथ कम से कम सौ लड़कियॉ है । सौ, एक सौ ।

तो हम क्या सक्षम है आनंद लेने में? हर, हर, उनके दल है, और हर दल, एक बंदर के साथ हैं कम से कम पचास, साठ, पच्चीस से कम नहीं । तो एक सूअर का जीवन, उनकी भी डज़नो हैं ... डज़नो । और उनमे कोई भेदभाव नहीं है "कौन मेरी माँ है, मेरी बहन है, मेरे रिश्तेदार हैं ।" तुम देखते हो? तो वे आनंद ले रहे हैं । तो तुम्हारे कहने का मतलब है कि मानव जीवन इस तरह बिताने के लिए है - जैसे बंदर और सुअर और बिल्लि और कुत्ते की तरह? क्या ये मानव जीवन की पूर्णता है, इन्द्रिय संतुष्टि को पूरा करना ? नहीं । यह हमने जीवन के विभिन्न रूपों में अानन्द लिया है ।

अब? वेदांत कहते हैं, अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । यह जीवन ब्रह्म के बारे में पूछताछ करने और समझने के लिए है | वह ब्रह्म क्या है? ईश्वर: परम: ब्रह्म या परम, ईश्वर: परम: कृष्ण: (ब्रह्मसंहिता ५.१) | और कृष्ण पर-ब्रह्म हैं । ब्रह्म, हम सभी ब्रह्म हैं, लेकिन वे पर-ब्रह्म हैं, परम ब्रह्म । ईश्वर: परम: कृष्ण: (ब्रह्मसंहिता ५.१) । जैसे तुम सभी अमेरिकी हो, लेकिन तुम्हारे राष्ट्रपति जॉनसन परम अमेरिकी हैं । यह स्वाभाविक है । वेद कहते हैं कि हर किसी से सर्वोच्च भगवान हैं ।

नित्यो नि्त्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) | भगवान कौन हैं? वे सबसे उत्तम अनन्त हैं, सबसे पूर्ण हैं, जीवित शक्ति । यही भगवान हैं । एको बहुनाम विदधाति कामान । एको बहुनाम विदधाति कामान । अर्थ यह है कि एक जीव अन्य सभी जीव की सभी मांगों की आपूर्ति कर रहे है । जैसे एक परिवार में, पिता अपने पत्नी, बच्चों, नौकर की जरूरतों की आपूर्ति कर रहा है - छोटा परिवार । इसी तरह, तुम इसका विस्तार करो सरकार या राज्य या राजा सभी नागरिकों की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर रहा है । लेकिन सब कुछ अधूरा है । सब कुछ अधूरा है ।

तुम अपने परिवार की आपूर्ति कर सकते हो, तुम अपने देश की आपूर्ति कर सकते हो, तुम अपने समाज की आपूर्ति कर सकते हो, लेकिन तुम सभी की आपूर्ति नहीं कर सकते । लेकिन लाखों और अरबों जीव हैं । कौन खाद्य आपूर्ति कर रहा है? कौन तुम्हारे कमरे में छेद के भीतर सैकड़ों और हजारों चींटियों की आपूर्ति कर रहा है? कौन खाद्य आपूर्ति कर रहा है? जब तुम ग्रीन लेक पर जाते हो, हजारों बतख हैं । उनका ख़याल कौन रख रहा है? लेकिन वे जी रहे हैं । लाखों चिडियॉ, पक्षी, जानवर, हाथी हैं । एक समय में वह १०० पाउंड खाता है । कौन खाद्य आपूर्ति कर रहा है? यहां ही नहीं , लेकिन हर जगह लाखों और अरबों ग्रह और ब्रह्मांड हैं । यही भगवान हैं ।

नित्यो नित्यानाम एको बहुनाम विदधाति कामान । . हर कोई उन पर निर्भर है, और वे सभी आवश्यकता की आपूर्ति कर रहे हैं, सभी आवश्यकताओं की । सब कुछ पूर्ण है । जैसे इस ग्रह की तरह, सब कुछ पूर्ण है । पूर्णम इदम पूर्णम अद: पूर्णात पूर्णम उद्च्यते पूर्णस्य पूर्णम अादाय पूर्णम एवावशिश्यते (ईशोपनिषद मंगलाचरण) हर ग्रह इस तरह से बना है कि वह अपने में पूर्ण है । पानी है, समुद्र और महासागरों में सुरक्षित । वह पानी धूप से चला जाता है । यहां ही नहीं, अन्य ग्रहों में भी, वही प्रक्रिया चल रही है । यह बादल में तब्दील हो जाता है, तो सारे देश भर में वितरित होता है, और सब्जियॉ, फल और पौधे, सब कुछ उगता है । तो सब कुछ पूरी व्यवस्था है । हमें समझना होगा कि, किसने हर जगह यह पूरी व्यवस्था बनाई है । सूर्य समय से उगता है, चाँद समय से उगता है, मौसम समय से बदल रहे हैं । तो तुम कैसे कह सकते हो? वेदों में सबूत है कि भगवान हैं ।