HI/Prabhupada 0297 - जो निरपेक्ष सत्य को समझने के लिए जिज्ञासु है उसे एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता है
Lecture -- Seattle, October 4, 1968
हमारी प्रक्रिया में, अादौ गुरुवाश्रयम सद-धर्म प्रच्छात । हमें एक प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु को स्वीकार करना होगा और पूछताछ करनी होगी उनसे, सद-धर्म प्रच्छात इसी तरह, श्रीमद-भागवतम भी यह कहता हैं कि जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम । "जो निरपेक्ष सत्य को समझने के लिए जिज्ञासु है, उसे एक आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता है ।" तस्माद गुरुम प्रपद्येत जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम (श्री भ ११।३।२१) जिज्ञासु का मतलब है जो जिज्ञासा रखता है, पूछता है । जांच स्वाभाविक है । जैसे एक बच्चे की तरह: अपने जीवन के विकास के साथ साथ वह पूछता है अपने वह माता - पिता से "पिताजी, यह क्या है? माँ, यह क्या है? यह क्या है? यह है क्या?" यह अच्छा है । एक लड़का, बच्चा, जो जांच कर रहा है, इसका मतलब है कि वह बहुत बुद्धिमान लड़का है । इसलिए हमें बुद्धिमान होना चाहिए और पूछताछ करनी चाहिए, जिज्ञासा । ब्रह्म जिज्ञासा । यह जीवन ब्रह्म-जिज्ञासा के लिए है, समझने के लिए, पूछताछ करन के लिए, भगवान के बारे में । तो एक जीवन सफल है । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । पूछताछ करने के बाद, समझने के बाद, अंतिम चरण क्या है? भगवद गीता में कहा गया है कि बहुनाम जन्मनाम अन्ते ज्ञानवान माम प्रपद्यन्ते (भ गी ७।१९) कई जन्मों के पूछताछ के बाद, जब कोई वास्तव बुद्धिमान हो जाता है , ज्ञानी, तब क्या होता है? बहुनाम जन्मनाम अन्ते ज्ञानवान माम प्रपद्यन्ते " "वह मुझे पर्यत समर्पण करता है ।" कृष्ण कहते हैं । क्यों? वादुदेव: सर्वम इति । वह समझता है कि वासुदेव, कृष्ण, सभी कारणों के कारण हैं । स महात्मा सु दुर्लभ: लेकिन एसी महान आत्मा बहुत दुर्लभ है, जो यह समझे । इसलिए चैतन्य-चरितामृत कहता है, सेई बदो चतुर, वह बहुत बुद्धिमान है । तो यह बुद्धिमान व्यक्ति की परिभाषा है । तो अगर हम बुद्धिमान होना चाहते हो, हम बुद्धिमान बनने की प्रक्रिया को अपना सकते हैं । लेकिन दूसरी ओर अगर हम वास्तव में बुद्धिमान हैं , क्यों न तुरंत इस कृष्ण भावनामृत को लें और बुद्धिमान बन जाऍ? बिना, प्रक्रिया को लिए बिना, तुम लो ... यह सबसे उदार अवतार, भगवान चैतन्य द्वारा तुम्हे प्रदान किया जा रहा है । वे प्रदान कर रहे हैं, कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते (चै च मध्य १९।५३) । वे तुम्हे कृष्ण का प्रम दे रहे हैं । रूप गोस्वामी भगवान चैतन्य को दण्डवत प्रणाम कर रहे हैं, नमो महा वदन्याय कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते : "हे मेरे प्रिय भगवान चैतन्य , आप सबसे उदार, धर्मार्थ हैं सभी अवतारों में । क्यों? क्योंकि आप सीधे कृष्ण का प्रम दे रहे हैं । कृष्ण का प्रेम जो कई जन्मों के बाद भी हासिल नहीं किया जा सकता है, आप इसे सस्ते में वितरित कर रहे हैं, " तुरंत ले लो ।" नमो महा वदन्याय कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते कृष्णाय कृष्ण-चैतन्य । वे समझ सकता थे कि "आप कृष्ण हैं " ; अन्यथा यह किसी के द्वारा संभव नहीं था कृष्ण के प्रेम को प्रस्तुत करना, कृष्ण- प्रेम, इतने सस्ते में । "आप कृष्ण हैं, अापको ताकत मिली है ।" और वास्तव में वे हैं । कृष्ण खुद कृष्ण का प्रेम देने में विफल रहे, कृष्ण-प्रेम, जब वे व्यक्तिगत रूप से आए थे, और भगवद गीता सिखाया था । उन्होंने केवल कहा, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ गी १८।६६) । लेकिन लोगों ने उन्हे गलत समझा । इसलिए कृष्ण भक्त के रूप में आए थे और आम लोगों को कृष्ण-प्रेम प्रदान किया । तो हमारा अनुरोध है सबसे कि इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को अपनाऍ, और तुम्हे लगेगा कि "मुझे अौर अधिक कुछ भी नहीं चाहिए, अौर कुछ भी नहीं । मैं संतुष्ट हैं, पूरी तरह से संतुष्ट हूँ ।"
बहुत बहुत धन्यवाद ।