HI/Prabhupada 0303 - दिव्य । तुम इससे परे हो: Difference between revisions

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:इन्द्रियाणि पराणि आहुर  
:इन्द्रियाणि पराणि आहुर  
:इन्द्रियेभ्ययः परम मनः
:इन्द्रियेभ्य: परम मन:
:मनसस तु परा बुद्धिर  
:मनसस तु परा बुद्धिर  
:यो बुद्धेः परतस तु सः
:यो बुद्धे: परतस तु स:
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:([[HI/BG 3.42|भ.गी. ३.४२]])


अब ... सबसे पहले, तुम इस शरीर का बोध करो । शरीर का मतलब है इंद्रियॉ । लेकिन जब तुम अौर आगे देखो, हम देखते हैं कि मन केन्द्र है इन कामुक गतिविधियों का । जब तक मन स्वस्थ नहीं है, हम अपनी इंद्रियों के साथ कार्य नहीं कर सकते हैं, तो इन्द्रियेभ्य: परम मन: | इन्द्रियों से परे मन है, और मन से परे बुद्धि है, और बुद्धि से परे आत्मा है । यह हमें समझना होगा । अागे पढो । तमाल कृष्ण: "'कृष्ण की वरिष्ठ शक्ति स्वभाव से आध्यात्मिक है और बाहरी शक्ति भौतिक है । तुम भौतिक शक्तिअौर आध्यात्मिक शक्ति के बीच हो, और इसलिए तुम्हारी स्थिति तटस्थ है । दूसरे शब्दों में, तुम कृष्ण की तटस्थ शक्ति हो । तुम एक साथ एक हो, और कृष्ण से अलग भी हो । क्योंकि तुम आत्मा हो, इसलिए तुम कृष्ण से अलग नहीं हो, लेकिन क्योंकि तुम कृष्ण के केवल एक छोटे से एक कण हो,  इसलिए तुम उनसे अलग हो । " प्रभुपाद: अब यहां इस्तेमाल एक शब्द है, तटस्थ शक्ति । तटस्थ शक्ति, सटीक संस्कृत शब्द तटस्थ है । जैसे क्षेत्र के अंत में, समुद्र शुरू होता है । तो वहॉ तटस्थ भूमि है । बस तुम प्रशांत समुद्र तट के तट पर चलते चलो, तो तुम्हे कुछ जमीन मिलेगी । कभी कभी यह पानी से ढक जाता है और कभी कभी यह खुली भूमि है । यही तटस्थ है । इसी प्रकार, हम अात्मा हैं, हालांकि हम संवैधानिक रूप से भगवान के साथ एक हैं, लेकिन कभी कभी हम माया से ढक जाते हैं और कभी कभी हम स्वतंत्र हैं । इसलिए हमारी स्थिति तटस्थ है । जब हम हमारी वास्तविक स्थिति को समझते हैं ... एक ही ... बस वही उदाहरण । समझने की कोशिश करो । यह है ... समुद्र के तट पर तुम पाअोगे की कुछ ज़मीन कभी कभी पानी से ढकी है और फिर से वहॉ भूमि है । इसी तरह हम कभी कभी माया से ढके हैं, निम्न शक्ति और कभी कभी हम स्वतंत्र हैं । तो हमें इस स्वतन्त्रता को बनाए रखना होगा । जैसे खुली भूमि में, कोई पानी नहीं है अब । अगर तुम थोडी दूर आते हो समुद्र के पानी से, फिर अौर पानी नहीं रहता, यह ज़मीन कहलाता है । इसी तरह, अगर तुम अपने को भौतिक चेतना में रखते हो, आध्यात्मिक चेतना या कृष्ण भावनामृत की भूमि पर अाअो, तो तुम अपनी स्वतंत्रता बनाए रखते हो । लेकिन अगर तुम तटस्थ स्थिति पर अपने आप को रखते हो, फिर कभी कभी तुम माया से ढक जाअोगे और कभी कभी तुम मुक्त हो जाअोगे । तो यह हमारी स्थिति है ।  
अब ... सबसे पहले, तुम इस शरीर का बोध करो । शरीर का मतलब है इंद्रियॉ । लेकिन जब तुम अौर आगे देखो, हम देखते हैं कि मन केन्द्र है इन कामुक गतिविधियों का । जब तक मन स्वस्थ नहीं है, हम अपनी इंद्रियों के साथ कार्य नहीं कर सकते हैं, तो इन्द्रियेभ्य: परम मन: | इन्द्रियों से परे मन है, और मन से परे बुद्धि है, और बुद्धि से परे आत्मा है । यह हमें समझना होगा । अागे पढो । तमाल कृष्ण: "'कृष्ण की वरिष्ठ शक्ति स्वभाव से आध्यात्मिक है और बाहरी शक्ति भौतिक है । तुम भौतिक शक्तिअौर आध्यात्मिक शक्ति के बीच हो, और इसलिए तुम्हारी स्थिति तटस्थ है । दूसरे शब्दों में, तुम कृष्ण की तटस्थ शक्ति हो । तुम एक साथ एक हो, और कृष्ण से अलग भी हो । क्योंकि तुम आत्मा हो, इसलिए तुम कृष्ण से अलग नहीं हो, लेकिन क्योंकि तुम कृष्ण के केवल एक छोटे से एक कण हो,  इसलिए तुम उनसे अलग हो । "  
 
अब यहां इस्तेमाल एक शब्द है, तटस्थ शक्ति । तटस्थ शक्ति, सटीक संस्कृत शब्द तटस्थ है । जैसे क्षेत्र के अंत में, समुद्र शुरू होता है । तो वहॉ तटस्थ भूमि है । बस तुम प्रशांत समुद्र तट के तट पर चलते चलो, तो तुम्हे कुछ जमीन मिलेगी । कभी कभी यह पानी से ढक जाता है और कभी कभी यह खुली भूमि है । यही तटस्थ है । इसी प्रकार, हम अात्मा हैं, हालांकि हम संवैधानिक रूप से भगवान के साथ एक हैं, लेकिन कभी कभी हम माया से ढक जाते हैं और कभी कभी हम स्वतंत्र हैं । इसलिए हमारी स्थिति तटस्थ है । जब हम हमारी वास्तविक स्थिति को समझते हैं ... एक ही ... बस वही उदाहरण । समझने की कोशिश करो । यह है ... समुद्र के तट पर तुम पाअोगे की कुछ ज़मीन कभी कभी पानी से ढकी है और फिर से वहॉ भूमि है ।  
 
इसी तरह हम कभी कभी माया से ढके हैं, निम्न शक्ति और कभी कभी हम स्वतंत्र हैं । तो हमें इस स्वतन्त्रता को बनाए रखना होगा । जैसे खुली भूमि में, कोई पानी नहीं है अब । अगर तुम थोडी दूर आते हो समुद्र के पानी से, फिर अौर पानी नहीं रहता, यह ज़मीन कहलाता है । इसी तरह, अगर तुम अपने को भौतिक चेतना में रखते हो, आध्यात्मिक चेतना या कृष्ण भावनामृत की भूमि पर अाअो, तो तुम अपनी स्वतंत्रता बनाए रखते हो । लेकिन अगर तुम तटस्थ स्थिति पर अपने आप को रखते हो, फिर कभी कभी तुम माया से ढक जाअोगे और कभी कभी तुम मुक्त हो जाअोगे । तो यह हमारी स्थिति है ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 2, 1968

प्रभुपाद: अागे पढो ।

तमाल कृष्ण: "'तुम्हारी स्थिति यह है कि तुम दिव्य हो । "

प्रभुपाद: दिव्य । "तुम परे हो ।" यह भगवद गीता में स्पष्ट किया गया है:

इन्द्रियाणि पराणि आहुर
इन्द्रियेभ्य: परम मन:
मनसस तु परा बुद्धिर
यो बुद्धे: परतस तु स:
(भ.गी. ३.४२)

अब ... सबसे पहले, तुम इस शरीर का बोध करो । शरीर का मतलब है इंद्रियॉ । लेकिन जब तुम अौर आगे देखो, हम देखते हैं कि मन केन्द्र है इन कामुक गतिविधियों का । जब तक मन स्वस्थ नहीं है, हम अपनी इंद्रियों के साथ कार्य नहीं कर सकते हैं, तो इन्द्रियेभ्य: परम मन: | इन्द्रियों से परे मन है, और मन से परे बुद्धि है, और बुद्धि से परे आत्मा है । यह हमें समझना होगा । अागे पढो । तमाल कृष्ण: "'कृष्ण की वरिष्ठ शक्ति स्वभाव से आध्यात्मिक है और बाहरी शक्ति भौतिक है । तुम भौतिक शक्तिअौर आध्यात्मिक शक्ति के बीच हो, और इसलिए तुम्हारी स्थिति तटस्थ है । दूसरे शब्दों में, तुम कृष्ण की तटस्थ शक्ति हो । तुम एक साथ एक हो, और कृष्ण से अलग भी हो । क्योंकि तुम आत्मा हो, इसलिए तुम कृष्ण से अलग नहीं हो, लेकिन क्योंकि तुम कृष्ण के केवल एक छोटे से एक कण हो, इसलिए तुम उनसे अलग हो । "

अब यहां इस्तेमाल एक शब्द है, तटस्थ शक्ति । तटस्थ शक्ति, सटीक संस्कृत शब्द तटस्थ है । जैसे क्षेत्र के अंत में, समुद्र शुरू होता है । तो वहॉ तटस्थ भूमि है । बस तुम प्रशांत समुद्र तट के तट पर चलते चलो, तो तुम्हे कुछ जमीन मिलेगी । कभी कभी यह पानी से ढक जाता है और कभी कभी यह खुली भूमि है । यही तटस्थ है । इसी प्रकार, हम अात्मा हैं, हालांकि हम संवैधानिक रूप से भगवान के साथ एक हैं, लेकिन कभी कभी हम माया से ढक जाते हैं और कभी कभी हम स्वतंत्र हैं । इसलिए हमारी स्थिति तटस्थ है । जब हम हमारी वास्तविक स्थिति को समझते हैं ... एक ही ... बस वही उदाहरण । समझने की कोशिश करो । यह है ... समुद्र के तट पर तुम पाअोगे की कुछ ज़मीन कभी कभी पानी से ढकी है और फिर से वहॉ भूमि है ।

इसी तरह हम कभी कभी माया से ढके हैं, निम्न शक्ति और कभी कभी हम स्वतंत्र हैं । तो हमें इस स्वतन्त्रता को बनाए रखना होगा । जैसे खुली भूमि में, कोई पानी नहीं है अब । अगर तुम थोडी दूर आते हो समुद्र के पानी से, फिर अौर पानी नहीं रहता, यह ज़मीन कहलाता है । इसी तरह, अगर तुम अपने को भौतिक चेतना में रखते हो, आध्यात्मिक चेतना या कृष्ण भावनामृत की भूमि पर अाअो, तो तुम अपनी स्वतंत्रता बनाए रखते हो । लेकिन अगर तुम तटस्थ स्थिति पर अपने आप को रखते हो, फिर कभी कभी तुम माया से ढक जाअोगे और कभी कभी तुम मुक्त हो जाअोगे । तो यह हमारी स्थिति है ।