HI/Prabhupada 0304 - माया सर्वोच्च को आच्छादित नहीं कर सकती

Revision as of 17:39, 1 October 2020 by Elad (talk | contribs) (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture -- Seattle, October 2, 1968

प्रभुपाद: बोलो l

तमाल कृष्ण: "यह एक ही समय में पार्थक्य और समानता सर्वदा उपस्थित है जीवों और परमात्मा के बीच |"

प्रभुपाद: अब यह एक साथ एक और अलग है, इस विषय में एक उदाहरण ले, जमीन | किसी ने कहा, "ओह, मैंने वह भाग पानी में देखा है l" और कोई कहता है "नहीं, मैंने वह भाग भूमि पे देखा है l" तो एक ही समय में एकता और भिन्नता l हमारी स्थिति ऐसी हैं ...भगवान, कृष्ण, भी आत्मा हैं और हम भी... वह पूर्ण आत्मा हैं और हम उनके अंश हैं l जैसे की सूर्य, सूर्य ग्रह और सूर्य का प्रकाश l चमकदार अणु भी सूर्य का प्रकाश है l अणुओं के संयोजन से सूर्य का प्रकाश बनता हैं l इसलिए हम भी, सूर्य के कणों की तरह चमक रहे हैं l लेकिन हम सूर्य के बराबर नहीं हैं l परिमाणात्मक रूप में सूर्य, सूर्य के अणु और सूर्य का प्रकाश एक नहीं हैं l लेकिन गुणवत्ता में यह एक ही है l इसी तरह, हम, जीव, भगवान कृष्ण के अंश हैं l इसलिए हम भी चमक रहे हैं l हम एक ही गुणवत्ता के हैं l

जैसे सोने का एक छोटा सा कण सोना है l वह लोहा नहीं है l इसी तरह, हम आत्मा हैं, इसलिए हम एक हैं l लेकिन क्योंकि मैं छोटा सा अंश हूँ ... उस उदाहरण की तरह l क्योंकि मैं एक छोटा सा अंश हूँ तो कभी कभी यह पानी से आच्छादित हो जाता हैं l किन्तु स्थल का विशाल भाग पानी से आच्छादित नहीं हो सकता l इसी तरह, माया, आत्मा के कणों को आच्छादित कर देती हैं l लेकिन माया सर्वोच्च को आच्छादित नहीं कर सकती l ठीक उसी उदाहरण की तरह, धूप का अंश बादलो द्वारा ढका जा सकता हैं l लेकिन अगर आप हवाई जहाज से बादलो के ऊपर जायेंगे तो देखेंगे कि, धूप बादलो से परे भी हैं l बादल पूरे सूरज को ढक नहीं सकता l इसी तरह, माया सर्वोच्च को आच्छादित नहीं कर सकती l माया ब्रह्म के छोटे कणों को आच्छादित कर सकती हैं l मायावाद सिद्धांत यह है कि: मैं अभी माया से आच्छादित हूँ, ज्योंही मैं अनाच्छादित हो जाऊंगा मैं परम ब्रह्म के साथ एक हो जाऊंगा l हम उसी तरह से परम भगवान के साथ एक हैं जिस तरह धूप और सूरज, गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं है l सूरज जहाँ है, धूप वहाँ है, लेकिन धूप के अणु, पूरे सूर्य के समान नहीं हैं l यही चैतन्य महाप्रभु द्वारा इस अध्याय में वर्णित किया गया है l