HI/Prabhupada 0306 - हमें हमारे संदिग्ध सवाल पेश करने चाहिए

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Lecture -- Seattle, October 2, 1968

प्रभुपाद: तो कोई सवाल? दर्शकों से सबसे पहले । हम सवाल आमंत्रित करते हैं, कोई सवाल हो, संदेह , हमारे बयान के बारे में, आप पूछ सकते हैं । तद विद्धि प्रणिपतेन परिप्रश्नेन सेवया (भ.गी. ४.३४) । तो सब कुछ है, आप समझने के लिए गंभीर हैं तो, हमें हमारे संदिग्ध सवाल पेश करने चाहिए और फिर समझना चाहिए । आपने देखा । हाँ?

युवक: क्या हम चेतना प्राप्त करते हैं शब्द से परे ? या, मैं कहता हूँ हिम्मत से, क्या एक संचार है जो शब्द नहीं है लेकिन शायद एक कंपन है, जो ज्यादातर ध्वनि की तरह है या ध्वनि है? शायद ॐ तक पहुँचने के लिए । क्या एक संचार है, कुछ समझ अापके और मेरे बीच, मेरे और मेरे भाई, दूसरों के, हम सब? क्या एक अनुभव है शायद जहां हम हैं, यह "डाँग," "औंग" की तरह है । " मौखिक के अलावा कुछ और भी है? बात ?

प्रभुपाद: हाँ, यह हरे कृष्ण ।

युवक: हरे कृष्ण । प्र

भुपाद: हाँ ।

युवक: आप विस्तार से बताएँगे? आप मुझे बता सकते हैं कि यह कैसे हो सकता है? यह सब समय कैसे हो सकता है? बजाय एक आदमी होने के, बजाय अंग्रेजी अकेले या अन्य भाषाओं में बात करने के लिए? कैसे एक भाषा में बात करें?

प्रभुपाद: ठीक है, ध्वनि किसी भी भाषा में स्फूर्त किया जा सकता है । कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह हरे कृष्ण केवल संस्कृत में बोला जा सकता है । आप अंग्रेजी स्वर में भी यह बोल सकते हैं " हरे कृष्ण" कोई कठिनाई है? ये लड़के, वे भी हरे कृष्ण बोल रहे हैं । तो कोई कठिनाई नहीं है । यह ध्वनि मायने रखती है । कोई फर्क नहीं पड़ता कौन बोल रहा है । पियानो की तरह, अगर तुम छूअोगे, "डंग" अावाज़ अाती है । कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक अमेरिकी या एक भारतीय बजा रहा है उसको या एक हिंदू या मुसलमान, ध्वनि ध्वनि है । इसी तरह, यह पियानो, हरे कृष्ण, आप बस इसे छुअो और यह ध्वनि अाएगी । बस । हाँ?

युवक (२): आप बैठते हैं और अकेले ध्यान करते हैं? अापका मन जब भटकता है तो अाप क्या करते हैं? आप किसी के बारे में सोचते हो ? क्या आप उसे किसी चीज़ पर डालते हो या आप उसे भटकने देते हो अपने आप में ही?

प्रभुपाद: सबसे पहले मुझे आप ध्यान का क्या मतलब है यह बताअो?

युवक (२): चुपचाप अकेले बैठना ।

प्रभुपाद: हम्म?

तमाल कृष्ण: चुपचाप अकेले बैठना । प्र

भुपाद: अकेले चुप बैठना । यह संभव है? आपको लगता है यह संभव है ?

युवक (२): अगर आप अपने मन की सुनो ।

प्रभुपाद: तो मन हमेशा काम कर रहा है ।

युवक (२): यह आप से बात करता है।

प्रभुपाद: तुम कैसे बैठ सकते हो, चुप मन ? मन हमेशा काम कर रहा है । कोई भी अनुभव है कि मन काम नहीं कर रहा है जब तुम चुपचाप बैठते हो? जब तुम सोते हो, दिमाग काम कर रहा है । आप सपना देख रहे हो । यह मन की कार्रवाई है । तो कब तुम्हारा मन चुप बैठता है?

युवक (२): यही मैं आप से पूछना करने की कोशिश कर रहा था ।

प्रभुपाद: हाँ । तो इसलिए मन चुप नहीं रहता है । तुम्हे अपने मन को संलग्न करना है किसी न किसी चिज़ में । यही ध्यान है.

युवक (२): आप किसमे जुड़ाते हैं?

प्रभुपाद: हाँ । यही कृष्ण हैं । हम हमारे मन को संलग्न करते हैं कृष्ण में, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान में । बस मन लगाना नहीं, लेकिन मन को लगाना कामों में इन्द्रियों के साथ । क्योंकि मन इंद्रियों के साथ काम कर रहा है ।