HI/Prabhupada 0310 - यीशु वह भगवान के प्रतिनिधि हैं और हरि नाम भगवान है: Difference between revisions

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प्रभुपाद: हाँ?
प्रभुपाद: हाँ?  


महापुरुष: प्रभुपाद, वहाँ कोई विरोधाभास है, क्योंकि प्रभु यीशु मसीह और भगवान चैतन्य दोनों कली-युग में अवतरित हुए, और प्रभु यीशु मसीह नें कहा कि, " परमेश्वर तक पहुँचने का एकमात्र तरीका मैं हुँ । बस मुझ में विश्वास करो या मुझे आत्मसमर्पण करो।" और भगवान चैतन्य नें सिखाया कि यह हरि-नाम ही इस युग में आध्यात्मिक प्राप्ति का एकमात्र साधन है?
महापुरुष: प्रभुपाद, वहाँ कोई विरोधाभास है, क्योंकि प्रभु इशु मसीह और भगवान चैतन्य दोनों कली-युग में अवतरित हुए, और प्रभु इशु मसीह नें कहा कि, "परमेश्वर तक पहुँचने का एकमात्र तरीका मैं हुँ । बस मुझ में विश्वास करो या मुझे आत्मसमर्पण करो ।" और भगवान चैतन्य नें सिखाया कि यह हरि-नाम ही इस युग में आध्यात्मिक प्राप्ति का एकमात्र साधन है ?  


प्रभुपाद: तो तुम्हे अंतर कहाँ दिखता है? अगर प्रभु यीशु मसीह कहते हैं, "मेरे माध्यम से," इसका मतलब है कि वह भगवान के प्रतिनिधि हैं और हरि-नाम भगवान है । तो या तो भगवान या भगवान के प्रतिनिधि के माध्यम से, एक ही बात है । भगवान और भगवान का प्रतिनिधि, कोई अंतर नहीं है । यहां तक ​​कि इन साधारण व्यवहार में, अगर मैं कुछ प्रतिनिधि भेजता हूँ, अगर वह मेरी ओर से कुछ हस्ताक्शर करे, मुझे यह स्वीकारना होगा क्योंकि वह मेरा प्रतिनिधि है । इसी तरह, भगवान को भगवान के माध्यम से या उनके प्रतिनिधि के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है । एक ही बात है । फर्क सिर्फ इतना समझने में हो सकता है । क्योंकि प्रभु यीशु मसीह नें उस समाज से बात की जो बहुत उन्नत नहीं थी । तुम समझ सकते हो कि इस तरह के एक महान व्यक्तित्व, भगवान के प्रति जागरूक व्यक्ति, क्रूस पर चढ़ा दिए गए । समाज की हालत देखो। दूसरे शब्दों में, वे निम्न वर्ग समाज थे । तो वे भगवान के पूरे तत्वज्ञान को समझने में सक्षम नहीं हुए । यही पर्याप्त है । "भगवान ने बनाया है बस इसे ले लो ।" वे बुद्धिमान नहीं थे समझने के लिए कि कैसे सृजन हुअा । अगर वे बुद्धिमान होते, वे इस तरह के एक महान व्यक्तित्व को क्रूस पर चढ़ाते, यीशु मसीह की तरह । तो हमें समाज की हालत क्या है यह समझना होगा । कुरान में मुहम्मद ने कहा है कि "इस दिन से आप अपनी मां के साथ सेक्स संभोग नहीं करना ।" बस समाज की हालत पता लगाअो । इसलिए हमें समय, परिस्थितियों, समाज को ध्यान में रखते हुए अौर फिर प्रचार करना चाहिए । तो उस समाज के लिए, यह उच्च दार्शनिक बातें समझना संभव नहीं है, यह भगवद गीता में कहा गया है । लेकिन प्राथमिक तथ्य यह है, अधिकार भगवान हैं, बाइबिल और भगवद गीता, दोनों यह स्वीकारते हैं । बाइबल शुरू होता है, "भगवान सर्वोच्च अधिकार हैं " और भगवद गीता का निष्कर्ष है, "तुम आत्मसमर्पण करो ।" फर्क कहां है? केवल वर्णन है समय, समाज, और जगह और लोगों के अनुसार । बस । वे अर्जुन नहीं हैं । समझे? तो जो अर्जुन द्वारा समझा गया, संभव नहीं है कि प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर चढ़ाने वाले व्यक्तियों द्वारा समझा जाएगा । तुम्हें उस नज़रिए से अध्ययन करना चाहिए । एक ही बात है । एक शब्दकोश, एक जेब शब्दकोश, बच्चे का शब्दकोश, और शब्दकोश, अंतर्राष्ट्रीय शब्दकोश, दोनों शब्दकोश हैं, लेकिन मूल्य अलग है । वह शब्दकोश बच्चों के एक वर्ग के लिए है, और वह शब्दकोश उच्च विद्वानों के लिए है । लेकिन तुम यह नहीं कह सकते हो कि वे शब्दकोश नहीं हैं । तुम यह नहीं कह सकते हो । वे दोनों शब्दकोश हैं । इसलिए हमें विचार करना चाहिए समय , जगह, व्यक्तियों, सब कुछ । जैसे भगवान बुद्ध की तरह, उन्होंने केवल कहा था "यह बकवास पशु हत्या बंद करो । " यह उनका प्रचार था । वे निम्न वर्ग के लोग थे, सिर्फ जानवरों की हत्या में आनंद लेते हैं । तो उनकी उन्नति के लिए, भगवान बुद्ध यह बकवास बंद करना चाहते थे: "हत्या बंद करो ।" इसलिए हर एक समय में भगवान, या भगवान का एक अलग प्रतिनिधि, विभिन्न परिस्थितियों में लोगों को पढ़ाने के लिए आते हैं । तो परिस्थितियों के अनुसार, स्पष्टीकरण में कुछ अंतर हो सकता है लेकिन प्राथमिक कारक वही रहता है । भगवान बुद्ध ने कहा, "ठीक है, कोई भगवान नहीं है, लेकिन तुम मुझे समर्पण करो ।" फिर कहां अंतर है? इसका मतलब है हमें परमेश्वर के अधिकार को स्वीकारना होगा इस तरह से या उस तरह से ।
प्रभुपाद: तो तुम्हे अंतर कहाँ दिखता है? अगर प्रभु इशु मसीह कहते हैं, "मेरे माध्यम से," इसका मतलब है कि वह भगवान के प्रतिनिधि हैं और हरि-नाम भगवान है । तो या तो भगवान या भगवान के प्रतिनिधि के माध्यम से, एक ही बात है । भगवान और भगवान के प्रतिनिधि, कोई अंतर नहीं है । यहां तक ​​कि इन साधारण व्यवहार में, अगर मैं कुछ प्रतिनिधि भेजता हूँ, अगर वह मेरी ओर से कुछ हस्ताक्षर करे, मुझे यह स्वीकारना होगा क्योंकि वह मेरा प्रतिनिधि है ।  
 
इसी तरह, भगवान को भगवान के माध्यम से या उनके प्रतिनिधि के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है । एक ही बात है । फर्क सिर्फ इतना समझने में हो सकता है । क्योंकि प्रभु इशु मसीह नें उस समाज से बात की जो बहुत उन्नत नहीं थी । तुम समझ सकते हो कि इस तरह के एक महान व्यक्तित्व, भगवान के प्रति जागरूक व्यक्ति, क्रूस पर चढ़ा दिए गए । समाज की हालत देखो। दूसरे शब्दों में, वे निम्न वर्ग का समाज था । तो वे भगवान के पूरे तत्वज्ञान को समझने में सक्षम नहीं हुए । यही पर्याप्त है ।  
 
"भगवान ने बनाया है | बस इसे ले लो ।" वे बुद्धिमान नहीं थे समझने के लिए कि कैसे सृजन हुअा । अगर वे बुद्धिमान होते, वे इस तरह के इशु मसीह जैसे एक महान व्यक्ति को क्रूस पर नहीं चढ़ाते । तो हमें समाज की हालत क्या है यह समझना होगा । कुरान में मुहम्मद ने कहा है कि "इस दिन से आप अपनी मां के साथ यौन संभोग नहीं करना ।" बस समाज की हालत पता लगाअो । इसलिए हमें समय, परिस्थितियों, समाज को ध्यान में रखते हुए अौर फिर प्रचार करना चाहिए ।  
 
तो उस समाज के लिए, यह उच्च दार्शनिक बातें समझना संभव नहीं है, यह भगवद गीता में कहा गया है । लेकिन प्राथमिक तथ्य यह है, अधिकार भगवान हैं, बाइबिल और भगवद गीता, दोनों यह स्वीकारते हैं । बाइबल शुरू होता है, "भगवान सर्वोच्च अधिकार हैं " और भगवद गीता का निष्कर्ष है, "तुम आत्मसमर्पण करो ।" फर्क कहां है? केवल वर्णन है समय, समाज, और जगह और लोगों के अनुसार । बस । वे अर्जुन नहीं हैं । समझे? तो जो अर्जुन द्वारा समझा गया, संभव नहीं है कि प्रभु इशु मसीह को क्रूस पर चढ़ाने वाले व्यक्तियों द्वारा समझा जाएगा ।  
 
तुम्हें उस नज़रिए से अध्ययन करना चाहिए । एक ही बात है । एक शब्दकोश, एक जेब शब्दकोश, बच्चे का शब्दकोश, और शब्दकोश, अंतररार्ष्ट्रीय शब्दकोश, दोनों शब्दकोश हैं, लेकिन मूल्य अलग है । वह शब्दकोश बच्चों के एक वर्ग के लिए है, और वह शब्दकोश उच्च विद्वानों के लिए है । लेकिन तुम यह नहीं कह सकते हो कि वे शब्दकोश नहीं हैं । तुम यह नहीं कह सकते हो । वे दोनों शब्दकोश हैं ।  
 
इसलिए हमें विचार करना चाहिए समय , जगह, व्यक्तियों, सब कुछ । जैसे भगवान बुद्ध की तरह, उन्होंने केवल कहा था "यह बकवास पशु हत्या बंद करो । " यह उनका प्रचार था । वे निम्न वर्ग के लोग थे, सिर्फ जानवरों की हत्या में आनंद लेते हैं । तो उनकी उन्नति के लिए, भगवान बुद्ध यह बकवास बंद करना चाहते थे: "हत्या बंद करो ।" इसलिए हर एक समय में भगवान, या भगवान के एक अलग प्रतिनिधि, विभिन्न परिस्थितियों में लोगों को पढ़ाने के लिए आते हैं । तो परिस्थितियों के अनुसार, स्पष्टीकरण में कुछ अंतर हो सकता है, लेकिन प्राथमिक कारक वही रहता है । भगवान बुद्ध ने कहा, "ठीक है, कोई भगवान नहीं है, लेकिन तुम मुझे समर्पण करो ।" फिर कहां अंतर है? इसका मतलब है हमें परमेश्वर के अधिकार को स्वीकारना होगा इस तरह से या उस तरह से ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 2, 1968

प्रभुपाद: हाँ?

महापुरुष: प्रभुपाद, वहाँ कोई विरोधाभास है, क्योंकि प्रभु इशु मसीह और भगवान चैतन्य दोनों कली-युग में अवतरित हुए, और प्रभु इशु मसीह नें कहा कि, "परमेश्वर तक पहुँचने का एकमात्र तरीका मैं हुँ । बस मुझ में विश्वास करो या मुझे आत्मसमर्पण करो ।" और भगवान चैतन्य नें सिखाया कि यह हरि-नाम ही इस युग में आध्यात्मिक प्राप्ति का एकमात्र साधन है ?

प्रभुपाद: तो तुम्हे अंतर कहाँ दिखता है? अगर प्रभु इशु मसीह कहते हैं, "मेरे माध्यम से," इसका मतलब है कि वह भगवान के प्रतिनिधि हैं और हरि-नाम भगवान है । तो या तो भगवान या भगवान के प्रतिनिधि के माध्यम से, एक ही बात है । भगवान और भगवान के प्रतिनिधि, कोई अंतर नहीं है । यहां तक ​​कि इन साधारण व्यवहार में, अगर मैं कुछ प्रतिनिधि भेजता हूँ, अगर वह मेरी ओर से कुछ हस्ताक्षर करे, मुझे यह स्वीकारना होगा क्योंकि वह मेरा प्रतिनिधि है ।

इसी तरह, भगवान को भगवान के माध्यम से या उनके प्रतिनिधि के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है । एक ही बात है । फर्क सिर्फ इतना समझने में हो सकता है । क्योंकि प्रभु इशु मसीह नें उस समाज से बात की जो बहुत उन्नत नहीं थी । तुम समझ सकते हो कि इस तरह के एक महान व्यक्तित्व, भगवान के प्रति जागरूक व्यक्ति, क्रूस पर चढ़ा दिए गए । समाज की हालत देखो। दूसरे शब्दों में, वे निम्न वर्ग का समाज था । तो वे भगवान के पूरे तत्वज्ञान को समझने में सक्षम नहीं हुए । यही पर्याप्त है ।

"भगवान ने बनाया है | बस इसे ले लो ।" वे बुद्धिमान नहीं थे समझने के लिए कि कैसे सृजन हुअा । अगर वे बुद्धिमान होते, वे इस तरह के इशु मसीह जैसे एक महान व्यक्ति को क्रूस पर नहीं चढ़ाते । तो हमें समाज की हालत क्या है यह समझना होगा । कुरान में मुहम्मद ने कहा है कि "इस दिन से आप अपनी मां के साथ यौन संभोग नहीं करना ।" बस समाज की हालत पता लगाअो । इसलिए हमें समय, परिस्थितियों, समाज को ध्यान में रखते हुए अौर फिर प्रचार करना चाहिए ।

तो उस समाज के लिए, यह उच्च दार्शनिक बातें समझना संभव नहीं है, यह भगवद गीता में कहा गया है । लेकिन प्राथमिक तथ्य यह है, अधिकार भगवान हैं, बाइबिल और भगवद गीता, दोनों यह स्वीकारते हैं । बाइबल शुरू होता है, "भगवान सर्वोच्च अधिकार हैं " और भगवद गीता का निष्कर्ष है, "तुम आत्मसमर्पण करो ।" फर्क कहां है? केवल वर्णन है समय, समाज, और जगह और लोगों के अनुसार । बस । वे अर्जुन नहीं हैं । समझे? तो जो अर्जुन द्वारा समझा गया, संभव नहीं है कि प्रभु इशु मसीह को क्रूस पर चढ़ाने वाले व्यक्तियों द्वारा समझा जाएगा ।

तुम्हें उस नज़रिए से अध्ययन करना चाहिए । एक ही बात है । एक शब्दकोश, एक जेब शब्दकोश, बच्चे का शब्दकोश, और शब्दकोश, अंतररार्ष्ट्रीय शब्दकोश, दोनों शब्दकोश हैं, लेकिन मूल्य अलग है । वह शब्दकोश बच्चों के एक वर्ग के लिए है, और वह शब्दकोश उच्च विद्वानों के लिए है । लेकिन तुम यह नहीं कह सकते हो कि वे शब्दकोश नहीं हैं । तुम यह नहीं कह सकते हो । वे दोनों शब्दकोश हैं ।

इसलिए हमें विचार करना चाहिए समय , जगह, व्यक्तियों, सब कुछ । जैसे भगवान बुद्ध की तरह, उन्होंने केवल कहा था "यह बकवास पशु हत्या बंद करो । " यह उनका प्रचार था । वे निम्न वर्ग के लोग थे, सिर्फ जानवरों की हत्या में आनंद लेते हैं । तो उनकी उन्नति के लिए, भगवान बुद्ध यह बकवास बंद करना चाहते थे: "हत्या बंद करो ।" इसलिए हर एक समय में भगवान, या भगवान के एक अलग प्रतिनिधि, विभिन्न परिस्थितियों में लोगों को पढ़ाने के लिए आते हैं । तो परिस्थितियों के अनुसार, स्पष्टीकरण में कुछ अंतर हो सकता है, लेकिन प्राथमिक कारक वही रहता है । भगवान बुद्ध ने कहा, "ठीक है, कोई भगवान नहीं है, लेकिन तुम मुझे समर्पण करो ।" फिर कहां अंतर है? इसका मतलब है हमें परमेश्वर के अधिकार को स्वीकारना होगा इस तरह से या उस तरह से ।