HI/Prabhupada 0380 - दशावतार स्तोत्र भाग २: Difference between revisions

 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 5: Line 5:
[[Category:HI-Quotes - Purports to Songs]]
[[Category:HI-Quotes - Purports to Songs]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0379 - दशावतार स्तोत्र भाग १|0379|HI/Prabhupada 0381 - दशावतार स्तोत्र भाग १|0381}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 13: Line 16:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|EjEuDn38VGM|दशावतार स्तोत्र भाग 2<br />- Prabhupāda 0380}}
{{youtube_right|Y-jkZng-Y2c|दशावतार स्तोत्र भाग <br />- Prabhupāda 0380}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vanimedia.org/w/images/0/0a/C08_02_sri_dasavatarastotra_purport_clip2.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/purports_and_songs/C08_02_sri_dasavatarastotra_purport_clip2.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 25: Line 28:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
फिर, अगले अवतार हैं वामनदेव । यह वामनदेव, एक बौना, वे बली महाराज के पास गए और उनसे तीन फुट ज़मीन माँगी, और उनके गुरु, शुक्राचार्य, उसे प्रेरित किया वादा न करने के लिए, क्योंकि वे विष्णु हैं । लेकिन बली महाराज, बहुत ज्यादा संतुष्ट थे विष्णु को कुछ प्रदान करने के लिए, उन्होंने अपने गुरु के साथ अपने संबन्ध को तोड़ दिया, क्योंकि वे विष्णु की सेवा करने से उसे मना कर रहे थे । इसलिए बली महाराज महाजनों में से एक हैं । कोई भी विष्णु की पूजा को रोक नहीं सकता है । अगर कोई रोकता है, वह गुरु हो सकता है, वह पिता हो सकता है, वह रिश्तेदार हो सकता है, उसे तुरंत त्याग दिया जाना चाहिए । इसलिए बली महाराज एक महाजन हैं । उन्होंने यह उदाहरण दिखाया: क्योंकि उनके गुरु नें उनके भगवान विष्णु की पूजा के मार्ग में बाधा डाली, उन्होंने अपने गुरु के साथ संबन्ध तोड दिया । इसलिए इस प्रक्रिया से उन्होंने भीख माँगी, लेकिन वे भीख नहीं माँग रहे थे, व्यावहारिक रूप से यह धोखा था । लेकिन बली महाराज प्रभु द्वारा दिए गए धोखा खाने पर सहमत हो गए । यह भक्त का लक्षण है । भक्त भगवान की किसी भी कार्रवाई से सहमत है, और बली महाराज ने देखा कि भगवान धोखा देने चाहता थे । कि देखा. तीन फुट भूमि माँग कर वे पूरे ब्रह्मांड को लेंगे, तो वे राज़ी हो गए । और दो फीट से पूरा ब्रह्मांड नाप लिया ऊपर अौर नीचे तक । फिर वामनदेव नें उससे पूछा कि तीसरा पैर कहॉ रखूँ? तो बली महाराज सहमत हुए, "मेरे प्रभु, आप मेरे सिर पर रखो, मेरा शरीर अभी भी बाकि है ।" इस तरह से उन्होंने खरीदा भगवान विष्णु, वामनदेव को, और वामनदेव बली महाराज के द्वारपाल के रूप में बने रहे । तो सब कुछ देकर, सर्वात्मा स्नपने बलि, उन्होंने प्रभु को सब कुछ दे दिया, और एस देकर, उन्होंने प्रभु को खरीद लिया । वे बली महाराज के द्वारपाल के रूप में स्वेच्छा से बने रहे । तो, छलयकि विक्रमने बलिम अद्भुत-वामन पाद-नख-नीर-जनिता-जन-पावन, जब वामनदेव नें ऊपर की तरफ अपने पैर का विस्तार किया, उनके पैर के अंगूठे से ब्रह्मांड के कवर में एक छेद अा गया, और उस छेद के माध्यम से गंगा जल वैकुण्ठ से आया । पाद-नख-नीर-जानित और वह गंगा जल ब्रह्मांड में अब बह रहा है, हर जगह पवित्रा करते हुए, जहाँ भी गंगाजल है । पाद-नख-नीर-जनिता-जन-पावन । फिर अगला अवतार है भृगुपति, परसुराम । परशुराम एक शक्त्यवेश अवतार है । तो उन्होंने, इक्कीस बार, क्षत्रियों को मारा । इसलिए परशुराम के डर से, सभी क्षत्रिय, वे यूरोप की ओर चले गए, यह महाभारत के इतिहास में कहा जाता है । तो इक्कीस बार उन्होंने सब क्षत्रियों पर हमला किया । वे ठीक नहीं थे, इसलिए उन्होंने उन्हें मार दिया, और कुरुक्षेत्र में एक बड़ा टैंक है जहां सब का खून आरक्षित था । बाद में यह पानी हो गया । तो क्षत्रिय-रुधिर, पीड़ित पृथ्वी को शांत करने के लिए, उन्होंने क्षत्रियों के खून से धरती को भिगोया, स्नपयसि पयसि समित-भव-तापम । वितरसि दिक्शु रने दिक-पति-कमनीयम दश-मुख-मौलि-बलिम रमनीयम । फिर अगले अवतार रामचंद्र हैं । तो रावण, जिनके दस सिर थे, उन्होंने प्रभु को चुनौती दी, और प्रभु रामचंद्र नें चुनौती स्वीकार किया और उसे मार डाला । फिर वहसि वपुसि वशदे वसनम जालदभम हल-हति-भिति-मिलित-यमुनभम । जब बलदेव चाहते थे कि यमुना उनके पास आए, लेकिन वह नहीं आ रही थी । इसलिए उनके हल से वे पृथ्वी को दो भागों में बाँटना चाहते थे, और उस समय यमुना नें समर्पण किया, और वह प्रभु के पास आई । हल-हति-भिति-यमुन, हल-हति-भिति-मिलित-यमुनभम, यमुना प्रभु बलदेव द्वारा दंडित की गई । केशव धृत-हलधर-रूफ, हल, हलधर का मतलब है हल, हलधर-रूप जया जगदीश हरे । अगला, बुद्ध, भगवान बुद्ध । निन्दसि यज्ञ-विधेर अहह श्रुति-जातम । भगवान बुद्ध नें वैदिक निषेधाज्ञा की अवज्ञा की , क्योंकि उनका मिशन पशु हत्या को रोकना था, और वेदों में, कुछ बलिदानों में, पशु हत्या निर्धारित है । इसलिए जो वैदिक नियमों की तथाकथित अनुयायी हैं वे रोकना चाहते थे बुद्धदेव को उनके मिशन में, जो था जानवरों की हत्या को रोकना, तो इसलिए जब लोग वेदों से सबूत देना चाहते थे, कि वेदों में वर्णन है, बलिदान में पशु हत्या की मंजूरी है,, तुम क्यों रोक रहे हो ? उन्होंने निन्दसि, उन्होंने अवहेलना की । और क्योंकि उन्होंने वेदों के अधिकार की अवज्ञा की, इसलिए बुद्ध ततवज्ञान को भारत में स्वीकार नहीं किया गया । नास्तिक, वेद के अधिकार से जो इनकार करेगा, उसे एक नास्तिक कहा जाएगा । वेदों का अपमान नहीं किया जा सकता तो इस तरह से, भगवान बुद्ध, बेचारे जानवरों को बचाने के लिए, वे कभी कभी वेद की निषेधाज्ञा की अवहेलना करते थे । केशव धृत बुद्ध शरीर जय जगदीश । अगला अवतार कल्कि अवतार है । हम इंतजार कर रहे हैं, अब से चार सौ हजारों सालों के बाद, कल्कि अवतार आऐगा, और वह घोड़े की पीठ पर एक तलवार लेकर अाएगा, जैसे एक राजा की तरह, वह बस इन सभी गैर विश्वासियों, नास्तिक जीवों की हत्या करेगा । कोई प्रचार नहीं होगा । जैसे अन्य अवतारों में प्रचार है, कल्कि अवतार में पूरी दुनिया की आबादी इतनी हैवानियत में डूब गई होगी, कि शक्ति नहीं रहेगी, समझने की भगवान को या अध्यात्मवाद को । और ये यहाँ पहले से ही है, कलयुग । इसमे वृद्धि होगी । लोगों में इस तत्वज्ञान को समझने की कोई शक्ति नहीं रहेगी, भगवान भावनामृत तो उस समय कोई अन्य विकल्प नहीं है उन सब को मारने के अलावा, और एक और सत्य युग की शुरूआत करना । यही (अस्पष्ट) तरीका है
फिर, अगले अवतार हैं वामनदेव । यह वामनदेव, एक ठिंगू बनके, वे बली महाराज के पास गए और उनसे तीन फुट ज़मीन माँगी, और उनके गुरु, शुक्राचार्यने, उन्हें प्रेरित किया वादा न करने के लिए, क्योंकि वे विष्णु हैं । लेकिन बली महाराज, बहुत ज्यादा संतुष्ट थे विष्णु को कुछ प्रदान करने के लिए, उन्होंने अपने गुरु के साथ अपने संबन्ध को तोड़ दिया, क्योंकि वे विष्णु की सेवा करने से उन्हें मना कर रहे थे । इसलिए बली महाराज महाजनों में से एक हैं ।
 
कोई भी विष्णु की पूजा को रोक नहीं सकता है । अगर कोई रोकता है, वह गुरु हो सकता है, वह पिता हो सकता है, वह रिश्तेदार हो सकता है, उसे तुरंत त्याग दिया जाना चाहिए । इसलिए बली महाराज एक महाजन हैं । उन्होंने यह उदाहरण दिखाया: क्योंकि उनके गुरु नें उनके भगवान विष्णु की पूजा के मार्ग में बाधा डाली, उन्होंने अपने गुरु के साथ संबन्ध तोड दिया । इसलिए इस प्रक्रिया से उन्होंने भीख माँगी, लेकिन वे भीख नहीं माँग रहे थे, व्यावहारिक रूप से यह धोखा था । लेकिन बली महाराज प्रभु द्वारा दिए गए धोख़े को खाने पर सहमत हो गए । यह भक्त का लक्षण है ।  
 
भक्त भगवान की किसी भी कार्रवाई से सहमत है, और बली महाराज ने देखा कि भगवान धोखा देने चाहता थे । तीन फुट भूमि माँग कर वे पूरे ब्रह्मांड को लेंगे, तो वे राज़ी हो गए । और दो फीट से पूरा ब्रह्मांड नाप लिया ऊपर अौर नीचे तक । फिर वामनदेव नें उससे पूछा कि तीसरा पैर कहॉ रखूँ? तो बली महाराज सहमत हुए, "मेरे प्रभु, आप मेरे सिर पर रखो, मेरा शरीर अभी भी बाकी है ।" इस तरह से उन्होंने खरीदा भगवान विष्णु, वामनदेव को, और वामनदेव बली महाराज के द्वारपाल के रूप में बने रहे ।  
 
तो सब कुछ देकर, सर्वात्मा स्नपने बलि, उन्होंने प्रभु को सब कुछ दे दिया, और एस देकर, उन्होंने प्रभु को खरीद लिया । वे बली महाराज के द्वारपाल के रूप में स्वेच्छा से बने रहे । तो, छलयसी विक्रमने बलिम अद्भुत-वामन पाद-नख-नीर-जनिता-जन-पावन, जब वामनदेव नें ऊपर की तरफ अपने पैर का विस्तार किया, उनके पैर के अंगूठे से ब्रह्मांड के कवर में एक छेद अा गया, और उस छेद के माध्यम से गंगा जल वैकुण्ठ से आया ।  
 
पाद-नख-नीर-जानित और वह गंगा जल ब्रह्मांड में अब बह रहा है, हर जगह को पवित्र करते हुए, जहाँ भी गंगाजल है । पाद-नख-नीर-जनिता-जन-पावन । फिर अगला अवतार है भृगुपति, परशुराम । परशुराम एक शक्त्यावेश अवतार है । तो उन्होंने, इक्कीस बार, क्षत्रियों को मारा । इसलिए परशुराम के डर से, सभी क्षत्रिय, वे यूरोप की ओर चले गए, यह महाभारत के इतिहास में कहा जाता है । तो इक्कीस बार उन्होंने सब क्षत्रियों पर हमला किया । वे ठीक नहीं थे, इसलिए उन्होंने उन्हें मार दिया, और कुरुक्षेत्र में एक बड़ा टैंक है जहां सब का खून आरक्षित था । बाद में यह पानी हो गया ।  
 
तो क्षत्रिय-रुधिर, पीड़ित पृथ्वी को शांत करने के लिए, उन्होंने क्षत्रियों के खून से धरती को भिगोया, स्नपयसि पयसि समित-भव-तापम । वितरसि दिक्षु रने दिक-पति-कमनीयम दश-मुख-मौलि-बलिम रमनीयम । फिर अगले अवतार रामचंद्र हैं । तो रावण, जिनके दस सिर थे, उन्होंने प्रभु को चुनौती दी, और प्रभु रामचंद्र नें चुनौती स्वीकार की और उसे मार डाला । फिर वहसि वपुसि वशदे वसनम जलदभम हल-हति-भिति-मिलित-यमुनभम । जब बलदेव चाहते थे कि यमुना उनके पास आए, लेकिन वह नहीं आ रही थी । इसलिए उनके हल से वे पृथ्वी को दो भागों में बाँटना चाहते थे, और उस समय यमुना नें समर्पण किया, और वह प्रभु के पास आई । हल-हति-भिति-यमुन, हल-हति-भिति-मिलित-यमुनभम, यमुना प्रभु बलदेव द्वारा दंडित की गई । केशव धृत-हलधर-रूफ, हल, हलधर का मतलब है हल, हलधर-रूप जय जगदीश हरे । अगला, बुद्ध, भगवान बुद्ध ।  
 
निन्दसि यज्ञ-विधेर अहह श्रुति-जातम । भगवान बुद्ध नें वैदिक आज्ञा की अवज्ञा की, क्योंकि उनका मिशन पशु हत्या को रोकना था, और वेदों में, कुछ बलिदानों में, पशु हत्या निर्धारित है । इसलिए जो वैदिक नियमों के तथाकथित अनुयायी हैं, वे रोकना चाहते थे बुद्धदेव को उनके मिशन में, जो था जानवरों की हत्या को रोकना, तो इसलिए जब लोग वेदों से सबूत देना चाहते थे, कि वेदों में वर्णन है, बलिदान में पशु हत्या की मंजूरी है, तुम क्यों रोक रहे हो ? उन्होंने निन्दसि, उन्होंने अवहेलना की । और क्योंकि उन्होंने वेदों के अधिकार की अवज्ञा की, इसलिए बुद्ध ततवज्ञान को भारत में स्वीकार नहीं किया गया । नास्तिक, वेद के अधिकार से जो इनकार करेगा, उसे एक नास्तिक कहा जाएगा । वेदों का अपमान नहीं किया जा सकता |
 
तो इस तरह से, भगवान बुद्ध, बेचारे जानवरों को बचाने के लिए, वे कभी कभी वेद की आज्ञा की अवहेलना करते थे । केशव धृत बुद्ध शरीर जय जगदीश । अगला अवतार कल्कि अवतार है । हम इंतजार कर रहे हैं, अब से चार सौ हजारों सालों के बाद, कल्कि अवतार आएँगे, और वह घोड़े की पीठ पर एक तलवार लेकर आएँगे, जैसे एक राजा की तरह, वह बस इन सभी गैर विश्वासियों, नास्तिक जीवों की हत्या करेंगे । कोई प्रचार नहीं होगा । जैसे अन्य अवतारों में प्रचार है, कल्कि अवतार में पूरी दुनिया की आबादी इतनी हैवानियत में डूब गई होगी, की भगवान को या अध्यात्मवाद को समझने की शक्ति नहीं रहेगी, । और ये यहाँ पहले से ही है, कलयुग । इसमे वृद्धि होगी ।  
 
लोगों में इस तत्वज्ञान, भगवद भावनामृत, को समझने की कोई शक्ति नहीं रहेगी | तो उस समय कोई अन्य विकल्प नहीं है उन सब को मारने के अलावा, और एक और सत्य युग की शुरूआत करना । यही तरीका है (अस्पष्ट) ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Purport to Dasavatara Stotra, CD 8

फिर, अगले अवतार हैं वामनदेव । यह वामनदेव, एक ठिंगू बनके, वे बली महाराज के पास गए और उनसे तीन फुट ज़मीन माँगी, और उनके गुरु, शुक्राचार्यने, उन्हें प्रेरित किया वादा न करने के लिए, क्योंकि वे विष्णु हैं । लेकिन बली महाराज, बहुत ज्यादा संतुष्ट थे विष्णु को कुछ प्रदान करने के लिए, उन्होंने अपने गुरु के साथ अपने संबन्ध को तोड़ दिया, क्योंकि वे विष्णु की सेवा करने से उन्हें मना कर रहे थे । इसलिए बली महाराज महाजनों में से एक हैं ।

कोई भी विष्णु की पूजा को रोक नहीं सकता है । अगर कोई रोकता है, वह गुरु हो सकता है, वह पिता हो सकता है, वह रिश्तेदार हो सकता है, उसे तुरंत त्याग दिया जाना चाहिए । इसलिए बली महाराज एक महाजन हैं । उन्होंने यह उदाहरण दिखाया: क्योंकि उनके गुरु नें उनके भगवान विष्णु की पूजा के मार्ग में बाधा डाली, उन्होंने अपने गुरु के साथ संबन्ध तोड दिया । इसलिए इस प्रक्रिया से उन्होंने भीख माँगी, लेकिन वे भीख नहीं माँग रहे थे, व्यावहारिक रूप से यह धोखा था । लेकिन बली महाराज प्रभु द्वारा दिए गए धोख़े को खाने पर सहमत हो गए । यह भक्त का लक्षण है ।

भक्त भगवान की किसी भी कार्रवाई से सहमत है, और बली महाराज ने देखा कि भगवान धोखा देने चाहता थे । तीन फुट भूमि माँग कर वे पूरे ब्रह्मांड को लेंगे, तो वे राज़ी हो गए । और दो फीट से पूरा ब्रह्मांड नाप लिया ऊपर अौर नीचे तक । फिर वामनदेव नें उससे पूछा कि तीसरा पैर कहॉ रखूँ? तो बली महाराज सहमत हुए, "मेरे प्रभु, आप मेरे सिर पर रखो, मेरा शरीर अभी भी बाकी है ।" इस तरह से उन्होंने खरीदा भगवान विष्णु, वामनदेव को, और वामनदेव बली महाराज के द्वारपाल के रूप में बने रहे ।

तो सब कुछ देकर, सर्वात्मा स्नपने बलि, उन्होंने प्रभु को सब कुछ दे दिया, और एस देकर, उन्होंने प्रभु को खरीद लिया । वे बली महाराज के द्वारपाल के रूप में स्वेच्छा से बने रहे । तो, छलयसी विक्रमने बलिम अद्भुत-वामन पाद-नख-नीर-जनिता-जन-पावन, जब वामनदेव नें ऊपर की तरफ अपने पैर का विस्तार किया, उनके पैर के अंगूठे से ब्रह्मांड के कवर में एक छेद अा गया, और उस छेद के माध्यम से गंगा जल वैकुण्ठ से आया ।

पाद-नख-नीर-जानित और वह गंगा जल ब्रह्मांड में अब बह रहा है, हर जगह को पवित्र करते हुए, जहाँ भी गंगाजल है । पाद-नख-नीर-जनिता-जन-पावन । फिर अगला अवतार है भृगुपति, परशुराम । परशुराम एक शक्त्यावेश अवतार है । तो उन्होंने, इक्कीस बार, क्षत्रियों को मारा । इसलिए परशुराम के डर से, सभी क्षत्रिय, वे यूरोप की ओर चले गए, यह महाभारत के इतिहास में कहा जाता है । तो इक्कीस बार उन्होंने सब क्षत्रियों पर हमला किया । वे ठीक नहीं थे, इसलिए उन्होंने उन्हें मार दिया, और कुरुक्षेत्र में एक बड़ा टैंक है जहां सब का खून आरक्षित था । बाद में यह पानी हो गया ।

तो क्षत्रिय-रुधिर, पीड़ित पृथ्वी को शांत करने के लिए, उन्होंने क्षत्रियों के खून से धरती को भिगोया, स्नपयसि पयसि समित-भव-तापम । वितरसि दिक्षु रने दिक-पति-कमनीयम दश-मुख-मौलि-बलिम रमनीयम । फिर अगले अवतार रामचंद्र हैं । तो रावण, जिनके दस सिर थे, उन्होंने प्रभु को चुनौती दी, और प्रभु रामचंद्र नें चुनौती स्वीकार की और उसे मार डाला । फिर वहसि वपुसि वशदे वसनम जलदभम हल-हति-भिति-मिलित-यमुनभम । जब बलदेव चाहते थे कि यमुना उनके पास आए, लेकिन वह नहीं आ रही थी । इसलिए उनके हल से वे पृथ्वी को दो भागों में बाँटना चाहते थे, और उस समय यमुना नें समर्पण किया, और वह प्रभु के पास आई । हल-हति-भिति-यमुन, हल-हति-भिति-मिलित-यमुनभम, यमुना प्रभु बलदेव द्वारा दंडित की गई । केशव धृत-हलधर-रूफ, हल, हलधर का मतलब है हल, हलधर-रूप जय जगदीश हरे । अगला, बुद्ध, भगवान बुद्ध ।

निन्दसि यज्ञ-विधेर अहह श्रुति-जातम । भगवान बुद्ध नें वैदिक आज्ञा की अवज्ञा की, क्योंकि उनका मिशन पशु हत्या को रोकना था, और वेदों में, कुछ बलिदानों में, पशु हत्या निर्धारित है । इसलिए जो वैदिक नियमों के तथाकथित अनुयायी हैं, वे रोकना चाहते थे बुद्धदेव को उनके मिशन में, जो था जानवरों की हत्या को रोकना, तो इसलिए जब लोग वेदों से सबूत देना चाहते थे, कि वेदों में वर्णन है, बलिदान में पशु हत्या की मंजूरी है, तुम क्यों रोक रहे हो ? उन्होंने निन्दसि, उन्होंने अवहेलना की । और क्योंकि उन्होंने वेदों के अधिकार की अवज्ञा की, इसलिए बुद्ध ततवज्ञान को भारत में स्वीकार नहीं किया गया । नास्तिक, वेद के अधिकार से जो इनकार करेगा, उसे एक नास्तिक कहा जाएगा । वेदों का अपमान नहीं किया जा सकता |

तो इस तरह से, भगवान बुद्ध, बेचारे जानवरों को बचाने के लिए, वे कभी कभी वेद की आज्ञा की अवहेलना करते थे । केशव धृत बुद्ध शरीर जय जगदीश । अगला अवतार कल्कि अवतार है । हम इंतजार कर रहे हैं, अब से चार सौ हजारों सालों के बाद, कल्कि अवतार आएँगे, और वह घोड़े की पीठ पर एक तलवार लेकर आएँगे, जैसे एक राजा की तरह, वह बस इन सभी गैर विश्वासियों, नास्तिक जीवों की हत्या करेंगे । कोई प्रचार नहीं होगा । जैसे अन्य अवतारों में प्रचार है, कल्कि अवतार में पूरी दुनिया की आबादी इतनी हैवानियत में डूब गई होगी, की भगवान को या अध्यात्मवाद को समझने की शक्ति नहीं रहेगी, । और ये यहाँ पहले से ही है, कलयुग । इसमे वृद्धि होगी ।

लोगों में इस तत्वज्ञान, भगवद भावनामृत, को समझने की कोई शक्ति नहीं रहेगी | तो उस समय कोई अन्य विकल्प नहीं है उन सब को मारने के अलावा, और एक और सत्य युग की शुरूआत करना । यही तरीका है (अस्पष्ट) ।