HI/Prabhupada 0381 - दशावतार स्तोत्र भाग १

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Purport to Sri Dasavatara Stotra -- Los Angeles, February 18, 1970

प्रलय-पयोधि- जले-धृतवान असि वेदम, विहित-वहित्र-चरित्रम अखेदम । . आज भगवान श्री कृष्ण के सूअर के रूप में प्रदर्शित होने के अवतार का दिन है । उन्होंने पृथवी को उठा लिया जब यह गर्भोदक महासागर के पानी के भीतर डूब गई थी । जो ब्रह्मांड हम देख रहे हैं, यह केवल आधा है । बाकी का आधा पानी से भरा है, और उस पानी में गर्भोदकशायि विष्णु लेटे हुए हैं । तो एक दानव, हिरण्याक्ष, उसने पानी के भीतर इस सांसारिक ग्रह को धक्का दे दिया, और भगवान कृष्ण नें पानी से इस सांसारिक ग्रह को बचाया, एक सूअर के आकार में अाकर । तो वह शुभ दिन वराह-द्वादशि, आज है । इसे वराह-द्वादशि कहा जाता है । इसलिए इस दिन गाना बेहतर है, भगवान के विभिन्न अवतारों की महिमा करने के लिए यह इस ब्रह्मांड के अंदर । पहला अवतार मछली का रूप है । तो ये प्रार्थनाऍ जयदेव गोस्वामी द्वारा पेश की गई थी । एक वैष्णव कवि, का लगभग सात सौ साल पहले आगमन हुअा, भगवान चैतन्य के अवतरित होने से पहले । वे एक महान भक्त थे, और उनकी विशिष्ट कविता, गीत-गोविंद, पूरी दुनिया में बहुत प्रसिद्ध है । गीत-गोविंद । गीत-गोविंद का विषय है कृष्ण का बांसुरी बजाना राधारानी के बारे में । गीत-गोविंद का यह विषय है । वही कवि, जयदेव गोस्वामी, नें इस प्रार्थना को अर्पण किया है, प्रलय-पयोधि- जले-धृतवान असि वेदम । वे कहते हैं, "मेरे प्रिय प्रभु, जब इस ब्रह्मांड के भीतर तबाही हुई, सब कुछ पानी से भर गया था । उस समय आपने वेदों को बचा लिया, एक नाव में रख कर । और अापने उस नाव को पानी में डूबने से बचाया उसे पकड कर, एक बड़ी मछली के आकार में ।" यह मछली सब से पहले एक पात्र में पकडी गई थी एक छोटी मछली की तरह । फिर यह बडी हुई, और मछली को एक बड़े जलाशय में रखा गया । इस तरह से वह मछली बडी होती गई । फिर मछली नें सूचित किया कि "तबाही आ रही है । तुम सिर्फ एक नाव पर सभी वेदों को बचाअो, और मैं इनकी रक्षा करूँगा । " तो जयदेव गोस्वामी प्रार्थना अर्पण कर रहे हैं, "मेरे प्रभु, आप वेदों को बचाया, जब तबाही हुई एक मछली के आकार में अाकर ।" अगला है कूर्मावतार । सागर का मंथन हुअा । एक तरफ सभी देवता और एक तरफ सभी राक्षस । और मंथन का डंडा एक महान पहाड़ था, मंदरा-पर्वत के नाम का । और विश्राम का आधार, भगवान के पीठ थी, एक कछुए के रूप में अवतरित हुए । तो वे प्रार्थना अर्पण कर रहे हैं कि, " अाप एक कछुए के रूप में अवतरित हुए सिर्फ आराम का आधार बनने के लिए । अौर यह हुअा क्योंकि अाप कुछ खुजली महसूस कर रहे थे अपनी पीठ पर । तो आपने इस बड़े डंडे को स्वीकार किया, मंदरा पर्वत, खुजली करने के लिए, खुजली का साधन ।" फिर अगला अवतार यह वराह हैं, सूअर या हॉग । उन्होंने अपने दांत से इस सांसारिक ग्रह को बचाया, और उन्होंने अपने दांत पर पूरी पृथवी को रखा । हम सिर्फ कल्पना कर सकते हैं कि वे कितने बड़े दिखाई दिए । और उस समय यह दुनिया सिर्फ चंद्रमा की तरह दिखाई दी जिसपर कुछ निशान थे । तो केशव-धृत-वराह-शरीर । वे कहते हैं, " मेरे प्रिय प्रभु, आप महान सूअर के रूप में अवतरित हुए । तो मैं अापको सम्मानजनक दंडवत करता हूँ ।" चौथे अवतार न्रसिंह-देव हैं । न्रसिंस-देव अवतरितह हुए प्रहलाद महाराज को बचाने के लिए, जो पांच साल का लड़का था और उसपर उसके नास्तिक पिता द्वारा अत्याचार किया जा रहा था । तो, वे महल के खम्भे से अवतरित हुए, एक आधे आदमी, आधे शेर के रूप में । क्योंकि इस हिरण्यकशिपु नें रह्मा से आशीर्वाद लिया कि वे वह किसी भी आदमी या किसी भी जानवर से नहीं मारा जाएगा । तो भगवान अवतरित हुए न आदमी और न ही जानवर । यही अंतर है. भगवान की बुद्धिमत्ता और हमारी बुद्धिमत्ता में । हम सोचते हैं कि हम हमारी बुद्धि के द्वारा प्रभु को धोखा दे सकते हैं । लेकिन भगवान हमसे अधिक बुद्धिमान हैं । यह हिरण्यकशिपु अप्रत्यक्ष परिभाषा से ब्रह्मा को धोखा देना चाहता था । सब से पहले वह अमर बनना चाहता था । ब्रह्मा नें कहा, " यह संभव नहीं है क्योंकि मैं भी अमर नहीं हूँ । कोई भी इस भौतिक संसार में अमर नहीं है । यह संभव नहीं है ।" तो हिरण्यकशिपु, दानव ... राक्षस बहुत बुद्धिमान होते हैं । उसने सोचा कि, "घुमा फिरा के, मैं अमर हो जाऊँगा ।" उसने ब्रह्मा से प्रार्थना की, "मुझे आशीर्वाद दीजिए, मैं किसी भी आदमी या किसी भी जानवर द्वारा मारा नहीं जाऊँगा । " ब्रह्मा ने कहा, " हाँ, ठीक है ।" "मैं पानी पर या जमीन पर, आसमान में मारे नहीं जाऊँगा ।" ब्रह्मा ने कहा, "अरे हाँ ।" "मैं किसी भी मानव निर्मित हथियार से मारा नहीं जाऊँगा ।" " ठीक है ।" इस तरह से , उसने अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग किया कई तरीकों से, सिर्फ अमर होने के निष्कर्ष पर आने के लिए । लेकिन प्रभु इतने चालाक हैं, कि उन्होंने ब्रह्मा द्वारा दी गई सभी आशीर्वाद को बरकरार रखा, फिर भी वह मारा गया । उन्होंने कहा कि, "मैं या दिन या रात के दौरान नहीं मारूँगा ।" ब्रह्मा नें कहा, "हाँ ।" तो वे मारा गया शाम को, दिन और रात के संगम में । तुम नहीं कह सकते हो कि यह दिन है या रात । उसने यह आशीर्वाद लिया कि "मैं जमीन पर, पानी पर, आकाश में नहीं मरूँगा ।" तो वह उनकी गोद में मारा गया था । उसे यह आशीर्वाद लिया कि, "मैं किसी भी मानव निर्मित या किसी भी भगवान के बनाए हथियार से नहीं मारा जाऊँगा ।" यही दिया गया, "ठीक है ।" तो वह नाखूनों से मारा गया था । इस तरह, सभी वरदान बरकरार रखे गए थे, फिर भी वह मारा गया । इसी तरह, हम योजना बना सकते हैं, हम वैज्ञानिक ज्ञान में बहुत उन्नति कर सकते हैं, लेकिन प्रकृति की हत्या की प्रक्रिया रहेगी । कोई नहीं बच सकता । हमारी बुद्धि के द्वारा हम बच नहीं सकते । भौतिक अस्तित्व के चार सिद्धांत का मतलब है जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । हम कई दवाओं, कई हथियार, कई साधन, कई तरीकों का निर्माण कर सकते हैं, लेकिन तुम भौतिक अस्तित्व के इन चार सिद्धांतों से नहीं बच सकते हो, कितने भी महान तुम क्यों न हो । यह हिरण्यकशिपु ने साबित कर दिया । हिरण्यकशिपु भौतिकवादी दिग्गज था, और वह हमेशा के लिए जीना चाहता था, आनंद लेना । लेकिन वह भी नहीं जी सका । सब कुछ समाप्त हो गया ।