HI/Prabhupada 0412 - कृष्ण चाहते हैं कि इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रसार होना चाहिए

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Conversation with Devotees -- April 12, 1975, Hyderabad

प्रभुपाद: अनाश्रित: कर्म फलम कार्यम कर्म करोति यह स सन्यासी (भ.गी. ६.१) | अनाश्रित: कर्म... हर कोई अपनी इन्द्रिय संतुष्टि से कुछ अच्छे परिणाम की उम्मीद करता है । यही अाश्रित कर्म फलम है । उसने अच्छे परिणाम की शरण ले ली है । लेकिन जो इन गतिविधियों के परिणाम की शरण नहीं लेता है... यह मेरा कर्तव्य है । कार्यम । कार्यम का मतलब है "यह मेरा कर्तव्य है । कोई फर्क नहीं पड़ता है कि नतीजा क्या यह है । मुझे अपनी पूरी क्षमता से, ईमानदारी से करना चाहिए । फिर मैं परिणाम की परवाह नहीं करता । परिणाम कृष्ण के हाथ में है ।" कार्यम: "यह मेरा कर्तव्य है । मेरे गुरु महाराज ने कहा, तो यह मेरा कर्तव्य है । कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह सफल है या असफल है । यह श्री कृष्ण पर निर्भर करता है । "

इस तरह से, कोई अगर वह काम करता है, तो वह एक सन्यासी है । पोशाक नहीं, लेकिन काम करने का रवैया । हाँ, यही सन्यास है । कार्यम: "यह मेरा कर्तव्य है ।" स सन्यासी च योगी च । वह योगी है, प्रथम श्रेणी का योगी । जैसे अर्जुन की तरह । अर्जुन औपचारिक तौर पर, उन्होंने सन्यास नहीं लिया । वह एक गृहस्थ थे, सैनिक थे । लेकिन जब उन्होंने बहुत गंभीरता से लिया, कार्यम - "कृष्ण यह लड़ाई चाहते हैं । कोई बात नहीं कि मुझे अपने रिश्तेदारों को मारना है । मुझे यह करना होगा ।" - यह सन्यास है । उन्होंने सबसे पहले श्री कृष्ण के साथ बहस की "इस तरह से लड़ना अच्छि बात नहीं है," परिवार की हत्या, और यह सब । उन्होंने तर्क दिया । लेकिन भगवद गीता सुनने के बाद, जब वे समझ जाते हैं कि "यह मेरा कर्तव्य है । कृष्ण चाहते हैं कि मैं यह करूँ ।" कार्यम । तो एक गृहस्थ, एक सैनिक, बनने के बावजूद, वे एक सन्यासी हैं । उन्होंने इसे किया - कार्यम । कार्यम मतलब है, "यह मेरा कर्तव्य है ।" यही असली सन्यास है । "कृष्ण चाहते हैं कि इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रसार होना चाहिए । तो यह मेरा कार्यम है । यह मेरा कर्तव्य है । और दिशा हैं मेरे आध्यात्मिक गुरु । तो मुझै यह करना होगा ।" यह सन्यास है । यह सन्यास, सन्यास मानसिकता है । लेकिन औपचारिकता है । यह करना चाहिए ... यह स्वीकार किया जा सकता है ।

भारतीय आदमी: इसका कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है ।

प्रभुपाद: आह । भारत में विशेष रूप से, लोगों को पसंद है । सन्यासी प्रचार कर सकते हैं । अन्यथा, सन्यास का सूत्र दिया गया है - कार्यम: "लेकिन मेरा यही कर्तव्य है । बस । कृष्ण भावनामृत आंदोलन को प्रोत्साहन देना चाहिए । यही मेरा कर्तव्य है ।" वह सन्यासी है । क्योंकि कृष्ण व्यक्तिगत रूप से आते हैं, वह मांग करते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) | और चैतन्य महाप्रभु, कृष्ण, वे कहते हैं, येइ कृष्ण तत्त्व वेत्त सेई गुरु हय: "कृष्ण का विज्ञान जो जानता है, वह गुरु है ।" और गुरु का कार्य क्या है? यारे देख, तारे कह कृष्ण उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) "तुम जिससे मिलते हो, तुम सिर्फ कृष्ण की शिक्षा उस पर प्रभावित करने की कोशिश करो ।" सर्व-धर्मान परित्यज्य..... तो इस तरह से, अगर हम बहुत गंभीरता से, इसे लेते हैं - "यह मेरा कर्तव्य है" - तो तुम एक सन्यासी हो । बस । स सन्यासी । कृष्ण प्रमाणित करते हैं , स सन्यासी । लोग कृष्ण की शिक्षाओं को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं । यह भारत का दुर्भाग्य है । वे कृष्ण के कई प्रतियोगियों को ला रहे हैं । क्या कृष्ण ... और "कृष्ण ... रामकृष्ण भी कृष्ण के समान ही हैं ।" इस धूर्तता नें मार डाला है । उन्होंने सबसे महान धर्म का नुक़सान किया है । बजाय कृष्ण की, वे एक बदमाश, रामकृष्ण को ले अाए हैं ।

भागवत: उनका बड़ा मठ है भुवनेश्वर में । भुवनेश्वर में, उनका बड़ा रामकृष्ण मठ है । विवेकानंद स्कूल, पुस्तकालय, बहोत सारी ज़मीन, सब कुछ, बहुत व्यवस्थित ।

प्रभुपाद: तो हम ऐसा कर सकते हैं । तुम्हे लोगों को समझाना होगा । उनके साथ प्रतिस्पर्धा करने का कोई सवाल ही नहीं है । लेकिन तुम, तुम कहीं भी अपने खुद के तत्वज्ञान का प्रचार कर सकते हो ।

भारतीय आदमी: उड़ीसा में लोगों के साथ जो हो रहा है ...

प्रभुपाद: हम्म?

भारतीय आदमी: ... उन्हें मनाने की कोशिश: नहीं, यह गलत है और इस तरह से है ।

प्रभुपाद: नहीं, उस रामकृष्ण मिशन की लालच है दरिद्र-नारायण-सेवा और अस्पताल । उनकी लालच केवल यही है । उनका कोई कार्यक्रम नहीं है । कोई भी उनके तत्वज्ञान से आकर्षित नहीं है । और क्या तत्वझान है उनके पास? कोई बात नहीं । हमारा उन लोगों के साथ कोई संबंध नहीं हैं ।