HI/Prabhupada 0413 - तो जप करके, हम पूर्णता के सर्वोच्च स्तर पर आ सकते हैं: Difference between revisions
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जप के तीन स्तर हैं । एक जप | जप के तीन स्तर हैं । एक जप अपराध के साथ है, शुरुआत में । अपराध दस प्रकार के होते हैं । हमने कई बार वर्णन किया है । अगर हम अपराध के साथ मंत्र जपते हैं, यह एक स्तर है । अगर हम अपराध रहित मंत्र जपते हैं, यह एक स्तर है । और अगर हम शुद्ध मंत्र का जप करते हैं ... अपराध रहित अभी तक शुद्ध नहीं है । तुम अपराध रहित बनाने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन अभी तक अपराध रहित नहीं है । लेकिन जब शुद्ध जप होता है, यह सफलता है । नाम, नामाभास, और शुद्ध-नाम । इसलिए हमारा उद्देश्य यह है....... इसकी चर्चा की थी । तुम चैतन्य-चरितामृत में पाअोगे, हरिदास ठाकुर और ब्राह्मण के बीच चर्चा । तो जप करके, हम पूर्णता के सर्वोच्च स्तर पर आ सकते हैं । शुरुआत में अपराध हो सकता है, लेकिन अगर हम अपराधों से बचने की कोशिश करते हैं, तो फिर यह नामाभास है । नामाभास का अर्थ है वास्तव में शुद्ध नाम नहीं, लेकिन लगभग शुद्ध । नामाभास, और शुद्ध-नाम । | ||
जब हम शुद्ध-नाम जपते हैं, नाम, भगवान का पवित्र नाम, तो वह कृष्ण के साथ प्रेम के स्तर पर है । यही पूर्णता का चरण है । और नामाभास स्तर पर, शुद्ध नहीं, तटस्थ, शुद्ध और अपराधयुक्त के बीच, वह मुक्ति है । तुम भौतिक बंधन से मुक्त हो जाते हो । अौर अगर हम अपराधयुक्त मंत्र जपते हैं, तो हम भौतिक संसार में ही रहते हैं । भक्तिविनोद ठाकुर नें कहा है, नामाकार बहिरे हय नाम नाहि हय । यह यांत्रिक है, "हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण," लेकिन फिर भी यह हरे कृष्ण नहीं है । नामाकार, नाम बहिर हय, नामाकार, नाम नाहि हय । इसलिए हमें विशुद्ध रूप से जप करना चाहिए । लेकिन हमें निराश नहीं होना चाहिए । यहां तक कि अशुद्ध ... इसलिए जप करने की प्रक्रिया तय होनी चाहिए । क्योंकि हम शुद्ध अवस्था में नहीं हैं । इसलिए, बल से ... जैसे स्कूल में एक लड़का । हमारे बचपन में स्कूल में यह प्रशिक्षण था । हमारा शिक्षक मुझसे कहता था, "तुम दस पृष्ठ लिखो, लिखावट ।" तो इसका मतलब है दस पृष्ठों का अभ्यास, मेरी लिखावट बेहतर हो जाएगी । | |||
तो भले ही हम सोलह माला का पालन नहीं करते हैं, हरे कृष्ण का जप करने का सवाल कह! है? तो कृत्रिम होना नहीं है । मत बनो, मेरे कहने का मतलब है, एक दिखावटी मत बनो । असली बात बनो । और यह अावश्यक है । अगर तुम आध्यात्मिक जीवन का वास्तविक लाभ चाहते हो, दिखावटी मत बनो । तुम्हे दिखावटी पता है? मेडिकल की दुकान, एक बड़ी बोतल । यह केवल पानी से भरा हुआ है । और रंग लाल या नीले या ऐसा कुछ है । लेकिन असली दवा को आवश्यकता नहीं है..... (बाजुमें:) नहीं, अभी नहीं । असली दवा को एक दिखावट की आवश्यकता नहीं है । एक छोटा सा ... अगर हम विशुद्ध अपराध रहित जप करते हैं, एक बार कृष्ण-नाम, वह सभी भौतिक बंधन से मुक्त है । केवल एक बार । एक कृष्ण नाम यत पाप हय, पापी हय तत पाप करी बरो नाहि । तो शौचम, शौचम का मतलब है अन्दर की सफाई और बाहर की सफाई, शौचम । अंदर, हमें शुद्ध होना है, शुद्ध विचार, कोई दूषण नहीं । हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि कोई मेरा दुश्मन है । हर कोई दोस्त है । "मैं हूँ ... मैं शुद्ध नहीं हूँ, इसलिए मैं सोच रहा हूँ कि कोई मेरा दुश्मन है ।" इतने सारे लक्षण हैं । तो शौचम: हमें अंदर और बाहर, स्वच्छ होना चाहिए । सत्यम शौचम दया । मैंने पहले से ही स्पष्ट किया है, दया । दया का मतलब है, गिरे हुए पर दया करना, जो पतित है, संकट में है जो । तो वास्तव में, वर्तमान समय में पूरी आबादी, वे गिर हुए हैं । कृष्ण कहते हैं, | |||
तो कली के वर्तमान समय में, | :यदा यदा हि धर्मस्य | ||
:ग्लानिर भवति भारत | |||
:अभयुत्थानम अधर्मस्य | |||
:तदात्मानम सृजामि अहम | |||
:([[HI/BG 4.7|भ.गी. ४.७]]) | |||
:परित्राणाय साधूनाम | |||
:विनाशाय च दुश्कृताम | |||
:धर्म संस्थापनार्थाय | |||
:संभवामि युगे युगे | |||
:([[HI/BG 4.8|भ.गी. ४.८]]) | |||
तो कली के वर्तमान समय में, कलीयुग, वे हैं, व्यावहारिक रूप से सभी राक्षस हैं । सभी राक्षस । इसलिए कृष्ण अगर ... हां, कभी कभी यह हो सकता है कि कृष्ण बस राक्षसों को मारने के लिए यहाँ आते हैं | यह कल्कि अवतार है । यह जयदेव गोस्वामी द्वारा वर्णित है । वह क्या है? केशव धृत-कल्कि-शरीर जय जगदीश हरे | कलौ धूमकेतुम इव किम अपि करालम्, म्लेच्छ-निवह-निधने कलयसि करवालम । म्लेच्छ म्लेच्छ, यह शब्द, यवन, ये.... ये वैदिक भाषा में शब्द हैं, म्लेच्छ, यवन । यवन का मतलब है मांस खाने वाले लोग । यवन । इसका यह मतलब नहीं है कि केवल यूरोपी यवन हैं, और अमेरिकि नहीं है, भारतीय यवन नहीं हैं । नहीं । जो कोई भी मांस खाता है, वह एक यवन है । यवन का मतलब है मांस खाने वाले लोग । और म्लेच्छ का अर्थ है अशुद्ध । जो वैदिक सिद्धांतों का पालन नहीं करता है, उसे म्लेच्छ कहा जाता है । | |||
जैसे....मुसलमान कहते हैं, ... काफिर । जो मुस्लिम धर्म का पालन नहीं करता है, वे काफिर कहे जाते हैं । यही धार्मिक दृष्टि है । और ईसाइ "हीथेन्स" कहते हैं । जो ईसाई धर्म का पालन नहीं करता है, वे हीथेन्स कहे जाते हैं । है कि नहीं ? इसी तरह, जो कोई भी वैदिक सिद्धांत का पालन नहीं करता है, वह म्लेच्छ कहा जाता है । तो वह समय अाएगा जब कोई भी वैदिक सिद्धांतों का पालन नहीं करेगा । इसलिए, म्लेच्छ । सभी म्लेच्छ-निवह, जब सभी लोग म्लेच्छ बन जाऍगे । कोई भी वैदिक सिद्धांतों का पालन नहीं करेगा, म्लेच्छ-निवह-निधने, उस समय कोई अौर उपदेश नहीं, बस हत्या । | |||
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020
Lecture on SB 1.16.26-30 -- Hawaii, January 23, 1974
जप के तीन स्तर हैं । एक जप अपराध के साथ है, शुरुआत में । अपराध दस प्रकार के होते हैं । हमने कई बार वर्णन किया है । अगर हम अपराध के साथ मंत्र जपते हैं, यह एक स्तर है । अगर हम अपराध रहित मंत्र जपते हैं, यह एक स्तर है । और अगर हम शुद्ध मंत्र का जप करते हैं ... अपराध रहित अभी तक शुद्ध नहीं है । तुम अपराध रहित बनाने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन अभी तक अपराध रहित नहीं है । लेकिन जब शुद्ध जप होता है, यह सफलता है । नाम, नामाभास, और शुद्ध-नाम । इसलिए हमारा उद्देश्य यह है....... इसकी चर्चा की थी । तुम चैतन्य-चरितामृत में पाअोगे, हरिदास ठाकुर और ब्राह्मण के बीच चर्चा । तो जप करके, हम पूर्णता के सर्वोच्च स्तर पर आ सकते हैं । शुरुआत में अपराध हो सकता है, लेकिन अगर हम अपराधों से बचने की कोशिश करते हैं, तो फिर यह नामाभास है । नामाभास का अर्थ है वास्तव में शुद्ध नाम नहीं, लेकिन लगभग शुद्ध । नामाभास, और शुद्ध-नाम ।
जब हम शुद्ध-नाम जपते हैं, नाम, भगवान का पवित्र नाम, तो वह कृष्ण के साथ प्रेम के स्तर पर है । यही पूर्णता का चरण है । और नामाभास स्तर पर, शुद्ध नहीं, तटस्थ, शुद्ध और अपराधयुक्त के बीच, वह मुक्ति है । तुम भौतिक बंधन से मुक्त हो जाते हो । अौर अगर हम अपराधयुक्त मंत्र जपते हैं, तो हम भौतिक संसार में ही रहते हैं । भक्तिविनोद ठाकुर नें कहा है, नामाकार बहिरे हय नाम नाहि हय । यह यांत्रिक है, "हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण," लेकिन फिर भी यह हरे कृष्ण नहीं है । नामाकार, नाम बहिर हय, नामाकार, नाम नाहि हय । इसलिए हमें विशुद्ध रूप से जप करना चाहिए । लेकिन हमें निराश नहीं होना चाहिए । यहां तक कि अशुद्ध ... इसलिए जप करने की प्रक्रिया तय होनी चाहिए । क्योंकि हम शुद्ध अवस्था में नहीं हैं । इसलिए, बल से ... जैसे स्कूल में एक लड़का । हमारे बचपन में स्कूल में यह प्रशिक्षण था । हमारा शिक्षक मुझसे कहता था, "तुम दस पृष्ठ लिखो, लिखावट ।" तो इसका मतलब है दस पृष्ठों का अभ्यास, मेरी लिखावट बेहतर हो जाएगी ।
तो भले ही हम सोलह माला का पालन नहीं करते हैं, हरे कृष्ण का जप करने का सवाल कह! है? तो कृत्रिम होना नहीं है । मत बनो, मेरे कहने का मतलब है, एक दिखावटी मत बनो । असली बात बनो । और यह अावश्यक है । अगर तुम आध्यात्मिक जीवन का वास्तविक लाभ चाहते हो, दिखावटी मत बनो । तुम्हे दिखावटी पता है? मेडिकल की दुकान, एक बड़ी बोतल । यह केवल पानी से भरा हुआ है । और रंग लाल या नीले या ऐसा कुछ है । लेकिन असली दवा को आवश्यकता नहीं है..... (बाजुमें:) नहीं, अभी नहीं । असली दवा को एक दिखावट की आवश्यकता नहीं है । एक छोटा सा ... अगर हम विशुद्ध अपराध रहित जप करते हैं, एक बार कृष्ण-नाम, वह सभी भौतिक बंधन से मुक्त है । केवल एक बार । एक कृष्ण नाम यत पाप हय, पापी हय तत पाप करी बरो नाहि । तो शौचम, शौचम का मतलब है अन्दर की सफाई और बाहर की सफाई, शौचम । अंदर, हमें शुद्ध होना है, शुद्ध विचार, कोई दूषण नहीं । हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि कोई मेरा दुश्मन है । हर कोई दोस्त है । "मैं हूँ ... मैं शुद्ध नहीं हूँ, इसलिए मैं सोच रहा हूँ कि कोई मेरा दुश्मन है ।" इतने सारे लक्षण हैं । तो शौचम: हमें अंदर और बाहर, स्वच्छ होना चाहिए । सत्यम शौचम दया । मैंने पहले से ही स्पष्ट किया है, दया । दया का मतलब है, गिरे हुए पर दया करना, जो पतित है, संकट में है जो । तो वास्तव में, वर्तमान समय में पूरी आबादी, वे गिर हुए हैं । कृष्ण कहते हैं,
- यदा यदा हि धर्मस्य
- ग्लानिर भवति भारत
- अभयुत्थानम अधर्मस्य
- तदात्मानम सृजामि अहम
- (भ.गी. ४.७)
- परित्राणाय साधूनाम
- विनाशाय च दुश्कृताम
- धर्म संस्थापनार्थाय
- संभवामि युगे युगे
- (भ.गी. ४.८)
तो कली के वर्तमान समय में, कलीयुग, वे हैं, व्यावहारिक रूप से सभी राक्षस हैं । सभी राक्षस । इसलिए कृष्ण अगर ... हां, कभी कभी यह हो सकता है कि कृष्ण बस राक्षसों को मारने के लिए यहाँ आते हैं | यह कल्कि अवतार है । यह जयदेव गोस्वामी द्वारा वर्णित है । वह क्या है? केशव धृत-कल्कि-शरीर जय जगदीश हरे | कलौ धूमकेतुम इव किम अपि करालम्, म्लेच्छ-निवह-निधने कलयसि करवालम । म्लेच्छ म्लेच्छ, यह शब्द, यवन, ये.... ये वैदिक भाषा में शब्द हैं, म्लेच्छ, यवन । यवन का मतलब है मांस खाने वाले लोग । यवन । इसका यह मतलब नहीं है कि केवल यूरोपी यवन हैं, और अमेरिकि नहीं है, भारतीय यवन नहीं हैं । नहीं । जो कोई भी मांस खाता है, वह एक यवन है । यवन का मतलब है मांस खाने वाले लोग । और म्लेच्छ का अर्थ है अशुद्ध । जो वैदिक सिद्धांतों का पालन नहीं करता है, उसे म्लेच्छ कहा जाता है ।
जैसे....मुसलमान कहते हैं, ... काफिर । जो मुस्लिम धर्म का पालन नहीं करता है, वे काफिर कहे जाते हैं । यही धार्मिक दृष्टि है । और ईसाइ "हीथेन्स" कहते हैं । जो ईसाई धर्म का पालन नहीं करता है, वे हीथेन्स कहे जाते हैं । है कि नहीं ? इसी तरह, जो कोई भी वैदिक सिद्धांत का पालन नहीं करता है, वह म्लेच्छ कहा जाता है । तो वह समय अाएगा जब कोई भी वैदिक सिद्धांतों का पालन नहीं करेगा । इसलिए, म्लेच्छ । सभी म्लेच्छ-निवह, जब सभी लोग म्लेच्छ बन जाऍगे । कोई भी वैदिक सिद्धांतों का पालन नहीं करेगा, म्लेच्छ-निवह-निधने, उस समय कोई अौर उपदेश नहीं, बस हत्या ।