HI/Prabhupada 0419 - दीक्षा का मतलब है कृष्ण चेतना का तीसरे चरण

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Lecture & Initiation -- Seattle, October 20, 1968

तो इस दीक्षा का मतलब है कृष्ण भावनामृत का तीसरा चरण । जो लोग दीक्षा ले रहे हैं, याद रखना चाहिए कि उन्हें इन नियमों और विनियमों का पालन करना होगा। जैसे एक आदमी को निश्चित प्रकार से ठीक होना है किसी बीमारी से, उसे चिकित्सक द्वारा दिए गए नियमो का पालन करना पड़ता है, और यह उसे बहुत जल्दी बीमारी से उबरने में मदद करेगा। तो प्रतिबंध के इन चार सिद्धांतों का उन्हें पालन करना होगा और हरे कृष्ण मंत्र का जप प्रतिदिन कम से कम सोलह राउंड करना होगा, और धीरे-धीरे वह इस प्रकिया में दृढ हो जाएगा और लगाव और स्वाद महसूस करेगा, और फिर कृष्ण के प्रति प्रेम स्वत:... यह हर किसी के दिल में है।

कृष्ण का प्रेम, यह एक विदेशी बात नहीं है जो हम थोप रहे हैं । नहीं। यह है, हर जगह, हर जीव में है। अन्यथा कैसे यह अमेरिकी लड़के और लड़कियों इसे ले रहे हैं अगर एसा नहीं है? यह वहाँ है। मैं बस मदद कर रहा हूँ। जैसे माचिस की तरह: वहाँ आग है, और हम रगड़ कर मदद कर सकते हैं, बस। आग है। तुम्हे आग नहीं मिल सकता दोनों को रगडने से, मेरे कहने का मतलब है, तीलीको रगड़ने से, अगर शीर्ष पर रसायन न हो। तो कृष्ण भावना हर किसी के दिल में है; बस इस कृष्ण भावनामृत संघ द्वारा इसे पुनर्जीवित करना होगा, यह कृष्ण भावनामृत संघ । तो यह न तो मुश्किल है, न ही अव्यावहारिक है, और न ही बहुत कड़ा है। सब कुछ अच्छा है। तो हमारा सबसे अनुरोध है कि, वे भगवान चैतन्य के इस उदार उपहार को लें, कृष्ण भावनामृत आंदोलन, और हरे कृष्ण का जप, और अाप सब खुश हो जाअोगे। यही हमारा कार्यक्रम है।

बहुत बहुत धन्यवाद ।