HI/Prabhupada 0474 - आर्यन का मतलब है जो उन्नत हैं: Difference between revisions

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वेदांत सलाह देते हैं, "अब तुम ब्रह्मण की जांच करो ।" अथातो ब्रह्म-जिज्ञासा यह हर किसी के लिए लागू है, सभ्य पुरुष । मैं अमेरिकियों की बात नहीं करता, एशिया में, यूरोप में । कहीं भी । आर्यन का मतलब है जो उन्नत हैं । अनार्य का मतलब है जो उन्नत नहीं है ... यह संस्कृत अर्थ है, आर्य । और शूद्र ... आर्य चार जातियों में विभाजित हैं । सबसे बुद्धिमान वर्ग ब्राह्मण कहा जाता है, और ... ब्राह्मण से कम मतलब है जो प्रशासक हैं, राजनेत, वे क्षत्रिय हैं । और वाणिज्यिक वर्ग उनके बाद, व्यापारि, उद्योगपति, प्रशासनिक वर्ग की तुलना में कम हैं । और उस से भी कम,शूद्र । शूद्र का मतलब है कार्यकर्ता, मजदूर । तो यह प्रणाली नई बात नहीं है । यह हर जगह है । जहाँ भी मानव समाज है पुरुषों के ये चार वर्ग हैं । कभी कभी मुझसे पूछा जाता है कि भारत में जाति व्यवस्था क्यों है । खैर, यह जाति व्यवस्था है । यह स्वभाविक है । भगवद गीता का कहना है, चातुर वर्णयम मया सृष्टम गुण कर्म विभागश: ([[Vanisource:BG 4.13|भ गी ४।१३]]) "पुरुषों की चार श्रेणियां हैं । यह मेरा कानून है ।" कैसे वे चार वर्ग हैं? गुण-कर्म-विभागश: गुण का मतलब है गुणवत्ता, और कर्म का मतलब काम है । अगर तुम्हारी बहुत अच्छी गुणवत्ता है, बुद्धि, ब्राह्मणवादी गुण ... ब्राह्मणवादी गुण का मतलब है अगर तुमसच बोलते हो, तो आप बहुत साफ हो और तुम स्वयं नियंत्रित हो, तुम्हारा मन संतुलन में है, तुम सहिष्णु हो, और इतने सारे गुण ... तुम भगवान में विशवास करते हो, तुम व्यावहारिक रूप से शास्त्र जानते हो । ये गुण उच्च वर्ग के लिए हैं, ब्राह्मण । ब्राह्मण की पहली योग्यता है कि वह सच्चा है । वह अपने दुश्मन को भी सब कुछ खुलासा करेगा । वह कभी भी, कहने का मतलब, कुछ भी नहीं छिपाता है। सत्यम । शौचम, बहुत साफ है । एक ब्राह्मण से दैनिक स्नान लेने की उम्मीद है, तीन बार और हरे कृष्ण का जाप । बह्याभयन्तर, स्वच्छ बाहर, स्वच्छ अंदर । ये गुण हैं । तो ... जब ये अवसर हैं, तो वेदांत सूत्र, वेदांत सलाह देता है"अब तुम ब्रह्म के बारे में पूछताछ करने की शुरूअात करो ।" अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । जब हम भौतिक पूर्णता की स्थिति में पहुँच जाते ंहै, तो अगला काम है पूछताछ करना । अगर हम पूछताछ नहीं करते, अगर हम ब्रह्म क्या है यह समझने की कोशिश नहीं करते हैं, तो हमे< निराश होना पडेगा । क्योंकि उत्कंठा है, उन्नति, ज्ञान की उन्नति । ज्ञान की उन्नति का सिद्धांत है, कि कोई भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए ज्ञान से, जो वह पहले से ही जानता है । उसे अधिक से अधिक पता होना चाहिए । तो तुम्हारे देश में, वर्तमान युग में अन्य देशों की तुलना में, तुमने बहुत अच्छी तरह से भौतिक रुफ में उन्नती की है । अब तुम इस ब्रह्म जिज्ञासा कि पूछताछ में लगो, परम निरपेक्ष के बारे में । यह निरपेक्ष क्या है? मैं क्या हूँ? मैं भी ब्रह्मण हूं । क्योंकि मैं ब्रह्म का अभिन्न अंग हूँ, इसलिए मैं भी ब्रह्मण हूं । जैसे अभिन्न अंग की तरह, सोने का एक छोटा कण भी सोना है । यह कुछ अन्य नहीं है । इसी तरह, हम भी ब्रह्मण या परम के कण हैं । जैसे धूप के अणुओं की तरह, वे भी सूरज की तरह ही रोशन हैं, लेकिन वे बहुत छोटे हैं । इसी तरह, हम जीव, हम भी भगवान की तरह हैं । लेकिन वे सूरज की तरह या सूरज देवता की तरह, महान हैं, लेकिन हम छोटे कण हैं, धूप के अणु । यह सर्वोच्च और हमारे बीच की तुलना है ।
वेदांत सलाह देते हैं, "अब तुम ब्रह्म के लिए पृच्छा करो ।" अथातो ब्रह्म-जिज्ञासा | यह हर किसी के लिए लागू है, सभ्य पुरुष । मैं अमेरिकियों की बात नहीं करता, एशिया में, यूरोप में । कहीं भी । आर्यन का मतलब है जो उन्नत हैं । अनार्य का मतलब है जो उन्नत नहीं है... यह संस्कृत अर्थ है, आर्य । और शूद्र ... आर्य चार जातियों में विभाजित हैं । सबसे बुद्धिमान वर्ग ब्राह्मण कहा जाता है, और... ब्राह्मण से कम मतलब जो प्रशासक हैं, राजनेता, वे क्षत्रिय हैं । और वाणिज्यिक वर्ग उनके बाद, व्यापारि, उद्योगपति, प्रशासनिक वर्ग की तुलना में कम हैं । और उस से भी कम,शूद्र । शूद्र का मतलब है कार्यकर्ता, मजदूर । तो यह प्रणाली नई बात नहीं है । यह हर जगह है । जहाँ भी मानव समाज है पुरुषों के ये चार वर्ग हैं । कभी कभी मुझसे पूछा जाता है कि भारत में जाति व्यवस्था क्यों है । यह जाति व्यवस्था है । यह स्वभाविक है । भगवद गीता का कहना है, चातुर वर्णयम मया सृष्टम गुण कर्म विभागश: ([[HI/BG 4.13|भ.गी. ४.१३]]) "पुरुषों की चार श्रेणियां हैं । यह मेरा कानून है ।"  
 
कैसे वे चार वर्ग हैं? गुण-कर्म-विभागश: गुण का मतलब है गुणवत्ता, और कर्म का मतलब काम है । अगर तुम्हारी बहुत अच्छी गुणवत्ता है, बुद्धि, ब्राह्मणवादी गुण ... ब्राह्मणवादी गुण का मतलब है अगर तुम सच बोलते हो, आप बहुत साफ हो और तुम स्व-नियंत्रित हो, तुम्हारा मन संतुलन में है, तुम सहिष्णु हो, और इतने सारे गुण ... तुम भगवान में विशवास करते हो, तुम व्यावहारिक रूप से शास्त्र जानते हो । ये गुण उच्च वर्ग के लिए हैं, ब्राह्मण । ब्राह्मण की पहली योग्यता है कि वह सच्चा है । वह अपने दुश्मन को भी सब कुछ खुलासा करेगा । वह कभी भी, कहने का मतलब, कुछ भी नहीं छिपाता है। सत्यम । शौचम, बहुत साफ है । एक ब्राह्मण से दैनिक स्नान लेने की उम्मीद है, तीन बार, और हरे कृष्ण का जाप । बह्याभयन्तर, स्वच्छ बाहर, स्वच्छ अंदर । ये गुण हैं । तो ... जब ये अवसर हैं, तो वेदांत सूत्र, वेदांत सलाह देता है "अब तुम ब्रह्म के बारे में पूछताछ करने की शुरूअात करो ।" अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ।  
 
जब हम भौतिक पूर्णता की स्थिति में पहुँच जाते है, तो अगला काम है पूछताछ करना । अगर हम पूछताछ नहीं करते, अगर हम ब्रह्म क्या है यह समझने की कोशिश नहीं करते हैं, तो हमे निराश होना पडेगा । क्योंकि उत्कंठा है, उन्नति, ज्ञान की उन्नति । ज्ञान की उन्नति का सिद्धांत है, कि कोई भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए ज्ञान से, जो वह पहले से ही जानता है । उसे अधिक से अधिक पता होना चाहिए । तो तुम्हारे देश में, वर्तमान युग में अन्य देशों की तुलना में, तुमने बहुत अच्छी तरह से भौतिक रूप में उन्नती की है । अब तुम इस ब्रह्म जिज्ञासा कि पूछताछ में लगो, परम निरपेक्ष के बारे में पृच्छा । यह निरपेक्ष क्या है? मैं क्या हूँ? मैं भी ब्रह्म हूं । क्योंकि मैं ब्रह्म का अभिन्न अंग हूँ, इसलिए मैं भी ब्रह्म हूं । जैसे अभिन्न अंग की तरह, सोने का एक छोटा कण भी सोना है । यह कुछ अन्य नहीं है । इसी तरह, हम भी ब्रह्म या परम भगवान के कण हैं । जैसे धूप के अणुओं की तरह, वे भी सूरज की तरह ही रोशन हैं, लेकिन वे बहुत छोटे हैं । इसी तरह, हम जीव, हम भी भगवान की तरह हैं । लेकिन वे (भगवान) सूर्य की तरह या सूर्यदेव की तरह, महान हैं, लेकिन हम छोटे कण हैं, धूप के अणु । यह सर्वोच्च और हमारे बीच की तुलना है ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 7, 1968

वेदांत सलाह देते हैं, "अब तुम ब्रह्म के लिए पृच्छा करो ।" अथातो ब्रह्म-जिज्ञासा | यह हर किसी के लिए लागू है, सभ्य पुरुष । मैं अमेरिकियों की बात नहीं करता, एशिया में, यूरोप में । कहीं भी । आर्यन का मतलब है जो उन्नत हैं । अनार्य का मतलब है जो उन्नत नहीं है... यह संस्कृत अर्थ है, आर्य । और शूद्र ... आर्य चार जातियों में विभाजित हैं । सबसे बुद्धिमान वर्ग ब्राह्मण कहा जाता है, और... ब्राह्मण से कम मतलब जो प्रशासक हैं, राजनेता, वे क्षत्रिय हैं । और वाणिज्यिक वर्ग उनके बाद, व्यापारि, उद्योगपति, प्रशासनिक वर्ग की तुलना में कम हैं । और उस से भी कम,शूद्र । शूद्र का मतलब है कार्यकर्ता, मजदूर । तो यह प्रणाली नई बात नहीं है । यह हर जगह है । जहाँ भी मानव समाज है पुरुषों के ये चार वर्ग हैं । कभी कभी मुझसे पूछा जाता है कि भारत में जाति व्यवस्था क्यों है । यह जाति व्यवस्था है । यह स्वभाविक है । भगवद गीता का कहना है, चातुर वर्णयम मया सृष्टम गुण कर्म विभागश: (भ.गी. ४.१३) "पुरुषों की चार श्रेणियां हैं । यह मेरा कानून है ।"

कैसे वे चार वर्ग हैं? गुण-कर्म-विभागश: गुण का मतलब है गुणवत्ता, और कर्म का मतलब काम है । अगर तुम्हारी बहुत अच्छी गुणवत्ता है, बुद्धि, ब्राह्मणवादी गुण ... ब्राह्मणवादी गुण का मतलब है अगर तुम सच बोलते हो, आप बहुत साफ हो और तुम स्व-नियंत्रित हो, तुम्हारा मन संतुलन में है, तुम सहिष्णु हो, और इतने सारे गुण ... तुम भगवान में विशवास करते हो, तुम व्यावहारिक रूप से शास्त्र जानते हो । ये गुण उच्च वर्ग के लिए हैं, ब्राह्मण । ब्राह्मण की पहली योग्यता है कि वह सच्चा है । वह अपने दुश्मन को भी सब कुछ खुलासा करेगा । वह कभी भी, कहने का मतलब, कुछ भी नहीं छिपाता है। सत्यम । शौचम, बहुत साफ है । एक ब्राह्मण से दैनिक स्नान लेने की उम्मीद है, तीन बार, और हरे कृष्ण का जाप । बह्याभयन्तर, स्वच्छ बाहर, स्वच्छ अंदर । ये गुण हैं । तो ... जब ये अवसर हैं, तो वेदांत सूत्र, वेदांत सलाह देता है "अब तुम ब्रह्म के बारे में पूछताछ करने की शुरूअात करो ।" अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ।

जब हम भौतिक पूर्णता की स्थिति में पहुँच जाते है, तो अगला काम है पूछताछ करना । अगर हम पूछताछ नहीं करते, अगर हम ब्रह्म क्या है यह समझने की कोशिश नहीं करते हैं, तो हमे निराश होना पडेगा । क्योंकि उत्कंठा है, उन्नति, ज्ञान की उन्नति । ज्ञान की उन्नति का सिद्धांत है, कि कोई भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए ज्ञान से, जो वह पहले से ही जानता है । उसे अधिक से अधिक पता होना चाहिए । तो तुम्हारे देश में, वर्तमान युग में अन्य देशों की तुलना में, तुमने बहुत अच्छी तरह से भौतिक रूप में उन्नती की है । अब तुम इस ब्रह्म जिज्ञासा कि पूछताछ में लगो, परम निरपेक्ष के बारे में पृच्छा । यह निरपेक्ष क्या है? मैं क्या हूँ? मैं भी ब्रह्म हूं । क्योंकि मैं ब्रह्म का अभिन्न अंग हूँ, इसलिए मैं भी ब्रह्म हूं । जैसे अभिन्न अंग की तरह, सोने का एक छोटा कण भी सोना है । यह कुछ अन्य नहीं है । इसी तरह, हम भी ब्रह्म या परम भगवान के कण हैं । जैसे धूप के अणुओं की तरह, वे भी सूरज की तरह ही रोशन हैं, लेकिन वे बहुत छोटे हैं । इसी तरह, हम जीव, हम भी भगवान की तरह हैं । लेकिन वे (भगवान) सूर्य की तरह या सूर्यदेव की तरह, महान हैं, लेकिन हम छोटे कण हैं, धूप के अणु । यह सर्वोच्च और हमारे बीच की तुलना है ।