HI/Prabhupada 0476 - तो निर्भरता बुरा नहीं है अगर उचित जगह पर निर्भरता हो तो

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Lecture -- Seattle, October 7, 1968

मैं जानता नहीं हूँ कि मेरी स्थिति आत्मसमर्पण करने की है, और वह आत्मसमर्पण का सिद्धांत मेरी जिंदगी है, मेरा सुखी जीवन । जैसे एक छोटे बच्चे की तरह, अगर वह अपने माता - पिता की इच्छाओं के सामने आत्मसमर्पण करता है, उसका जीवन बहुत भाता है, बहुत सुखी । एक युवा लड़की, अगर वह माता - पिता की इच्छाओं के सामने आत्मसमर्पण करती है, और ... यह प्रणाली है, वैदिक प्रणाली । एक औरत, स्वभाव से, निर्भर है । कृअगर त्रिम रूप से, महिला स्वतंत्रता चाहती है, तो उसका जीवन दुखी है, उसका जीवन दुखी है । इसलिए वैदिक प्रणाली है ... मैं निर्माण कर रहा हूँ, मैं वैदिक सिद्धांत पर अधिकृत तरीके से बोल रहा हूँ । मनु संहिता, वेद के कानून, मनु, मानव जाति का मालिक, मनु, ... मनु मानव जाति के पिता हैं । तो उसके कानून की किताब है । वो मनु संहिता कानून की किताब अभी भी भारत में अपनाई जाती है जहाँ तक हिंदुओं का सवाल है । तो उस किताब मनु संहिता में यह कहा गया है, न स्त्रीयम् स्वतंत्रम अर्हति वे कानून देते हैं कि महिला को स्वतंत्रता नहीं दी जानी चाहिए । फिर? क्या जीवन होना चाहिए? जीवन एसा होना चाहिए अौरत का कि जब तक उसकी शादी नहीं होती, उसका मार्गदर्शन होना चाहिए, अपने माता - पिता पर निर्भर । और जैसे ही उसकी शादी हो जाती है, उसे अपने पति पर निर्भर रहना चाहिए । और जब पति बाहर चला जाता है तो ... क्योंकि हिंदू प्रणाली के अनुसार पति पूरी जिन्दगी घर पर नहीं रहता, मृत्यु तक । नहीं । जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, वह अपने पत्नी और बच्चों को त्याग देता है और एक सन्यासी बन जाता है, जैसे मैं बन गया हूँ । मेरे बच्चे हैं, मेरे अपने पोते हैं, अभी भी मेरी पत्नी है,... लेकिन मैंने सभी संबन्ध तोड दिए हैं । तो कैसे मेरी पत्नी अपने को संभाल रही है? ओह, उसके सयाना बच्चे हैं । तो कोई चिंता नहीं है । तो निर्भरता बुरा नहीं है अगर उचित जगह पर निर्भरता हो तो । कोई पिता अपने अविवाहित लड़की के आराम को नज़र अंदाज़ नहीं करता है, अपने अविवाहित लड़कियों और लड़कों की । हिंदू प्रणाली के अनुसार, एक पिता, माता की जिम्मेदारी नहीं रहती उसके बच्चों की शादी के बाद, बेटी या बेटा । इतना दायित्व । फिर वे स्वतंत्र हैं । तो निर्भरता, मैं निर्भरता पर बात कर रहा हूँ । तो निर्भरता बुरी नहीं है, आत्मसमर्पण बुरा नहीं है । मैंने व्यावहारिक रूप से देखा है कि वह औरत पति को समर्पण करती है..... अभी भी भारत में कई महिलाएं हैं, वे बहुत खुश हैं और उनका जीवन इतना शानदार है । तो हमें सीखना है कि कैसे काम किए जाना चाहिए । स्वतंत्रता, कृत्रिम स्वतंत्रता हमेशा कभी भी अच्छी नहीं । व्यावहारिक रूप से, हमारी कोई स्वतंत्रता नहीं है । मैं स्वतंत्रता के बारे में सोच सकता हूँ, लेकिन व्यावहारिक रूप से मेरी कोई स्वतंत्रता नहीं है । मैं अपने इनद्रियों का दास हूँ । कामादीनाम कटि न कतिधा पालिता दुर्निदेश हम सभी इंद्रियों की सेवा कर रहे हैं । तो कहां है मेरी स्वतंत्रता ? मैं अपने समुदाय से, अपने देश से, अपने राज्य से, अपने पिता से स्वतंत्रता की घोषणा कर सकता हूँ, लेकिन मैं अपने इन्द्रियों का दास हूं । तो कहां है मेरी स्वतंत्रता ? तो हमें अपने संवैधानिक स्थिति का पता होना चाहिए, कि सभी परिस्थितियों में हम निर्भर हैं । इसलिए सबसे अच्छा तरीका मेरे जीवन की पूर्णता का है भगवान कृष्ण पर निर्भर होना । यही सभी समस्याओं का समाधान है । और कृष्ण भावनामृत आंदोलन यही है । अपनी संवैधानिक स्थिति को समझने की कोशिश करो और कृष्ण को, भगवान के समक्ष आत्मसमर्पित रहो । तो फिर तुम खुश हो जाअोगे । बहुत ही साधारण बात है । जिस पल तुम भगवान को आत्मसमर्पण करते हो, तुरंत तुम खुश हो जाते हो । माम एव ये प्रपद्यन्ते मायाम एताम तरन्ति ते ।