HI/Prabhupada 0481 - कृष्ण सर्व-आकर्षक हैं , कृष्ण सुंदर हैं: Difference between revisions

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तो यह तर्क, कि लाल कणों नहीं रहे, इसलिए जीवन नहीं रहा - नहीं । इतने सारे तर्क और वितर्क हैं । वास्तव में, यह तथ्य है, क्योंकि हम शास्त्र के, साधुअों के अौर आध्यात्मिक गुरु के बल पर बोल रहे हैं । यही समझने का रास्ता है । तुम अपने नन्हे मस्तिष्क के साथ निर्माण नहीं कर सकते हो, अपूर्ण इन्द्रियॉ । इंसान, वे अपूर्ण हैं, हमेशा । जैसे उदाहरण के लिए, एक बच्चा सूरज को देख रहा है और एक वैज्ञानिक सूरज को देख रहा है । प्रकृति से, बच्चा, सूर्य के उसका ज्ञान अपूर्ण है । वही बच्चा, जब वह एक वैज्ञानिक से निर्देश लेता है, तब वह समझ सकता है कि सूरज कितना महान है । इसलिए प्रत्यक्ष धारणा ज्ञान की हमारी इंद्रियों द्वारा हमेशा अपूर्ण है । तुमको अधिकृत व्यक्ति के पास जाना होगा- जीवन के हर क्षेत्र में । इसी तरह से अगर तुम समझना चाहता हो कि भगवान क्या हैं, तो तुम्हे इस भगवद गीता का शरण लेना होगा । कोई अौर विकल्प नहीं है । तुम कल्पना नहीं कर सकते हो कि, "भगवान इस तरह हो सकता है, भगवान ऐसा हो सकता है" "कोई भगवान नहीं है," "भगवान मर चुका है " "भगवान मृत नहीं है" । यह सिर्फ अटकलें हैं । यहां श्री कृष्ण कहते हैं,
तो यह तर्क, कि लाल कण नहीं रहे, इसलिए जीवन नहीं रहा - नहीं । इतने सारे तर्क और वितर्क हैं । वास्तव में, यह तथ्य है, क्योंकि हम शास्त्र के, साधुअों के अौर आध्यात्मिक गुरु के बल पर बोल रहे हैं । यही समझने का रास्ता है । तुम अपने नन्हे मस्तिष्क, अपूर्ण इन्द्रियों, के साथ निर्माण नहीं कर सकते हो । इंसान, वे अपूर्ण हैं, हमेशा । जैसे उदाहरण के लिए, एक बच्चा सूर्य को देख रहा है, और एक वैज्ञानिक सूर्य को देख रहा है । प्रकृति से, बच्चा, सूर्य का उसका ज्ञान अपूर्ण है । वही बच्चा, जब वह एक वैज्ञानिक से निर्देश लेता है, तब वह समझ सकता है कि सूर्य कितना महान है । इसलिए प्रत्यक्ष धारणा ज्ञान की हमारी इंद्रियों द्वारा हमेशा अपूर्ण है । तुमको अधिकृत व्यक्ति के पास जाना होगा- जीवन के हर क्षेत्र में । इसी तरह से अगर तुम समझना चाहते हो कि भगवान क्या हैं, तो तुम्हे इस भगवद गीता की शरण लेनी होगी । कोई अौर विकल्प नहीं है । तुम कल्पना नहीं कर सकते हो कि, "भगवान इस तरह हो सकते है, भगवान ऐसे हो सकते है," "कोई भगवान नहीं है," "भगवान मर चुके है," "भगवान मृत नहीं है" । यह सिर्फ अटकलें हैं । यहां श्री कृष्ण कहते हैं,  


:मै अासक्त-मना: पार्थ योगम
:मयी अासक्त-मना: पार्थ योगम  
:युन्जन मद अाश्रय:
:युन्जन मद अाश्रय:  
:असम्शयम समग्रम माम
:असंशयम समग्रम माम  
:यथा ज्ञास्यसि तच श्रुनु
:यथा ज्ञास्यसि तच श्रुणु
:([[Vanisource:BG 7.1|भ गी ७।१]])
::([[HI/BG 7.1|भ.गी. ७.१]])  


आप तुम यह विश्वास करते हो कि कृष्ण, देवत्व के परम व्यक्तित्व, व्यक्तिगत रूप से बोल रहे हैं, जैसे अर्जुन का मानना ​​है, तो तुम समझ सकते हो कि भगवान क्या हैं । अन्यथा यह संभव नहीं है । असम्शयम
अगर तुम यह विश्वास करते हो कि कृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, व्यक्तिगत रूप से बोल रहे हैं, जैसे अर्जुन ने माना, तो तुम समझ सकते हो कि भगवान क्या हैं । अन्यथा यह संभव नहीं है । असंशयम ।  


तो प्रक्रिया है, पहली प्रक्रिया है, मै अासक्त-मना: तुम्हे लगातार कृष्ण में अपना मन संलग्न करना है । यही योग प्रक्रिया है, जो हैं, जो हम कृष्ण भावनामृत के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं । कृष्ण भावनामृत... जैसे अगर तुम लगातार अपने को जोड के रखो, बिजलीघर के साथ, विद्युत ऊर्जा की लगातार आपूर्ति होती है । इसी तरह, अगर तुम लगातार कृष्ण में अपना मन लगाअो वह भी बहुत मुश्किल नहीं है । कृष्ण सर्व-आकर्षक हैं । कृष्ण सुंदर हैं । कृष्ण की इतनी सारी गतिविधियों हैं । पूरा वैदिक साहित्य कृष्ण की गतिविधियों से भरा है । यह भगवद गीता कृष्ण की गतिविधियों से भरा है । बस यह समझना कि भगवान महान हैं, यह तटस्थ स्थिति है समझ की । लेकिन तुम्हे अधिक से अधिक तरक्की करनी होगी, कि वे कितने महान हैं । वे कितने महान हैं, यह समझना संभव नहीं है, क्योंकि हमारी इंद्रियों हमेशा अपूर्ण हैं । लेकिन जहाँ तक संभव हो तुम भगवान की गतिविधियों के बारे में सुन सकते हो भगवान की स्थिति, और इस पर विचार कर सकते हो, और तुम अपना निर्णय ले सकते हो, तुम अपना तर्क रख सकते हो । तो फिर तुम किसी भी शक के बिना समझ जाअोगे कि भगवान क्यो हैं । पहली शुरुआत है मै अासक्त मना: पिछले अध्याय में कृष्ण नें विस्तार से बताया है, को जो लगातार कृष्ण की सोच में लीन है वह प्रथम श्रेणी का योगी, है प्रथम श्रेणी का योगी । तुम्हारे देश में योग प्रणाली बहुत लोकप्रिय है, लेकिन तुम नहीं जानते हो कि कौन प्रथम श्रेणी का योगी है । प्रथम श्रेणी के योगी को भगवद गीता में समझाया गया (है): योगीनाम अपि सर्वेशाम मद गतेनान्तरात्मना ([[Vanisource:BG 6.47|भ गी ६।४७]]) हजारों योगियों में से, जो योगी या भक्त- योगी हमेशा अपने दिल के भीतर, अपने भीतर देख रहा है कृष्ण के रूप को, वह प्रथम श्रेणी का योगी है, वह प्रथम श्रेणी का है । तो तुम्हे यह प्रथम श्रेणी की योग प्रणाली को जारी रखना है, और यही यहॉ विस्तार से बताया है कि, मै अासक्त मना: संलग्न होना ।
तो प्रक्रिया है, पहली प्रक्रिया है, मयी अासक्त-मना: | तुम्हे लगातार कृष्ण में अपना मन संलग्न करना है । यही योग प्रक्रिया है, जो हैं, जो हम कृष्ण भावनामृत के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं । कृष्ण भावनामृत... जैसे अगर तुम लगातार अपने आप को जोड के रखो, बिजलीघर के साथ, विद्युत शक्ति की लगातार आपूर्ति होती है । इसी तरह, अगर तुम लगातार कृष्ण में अपना मन लगाअो, वह भी बहुत मुश्किल नहीं है । कृष्ण सर्व-आकर्षक हैं । कृष्ण सुंदर हैं । कृष्ण के इतने सारे कार्य हैं । पूरा वैदिक साहित्य कृष्ण के कार्यो से भरा है । यह भगवद गीता कृष्ण के कार्यो से भरा है । बस यह समझना कि भगवान महान हैं, यह तटस्थ स्थिति है समझ की । लेकिन तुम्हे अधिक से अधिक तरक्की करनी होगी, कि वे कितने महान हैं ।  
 
वे कितने महान हैं, यह समझना संभव नहीं है, क्योंकि हमारी इन्द्रिया हमेशा अपूर्ण हैं । लेकिन जहाँ तक संभव हो तुम भगवान के कार्यो के बारे में सुन सकते हो, भगवान की स्थिति, और इस पर विचार कर सकते हो, और तुम अपना निर्णय ले सकते हो, तुम अपना तर्क रख सकते हो । तो फिर तुम किसी भी शक के बिना समझ जाअोगे कि भगवान क्यो हैं । पहली शुरुआत है मयी अासक्त मना: | पिछले अध्याय में कृष्ण नें विस्तार से बताया है, को जो लगातार कृष्ण की सोच में लीन है, वह प्रथम श्रेणी का योगी है, प्रथम श्रेणी का योगी । तुम्हारे देश में योग प्रणाली बहुत लोकप्रिय है, लेकिन तुम नहीं जानते हो कि कौन प्रथम श्रेणी का योगी है । प्रथम श्रेणी के योगी को भगवद गीता में समझाया गया है: योगीनाम अपि सर्वेशाम मद गतेनान्तरात्मना ([[HI/BG 6.47|भ.गी. ६.४७]]), हजारों योगियों में से, जो योगी या भक्त-योगी हमेशा अपने हृदय के भीतर, अपने भीतर देख रहा है कृष्ण के रूप को, वह प्रथम श्रेणी का योगी है, वह प्रथम श्रेणी का है । तो तुम्हे यह प्रथम श्रेणी की योग प्रणाली को जारी रखना है, और यही यहॉ विस्तार से बताया है, मयी अासक्त मना:, आसक्त होना ।  
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Latest revision as of 18:44, 17 September 2020



Lecture -- Seattle, October 18, 1968

तो यह तर्क, कि लाल कण नहीं रहे, इसलिए जीवन नहीं रहा - नहीं । इतने सारे तर्क और वितर्क हैं । वास्तव में, यह तथ्य है, क्योंकि हम शास्त्र के, साधुअों के अौर आध्यात्मिक गुरु के बल पर बोल रहे हैं । यही समझने का रास्ता है । तुम अपने नन्हे मस्तिष्क, अपूर्ण इन्द्रियों, के साथ निर्माण नहीं कर सकते हो । इंसान, वे अपूर्ण हैं, हमेशा । जैसे उदाहरण के लिए, एक बच्चा सूर्य को देख रहा है, और एक वैज्ञानिक सूर्य को देख रहा है । प्रकृति से, बच्चा, सूर्य का उसका ज्ञान अपूर्ण है । वही बच्चा, जब वह एक वैज्ञानिक से निर्देश लेता है, तब वह समझ सकता है कि सूर्य कितना महान है । इसलिए प्रत्यक्ष धारणा ज्ञान की हमारी इंद्रियों द्वारा हमेशा अपूर्ण है । तुमको अधिकृत व्यक्ति के पास जाना होगा- जीवन के हर क्षेत्र में । इसी तरह से अगर तुम समझना चाहते हो कि भगवान क्या हैं, तो तुम्हे इस भगवद गीता की शरण लेनी होगी । कोई अौर विकल्प नहीं है । तुम कल्पना नहीं कर सकते हो कि, "भगवान इस तरह हो सकते है, भगवान ऐसे हो सकते है," "कोई भगवान नहीं है," "भगवान मर चुके है," "भगवान मृत नहीं है" । यह सिर्फ अटकलें हैं । यहां श्री कृष्ण कहते हैं,

मयी अासक्त-मना: पार्थ योगम
युन्जन मद अाश्रय:
असंशयम समग्रम माम
यथा ज्ञास्यसि तच श्रुणु
(भ.गी. ७.१)

अगर तुम यह विश्वास करते हो कि कृष्ण, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, व्यक्तिगत रूप से बोल रहे हैं, जैसे अर्जुन ने माना, तो तुम समझ सकते हो कि भगवान क्या हैं । अन्यथा यह संभव नहीं है । असंशयम ।

तो प्रक्रिया है, पहली प्रक्रिया है, मयी अासक्त-मना: | तुम्हे लगातार कृष्ण में अपना मन संलग्न करना है । यही योग प्रक्रिया है, जो हैं, जो हम कृष्ण भावनामृत के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं । कृष्ण भावनामृत... जैसे अगर तुम लगातार अपने आप को जोड के रखो, बिजलीघर के साथ, विद्युत शक्ति की लगातार आपूर्ति होती है । इसी तरह, अगर तुम लगातार कृष्ण में अपना मन लगाअो, वह भी बहुत मुश्किल नहीं है । कृष्ण सर्व-आकर्षक हैं । कृष्ण सुंदर हैं । कृष्ण के इतने सारे कार्य हैं । पूरा वैदिक साहित्य कृष्ण के कार्यो से भरा है । यह भगवद गीता कृष्ण के कार्यो से भरा है । बस यह समझना कि भगवान महान हैं, यह तटस्थ स्थिति है समझ की । लेकिन तुम्हे अधिक से अधिक तरक्की करनी होगी, कि वे कितने महान हैं ।

वे कितने महान हैं, यह समझना संभव नहीं है, क्योंकि हमारी इन्द्रिया हमेशा अपूर्ण हैं । लेकिन जहाँ तक संभव हो तुम भगवान के कार्यो के बारे में सुन सकते हो, भगवान की स्थिति, और इस पर विचार कर सकते हो, और तुम अपना निर्णय ले सकते हो, तुम अपना तर्क रख सकते हो । तो फिर तुम किसी भी शक के बिना समझ जाअोगे कि भगवान क्यो हैं । पहली शुरुआत है मयी अासक्त मना: | पिछले अध्याय में कृष्ण नें विस्तार से बताया है, को जो लगातार कृष्ण की सोच में लीन है, वह प्रथम श्रेणी का योगी है, प्रथम श्रेणी का योगी । तुम्हारे देश में योग प्रणाली बहुत लोकप्रिय है, लेकिन तुम नहीं जानते हो कि कौन प्रथम श्रेणी का योगी है । प्रथम श्रेणी के योगी को भगवद गीता में समझाया गया है: योगीनाम अपि सर्वेशाम मद गतेनान्तरात्मना (भ.गी. ६.४७), हजारों योगियों में से, जो योगी या भक्त-योगी हमेशा अपने हृदय के भीतर, अपने भीतर देख रहा है कृष्ण के रूप को, वह प्रथम श्रेणी का योगी है, वह प्रथम श्रेणी का है । तो तुम्हे यह प्रथम श्रेणी की योग प्रणाली को जारी रखना है, और यही यहॉ विस्तार से बताया है, मयी अासक्त मना:, आसक्त होना ।