HI/Prabhupada 0484 - भाव की परिपक्व हालत प्रेम है: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0484 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1968 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in USA, Seattle]]
[[Category:HI-Quotes - in USA, Seattle]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0483 - कैसे तुम कृष्ण के बारे में सोच सकते हो जब तक तुम कृष्ण के लिए प्रेम का विकास नहीं करते|0483|HI/Prabhupada 0485 - तो कृष्ण द्वारा बनाई गई कोई भी लीला, भक्तों द्वारा समारोहपूर्ण रूप में मनाई जाती है|0485}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|RkaV1kaHLCs|भाव की परिपक्व हालत प्रेम है<br />- Prabhupāda 0484}}
{{youtube_right|ZUV2VcFfhgQ|भाव की परिपक्व हालत प्रेम है<br />- Prabhupāda 0484}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/681018LE.SEA_clip7.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/681018LE.SEA_clip7.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
प्रभुपाद: कोई प्रश्न?
प्रभुपाद: कोई प्रश्न?  


जय-गोपाल: भाव और प्रेम के बीच क्या अंतर है?
जय-गोपाल: भाव और प्रेम के बीच क्या अंतर है?  


प्रभुपाद: भाव की परिपक्व हालत प्रेम है । जैसे एक पके हुए आम और हरे आम की तरह । हरा अाम पके आम का कारण है । लेकिन परिपक्व आम का स्वाद कच्चे आम की तुलना में बेहतर है । इसी तरह, देवत्व का प्रेम प्राप्त करने से पहले, विभिन्न स्थितियाँ है । जैसे एक ही आम, विभिन्न स्थितियों से होकर गुजरता है, फिर एक दिन यह अच्छे पीले रंग का हो जाता है, पूरी तरह से पका, और स्वाद बहुत अच्छा होता है । वही आम । आम परिवर्तित नहीं होता है, लेकिन यह परिपक्व स्थिति में अा जाता है । तो यह ... इस उदाहरण कि तरह, आम शुरुआत में एक फूल होता है, फिर धीरे - धीरे एक छोटा सा फल । फिर धीरे - धीरे यह बढ़ता है । फिर यह बहुत सख्त हो जाता है, हरा, और फिर, धीरे - धीरे, यह, थोडा थोडा पीले रंग का हो जाता है, और यह पूरी तरह से परिपक्व हो जाता है । यह हर किसी की प्रक्रिया है । भौतिक दुनिया में भी, छह प्रक्रियाएं हैं, और अाखरी प्रक्रिया है ख्तम हो जाना । यह आम का उदाहरण या कोई भी अन्य भौतिक उदाहरण, हम इसे स्वीकार कर सकते हैं जहॉ तक विकास का सवाल है, लेकिन भौतिक उदाहरण सही नहीं है । जैसे आम, जब यह परिपक्व है, कोई खाता है, यह ठीक है । अन्यथा यह सड़ जाएगा, अतिपक्व हो जाएगा, यह नीचे गिर जाएगा, और खत्म हो जाएगा । यह भौतिक है । लेकिन आध्यात्मिक ऐसा नहीं है । यह समाप्त नहीं हुआ है । अगर तुम एक बार प्रेम की परिपक्व अवस्था के मंच पर आते हो, फिर वह पूर्णता की अवस्था जारी रहती है, और तुम्हारा जीवन सफल हो जाता है । प्रेम पम-अर्थो महान । इस भौतिक संसार में पूर्णता के कई अलग अलग प्रकार होते हैं । कोई यह सोच रहा है,"यह जीवन की पूर्णता है ।" कर्मी, वे सोच रहे हैं, " अगर मैं बहुत अच्छी तरह से अपनी इन्द्रियों का आनंद ले सकता हूँ, यह जीवन की पूर्णता है ।" यह उनका नज़रिए है । अौर जब वे निराश होते हैं, वे पता लगाते हैं, या पता करने की कोशिश करते हैं, कुछ बेहतर । अगर वह निर्देशित नहीं है तो, कुछ बेहतर का वही अर्थ है - सेक्स और नशा, बस । बस गैर जिम्मेदार हो जाता है । बस । क्योंकि कोई मार्गदर्शक नहीं है । वह पता लगा रहा है, बेहतर कुछ खोज रहा है, लेकिन क्योंकि कोई मार्गदर्शक नहीं है, वह वहीं उसी इन्द्रिय तृप्ति में अाता है या सेक्स और नशे में - भूलने के लिए । एक व्यापारी जब वह विफल होता है, इतनी अशांति । वह पीकर उसे भूल जाने का प्रयास करता है । लेकिन यह कृत्रिम तरीका है । यह वास्तव में उपाय नहीं है । तुम कब तक भूल सकते हो? नींद - कब तक तुम सो सकते हो? फिर से जब जगोगे, फिर तुम एक ही स्थिति में हो । यह तरीका नहीं है । लेकिन अगर तुम देवत्व के प्रेम के मंच पर आते हो, तो स्वाभाविक रूप से तुम यह सब बकवास भूल जाओगे । स्वाभाविक रूप से । परम दृष्टवा निवर्तते ([[Vanisource:BG 9.59|भ गी ९।५९]]) अगर तुम कुछ अौर अधिक स्वादिष्ट पाते हो, तो तुम यह बकवास बातें छोड़ देते हो जो स्वाद में बहुत अच्छी नहीं हैं
प्रभुपाद: भाव की परिपक्व अवस्था प्रेम है । जैसे एक पके हुए आम और हरे आम की तरह । हरा आम पके आम का कारण है । लेकिन परिपक्व आम का स्वाद कच्चे आम की तुलना में बेहतर है । इसी तरह, भगवान का प्रेम प्राप्त करने से पहले, विभिन्न स्थितियाँ है । जैसे एक ही आम, विभिन्न स्थितियों से होकर गुजरता है, फिर एक दिन यह अच्छे पीले रंग का हो जाता है, पूरी तरह से पक्का, और स्वाद बहुत अच्छा होता है । वही आम । आम परिवर्तित नहीं होता है, लेकिन यह परिपक्व स्थिति में जाता है । तो यह ... इस उदाहरण की तरह, आम शुरुआत में एक फूल होता है, फिर धीरे - धीरे एक छोटा सा फल । फिर धीरे - धीरे यह बढ़ता है । फिर यह बहुत सख्त हो जाता है, हरा, और फिर, धीरे - धीरे, यह, थोडा थोडा पीले रंग का हो जाता है, और यह पूरी तरह से परिपक्व हो जाता है । यह हर किसी की प्रक्रिया है । भौतिक दुनिया में भी, छह प्रक्रियाएं हैं, और आखरी प्रक्रिया है ख्तम हो जाना ।  


तो कृष्ण चेतना ऐसी बात है । यह तुम्हे उस स्तर पर ले जाती है जहॉ तुम यह सब बकवास भूल जाअोगे । वह असली जीवन है । ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा ([[Vanisource:BG 18.54|भ गी १८।५४]]) जैसे ही तुम उस अवस्था में आते हो, तो तुम्हारा लक्षण होगा कि तुम हंसमुख हो जाअोगे । तुम हर जगह महसूस करोगे । एक है ... ऐसे कई उदाहरण हैं । तो जब तुम कृष्ण के संबंध में इस भौतिक दुनिया को स्वीकार करते हो, तुम उस देवत्व के प्रेम का स्वाद चखोगे, इस भौतिक संसार में भी । दरअसल, भौतिक संसार का मतलब है पूरी तरह से भगवान की विस्मृति, या कृष्ण की । यही भौतिक दुनिया है । अन्यथा, अगर तुम कृष्ण की पूर्ण चेतना में हो, तुम इस भौतिक संसार में भी, केवल आध्यात्मिक दुनिया पाअोगे । चेतना - यह सब चेतना है । एक ही उदाहरण । जैसे राजा और कीडा एक ही सिंहासन पर बैठे हैं, लेकिन कीडा जानता है कि "मेरा काम है केवल कुछ रक्त प्राप्त करना ।" बस । राजा जानता है कि "मुझे शासन करना है । मैं इस देश का शासक हूँ ।" तो एक ही स्थान पर बैठे हैं, लेकिन चेतना अलग है । इसी तरह, अगर तुम अपनी चेतना को बदलते हो कृष्ण चेतना में तुम जहां भी हों, तुम वैकुणठ में हो । जहाँ भी हो, कोई बात नहीं ।
यह आम का उदाहरण या कोई भी अन्य भौतिक उदाहरण, हम इसे स्वीकार कर सकते हैं जहॉ तक विकास का सवाल है, लेकिन भौतिक उदाहरण सही नहीं है । जैसे आम, जब यह परिपक्व है, कोई खाता है, यह ठीक है । अन्यथा यह सड़ जाएगा, अतिपक्व हो जाएगा, यह नीचे गिर जाएगा, और खत्म हो जाएगा । यह भौतिक है । लेकिन आध्यात्मिक ऐसा नहीं है । यह समाप्त नहीं हुआ है । अगर तुम एक बार प्रेम की परिपक्व अवस्था के मंच पर आते हो, फिर वह पूर्णता की अवस्था जारी रहती है, और तुम्हारा जीवन सफल हो जाता है । प्रेम पुमार्थो महान । इस भौतिक संसार में पूर्णता के कई अलग अलग प्रकार होते हैं ।
 
कोई यह सोच रहा है,"यह जीवन की पूर्णता है ।" कर्मी, वे सोच रहे हैं, " अगर मैं बहुत अच्छी तरह से अपनी इन्द्रियों का आनंद ले सकता हूँ, यह जीवन की पूर्णता है ।" यह उनका नज़रिया है । और जब वे निराश होते हैं, वे पता लगाते हैं, या पता करने की कोशिश करते हैं, कुछ बेहतर । अगर वह निर्देशित नहीं है तो, कुछ बेहतर का वही अर्थ है - यौन जीवन और नशा, बस । बस गैर जिम्मेदार हो जाता है । बस । क्योंकि कोई मार्गदर्शक नहीं है । वह पता लगा रहा है, बेहतर कुछ खोज रहा है, लेकिन क्योंकि कोई मार्गदर्शक नहीं है, वह उसी इन्द्रिय तृप्ति में आता है या यौन जीवन और नशे में - भूलने के लिए । एक व्यापारी जब वह विफल होता है, इतनी अशांति । वह पीकर उसे भूल जाने का प्रयास करता है । लेकिन यह कृत्रिम तरीका है । यह वास्तव में उपाय नहीं है । तुम कब तक भूल सकते हो? नींद - कब तक तुम सो सकते हो? फिर से जब जगोगे, फिर तुम एक ही स्थिति में हो । यह तरीका नहीं है । लेकिन अगर तुम भगवान के प्रेम के मंच पर आते हो, तो स्वाभाविक रूप से तुम यह सब बकवास भूल जाओगे । स्वाभाविक रूप से । परम दृष्टवा निवर्तते ([[HI/BG 2.59|भ.गी. ९.५९]]) अगर तुम कुछ और अधिक स्वादिष्ट पाते हो, तो तुम यह बकवास बातें छोड़ देते हो जो स्वाद में बहुत अच्छी नहीं हैं ।
 
तो कृष्ण भावनामृत ऐसी बात है । यह तुम्हे उस स्तर पर ले जाती है जहॉ तुम यह सब बकवास भूल जाओगे । वह असली जीवन है । ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा ([[HI/BG 18.54|भ.गी. १८.५४]]) जैसे ही तुम उस अवस्था में आते हो, तो तुम्हारा लक्षण होगा कि तुम हंसमुख हो जाओगे । तुम हर जगह महसूस करोगे । एक है ... ऐसे कई उदाहरण हैं । तो जब तुम कृष्ण के संबंध में इस भौतिक दुनिया को स्वीकार करते हो, तुम उस भगवान के प्रेम का स्वाद चखोगे, इस भौतिक संसार में भी ।  
 
दरअसल, भौतिक संसार का मतलब है पूरी तरह से भगवान की, या कृष्ण की, विस्मृति । यही भौतिक दुनिया है । अन्यथा, अगर तुम कृष्ण की पूर्ण चेतना में हो, तुम इस भौतिक संसार में भी, केवल आध्यात्मिक दुनिया पाओगे । चेतना - यह सब चेतना है । एक ही उदाहरण । जैसे राजा और कीडा एक ही सिंहासन पर बैठे हैं, लेकिन कीडा जानता है कि "मेरा काम है केवल कुछ ख़ून चूसना ।" बस । राजा जानता है कि "मुझे शासन करना है । मैं इस देश का शासक हूँ ।" तो एक ही स्थान पर बैठे हैं, लेकिन चेतना अलग है । इसी तरह, अगर तुम अपनी चेतना को बदलते हो कृष्ण चेतना में तुम जहां भी हों, तुम वैकुंठ में हो । जहाँ भी हो, कोई बात नहीं ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture -- Seattle, October 18, 1968

प्रभुपाद: कोई प्रश्न?

जय-गोपाल: भाव और प्रेम के बीच क्या अंतर है?

प्रभुपाद: भाव की परिपक्व अवस्था प्रेम है । जैसे एक पके हुए आम और हरे आम की तरह । हरा आम पके आम का कारण है । लेकिन परिपक्व आम का स्वाद कच्चे आम की तुलना में बेहतर है । इसी तरह, भगवान का प्रेम प्राप्त करने से पहले, विभिन्न स्थितियाँ है । जैसे एक ही आम, विभिन्न स्थितियों से होकर गुजरता है, फिर एक दिन यह अच्छे पीले रंग का हो जाता है, पूरी तरह से पक्का, और स्वाद बहुत अच्छा होता है । वही आम । आम परिवर्तित नहीं होता है, लेकिन यह परिपक्व स्थिति में आ जाता है । तो यह ... इस उदाहरण की तरह, आम शुरुआत में एक फूल होता है, फिर धीरे - धीरे एक छोटा सा फल । फिर धीरे - धीरे यह बढ़ता है । फिर यह बहुत सख्त हो जाता है, हरा, और फिर, धीरे - धीरे, यह, थोडा थोडा पीले रंग का हो जाता है, और यह पूरी तरह से परिपक्व हो जाता है । यह हर किसी की प्रक्रिया है । भौतिक दुनिया में भी, छह प्रक्रियाएं हैं, और आखरी प्रक्रिया है ख्तम हो जाना ।

यह आम का उदाहरण या कोई भी अन्य भौतिक उदाहरण, हम इसे स्वीकार कर सकते हैं जहॉ तक विकास का सवाल है, लेकिन भौतिक उदाहरण सही नहीं है । जैसे आम, जब यह परिपक्व है, कोई खाता है, यह ठीक है । अन्यथा यह सड़ जाएगा, अतिपक्व हो जाएगा, यह नीचे गिर जाएगा, और खत्म हो जाएगा । यह भौतिक है । लेकिन आध्यात्मिक ऐसा नहीं है । यह समाप्त नहीं हुआ है । अगर तुम एक बार प्रेम की परिपक्व अवस्था के मंच पर आते हो, फिर वह पूर्णता की अवस्था जारी रहती है, और तुम्हारा जीवन सफल हो जाता है । प्रेम पुमार्थो महान । इस भौतिक संसार में पूर्णता के कई अलग अलग प्रकार होते हैं ।

कोई यह सोच रहा है,"यह जीवन की पूर्णता है ।" कर्मी, वे सोच रहे हैं, " अगर मैं बहुत अच्छी तरह से अपनी इन्द्रियों का आनंद ले सकता हूँ, यह जीवन की पूर्णता है ।" यह उनका नज़रिया है । और जब वे निराश होते हैं, वे पता लगाते हैं, या पता करने की कोशिश करते हैं, कुछ बेहतर । अगर वह निर्देशित नहीं है तो, कुछ बेहतर का वही अर्थ है - यौन जीवन और नशा, बस । बस गैर जिम्मेदार हो जाता है । बस । क्योंकि कोई मार्गदर्शक नहीं है । वह पता लगा रहा है, बेहतर कुछ खोज रहा है, लेकिन क्योंकि कोई मार्गदर्शक नहीं है, वह उसी इन्द्रिय तृप्ति में आता है या यौन जीवन और नशे में - भूलने के लिए । एक व्यापारी जब वह विफल होता है, इतनी अशांति । वह पीकर उसे भूल जाने का प्रयास करता है । लेकिन यह कृत्रिम तरीका है । यह वास्तव में उपाय नहीं है । तुम कब तक भूल सकते हो? नींद - कब तक तुम सो सकते हो? फिर से जब जगोगे, फिर तुम एक ही स्थिति में हो । यह तरीका नहीं है । लेकिन अगर तुम भगवान के प्रेम के मंच पर आते हो, तो स्वाभाविक रूप से तुम यह सब बकवास भूल जाओगे । स्वाभाविक रूप से । परम दृष्टवा निवर्तते (भ.गी. ९.५९) अगर तुम कुछ और अधिक स्वादिष्ट पाते हो, तो तुम यह बकवास बातें छोड़ देते हो जो स्वाद में बहुत अच्छी नहीं हैं ।

तो कृष्ण भावनामृत ऐसी बात है । यह तुम्हे उस स्तर पर ले जाती है जहॉ तुम यह सब बकवास भूल जाओगे । वह असली जीवन है । ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा (भ.गी. १८.५४) जैसे ही तुम उस अवस्था में आते हो, तो तुम्हारा लक्षण होगा कि तुम हंसमुख हो जाओगे । तुम हर जगह महसूस करोगे । एक है ... ऐसे कई उदाहरण हैं । तो जब तुम कृष्ण के संबंध में इस भौतिक दुनिया को स्वीकार करते हो, तुम उस भगवान के प्रेम का स्वाद चखोगे, इस भौतिक संसार में भी ।

दरअसल, भौतिक संसार का मतलब है पूरी तरह से भगवान की, या कृष्ण की, विस्मृति । यही भौतिक दुनिया है । अन्यथा, अगर तुम कृष्ण की पूर्ण चेतना में हो, तुम इस भौतिक संसार में भी, केवल आध्यात्मिक दुनिया पाओगे । चेतना - यह सब चेतना है । एक ही उदाहरण । जैसे राजा और कीडा एक ही सिंहासन पर बैठे हैं, लेकिन कीडा जानता है कि "मेरा काम है केवल कुछ ख़ून चूसना ।" बस । राजा जानता है कि "मुझे शासन करना है । मैं इस देश का शासक हूँ ।" तो एक ही स्थान पर बैठे हैं, लेकिन चेतना अलग है । इसी तरह, अगर तुम अपनी चेतना को बदलते हो कृष्ण चेतना में तुम जहां भी हों, तुम वैकुंठ में हो । जहाँ भी हो, कोई बात नहीं ।