HI/Prabhupada 0488 - लड़ाई कहां है, अगर तुम भगवान से प्यार करते हो, तो तुम हर किसी से प्यार करोगे । यही निशानी है
Lecture -- Seattle, October 18, 1968
प्रभुपाद: हाँ ।
उपेंद्र: प्रभुपाद, कभी कभी, मतभेद हो सकते हैं, ईसाई और मुस्लिम के बीच कि देवत्व का प्यार क्या है, मुस्लिम और बौद्ध, बौद्ध, हिंदू । वे झगड़ा कर सकते हैं कि देवत्व का प्यार क्या है ।
प्रभुपाद: झगड़ा, वे, जो देवत्व से प्यार नहीं करते हैं, वे झगड़ा करंगे । यही ... क्योंकि वे बिल्लि और कुत्ते हैं । तुम बिल्लियों और कुत्तों के बीच में कोई भी शांतिपूर्ण स्थिति की उम्मीद नहीं कर सकते हो । वे लड़ेंगे ही । तो जो कुछ भी वे हैं, जब तक कि वे लड़ रहे हैं, इसका मतलब है कि वे पूर्णता के मंच पर नहीं हैं । लड़ाई कहां है? अगर तुम भगवान से प्यार करते हो, तो तुम हर किसी से प्यार करोगे । यही निशानी है । सम: सर्वेशु भूतेशु मद-भक्तिम् लभते पराम (भ गी १८।५४) । समानता की अवस्था को प्राप्त करने के बाद, तो फिर तुम भगवान को प्यार करने के दायरे में प्रवेश कर सकते हो । इससे पहले, तुम्हे पारित करना होगा । जैसे कानून कॉलेज में प्रवेश करने से पहले तुम्हे ग्रेजुएट होना होगा, इसी तरह, भक्ति सेवा के दायरे में प्रवेश करने से पहले, तुम्हे सभी जीवों को एक ही स्तर पर देखना होगा । यही बोध है । तुम इस तरह का भेदभाव नहीं कर सकते हो। "यह निम्न है," "यह उत्तम है ।" नहीं । पंडिता: सम-दर्शिन: (भ गी ५।१८) जब एक व्यक्ति पूरी तरह से पंडित है, वह किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करता है, कि "वह इंसान है, वह गाय है, वह कुत्ता है ।" वह देखता है कि वह आत्मा है अलग पोशाकों से ढका हुअा । बस । यह उसकी दृष्टि है, सार्वभौमिक समानता दृष्टि । तुम यह नहीं कह सकते कि कुत्ते का कोई जीवन नहीं है, गाय का कोई जीवन नहीं है । तुम कैसे कह सकते हो कि कोई जीवन नहीं है ? यही तुम्हारे ज्ञान का अभाव है । जीवन का लक्षण क्या है? तुम पाअोगे कि जीवन का लक्षण इंसान में है, चींटी में भी । तुम कैसे कह सकते हो कि छोटे जीवों में , निम्न जानवरों में कोई जीवन नहीं है ? यह तुम्हारे ज्ञान का अभाव है । यहां तक कि पेड़, पौधे, उनमें जीवन है । तो सही ज्ञान जरूरी है । तो देवत्व के लिए प्यार सही ज्ञान के आधार पर, भगवान के लिए असली प्यार है । अन्यथा यह कट्टरता है । तो कट्टरपंथि, वे लड़ सकते हैं । यह देवत्व का लिए प्यार नहीं है । बेशक, इस मंच पर आना बहुत मुश्किल है, लेकिन हमें कोशिश करनी चाहिए । यही कृष्ण भावनामृत है । हम सभी छात्र हैं । हम कोशिश कर रहे हैं । लेकिन स्तर भी हैं । जैसे एक शैक्षिक संस्थान में दसवीं कक्षा है, आठवीं कक्षा, पांचवीं कक्षा, छठी कक्षा । और योग के साथ, यह एक सीढ़ी या एक लिफ्ट की तरह है । तो पूर्णता के विभिन्न चरण हैं । उच्चतम पूर्णता है वह जो हमेशा कृष्ण के बारे में सोचता है । यह ... योगीनाम अपि सर्वेशाम मद-गतेनान्तरात्मना श्रद्धावान भजते.... (भ गी ६।४७) उच्चतम पूर्णता कृष्ण हैं, हमेशा सोचना कृष्ण और राधारानी । यही उच्चतम पूर्णता का चरण है । उन्हे कोई अन्य काम नहीं है: बस कृष्ण के बारे में सोचना ।