HI/Prabhupada 0541 - अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हे मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा

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Sri Vyasa-puja -- Hyderabad, August 19, 1976

तुम भगवान के शब्दों पर व्याख्या नहीं कर सकते हो । यह संभव नहीं है । और धर्म का मतलब है धर्मम् तु साक्षाद भगवत-प्रनीतम (श्री भ ६।३।१९) तुम अपने घर में धार्मिक प्रणाली का निर्माण नहीं कर सकते हो । धूर्तता यही है, यह बेकार है । धर्म का मतलब है साक्षाद भगवत-प्रनीतम । जैसे कानून की तरह । कानून का मतलब है सरकार द्वारा दिया गया । तुम अपने घर पर कानून का निर्माण नहीं कर सकते हो । मान लीजिए सड़क पर, सामान्य ज्ञान है ये , सरकार का कानून है दाहिने या बाईं अौर रहना तुम नहीं कह सकते हो, " क्या हुअा अगर मैं दाहिने या बाईं ओर जाउँ?" नहीं, तुम यह नहीं कर सकते हो ।तो फिर तुम अपराधी हो जाअोगे । इसी प्रकार आजकल ... आजकल नहीं- अति प्राचीन काल से, इतने सारे धार्मिक व्यवस्थाऍ हैं । कई सारी । लेकिन असली धार्मिक व्यवस्था है जो भगवान कहते हैं, या कृष्ण कहते हैं । सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ गी १८।६६) यह धर्म है । सरल । तुम धर्म का निर्माण नहीं कर सकते ।

इसलिए श्रीमद-भागवतम में, शुरुआत है धर्म: प्रोज्हित-कैतवो अत्र परमो निर्मत्सरानाम (श्री भ १।१।२) तो ... कोई ईर्ष्या कर सकते है, कि इस व्यक्ति के परिष्कृत कुछ शिष्य हैं, और वे प्रार्थना और पूजा पेश कर रहे हैं । नहीं, यह प्रणाली है । ईर्ष्या मत करो ... अाचार्यम माम विजानीयान नावमन्यते कर्हिचित (श्री भ ११।१७।२७) आचार्य भगवान के प्रतिनिधि हैं । यस्य प्रसादाद भगवत-प्रसादो अगर तुम पूजा करते हो, आचार्य को सम्मान देते हो तब श्री कृष्ण, देवत्व के परम व्यक्तित्व प्रसन्न होते हैं । उन्हे खुश करने के लिए तुम्हे उनके प्रतिनिधि को खुश करना होगा । "अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो तुम्हे मेरे कुत्ते से प्यार करना होगा ।" और भगवद गीता मैं यह कहा गया है, अाचार्योपासनम । अाचार्योपासनम । हमें आचार्य की पूजा करनी पडेगी ।

यस्य देवे परा भक्तिर
यथा देवे तथा गुरौ
तस्यैते कथित हि अर्थ:
प्रकाशन्ते मतात्मान:
( श्वे उ ६।२३)

यह वैदिक मंत्र है । तद-विज्ञानार्थम स गुरुम एवाभिगच्छेत ( मु उ १।२।१२)

तस्माद गुरुम प्रपद्येत
जिज्ञासुळ श्रेय उत्तमम
शब्दे पारे च निशनातम
ब्रह्मनि उपशमाश्रयम
(श्री भ ११।३।२१)

तद विद्धी प्रनिपातेन परिप्रश्नेन सेवया (भ गी ४।३४) । तो यह निषेधाज्ञा हैं । गुरु को परम्परा प्रणाली के माध्यम से आना चाहिए । फिर वह सदाशयी है । नहीं तो वह एक बदमाश है । परम्परा प्रणाली के माध्यम से आना ही चाहिए, और समझने के लिए तद-विज्ञानम दिव्य विज्ञान, तुम्हे गुरु के पास जाना होगा । तुम नहीं कह सकते हो "मैं घर पर ही समझ सकता हूँ ।" नहीं । यह संभव नहीं है । यही सभी शास्त्रों का आदेश है । तस्माद गुरुम प्रपद ... किसको एक गुरु की आवश्यकता है? गुरु फैशन नहीं है जैसे तुम एक फैशन के लिए एक कुत्ते को रखते हो, आधुनिक सभ्यता, इसी तरह हमें एक गुरु रखना है । नहीं, ऐसा नहीं है । किसे एक गुरु की आवश्यकता है? तस्माद गुरुम प्रपद्येत जिज्ञासु श्रेय उत्तमम वास्तव में आत्मा के विज्ञान को समझने के लिए जो गंभीर है । तद विजानम । ओम तत सत । उसे एक गुरु की आवश्यकता होती है । गुरू एक फैशन नहीं है ।