HI/Prabhupada 0542 - गुरु की योग्यता क्या है, कैसे हर कोई गुरु बन सकता है: Difference between revisions

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इसलिए कृष्ण कहते हैं कि अाचार्यम माम विजानीयान ([[Vanisource:SB 11.17.27|श्री भ ११।१७।२७]]) "तुम मुझे आचार्य स्वीकार करो यथार्थ ।" क्यों? मैं देख सकता हूँ कि तुम एक आदमी हो उसके पुत्र उसे पिता कहते हैं, या वह एक आदमी की तरह लग रहा है, तो क्यों वह लगभग भगवान है? क्योंकि वह वही बोलता है जो भगवान बोलते हैं, बस । इसलिए । वह कोई भी बदलाव नहीं करता है । भगवान कहते हैं, जैसे कृष्ण कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[Vanisource:BG 18.66|भ गी १८।६६]]) गुरु कहते हैं कि तुम कृष्ण या भगवान के प्रति समर्पण करो । वही शब्द । भगवान कहते हैं कि मन मना भव मद-भक्तो मद-याजी माम नमस्कुरु ([[Vanisource:BG 18.65|भ गी १८।६५]]) गुरू का कहना है कि तुम हमेशा कृष्ण के बारे में सोचो , तुम उसे पर्यत आत्मसमर्पण करो तुम उनकी प्रार्थना करो, तुम उनके भक्त बनो । कोई परिवर्तन नहीं है । क्योंकि वे कहते हैं जो परम व्यक्तित्व कहते हैं , इसलिए वह गुरु हैं । हांलाकि लगता है कि उनका भौतिक जन्म हुअा है, उनका व्यवहार अन्य लोगों की तरह है । लेकिन क्योंकि वह वही सत्य कहते हैं जो वेदों में बोला जाता है या देवत्व के व्यक्तित्व से, इसलिए वह गुरु हैं । क्योंकि वह कोई बदलाव नहीं करता है, सनकी तरीके से, इसलिए वह गुरु हैं । यही परिभाषा है । यह बहुत सरल है । चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि हर कोई गुरु बने । हर कोई । गुरु की आवश्यकता है । दुनिया दुष्टों से भरी है, इसलिए इतने सारे गुरुओं की जरूरत है उन्हें पढ़ाने के लिए । लेकिन गुरु की योग्यता क्या है? कैसे हर कोई गुरु बन सकता है? यह सवाल किया जा सकता है, अगला सवाल क्योंकि चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, अामार अाज्ञाय गुरु हाना तार एइ देश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चै च मध्य ७।१२८]]) एइ देश का मतलब है जहाँ भी तुम रह रहे हो , तुम एक गुरु बन जाअो और उनका उद्धार करो । मान लीजिए तुम एक छोटे से पड़ोस में रह रहे हो, तुम उस पड़ोस के गुरु बन जाअो और उनका उद्धार करो । "यह कैसे संभव है? मैं शिक्षित नहीं हूँ, मुझे ज्ञान नहीं है । कैसे मैं गुरु बन सकता हूँ और उनका उद्धार करूँ? " चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि यह सब मुश्किल नहीं है । यारे देखा तारे कहा कृष्ण-उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चै च मध्य ७।१२८]]) । यह आपकी योग्यता है । अगर तुम बस कृष्ण द्वारा दिए गए संदेश का प्रचार करो तो तुम गुरु बन जाअोगे । कृष्ण ने कहा, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[Vanisource:BG 18.66|भ गी १८।६६]]) । तुम प्रचार करो, तुम सभी से अनुरोध करो "सर, तुम कृष्ण के प्रति समर्पण करो ।" तुम गुरु बन जाअो । बहुत साधारण बात है । कृष्ण ने कहा, मन मना भव मद-भक्तो मद-याजी माम नमस्कुरु ([[Vanisource:BG 18.65|भ गी १८।६५]]) तुम कहते हो, " तुम कृष्ण के भक्त बनो, तुम दण्डवत प्रणाम करो । यहाँ एक मंदिर है, कृष्ण यहाँ हैं । कृपया यहाँ आओ । तुम दण्डवत प्रणाम करते हो, और अगर तुम पेश करते हो, पत्रम पुष्पम फलम तोयम ([[Vanisource:BG 9.26|भ गी ९।२६]]) तुम पेश नहीं करते... लेकिन यह बहुत अासान बात है कोई भी एक छोटा फूल, एक छोटा सा फल, थोड़ा पानी दे सकता है । यह सब मुश्किल नहीं है । "
तो कृष्ण कहते हैं कि अाचार्यम माम विजानीयान ([[Vanisource:SB 11.17.27|श्रीमद भागवतम ११.१७.२७]]) "तुम आचार्यों ऐसे स्वीकार करो जैसे तुम मुझे करते हो ।" क्यों ? मैं देख सकता हूँ कि वो (गुरु) एक आदमी है उसका पुत्र उसे पिता कहता हैं, या वह एक आदमी की तरह लग रहा है, तो क्यों वह भगवान की तरह है ? क्योंकि वह वही बोलता है जो भगवान बोलते हैं, बस । इसलिए । वह कोई भी बदलाव नहीं करता है ।  


तो यह गुरु की योग्यता है । गुरू कोई जादू नहीं दिखाता या कुछ अद्भुत चीजों का उत्पादन करता है तब वह गुरु बन जाता है । तो व्यावहारिक रूप से मैंने एसा किया है । लोग मुझे क्रेडिट दे रहे हैं कि मैंने चमत्कार किया है लेकिन मेरा चमत्कार यह है कि मैंने चैतन्य महाप्रभु का संदेश दिया है: यारे देखा तारे कहा कृष्ण-उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चै च मध्य ७।१२८]]) तो यही रहस्य है । तो तुम में से कोई भी, तुम गुरु बन सकते हो । यह नहीं है कि मैं एक असाधारण आदमी हूँ, एक असाधारण भगवान कुछ रहस्यमय जगह से आया हूँ । ऐसा नहीं है - यह तो बहुत आसान बात है ।
भगवान कहते हैं, जैसे कृष्ण कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) । गुरु कहते हैं कि तुम कृष्ण या भगवान के प्रति समर्पण करो । वही शब्द । भगवान कहते हैं कि मन मना भव मद्-भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु ([[HI/BG 18.65|भ.गी. १८.६५]]) । गुरू का कहना है कि तुम हमेशा कृष्ण के बारे में सोचो, तुम उनको आत्मसमर्पण करो, तुम उनकी प्रार्थना करो, तुम उनके भक्त बनो । कोई परिवर्तन नहीं है । क्योंकि वे कहते हैं जो परम भगवान कहते हैं, इसलिए वह गुरु हैं । हांलाकि लगता है कि उनका भौतिक जन्म हुअा है, उनका व्यवहार अन्य लोगों की तरह है । लेकिन क्योंकि वह वही सत्य कहते हैं जो वेदों में बोला जाता है या परम भगवान द्वारा, इसलिए वह गुरु हैं । क्योंकि वह कोई बदलाव नहीं करता है, सनकी तरीके से, इसलिए वह गुरु हैं । यही परिभाषा है । यह बहुत सरल है ।
 
चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि हर कोई गुरु बने । हर कोई । गुरु की आवश्यकता है । दुनिया दुष्टों से भरी है, इसलिए इतने सारे गुरुओं की जरूरत है उन्हें पढ़ाने के लिए । लेकिन गुरु की योग्यता क्या है ? कैसे हर कोई गुरु बन सकता है ? यह सवाल किया जा सकता है, अगला सवाल | क्योंकि चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]]) । एइ देश का मतलब है जहाँ भी तुम रह रहे हो, तुम एक गुरु बन जाअो और उनका उद्धार करो । मान लीजिए तुम एक छोटे से पड़ोस में रह रहे हो, तुम उस पड़ोस के गुरु बन जाअो और उनका उद्धार करो । "यह कैसे संभव है ? मैं शिक्षित नहीं हूँ, मुझे ज्ञान नहीं है । कैसे मैं गुरु बन सकता हूँ और उनका उद्धार कर सकता हूँ ?"
 
चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि यह बिलकुल भी मुश्किल नहीं है । यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]]) । यह आपकी योग्यता है । अगर तुम बस कृष्ण द्वारा दिए गए संदेश का प्रचार करो तो तुम गुरु बन जाअोगे । कृष्ण ने कहा, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]) । तुम प्रचार करो, तुम सभी से अनुरोध करो, "महोदय, तुम कृष्ण के प्रति समर्पण करो ।" तुम गुरु बन जाअो । बहुत साधारण बात है । कृष्ण ने कहा, मन मना भव मद्-भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु ([[HI/BG 18.65|भ.गी. १८.६५]]) ।
 
तुम कहते हो, "तुम कृष्ण के भक्त बनो, तुम दण्डवत प्रणाम करो । यहाँ एक मंदिर है, कृष्ण यहाँ हैं । कृपया यहाँ आओ । तुम दण्डवत प्रणाम करो, और अगर तुम अर्पण करते हो, पत्रम पुष्पम फलम तोयम ([[HI/BG 9.26|भ.गी. ९.२६]]) । तुम अर्पण नहीं करते... लेकिन यह बहुत अासान है । कोई भी एक छोटा फूल, एक छोटा-सा फल, थोड़ा पानी दे सकता है । यह बिलकुल भी मुश्किल नहीं है । "
 
तो यह गुरु की योग्यता है । गुरू कोई जादू नहीं दिखाता या कुछ अद्भुत चीजों का उत्पादन करता है तब वह गुरु बन जाता है । तो व्यावहारिक रूप से मैंने एेसा किया है । लोग मुझे श्रेय दे रहे हैं कि मैंने चमत्कार किया है, लेकिन मेरा चमत्कार यह है कि मैंने चैतन्य महाप्रभु का संदेश दिया है: यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]]) तो यह रहस्य है । तो तुम में से कोई भी, तुम गुरु बन सकते हो । यह नहीं है कि मैं एक असाधारण आदमी हूँ, एक असाधारण भगवान कुछ रहस्यमय जगह से आया हूँ । ऐसा नहीं है - यह तो बहुत आसान बात है ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Janmastami Lord Sri Krsna's Appearance Day Lecture -- London, August 21, 1973

तो कृष्ण कहते हैं कि अाचार्यम माम विजानीयान (श्रीमद भागवतम ११.१७.२७) "तुम आचार्यों ऐसे स्वीकार करो जैसे तुम मुझे करते हो ।" क्यों ? मैं देख सकता हूँ कि वो (गुरु) एक आदमी है । उसका पुत्र उसे पिता कहता हैं, या वह एक आदमी की तरह लग रहा है, तो क्यों वह भगवान की तरह है ? क्योंकि वह वही बोलता है जो भगवान बोलते हैं, बस । इसलिए । वह कोई भी बदलाव नहीं करता है ।

भगवान कहते हैं, जैसे कृष्ण कहते हैं, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) । गुरु कहते हैं कि तुम कृष्ण या भगवान के प्रति समर्पण करो । वही शब्द । भगवान कहते हैं कि मन मना भव मद्-भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५) । गुरू का कहना है कि तुम हमेशा कृष्ण के बारे में सोचो, तुम उनको आत्मसमर्पण करो, तुम उनकी प्रार्थना करो, तुम उनके भक्त बनो । कोई परिवर्तन नहीं है । क्योंकि वे कहते हैं जो परम भगवान कहते हैं, इसलिए वह गुरु हैं । हांलाकि लगता है कि उनका भौतिक जन्म हुअा है, उनका व्यवहार अन्य लोगों की तरह है । लेकिन क्योंकि वह वही सत्य कहते हैं जो वेदों में बोला जाता है या परम भगवान द्वारा, इसलिए वह गुरु हैं । क्योंकि वह कोई बदलाव नहीं करता है, सनकी तरीके से, इसलिए वह गुरु हैं । यही परिभाषा है । यह बहुत सरल है ।

चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि हर कोई गुरु बने । हर कोई । गुरु की आवश्यकता है । दुनिया दुष्टों से भरी है, इसलिए इतने सारे गुरुओं की जरूरत है उन्हें पढ़ाने के लिए । लेकिन गुरु की योग्यता क्या है ? कैसे हर कोई गुरु बन सकता है ? यह सवाल किया जा सकता है, अगला सवाल | क्योंकि चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) । एइ देश का मतलब है जहाँ भी तुम रह रहे हो, तुम एक गुरु बन जाअो और उनका उद्धार करो । मान लीजिए तुम एक छोटे से पड़ोस में रह रहे हो, तुम उस पड़ोस के गुरु बन जाअो और उनका उद्धार करो । "यह कैसे संभव है ? मैं शिक्षित नहीं हूँ, मुझे ज्ञान नहीं है । कैसे मैं गुरु बन सकता हूँ और उनका उद्धार कर सकता हूँ ?"

चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि यह बिलकुल भी मुश्किल नहीं है । यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) । यह आपकी योग्यता है । अगर तुम बस कृष्ण द्वारा दिए गए संदेश का प्रचार करो तो तुम गुरु बन जाअोगे । कृष्ण ने कहा, सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) । तुम प्रचार करो, तुम सभी से अनुरोध करो, "महोदय, तुम कृष्ण के प्रति समर्पण करो ।" तुम गुरु बन जाअो । बहुत साधारण बात है । कृष्ण ने कहा, मन मना भव मद्-भक्तो मद्याजी माम नमस्कुरु (भ.गी. १८.६५) ।

तुम कहते हो, "तुम कृष्ण के भक्त बनो, तुम दण्डवत प्रणाम करो । यहाँ एक मंदिर है, कृष्ण यहाँ हैं । कृपया यहाँ आओ । तुम दण्डवत प्रणाम करो, और अगर तुम अर्पण करते हो, पत्रम पुष्पम फलम तोयम (भ.गी. ९.२६) । तुम अर्पण नहीं करते... लेकिन यह बहुत अासान है । कोई भी एक छोटा फूल, एक छोटा-सा फल, थोड़ा पानी दे सकता है । यह बिलकुल भी मुश्किल नहीं है । "

तो यह गुरु की योग्यता है । गुरू कोई जादू नहीं दिखाता या कुछ अद्भुत चीजों का उत्पादन करता है तब वह गुरु बन जाता है । तो व्यावहारिक रूप से मैंने एेसा किया है । लोग मुझे श्रेय दे रहे हैं कि मैंने चमत्कार किया है, लेकिन मेरा चमत्कार यह है कि मैंने चैतन्य महाप्रभु का संदेश दिया है: यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) । तो यह रहस्य है । तो तुम में से कोई भी, तुम गुरु बन सकते हो । यह नहीं है कि मैं एक असाधारण आदमी हूँ, एक असाधारण भगवान कुछ रहस्यमय जगह से आया हूँ । ऐसा नहीं है - यह तो बहुत आसान बात है ।