HI/Prabhupada 0543 - यह नहीं है कि आपको गुरु बनने का एक विशाल प्रदर्शन करना है: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0543 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1976 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in India, Hyderabad]]
[[Category:HI-Quotes - in India, Hyderabad]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0542 - गुरु की योग्यता क्या है, कैसे हर कोई गुरु बन सकता है|0542|HI/Prabhupada 0544 - हम विशेष रूप से भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर के मिशन पर जोर देते हैं|0544}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|_Cq4rVuphkQ|यह नहीं है कि अापको गुरु बनने का एक विशाल शो करना है<br />- Prabhupāda 0543}}
{{youtube_right|CLXf04U53Wc|यह नहीं है कि आपको गुरु बनने का एक विशाल प्रदर्शन करना है<br />- Prabhupāda 0543}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/760819VP.HYD_Vyasa-puja_04.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/760819VP.HYD_Vyasa-puja_04.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि यारे देख तारे कह कृ्ष्ण-उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चै च मध्य ७।१२८]]) इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ - चैतन्य महाप्रभु के अनुदेशों का पालन करें, कि अाप भी, अाप अपने घर में एक गुरु बन जाऍ । यह नहीं है कि अापको गुरु बनने का एक विशाल शो करना है । पिता को गुरु बनना है, माँ को गुरु बनना है । दरअसल, शास्त्र में यह कहा जाता है, हमें पिता नहीं बन जाना चाहिए, एक मां नहीं बन जाना चाहिए, अगर हम अपने बच्चों के लिए एक गुरु नहीं हो सकते हैं । न मोचयेद य: समुपेत-मृत्युम । अगर एक व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चंगुल से अपने बच्चे को बचाने में असमर्थ है, तो उसे एक पिता नहीं बन जाना चाहिए । यह असली गर्भनिरोधक विधि है । एसा नहीं कि बिल्लियों और कुत्तों की तरह यौन संबंध करो, और जब बच्चा है तो मार डालो अौर गर्भपात करो । नहीं । यह सबसे बड़ी पाप की गतिविधि है । असली गर्भनिरोधक विधि है, कि अगर तुम जन्म और मृत्यु के चंगुल से अपने बेटे को वितरित करने में असमर्थ हो, तो एक पिता मत बनो । यही ज़रूरी है । पिता न स स्याज जननी न स स्यात गुरु न स स्यात न मोचयेद य: समुपेत-मृत्युम । अगर तुम जन्म के चंगुल से अपने बच्चों को बचाने नहीं सकते हो ...
चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]]) इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ, चैतन्य महाप्रभु के अनुदेशों का पालन करो, कि अाप भी, अाप अपने घर में एक गुरु बन जाओ । यह नहीं है कि अापको गुरु बनने का एक बड़ा दिखावा करना है । पिता को गुरु बनना है, माँ को गुरु बनना है । दरअसल, शास्त्र में यह कहा जाता है, हमें पिता नहीं बनना चाहिए, एक माँ नहीं बनना चाहिए, अगर हम अपने बच्चों के लिए एक गुरु नहीं हो सकते हैं । न मोचयेद य: समुपेत-मृत्युम । अगर एक व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चंगुल से अपने बच्चे को बचाने में असमर्थ है, तो उसे एक पिता नहीं बनना चाहिए ।  


यही पूरा वैदिक साहित्य है । पुनर जन्म जयय: कैसे अगले जन्म पर विजय प्राप्त करें, अगल भौतिक जन्म, वे नहीं जानते मूर्ख व्यक्ति वे वैदिक संस्कृति को भूल गए हैं, वैदिक संस्कृति क्या है । वैदिक संस्कृति है अगले जन्म पर जीत पाना, बस । लेकिन वे अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं । निन्यानबे प्रतिशत लोग, वे इतना गिर चुके हैं वैदिक संस्कृति से भगवद गीता भी वही तत्वज्ञान है । त्यक्त्वा देहम् पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय ([[Vanisource:BG 4.9|भ गी ४।९]]) यही वैदिक संस्कृति है । वैदिक संस्कृति का मतलब है, हम जीवन के इस मानव रूप में विकासवादी प्रक्रिया से अाए हैं । यहाँ एक दूसरा मौका है शरीर से आत्मा के स्थानांतरगमन को रोकने का । तथा देहान्तर प्राप्तिर, और तुम्हे पता नहीं है कि किस तरह का शरीर मुझे अगला मिलेगा । यह शरीर प्रधानमंत्री का हो सकता है, या कुछ और हो सकता है, और अगला शरीर प्रकृति के नियमों के अनुसार कुत्ते का हो सकता है ।
यह असली गर्भनिरोधक विधि है । एेसा नहीं कि बिल्लियों और कुत्तों की तरह यौन संबंध करो, और जब बच्चा आए तो मार डालो अौर गर्भपात करो । नहीं । यह सबसे बड़ा पाप है । असली गर्भनिरोधक विधि है, कि अगर तुम जन्म और मृत्यु के चंगुल से अपने बेटे को छुड़ाने में असमर्थ हो, तो एक पिता मत बनो यह ज़रूरी है । पिता न स स्यात जननी न स स्यात गुरु न स स्यात न मोचयेद य: समुपेत-मृत्युम अगर तुम जन्म के चंगुल से अपने बच्चों को नहीं बचा सकते हो...


:प्रकृते: क्रियमाणानि
यही पूरा वैदिक साहित्य है । पुनर्जन्म जयाय: । कैसे अगले जन्म पर विजय प्राप्त करें, अगला भौतिक जन्म, वे नहीं जानते । मूर्ख व्यक्ति वे वैदिक संस्कृति को भूल गए हैं, वैदिक संस्कृति क्या है । वैदिक संस्कृति है अगले जन्म पर जीत पाना, बस । लेकिन वे अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं । निन्यानबे प्रतिशत लोग, वे इतना गिर चुके हैं वैदिक संस्कृति से । भगवद गीता में भी वही तत्वज्ञान है । त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय [[HI/BG 4.9|भ.गी. ४.९]]) । यही वैदिक संस्कृति है ।
:गुनै: कर्माणि सर्वश:
:अहंकार विमूढात्मा
:कर्ताहम इति मन्यते
:([[Vanisource:BG 3.27|भगी ३।२७]])


वे नहीं जानते । वे इस संस्कृति को भूल गए हैं । जानवरों की तरह इस मानव शरीर का दुरुपयोग करके, खाने, सोने, संभोग और बचाव में । यह सभ्यता नहीं है । सभ्यता है पुन् जन्म जायय: कैसे अगले भौतिक जन्म पर जीत पाऍ । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । इसलिए हम इतने सारे साहित्य प्रस्तुत कर रहे हैं । यह पूरी दुनिया में स्वीकार किया जा रहा है , विद्वानों में । इस आंदोलन का लाभ उठाएं हम खोलने की की कोशिश की है, हमारा विनम्र प्रयास है यहां एक केंद्र खोलने का । हम पर ईर्ष्या मत करो । कृपया हम पर दया करो । हम ... हमारा विनम्र प्रयास हैं । और इसका लाभ लें । यह हमारा अनुरोध है । बहुत बहुत धन्यवाद ।
वैदिक संस्कृति का मतलब है, हम जीवन के इस मानव रूप में उत्क्रांति की प्रक्रिया से अाए हैं । यहाँ एक दूसरा मौका है शरीर से आत्मा के स्थानांतरगमन को रोकने का । तथा देहान्तर प्राप्तिर ([[HI/BG 2.13|भ.गी. २.१३]]) , और तुम्हें नहीं पता है कि किस तरह का अगला शरीर मुझे मिलेगा । यह शरीर प्रधानमंत्री का हो सकता है, या कुछ और हो सकता है, और अगला शरीर प्रकृति के नियमों के अनुसार कुत्ते का हो सकता है ।
 
:प्रकृते: क्रियमाणानि
:गुणै: कर्माणि सर्वश:
:अहंकार विमूढात्मा
:कर्ताहम इति मन्यते
:([[HI/BG 3.27|भ.गी. ३.२७]])
 
वे नहीं जानते । वे इस संस्कृति को भूल गए हैं । जानवरों की तरह इस मानव शरीर का दुरुपयोग करके, खाने, सोने, संभोग और बचाव में । यह सभ्यता नहीं है । सभ्यता है पुनर जन्म जयाय:, कैसे अगले भौतिक जन्म पर जीत पाएँ । यही कृष्णभावनामृत आंदोलन है । इसलिए हम इतने सारे साहित्य प्रस्तुत कर रहे हैं । यह पूरी दुनिया में स्वीकार किया जा रहा है, विद्वानों में । इस आंदोलन का लाभ उठाएँ । हमने केन्द्रो को खोलने का प्रयास किया है, हमारा विनम्र प्रयास है यहाँ एक केंद्र खोलने का । हम से ईर्ष्या न करें । कृपया हम पर दया करें । हम... हमारा विनम्र प्रयास हैं । और इसका लाभ लें । यह हमारा अनुरोध है ।  
 
बहुत-बहुत धन्यवाद ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Janmastami Lord Sri Krsna's Appearance Day Lecture -- London, August 21, 1973

चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि यारे देख तारे कह कृष्ण-उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) । इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ, चैतन्य महाप्रभु के अनुदेशों का पालन करो, कि अाप भी, अाप अपने घर में एक गुरु बन जाओ । यह नहीं है कि अापको गुरु बनने का एक बड़ा दिखावा करना है । पिता को गुरु बनना है, माँ को गुरु बनना है । दरअसल, शास्त्र में यह कहा जाता है, हमें पिता नहीं बनना चाहिए, एक माँ नहीं बनना चाहिए, अगर हम अपने बच्चों के लिए एक गुरु नहीं हो सकते हैं । न मोचयेद य: समुपेत-मृत्युम । अगर एक व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चंगुल से अपने बच्चे को बचाने में असमर्थ है, तो उसे एक पिता नहीं बनना चाहिए ।

यह असली गर्भनिरोधक विधि है । एेसा नहीं कि बिल्लियों और कुत्तों की तरह यौन संबंध करो, और जब बच्चा आए तो मार डालो अौर गर्भपात करो । नहीं । यह सबसे बड़ा पाप है । असली गर्भनिरोधक विधि है, कि अगर तुम जन्म और मृत्यु के चंगुल से अपने बेटे को छुड़ाने में असमर्थ हो, तो एक पिता मत बनो । यह ज़रूरी है । पिता न स स्यात जननी न स स्यात गुरु न स स्यात न मोचयेद य: समुपेत-मृत्युम । अगर तुम जन्म के चंगुल से अपने बच्चों को नहीं बचा सकते हो...

यही पूरा वैदिक साहित्य है । पुनर्जन्म जयाय: । कैसे अगले जन्म पर विजय प्राप्त करें, अगला भौतिक जन्म, वे नहीं जानते । मूर्ख व्यक्ति वे वैदिक संस्कृति को भूल गए हैं, वैदिक संस्कृति क्या है । वैदिक संस्कृति है अगले जन्म पर जीत पाना, बस । लेकिन वे अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं । निन्यानबे प्रतिशत लोग, वे इतना गिर चुके हैं वैदिक संस्कृति से । भगवद गीता में भी वही तत्वज्ञान है । त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम एति कौन्तेय भ.गी. ४.९) । यही वैदिक संस्कृति है ।

वैदिक संस्कृति का मतलब है, हम जीवन के इस मानव रूप में उत्क्रांति की प्रक्रिया से अाए हैं । यहाँ एक दूसरा मौका है शरीर से आत्मा के स्थानांतरगमन को रोकने का । तथा देहान्तर प्राप्तिर (भ.गी. २.१३) , और तुम्हें नहीं पता है कि किस तरह का अगला शरीर मुझे मिलेगा । यह शरीर प्रधानमंत्री का हो सकता है, या कुछ और हो सकता है, और अगला शरीर प्रकृति के नियमों के अनुसार कुत्ते का हो सकता है ।

प्रकृते: क्रियमाणानि
गुणै: कर्माणि सर्वश:
अहंकार विमूढात्मा
कर्ताहम इति मन्यते
(भ.गी. ३.२७)

वे नहीं जानते । वे इस संस्कृति को भूल गए हैं । जानवरों की तरह इस मानव शरीर का दुरुपयोग करके, खाने, सोने, संभोग और बचाव में । यह सभ्यता नहीं है । सभ्यता है पुनर जन्म जयाय:, कैसे अगले भौतिक जन्म पर जीत पाएँ । यही कृष्णभावनामृत आंदोलन है । इसलिए हम इतने सारे साहित्य प्रस्तुत कर रहे हैं । यह पूरी दुनिया में स्वीकार किया जा रहा है, विद्वानों में । इस आंदोलन का लाभ उठाएँ । हमने केन्द्रो को खोलने का प्रयास किया है, हमारा विनम्र प्रयास है यहाँ एक केंद्र खोलने का । हम से ईर्ष्या न करें । कृपया हम पर दया करें । हम... हमारा विनम्र प्रयास हैं । और इसका लाभ लें । यह हमारा अनुरोध है ।

बहुत-बहुत धन्यवाद ।