HI/Prabhupada 0562 - मेरा प्रमाण वैदिक साहित्य हैं

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Press Interview -- December 30, 1968, Los Angeles

प्रभुपाद: मेरा प्रमाण वैदिक साहित्य हैं, हाँ । आप भगवद गीता में पढोगे... आपने हमारी पुस्तक भगवद गीता को देखा है?

पत्रकार: हाँ । हमारे कार्यालय में यह है । मैंने इसे देखा है ।

प्रभुपाद: वहॉ वर्णन है । इन बातों का वर्णन है । एक और प्रकृति का वर्णन है जिसे आध्यात्मिक प्रकृति कहा जाता है । ये भौतिक प्रकृति है । आकाश, जहाँ तक आप देख सकते हैं, यह एक ब्रह्मांड है | इसी तरह, लाखों ब्रह्मांड हैं । और इन सभी को मिलाकर, भौतिक आकाश कहा जाता है । और उसके पार, आध्यात्मिक आकाश है, जो इस की तुलना में कहीं बडा है । और आध्यात्मिक ग्रह हैं । तो यह जानकारी हमें भगवद गीता से मिलती है, अन्य वैदिक साहित्य की क्या बात करें । भगवद गीता, यह दैनिक पढ़ा जाता है, व्यावहारिक रूप से पूरी दुनिया भर में, लेकिन वे यह समझते नहीं हैं । बस वे भगवद गीता के छात्र बन जाते हैं, या बस सिर्फ यह झूठा सोचने के लिए की "मैं भगवान हूँ ।" बस । लेकिन वे कोई विशेष जानकारी नहीं लेते हैं ।

आठवें अध्याय में एक श्लोक है, परस तस्मात तु भावो अन्यो अव्यक्तो अव्यक्तात सनातन: (भ.गी. ८.२०) | इस भौतिक प्रकृति से परे एक और प्रकृति है जो अनन्त है । यह प्रकृति अस्तित्व में आति है, फिर से प्रलय, प्रलय । लेकिन वह प्रकृति अनन्त है । ये बातें हैं । इसी तरह, वहाँ, ग्रह भी अनन्त हैं । ये, जीव, वे भी शाश्वत हैं । वही सनातन कहा जाता है । सनातन का मतलब है अनन्त, किसी भी अंत के बिना, किसी भी शुरुआत के बिना । लेकिन यह प्रकृति, जैसे है, इस शरीर की शुरुआत है और अंत है, इसी प्रकार कुछ भी, इस ब्रह्मांडीय प्रकृति कि एक शुरुआत है और अंत है । तो हमारा यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है कि कैसे हम अपनी आत्मा का हस्तांतरण करें उस प्रकृति को, अनन्त प्रकृति को ।

पत्रकार: यह मनुष्य की खोज है ।

प्रभुपाद: हाँ । यही खोज है । हर कोई खुश होने की कोशिश कर रहा है क्योंकि हर जीव का विशेषाधिकार है | उसका स्वभाव है खुश होना, लेकिन वह जानता नहीं है कि कहां खुश होना चाहिए । वह चार चीज़ो से खुश होने की कोशिश कर रहा है, दुखदायक परिस्थितिआ हैं, अर्थात जन्म, मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापा । तो कई वैज्ञानिक, वे खुश होने की कोशिश कर रहे हैं, लोगों को खुश करने की, लेकिन किस वैज्ञानिक नें मौत को रोकने की, बुढ़ापे को रोकने की, बीमारी को रोकने की कोशिश की है? किसी वैज्ञानिक नें कोशिश की है ?

पत्रकार: मुझे नहीं पता ।

प्रभुपाद: तो यह क्या है? क्यों वे ध्यान में नहीं लेते हैं कि, "हम इतनी उन्नति कर रहे हैं, हमनें इन चार चीजों में क्या उन्नति की है?" उनके पास 'नहीं' है । और फिर भी वे बहुत ज्यादा गर्व करते हैं, शिक्षा के क्षेत्र में, विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति । लेकिन यह चार प्राथमिक दुखी परिस्थितिॉ, वे वही रहते हैं । आप देखते हैं? चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति हो सकती है, लेकिन एसी कोई दवा नहीं है जो दावा कर सकता है "चलो, कोई और रोग नहीं ।" कोई दवा है ? तो उन्नति क्या है? बल्कि, बीमारीयों की विभिन्न रूपों में वृद्धि हो रही है । उन्होंने परमाणु हथियार का आविष्कार किया है । वह क्या है? मारने के लिए । लेकिन आपने कुछ आविष्कार किया है ताकि और कोई अधिक पुरुष मारे न जाऍ ? वो प्रशंसनीय है | मनुष्य हर पल मर रहा है, तो आपने उस मौत में तेजी लाने के लिए कुछ आविष्कार किया है । बस । क्या यह बहुत, बहुत अच्छी प्रशंसा है?

तो मौत का कोई समाधान नहीं है, कोई नहीं है... वे रोकने की कोशिश कर रहे हैं, मेरे कहने का मतलब है, जनसंख्या । लेकिन कहां है समाधान ? हर मिनट, तीन व्यक्ति बढ़ रहे हैं । आँकड़े यही हैं । तो जन्म का कोई समाधान नहीं है, मौत का कोई समाधान नहीं है, रोग का कोई समाधान नहीं है और बुढ़ापे का कोई समाधान नहीं है । एक महान वैज्ञानिक, प्रोफेसर आइनस्टीन हुए थे, वे भी बुढ़ापे में मर गए । क्यों उन्होंने बुढ़ापे को रोकने के लिए प्रबंद नहीं किया था? हर कोई युवा बने रहने की कोशिश कर रहा है । कहां है वह प्रक्रिया ? तो वे इसका हल निकालने की परवाह नहीं करते हैं, क्योंकि वे उनके बस की बात नहीं है । वे कुछ धोखा दे रहे हैं, बस । वे परवाह नहीं करते है कि वास्तविक समस्या कया है और कैसे इसे हल करें । वे इसकी परवाह नहीं करते हैं । लेकिन यहाँ एक आंदोलन है, कृष्ण भावनामृत ।

सभी समस्याओं का वास्तविक समाधान है, अगर लोग इसे गंभीरता से ले, तो । हां । और पूरी बात भगवद गीता में वर्णित है । उन्हें यह समझने की कोशिश करने दो । कम से कम, एक प्रयोग करें । क्यों वे इतने कठोर हैं और अपने तरीके से जा रहे हैं?