HI/Prabhupada 0563 - कुत्ते को एक बुरा नाम दो और उसे लटकाअो

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Press Interview -- December 30, 1968, Los Angeles

पत्रकार: मैं आप से पूछना चाहता हूँ....... मेरी अपनी राय है, लेकिन ... आप से पूछना चाहता हूँ । क्यों आप महसूस करते हैं कि आज के युवा लोग पूर्वी धर्मों की ओर अधिक से अधिक उन्मुख हो रहे हैं?

प्रभुपाद: क्योंकि आप उन्हें संतुष्टि देने में नाकाम रहे हैं ।

पत्रकार: आप क्या?

प्रभुपाद: आप उन्हें संतुष्टि देने में नाकाम रहे हैं । अापका यह भौतिकवादी जीवन इन्हे अौर अधिक संतुष्टि नहीं देगा । एक स्थिति है, शुरुआत में, जब कोई गरीबी से त्रस्त है, वह सोच सकता हैं कि "पैसा और औरत और अच्छा घर, अच्छी कार, मुझे संतुष्टि दे सकता है । "वे इस के पीछे हैं । लेकिन भोग के बाद, वे देखते हैं कि "ओह, कोई संतोष नहीं है ।" क्योंकि द्रवय पदार्थ आप को संतुष्ट नहीं दे सकते हैं । तो तुम्हारी स्थिति में, अमेरिका में विशेष रूप से, आपके पास आनंद के लिए पर्याप्त है । आपके पास र्याप्त भोजन है, पर्याप्त अौरत है, काफी शराब है, आपके पास पर्याप्त घर है - पर्याप्त सब कुछ । इससे यह समझ में अाता है कि भोतिक उन्नति अापको संतुष्टि नहीं दे सकती है । भ्रम और असंतोष भारत की तुलना में अापके देश में अधिक है, जो गरीबी से त्रस्त कहा जाता है । आप देखते हैं? लेकिन आप अभी भी भारत में पाअोगे, हालांकि वे गरीबी से त्रस्त हैं, क्योंकि वे पुरानी संस्कृति को जारी रख रहे हैं, वे परेशान नहीं हैं । हां । वे इंच दर इंच मर रहे हैं, लेकिन अभी भी वे संतुष्ट हैं । "ठीक है." आप देखते हैं? क्यों? क्योंकि आध्यात्मिक मंच की छोटी सी झलक उनके पास है. तो यह आवश्यक है कि लोग आध्यात्मिक जीवन को अपनाऍ । यही उन्हें सुख देगा । कोई उम्मीद नहीं है । ये सभी लोग, वे अंधेरे में हैं । वे नहीं जानते है कि वे कहाँ जा रहे हैं । उनका कोई उद्देश्य नहीं है । लेकिन जब आप आध्यात्मिक स्थिति में हो, तो आप जानते हो कि आप क्या कर रहे हो, अापका भविष्य क्या है । सब कुछ स्पष्ट है । आप देखते हैं?

पत्रकार: तो मैं बस बहुत संक्षेप में इस पर अनुवर्ती करता हूँ । दूसरे शब्दों में, आपका मानना ​​है कि पश्चिमी उन्मुख चर्च चाहरे यह एक आराधनालय हो या एक चर्च, वह पेश करने में नाकाम हुअा है ... क्या आप कहेंगे कि उनका संदेश प्रासंगिक नहीं है या वे ठीक से उनके संदेश को पेश करने में नाकाम रहे हैं ?

प्रभुपाद: नहीं । बात यह है कि ये पश्चिमी चर्च, जैसे ईसाई धर्म की तरह, ये गोस्पेल कही गई थी बहुत समय पहले आदिम पुरुषों के लिए, आप देखते हैं? जेरूसलम । ये लोग रेगिस्ताने में रह रहे थे, और वे इतने उन्नत नहीं थे । तो उस समय ... बेशक, बाइबिल में या पुराने नियम में, भगवान का विचार है, यह अच्छा है । लेकिन वे ... जैसे इस बयान की तरह, "भगवान नें इस दुनिया का सृजन किया ।" यह एक तथ्य है । अब वे लोग उस समय में उन्नत नहीं थे ... अब, वर्तमान समय में, लोग वैज्ञानिक रूप से उन्नत हैं । वे जानना चाहते हैं कि सृजन कैसे हुअा । आप देखते हैं? यह विवरण नहीं है, न तो चर्च उन्हें दे सकता है । आप देखते हैं । इसलिए वे संतुष्ट नहीं हैं । बस आधिकारिक तौर पर चर्च जाना और प्रार्थना करना, यह उन्हें नहीं भाता है । इसके अलावा, व्यावहारिक रूप से, वे धार्मिक सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं । जैसे पुराने नियम में है, मेरे कहने का मतलब है, दस आज्ञाऍ, और एक आज्ञा है कि "अाप मारोगे नहीं ।" लेकिन हत्या ईसाई दुनिया में बहुत प्रधान है । वे बहुत नियमित रूप से कसाईखाना बनाए रखते हैं, और उन्होंने एक सिद्धांत का निर्माण किया है - जानवरों की कोई आत्मा नहीं होती है, वे महसूस नहीं करते हैं - क्योंकि उन्हे मारना है । "कुत्ते को एक बुरा नाम दो और उसे लटकाअो ।" क्यों पशु महसूस नहीं कर सकते? क्यों आप ये पापी गतिविधियॉ कर रहे हैं? तो पुरोहित वर्ग, वे कहेंगे नहीं, वे चर्चा भी नहीं करेंगे, हर कोई चुप है । इसका मतलब है जान - बूझकर, मेरे कहने का मतलब है, दस आज्ञाओं की अवहेलना । तो कहां है धार्मिक सिद्धांत ? अगर आप अपने शास्त्र की आज्ञाओं का पालन नहीं करते हैं क्या इसका मतलब है कि अाप अच्छी तरह से अपने धर्म का पालन कर रहे हैं ? आप कैसे मार सकते हैं जिसका आप सृजन नहीं कर सकते ? और जैसे यहॉ स्पष्ट रूप से कहा गया है "अाप नहीं मरोगे ।" जवाब क्या है? क्यों वे मार रहे हैं? जवाब क्या है? आपका जवाब कया है?

पत्रकार: आप मुझसे पूछ रहे हैं ?

प्रभुपाद: हाँ ।

पत्रकार: ठीक है, हाँ, जाहिर है "अाप मारोगे नहीं" एक नैतिक है और यह कालातीत है और यह मान्य है, लेकिन आदमी वास्तव में कोई दिलचस्पी नहीं रखता है ..

प्रभुपाद: वे धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं । यह बस एक दिखावा है, दिखावा । तो फिर वे कैसे खुश हो सकते हैं ? अगर आप नियामक सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं, तो कहां है अापका धर्म ?

पत्रकार: मैं अापके साथ बहस नहीं कर रहा हूँ । मैं अापसे और अधिक सहमत नहीं हो सकता हूँ । मैं पूरी तरह सहमत हूँ । इसका कोई मतलब नहीं है । "अाप मारोगे नहीं " "तुम मेरे सामने कोई अन्य देवताओं की पूजा नहीं करोगे," "तुम अपने पड़ोसी के गधे का लालच नहीं करोगे" "तुम अपने पिता और अपनी माँ का सम्मान करोगे" ये सुंदर नैतिकताऍ हैं, लेकिन ये बातें मानी नहीं जाती हैं ।

प्रभुपाद: "तुम अपने पड़ोसी की पत्नी का अपहरण नहीं करोगे ।"

पत्रकार: पत्नी, लालच ।

प्रभुपाद: तो कौन अपना रहा है ?

पत्रकार: कोई भी नहीं । बहुत कम ।

प्रभुपाद: अाप देखो? तो आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे धार्मिक होंगे । और धर्म के बिना, मानव समाज पशु समाज है ।

पत्रकार: ठीक है, लेकिन मैं आपसे यह पूछता हूँ । इसी विषय पर ... अब मैं यह नहीं पूछ रहा...

प्रभुपाद: यह लो । यह लो ।

पत्रकार: धन्यवाद ।