HI/Prabhupada 0571 - हमें परिवार के जीवन में नहीं रहना चाहिए । यही वैदिक संस्कृति है

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Press Interview -- December 30, 1968, Los Angeles

पत्रकार: अब जब अाप ... क्या अाप एक निश्चित अवधि के लिए इस संस्थान में जाते हैं?

प्रभुपाद: कोई निश्चित अवधि नहीं है । नहीं । लेकिन, मान लीजिए, मेरे लिए, मैं प्रशिक्षित हुअा, मेरे पिता इस लाइन में थे ......

पत्रकार: ओह, अापके पिता ...

प्रभुपाद: अरे हाँ । मेरे पिता जी नें बचपन से मुझे प्रशिक्षित किया, हॉ । और फिर मैं १९२२ में मेरे आध्यात्मिक गुरु से मिला, और मेरी दिक्षा हुई.... कुल मिलाकर एक पृष्ठभूमि, मैंने अापसे कहा था ८०, ९० प्रतिशत लोग परिवार के लिहाज से श्री कृष्ण के प्रति जागरूक हैं । आप देखते हैं ? इसलिए हमें अपने जीवन की शुरुआत से प्रशिक्षित किया गया । आधिकारिक तौर पर, बेशक, मैंने १९३३ में मेरे आध्यात्मिक गुरु को स्वीकार किया । तब से, मेरी कुछ पृष्ठभूमि थी, और मेरी मुलाकात के बाद, मैंने इस विचार का विकास किया ।

पत्रकार: अच्छा, अच्छा । तो आप एक अर्थ में, अपने दम पर १९३३ से इसका प्रसार कर रहे हैं ।

प्रभुपाद: नहीं, मैं १९०० से इसको फैल रहा हूँ मिशनरी के रूप में व्यावहारिक रूप से ५९ से ।

पत्रकार: ५९ से, अच्छा । आपने क्या किया तब से प्रभुपाद ... मैं एक गृहस्थ था । मैं चिकित्सा के क्षेत्र में कारोबार कर रहा था । पूर्व में, मैं एक बड़ी रासायनिक कंपनी में मैनेजर था । लेकिन हालांकि मैं गृहस्थ था मैं इस ज्ञान को सीख रहा था । मैं 'बैक टू गोडहेड; का प्रकाशण कर रहा था ...

पत्रकार: तो अाप उस का प्रकाशन कर रहे थे ...

प्रभुपाद: भारत में ।

पत्रकार: ओह, अच्छा ।

प्रभुपाद: हाँ, मैंने १९४७ में शुरू किया था अपने आध्यात्मिक गुरु के आदेश के तहत । तो मैं जो भी कमा रहा था, मैं खर्च कर रहा था । हां । मैंझे कुछ भी वापसी नहीं मिल रहा था, लेकिन मैं फिर भी वितरण कर रहा था । तो मैं यह काम एक लंबे समय से कर रहा था । लेकिन वास्तव में अपने परिवार के साथ सभी कनेक्शन त्यागने के बाद, मैं १९५९ से यह काम कर रहा हूँ ।

पत्रकार: क्या आपके बच्चे हैं ?

प्रभुपाद: अरे हाँ । मेरे सयाना लड़के हैं ।

पत्रकार: आपने बस उन्हें छोड़ दिया ?

प्रभुपाद: हाँ । मेरी पत्नी है, मेरे पोते, हर किसी को, लेकिन मेरा उनके साथ कोई संबंध नहीं है । वे अपने तरीके से कर रहे हैं । मेरी पत्नी सयाने लड़कों को सौंप दी गई है । हां ।

पत्रकार: ठीक है, क्या यह...? यह समझना मुश्किल है मेरे लिए, अपने परिवार को त्यागा देना और बस कहना, "बाद में मिलते हैं ।"

प्रभुपाद: हाँ, हाँ, यह वैदिक विनियमन है । हर किसी को एक निश्चित उम्र में परिवार कनेक्शन त्याग देना चाहिए, ५० साल की उम्र के बाद । हमें परिवार के जीवन में नहीं रहना चाहिए । यही वैदिक संस्कृति है । ऐसा नहीं है कि मौत तक, हमे परिवार में रहें । यह अच्छा नहीं है ।

पत्रकार: आप इसकी व्याख्या कर सकते हैं ।

प्रभुपाद: सबसे पहले, एक लड़के को ब्रह्मचारी के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है, आध्यात्मिक जीवन फिर उसे परिवार जीवन में न प्रवेश करने की सलाह दी जाती है । लेकि अगर वह अपने सेक्स जीवन को नियंत्रित करने में असमर्थ है, तो अनुमति दी जाती हैं "ठीक है । तुम शादी कर लो ।" फिर वह परिवार के जीवन में रहता है । तो वह २४ या २५ साल की उम्र में शादी कर लेता है । २५ साल, उसे सेक्स जीवन का आनंद ले सकता है । इस बीच में उसके कुछ बुजुर्ग बच्चे हो जाते हैं । तो ५० साल की उम्र में, पति और पत्नी घर से दूर चले जाते हैं और वे परिवार स्नेह से अपने को अलग करने के लिए तीर्थयात्रा के सभी स्थानों में यात्रा करते हैं । इस तरह, जब आदमी थोडा अधिक उन्नत होता है, वह अपनी पत्नी से कहता है कि "तुम जाओ और परिवार का ख्याल रखो और तुम्हारे बेटे, सयाने, वे तुम्हारा ख्याल रखेंगे । मुझे संयास लेने दो । " तो वह अकेले हो जाता है और वह हासिल की गई ज्ञान का उपदेश देता है । यह वैदिक सभ्यता है । एसा नहीं कि एक आदमी जन्म से मृत्यु तक परिवार के जीवन में बना रहे । बौद्ध धर्म में भी अनिवार्य नियामक सिद्धांत है कि एक बौद्ध को कम से कम दस साल के लिए एक सन्यासी होना चाहिए । हां । क्योंकि सारा विचार है कि कैसे आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त करें । तो अगर कोई अपने परिवार के जीवन में रहता है, भारग्रस्त, वह कोई भी आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर सकता । लेकिन अगर परिवार भी, पूरा परिवार श्री कृष्ण के प्रति जागरूक है तो यह उपयोगी है । लेकिन यह बहुत ही दुर्लभ है । क्योंकि पति कृष्ण के प्रति जागरूक हो सकता है, पत्नी नहीं हो सकती है । लेकिन संस्कृति इतनी अच्छा थी हर कोई कृष्ण के प्रति जागरूक बने रहता था ।