HI/Prabhupada 0602 -पिता परिवार के नेता हैं: Difference between revisions

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यह सवाल मैंने प्रोफेसर कोटोवस्कि से पूछा । मैंने उनसे पूछा, "कहां अंतर है तत्वज्ञान में अापके कम्युनिस्ट तत्वज्ञान और हमारे कृष्ण भावनामृत तत्वज्ञान के बीच? आपको एक मुख्य आदमी को स्वीकार करना होगा, लेनिन या स्टालिन, और हमने भी एक मुख्य आदमी का चयन किया है, या भगवान कृष्ण । तो आप लेनिन, या स्टालिन या मोलोटोव या इसके या उसके अादेशों को मान रहे हैं । हम पालन कर रहे तत्वज्ञान या निर्देश कृष्ण का । इसलिए सिद्धांत पर, कहां अंतर है ? कोई अंतर नहीं है ।" तो प्रोफेसर उसका जवाब नहीं दे सके । तुम अपने दैनिक मामलों का संचालन नहीं कर सकते हो किसी और के तहत न होकर । यही स्वीकार किया जाना चाहिए । तो यह प्रकृति का नियम है । तो नित्यो नित्यानाम् चेतनश् चेतनानाम ( कथा उपनिषद २।२।१३) । तो फिर क्यों तुम सर्वोच्च अधिकार को स्वीकार नहीं करते हो ? यह अधीनस्थ अधिकार ... हमें अपने नेता के रूप में किसी को स्वीकार करना होगा । यह संभव नहीं है कि हम नेतृत्व के बिना रह सकते हैं । यह संभव नहीं है । कोई भी पार्टी है, कोई भी स्कूल है, या कोई भी संस्था है, जो चल रही है बिना किसी प्रमुख नेता या निर्देशक के ? मुझे कोई उदाहरण दिखा सकते हैं आप पूरी दुनिया भर में ? किसी भी उदाहरण है? नहीं । जैसे हमारे शिविर कोई चला गया है, लेकिन उसने मुख्य के रूप में गौरसंन्दर या सिद्ध-स्वरूप महाराजा को स्वीकार किया है । सिद्धांत तो हैं कि तुम्हे एक मुख्य को स्वीकार करना होगा । लेकिन बुद्धिमान वह है, कि हम किस तरह का नेतृत्व स्वीकार करते हैं । यह ज्ञान है । हम दास्यता स्वीकार करनी होगी, किसी का दास बनना, तो बुद्धिमत्ता है कि "किसे हम स्वीकार करते हैं ?" वहॉ है बुद्धिमत्ता,: "हम किस तरह का नेता स्वीकार करते हैं ? तो हमारा सिद्धांत है कि कृष्ण को नेता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं, मत्त: परतरम नान्यत किन्चिद अस्ति धनन्जय ([[Vanisource:BG 7.7|भ गी ७।७]]) कृष्ण सर्वोच्च नेता है. एको बहू....नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम एको यो बहूनाम विदधाति (कथा उपनिषद २।२।१३) नेता मतलब है वह होना चाहिए ... जैसे पिता की तरह होगा पिता परिवार के नेता हैं । और क्यों पिता नेता हैं ? क्योंकि वे कमाते हैं, वे बच्चे, पत्नी, नौकर, और घर का रखरखाव करते हैं; इसलिए स्वाभाविक रूप से, वे परिवार के नेता स्वीकार किए जाते हैं । इसी तरह, तुमने अपने देश के नेता के रूप में राष्ट्रपति निक्सन को स्वीकार किया है क्योंकि खतरनाक समय में वे दिशा देते हैं, शांति के समय में वे दिशा देते हैं । वे व्यस्त रहते हैं कि कैसे तुम्हे खूश रखें, बिना किसी भी परवाह, चिंता के । यह राष्ट्रपति का कर्तव्य है । नहीं तो, क्यों तुम एक राष्ट्रपति का चयन करते हो ? कोई भी आदमी किसी भी राष्ट्रपति के बिना रह सकता है, लेकिन नहीं, यह आवश्यक है । तो इसी तरह, वेद कहते हैं, नित्यो नित्यानाम चेनतश चेतनानाम जीव दो प्रका के हैं । एक ... दोनों नित्या हैं । नित्या का मतलब है अनन्त । और चेतना का मतलब है जीव । तो नित्यो नित्यानाम चेनतश चेतनानाम । यह भगवान का वर्णन है, कि भगवान भी तुम्हारे और मेरे जैसे एक जीव हैं । वे भी जीव हैं । जैसे तुम कृष्ण को देखते हो । कृष्ण के बीच क्या अंतर है ? उनके दो हाथ हैं, तुम्हारे दो हाथ हैं । उनका एक सिर है, तुम्हारा एक सिर है । तुम्हारे पास ... उनके दो पैरों मिला हैं, तुम्हारे दो पैर हैं । तुम भी कुछ गाय रख कर और उनके साथ खेल सकते हो, श्री कृष्ण भी । लेकिन अंतर है । वह क्या अंतर है ? एको यो बहूनाम विदधााति । वे एक कृष्ण,हालांकि वे तुम्हारे साथ कई मायनों में समान हैं , समानता, लेकिन एक फर्क है - वे हम में से हर एक का रखरखाव कर रहे हैं, , और हम उनके रखरखाव में हैं । वे नेता हैं । अगर कृष्ण तुम्हे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो तुम्हे कोई खाद्य पदार्थ नहीं मिलेगा । अगर कृष्ण तुम्हे पेट्रोल की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो तुम अपनी कार चला नहीं सकते । तो एको बहूनाम यो विदधाति । हमारे जीवन की जो भीआवश्यकताऍ हैं - हम ऐसी बहुत सी बातें की आवश्यकता होती है - जो एक द्वारा आपूर्ति की जाती है , उस एक जीव द्वारा - यह अंतर है । हम एक छोटे से परिवार को भी नहीं संभाल सकते हैं, हमारी क्षमता बहुत सीमित है । विशेष रूप से वर्तमान क्षण में, इस युग में, एक आदमी शादी नहीं करना पसंद करता क्योंकि वह एक परिवार, पत्नी और बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ है । वह उनकी देखभाल नहीं कर सकता है, एक परिवार जो चार या पांच जीवों का है ।
यह सवाल मैंने प्रोफेसर कोटोवस्कि से पूछा । मैंने उनसे पूछा, "कहां अंतर है तत्वज्ञान में अापके साम्यवादी तत्वज्ञान और हमारे कृष्ण भावनामृत तत्वज्ञान के बीच? आपको एक मुख्य आदमी को स्वीकार करना होगा, लेनिन या स्टालिन, और हमने भी एक मुख्य आदमी का चयन किया है, या भगवान कृष्ण का । तो आप लेनिन, या स्टालिन या मोलोटोव या इसके या उसके अादेशों को मान रहे हैं । हम पालन कर रहे तत्वज्ञान या निर्देश कृष्ण का । इसलिए सिद्धांत पर, कहां अंतर है ? कोई अंतर नहीं है ।" तो प्रोफेसर उसका जवाब नहीं दे सके ।  
 
तुम किसी और के तहत न होकर अपने दैनिक मामलों का संचालन नहीं कर सकते । यही स्वीकार किया जाना चाहिए । तो यह प्रकृति का नियम है । तो नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) । तो फिर क्यों तुम सर्वोच्च अधिकार को स्वीकार नहीं करते हो ? यह अधीनस्थ अधिकार... हमें अपने नेता के रूप में किसी को स्वीकार करना होगा । हम नेतृत्व के बिना रहे यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । क्या कोई भी दल है, कोई भी स्कूल, या कोई भी संस्था, जो चल रही है बिना किसी प्रमुख नेता या निर्देशक के ? मुझे कोई उदाहरण दिखा सकते हैं आप पूरी दुनिया भर में ? कोई भी उदाहरण है? नहीं । जैसे हमारे शिविर से कोई चला गया है, लेकिन उसने मुख्य के रूप में गौरसुन्दर या सिद्ध-स्वरूप महाराज को स्वीकार किया है ।  
 
सिद्धांत तो हैं कि तुम्हे एक मुख्य को स्वीकार करना होगा । लेकिन बुद्धिमान वह है, कि हम किस तरह का नेतृत्व स्वीकार करते हैं । यह ज्ञान है । हमें दास्यता स्वीकार करनी होगी, किसी का दास बनना, तो बुद्धिमत्ता है कि "किसे हम स्वीकार करते हैं ?" वहॉ है बुद्धिमत्ता: "हम किस तरह का नेता स्वीकार करते हैं ? तो हमारा सिद्धांत है कि कृष्ण को नेता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं, मत्त: परतरम नान्यत किन्चिद अस्ति धनन्जय ([[HI/BG 7.7|भ.गी. ७.७]]) | कृष्ण सर्वोच्च नेता है | एको बहू... नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम एको यो बहूनाम विदधाति (कठ उपनिषद २.२.१३) |
 
नेता मतलब है वह होना चाहिए... जैसे पिता की तरह होगा | पिता परिवार के नेता हैं । और क्यों पिता नेता हैं ? क्योंकि वे कमाते हैं, वे बच्चे, पत्नी, नौकर, और घर का पालन करते हैं; इसलिए स्वाभाविक रूप से, वे परिवार के नेता स्वीकार किए जाते हैं । इसी तरह, तुमने अपने देश के नेता के रूप में राष्ट्रपति निक्सन को स्वीकार किया है क्योंकि ख़तरे के समय में वे दिशा देते हैं, शांति के समय में वे दिशा देते हैं । वे व्यस्त रहते हैं कि कैसे तुम्हे खूश रखें, बिना किसी भी परवाह, चिंता के । यह राष्ट्रपति का कर्तव्य है । नहीं तो, क्यों तुम एक राष्ट्रपति का चयन करते हो ? कोई भी आदमी किसी भी राष्ट्रपति के बिना रह सकता है, लेकिन नहीं, यह आवश्यक है ।  
 
तो इसी तरह, वेद कहते हैं, नित्यो नित्यानाम चेनतश चेतनानाम | जीव दो प्रकार के हैं । एक... दोनों नित्य हैं । नित्य का मतलब है शाश्वत । और चेतन का मतलब है जीव । तो नित्यो नित्यानाम चेनतश चेतनानाम । यह भगवान का वर्णन है, कि भगवान भी तुम्हारे और मेरे जैसे एक जीव हैं । वे भी जीव हैं । जैसे तुम कृष्ण को देखते हो । कृष्ण के बीच क्या अंतर है ? उनके दो हाथ हैं, तुम्हारे दो हाथ हैं । उनका एक सिर है, तुम्हारा एक सिर है । तुम्हारे पास... उनके दो पैर हैं, तुम्हारे दो पैर हैं । तुम भी कुछ गाय रख कर उनके साथ खेल सकते हो, श्री कृष्ण भी । लेकिन अंतर है । वह क्या अंतर है ? एको यो बहूनाम विदधाति । वे एक कृष्ण, हालांकि वे तुम्हारे साथ कई मायनों में समान हैं, समानता, लेकिन एक फर्क है - वे हम में से हर एक का पालन कर रहे हैं, और हम उनके पालन में हैं । वे नेता हैं ।  
 
अगर कृष्ण तुम्हे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो तुम्हे कोई खाद्य पदार्थ नहीं मिलेगा । अगर कृष्ण तुम्हे पेट्रोल की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो तुम अपनी गाड़ी चला नहीं सकते । तो एको बहूनाम यो विदधाति । हमारे जीवन की जो भीआवश्यकताऍ हैं - हमें ऐसी बहुत सी चीज़ो की आवश्यकता होती है - जो आपूर्ति की जाती है, उस एक जीव द्वारा - यह अंतर है । हम एक छोटे से परिवार को भी नहीं संभाल सकते हैं, हमारी क्षमता बहुत सीमित है । विशेष रूप से वर्तमान क्षण में, इस युग में, एक आदमी शादी नहीं करना पसंद करता क्योंकि वह एक परिवार, पत्नी और बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ है । वह उनकी देखभाल नहीं कर सकता है, एक परिवार जो चार या पांच जीवों का है ।  
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Latest revision as of 18:56, 17 September 2020



Lecture on SB 1.16.21 -- Hawaii, January 17, 1974

यह सवाल मैंने प्रोफेसर कोटोवस्कि से पूछा । मैंने उनसे पूछा, "कहां अंतर है तत्वज्ञान में अापके साम्यवादी तत्वज्ञान और हमारे कृष्ण भावनामृत तत्वज्ञान के बीच? आपको एक मुख्य आदमी को स्वीकार करना होगा, लेनिन या स्टालिन, और हमने भी एक मुख्य आदमी का चयन किया है, या भगवान कृष्ण का । तो आप लेनिन, या स्टालिन या मोलोटोव या इसके या उसके अादेशों को मान रहे हैं । हम पालन कर रहे तत्वज्ञान या निर्देश कृष्ण का । इसलिए सिद्धांत पर, कहां अंतर है ? कोई अंतर नहीं है ।" तो प्रोफेसर उसका जवाब नहीं दे सके ।

तुम किसी और के तहत न होकर अपने दैनिक मामलों का संचालन नहीं कर सकते । यही स्वीकार किया जाना चाहिए । तो यह प्रकृति का नियम है । तो नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) । तो फिर क्यों तुम सर्वोच्च अधिकार को स्वीकार नहीं करते हो ? यह अधीनस्थ अधिकार... हमें अपने नेता के रूप में किसी को स्वीकार करना होगा । हम नेतृत्व के बिना रहे यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । क्या कोई भी दल है, कोई भी स्कूल, या कोई भी संस्था, जो चल रही है बिना किसी प्रमुख नेता या निर्देशक के ? मुझे कोई उदाहरण दिखा सकते हैं आप पूरी दुनिया भर में ? कोई भी उदाहरण है? नहीं । जैसे हमारे शिविर से कोई चला गया है, लेकिन उसने मुख्य के रूप में गौरसुन्दर या सिद्ध-स्वरूप महाराज को स्वीकार किया है ।

सिद्धांत तो हैं कि तुम्हे एक मुख्य को स्वीकार करना होगा । लेकिन बुद्धिमान वह है, कि हम किस तरह का नेतृत्व स्वीकार करते हैं । यह ज्ञान है । हमें दास्यता स्वीकार करनी होगी, किसी का दास बनना, तो बुद्धिमत्ता है कि "किसे हम स्वीकार करते हैं ?" वहॉ है बुद्धिमत्ता: "हम किस तरह का नेता स्वीकार करते हैं ? तो हमारा सिद्धांत है कि कृष्ण को नेता के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं, मत्त: परतरम नान्यत किन्चिद अस्ति धनन्जय (भ.गी. ७.७) | कृष्ण सर्वोच्च नेता है | एको बहू... नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम एको यो बहूनाम विदधाति (कठ उपनिषद २.२.१३) |

नेता मतलब है वह होना चाहिए... जैसे पिता की तरह होगा | पिता परिवार के नेता हैं । और क्यों पिता नेता हैं ? क्योंकि वे कमाते हैं, वे बच्चे, पत्नी, नौकर, और घर का पालन करते हैं; इसलिए स्वाभाविक रूप से, वे परिवार के नेता स्वीकार किए जाते हैं । इसी तरह, तुमने अपने देश के नेता के रूप में राष्ट्रपति निक्सन को स्वीकार किया है क्योंकि ख़तरे के समय में वे दिशा देते हैं, शांति के समय में वे दिशा देते हैं । वे व्यस्त रहते हैं कि कैसे तुम्हे खूश रखें, बिना किसी भी परवाह, चिंता के । यह राष्ट्रपति का कर्तव्य है । नहीं तो, क्यों तुम एक राष्ट्रपति का चयन करते हो ? कोई भी आदमी किसी भी राष्ट्रपति के बिना रह सकता है, लेकिन नहीं, यह आवश्यक है ।

तो इसी तरह, वेद कहते हैं, नित्यो नित्यानाम चेनतश चेतनानाम | जीव दो प्रकार के हैं । एक... दोनों नित्य हैं । नित्य का मतलब है शाश्वत । और चेतन का मतलब है जीव । तो नित्यो नित्यानाम चेनतश चेतनानाम । यह भगवान का वर्णन है, कि भगवान भी तुम्हारे और मेरे जैसे एक जीव हैं । वे भी जीव हैं । जैसे तुम कृष्ण को देखते हो । कृष्ण के बीच क्या अंतर है ? उनके दो हाथ हैं, तुम्हारे दो हाथ हैं । उनका एक सिर है, तुम्हारा एक सिर है । तुम्हारे पास... उनके दो पैर हैं, तुम्हारे दो पैर हैं । तुम भी कुछ गाय रख कर उनके साथ खेल सकते हो, श्री कृष्ण भी । लेकिन अंतर है । वह क्या अंतर है ? एको यो बहूनाम विदधाति । वे एक कृष्ण, हालांकि वे तुम्हारे साथ कई मायनों में समान हैं, समानता, लेकिन एक फर्क है - वे हम में से हर एक का पालन कर रहे हैं, और हम उनके पालन में हैं । वे नेता हैं ।

अगर कृष्ण तुम्हे खाद्य पदार्थों की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो तुम्हे कोई खाद्य पदार्थ नहीं मिलेगा । अगर कृष्ण तुम्हे पेट्रोल की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो तुम अपनी गाड़ी चला नहीं सकते । तो एको बहूनाम यो विदधाति । हमारे जीवन की जो भीआवश्यकताऍ हैं - हमें ऐसी बहुत सी चीज़ो की आवश्यकता होती है - जो आपूर्ति की जाती है, उस एक जीव द्वारा - यह अंतर है । हम एक छोटे से परिवार को भी नहीं संभाल सकते हैं, हमारी क्षमता बहुत सीमित है । विशेष रूप से वर्तमान क्षण में, इस युग में, एक आदमी शादी नहीं करना पसंद करता क्योंकि वह एक परिवार, पत्नी और बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ है । वह उनकी देखभाल नहीं कर सकता है, एक परिवार जो चार या पांच जीवों का है ।