HI/Prabhupada 0717 - मेरे पिता एक भक्त थे, और उन्होंने हमें प्रशिक्षित किया: Difference between revisions

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प्रभुपाद: तो अपने जीवन के बहुत शुरुआत से, जैसे प्रहलाद महाराज नें किया कौमार अाचरेत प्राज्ञो धर्मान भागवतान इह ([[Vanisource:SB 7.6.1|श्री भ ७।६।१]]) । वे पांच साल के थे, और अपने जीवन के शुरुआत से वे कृष्ण के प्रति जागरूक थे, और वे अपने कक्षा के दोस्तों को कृष्ण भावनामृत को सिखाते थे । प्रहलाद महाराज, स्कूल में, वे छोटे बच्चों में कृष्ण भावनामृत का प्रचार करते थे । तो पालन करने की कोशिश करो, महाजनो गत: स पंथ: ([[Vanisource:CC Madhya 17.186|चै च मध्य १७।१८६]]) । प्रहलाद महाराजा जैसे महान व्यक्तित्व के चरणों का अनुसरण करते हुए, ध्रुव महाराज । वे बच्चे थे; फिर भी वे सर्वोच्च भक्त बन गए । कई और लोग भी हैं । कुमार, वे बहुत सर्वोच्च भक्त थे । तो जाहिर है थोड़े प्रयास की आवश्यकता है । प्रहलाद महाराज के पिता एक दानव, नंबर एक नास्तिक थे । फिर भी, प्रहलाद महाराज को नारद मुनि को सुनने का मौका मिला जब वे अपनी मां के गर्भ के भीतर थे । नारद मुनि, उनकी माँ को निर्देश दे रहे थे थे, लेकिन प्रहलाद महाराज जो अपनी मां के गर्भ के भीतर थे उन्होंने नारद मुनि की सब बातें सुनी । इसलिए मां के गर्भ से बाहर आने से पहले वे भागवत दर्शन समझ गए । तो अपने जीवन के शुरू से ही वे भागवत थे । भागवत का मतलब है भक्त । इसलिए हम प्रहलाद महाराज का अनुसरण कर सकते हैं, ध्रुव महाराज बेशक, इसमें माता पिता की मदद की आवश्यकता है । अन्यथा, अगर हम भागवत-धर्म या भक्ति योग का अभ्यास करते हैं, हमारे जीवन के बहुत शुरुआत से, यह सफल जीवन है । सौभाग्य से, हमारे पास अच्छा मौका था बहुत बचपन से ही भागवत-धर्म सीखने का । मेरे पिता एक भक्त थे, और उन्होंने हमें प्रशिक्षित किया । तो यह सभी माता पिता का कर्तव्य है कि वे भागवत-धर्म में बच्चों को प्रशिक्षित करें । तभी जीवन सफल है । अन्यथा जीवन सफल नहीं है । नीचे गिरने की पूरी संभावना है । नीचे गिरने का मतलब है जीवन का लक्ष्य है आध्यात्मिक जीवन के मंच तक बढना । अौर अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम पशु जीवन में नीचे गिर जाते हैं । जीवन की कई प्रजातियां हैं । तुमने अपने सामने देखा है । हम भी बिल्लि और कुत्ता हो सकते हैं । वहाँ एक महान विज्ञान है, लेकिन लोगों को ज्ञान नहीं है, न तो स्कूल में, कॉलेज में इन बातों को सिखाया जाता है । न तो वे जानते हैं, तथाकथित शिक्षक और शिक्षित व्यक्ति । वे नहीं जानते । इसलिए जहां तक ​​संभव हो, यह कृष्ण के दर्शन को समझने की कोशिश करो और जब भी तुम्हे समय मिले हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करो । मुझे लगता है तुम्हारे पास पर्याप्त समय है । वह मेरा अनुरोध है । यही हम दुनिया भर में प्रचार कर रहे हैं ।
प्रभुपाद: तो अपने जीवन की बहुत शुरुआत से, जैसे प्रहलाद महाराज नें किया, कौमार अाचरेत प्राज्ञो धर्मान भागवतान इह ([[Vanisource:SB 7.6.1|श्रीमद भागवतम ७.६.१]]) । वे पांच साल के थे, और अपने जीवन के शुरुआत से वे कृष्ण भावनाभावित थे, और वे अपने कक्षा के दोस्तों को कृष्ण भावनामृत को सिखाते थे । प्रहलाद महाराज, स्कूल में, वे छोटे बच्चों में कृष्ण भावनामृत का प्रचार करते थे । तो पालन करने की कोशिश करो, महाजनो येन गत: स पंथ: ([[Vanisource:CC Madhya 17.186|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६]]) । प्रहलाद महाराज, ध्रुव महाराज, जैसे महान व्यक्तित्व के चरणों का अनुसरण करो । वे बच्चे थे; फिर भी वे सर्वोच्च भक्त बन गए । कई और लोग भी हैं । कुमार, वे सर्वोच्च भक्त थे । तो जाहिर है थोड़े प्रयास की आवश्यकता है ।  
 
प्रहलाद महाराज के पिता एक दानव, नंबर एक नास्तिक थे । फिर भी, प्रहलाद महाराज को नारद मुनि को सुनने का मौका मिला जब वे अपनी मां के गर्भ के भीतर थे । नारद मुनि, उनकी माँ को निर्देश दे रहे थे, लेकिन प्रहलाद महाराज जो अपनी मां के गर्भ के भीतर थे उन्होंने नारद मुनि की सब बातें सुनी । इसलिए मां के गर्भ से बाहर आने से पहले वे भागवत तत्वज्ञान समझ गए । तो अपने जीवन के शुरू से ही वे भागवत थे । भागवत का मतलब है भक्त । इसलिए हम प्रहलाद महाराज, ध्रुव महाराज, का अनुसरण कर सकते हैं । अवश्य, इसमें माता पिता की मदद की आवश्यकता है । अन्यथा, अगर हम भागवत-धर्म या भक्ति योग का अभ्यास करते हैं, हमारे जीवन के बहुत शुरुआत से, यह सफल जीवन है ।  
 
सौभाग्य से, हमारे पास अच्छा मौका था बहुत बचपन से ही भागवत-धर्म सीखने का । मेरे पिता एक भक्त थे, और उन्होंने हमें प्रशिक्षित किया । तो यह सभी माता पिता का कर्तव्य है कि वे भागवत-धर्म में बच्चों को प्रशिक्षित करें । तभी जीवन सफल है । अन्यथा जीवन सफल नहीं है । नीचे गिरने की पूरी संभावना है । नीचे गिरने का मतलब है जीवन का लक्ष्य है आध्यात्मिक जीवन के मंच तक बढना । अौर अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम पशु जीवन में नीचे गिर जाते हैं ।  
 
जीवन की कई प्रजातियां हैं । तुमने अपने सामने देखा है । हम भी बिल्लि और कुत्ता हो सकते हैं । वहाँ एक महान विज्ञान है, लेकिन लोगों को ज्ञान नहीं है, न तो स्कूल में, कॉलेज में इन बातों को सिखाया जाता है । न तो वे जानते हैं, तथाकथित शिक्षक और शिक्षित व्यक्ति । वे नहीं जानते । इसलिए जहां तक ​​संभव हो, यह कृष्ण के तत्वज्ञान को समझने की कोशिश करो और जब भी तुम्हे समय मिले हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करो । मुझे लगता है तुम्हारे पास पर्याप्त समय है । वो मेरा अनुरोध है । यही हम दुनिया भर में प्रचार कर रहे हैं ।  
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Latest revision as of 07:22, 20 October 2018



Room Conversation -- January 26, 1975, Hong Kong

प्रभुपाद: तो अपने जीवन की बहुत शुरुआत से, जैसे प्रहलाद महाराज नें किया, कौमार अाचरेत प्राज्ञो धर्मान भागवतान इह (श्रीमद भागवतम ७.६.१) । वे पांच साल के थे, और अपने जीवन के शुरुआत से वे कृष्ण भावनाभावित थे, और वे अपने कक्षा के दोस्तों को कृष्ण भावनामृत को सिखाते थे । प्रहलाद महाराज, स्कूल में, वे छोटे बच्चों में कृष्ण भावनामृत का प्रचार करते थे । तो पालन करने की कोशिश करो, महाजनो येन गत: स पंथ: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६) । प्रहलाद महाराज, ध्रुव महाराज, जैसे महान व्यक्तित्व के चरणों का अनुसरण करो । वे बच्चे थे; फिर भी वे सर्वोच्च भक्त बन गए । कई और लोग भी हैं । कुमार, वे सर्वोच्च भक्त थे । तो जाहिर है थोड़े प्रयास की आवश्यकता है ।

प्रहलाद महाराज के पिता एक दानव, नंबर एक नास्तिक थे । फिर भी, प्रहलाद महाराज को नारद मुनि को सुनने का मौका मिला जब वे अपनी मां के गर्भ के भीतर थे । नारद मुनि, उनकी माँ को निर्देश दे रहे थे, लेकिन प्रहलाद महाराज जो अपनी मां के गर्भ के भीतर थे उन्होंने नारद मुनि की सब बातें सुनी । इसलिए मां के गर्भ से बाहर आने से पहले वे भागवत तत्वज्ञान समझ गए । तो अपने जीवन के शुरू से ही वे भागवत थे । भागवत का मतलब है भक्त । इसलिए हम प्रहलाद महाराज, ध्रुव महाराज, का अनुसरण कर सकते हैं । अवश्य, इसमें माता पिता की मदद की आवश्यकता है । अन्यथा, अगर हम भागवत-धर्म या भक्ति योग का अभ्यास करते हैं, हमारे जीवन के बहुत शुरुआत से, यह सफल जीवन है ।

सौभाग्य से, हमारे पास अच्छा मौका था बहुत बचपन से ही भागवत-धर्म सीखने का । मेरे पिता एक भक्त थे, और उन्होंने हमें प्रशिक्षित किया । तो यह सभी माता पिता का कर्तव्य है कि वे भागवत-धर्म में बच्चों को प्रशिक्षित करें । तभी जीवन सफल है । अन्यथा जीवन सफल नहीं है । नीचे गिरने की पूरी संभावना है । नीचे गिरने का मतलब है जीवन का लक्ष्य है आध्यात्मिक जीवन के मंच तक बढना । अौर अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम पशु जीवन में नीचे गिर जाते हैं ।

जीवन की कई प्रजातियां हैं । तुमने अपने सामने देखा है । हम भी बिल्लि और कुत्ता हो सकते हैं । वहाँ एक महान विज्ञान है, लेकिन लोगों को ज्ञान नहीं है, न तो स्कूल में, कॉलेज में इन बातों को सिखाया जाता है । न तो वे जानते हैं, तथाकथित शिक्षक और शिक्षित व्यक्ति । वे नहीं जानते । इसलिए जहां तक ​​संभव हो, यह कृष्ण के तत्वज्ञान को समझने की कोशिश करो और जब भी तुम्हे समय मिले हरे कृष्ण महा-मंत्र का जाप करो । मुझे लगता है तुम्हारे पास पर्याप्त समय है । वो मेरा अनुरोध है । यही हम दुनिया भर में प्रचार कर रहे हैं ।