HI/Prabhupada 0724 - भक्ति की परीक्षा

Revision as of 15:29, 15 August 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 French Pages with Videos Category:Prabhupada 0724 - in all Languages Category:FR-Quotes - 1976 Category:FR-Quotes - Le...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Lecture on SB 7.9.15 -- Mayapur, February 22, 1976

यह भौतिक दुनिया भक्तों के लिए बहुत, बहुत डरावनी है । वे बहुत, बहुत ज्यादा डरते हैं । यह अंतर है । भौतिकवादी व्यक्तियों, वे सोच रहे हैं "यह दुनिया बहुत लुभावनी है । हम आनंद ले रहे हैं । खाअो, पीअो, मौज करो और मजा लो । " लेकिन भक्तों, वे सोचते हैं, " यह बहुत, बहुत भयानक है । कितनी जल्दी हम इसे से बाहर निकल सकते हैं ? " मेरे गुरु महाराज कहा करते थे कि "यह भौतिक दुनिया किसी भी सज्जन के लिए रहने की जगह नहीं है ।" वह कहा करते थे । "कोई सज्जन यहाँ नहीं रह सकता है ।" तो ये बाते अभक्त समझ नहीं सकते हैं कितनी दुखदायी यह भौतिक दुनिया है । दुक्खाल ... कृष्ण कहते हैं कि यह दुक्खालयम् अशाश्वतम (भ गी ८।१५) यही भक्त और अभक्त के बीच का अंतर है । यह दुक्खालयम, वे इसे सुक्खालयम बनाने के लिए योजना बना रहे हैं । यह संभव नहीं है । तो जब हम इस भौतिक दुनिया के निराश नहीं हो जाते हैं, यह समझा जा सकता है कि वह अभी तक आध्यात्मिक समझ में नहीं है । भक्ति: परेशानुभवो विरक्तिर अन्यत्र स्यात (श्री भ ११।२।४२) यह भक्ति की परीक्षा है । अगर कोई भक्ति सेवा के क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है, यह भौतिक दुनिया बिल्कुल सुस्वादु नहीं लगेगी उसे । उसके लिए किया जाएगा. विरक्ति । अौर नहीं । अार नारे बाप । जगाइ-माधाइ, बहुत अधिक भौतिकवादी, महिला शिकारी, शराबी, मांस खाने वाले ... तो ये बातें अब आम मामले बन गए हैं । लेकिन यह भक्तों के लिए बहुत, बहुत भयभीत है । इसलिए हम कहते हैं, "कोई नशा नहीं, कोई अवैध सेक्स नहीं, कोई मांसाहार नहीं ।" यह बहुत, बहुत भयभीत है । लेकिन वे नहीं जानते । मूढ: नाभीजानाति । वे यह नहीं जानते । वे इसका सेवन करते हैं । पूरी दुनिया में इस मंच पर चल रही है । उसे पना नहीं कि वह एक बहुत, बहुत भयानक स्थिति पैदा कर रहा है इन पापी गतिविधियों का सेवन करके ।

तो इन आदतों से बाहर निकलने के लिए, यह तपस्या की आवश्यकता है ।

तपसा ब्रह्मचर्येण
शमेन दमेन वा
त्यागेन शौच...
यमेन नियमेन वा
(श्री भ ६।१।१३)

इसे आध्यात्मिक जीवन की उन्नति कहा जाता है, तपसा । पहली बात है तपस्या, स्वेच्छा से भौतिक दुनिया की इस तथाकथित आरामदायक स्थिति को त्यागना । यही तपस्या कहा जाता है । तपसा ब्रह्मचर्येण । और तपस्या को निष्पादित करने के लिए, पहली बात है ब्रह्मचर्य । ब्रह्मचर्य का मतलब है सेक्स भोग से बचना । उसे ब्रह्मचर्य कहा जाता है ।