HI/Prabhupada 0734 - जो बोल नहीं सकता है, वह एक महान वक्ता बन जाता है: Difference between revisions

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यहाँ सांख्य दर्शन, वर्णन है सांख्य दर्शन का । चौबीस तत्व, चौबीस तत्व । आठ स्थूल और सूक्ष्म तत्व हैं, और फिर उनके उत्पादन, दस इन्द्रियॉ, कामेन्द्रियॉ, और ज्ञान इंद्रियॉ । आठ, दस, अठारह। फिर इन्द्रोय भोग की वस्तुऍ, पाँच । अठारह अौर पांच, तेईस। और फिर आत्मा । चौबीस तत्व, सांख्य दर्शन, उनका विश्लेषण किया गया हैं। सांख्य दर्शन ... और यूरोपीय दार्शनिक, वे बहुत ज्यादा पसंद करते हैं इस सांख्य दर्शन को क्योंकि सांख्य दर्शन में इन चौबीस तत्वों को बहुत ज्यादा स्पष्टतापूर्वक समझाया गया है । सांख्य दर्शन । देहस तू सर्व-संघतो जगत। तो दो प्रकार के शीरर होते हैं, जगत अौर तस्थु: - चलते फिरते अौर स्थिर । लेकिन वे इन चौबीस तत्वों के संयोजन ही हैं। अत्रैव मृगय: परुषो नेति नेतीति । अब, इन चौबीस तत्वों से अात्मा का पता लगाना है नकारते हुए, "कहाँ आत्मा है, कहां आत्मा है, कहां आत्मा है।" लिकिन इस तरह से पता लगाया जा सकता है अगर वह नियमों और विनियमों, और प्रक्रिया का पालान कर रहा है । यह संभव है।
यहाँ सांख्य तत्वज्ञान, वर्णन है सांख्य तत्वज्ञान का । चौबीस तत्व, चौबीस तत्व । आठ स्थूल और सूक्ष्म तत्व हैं, और फिर उनके उत्पादन, दस इन्द्रियॉ, कामेन्द्रियॉ, और ज्ञान इंद्रियॉ । आठ, दस, अठारह । फिर इन्द्रिय भोग की वस्तुऍ, पाँच । अठारह अौर पांच, तेईस । और फिर आत्मा । चौबीस तत्व, सांख्य दर्शन, उनका विश्लेषण किया गया हैं । सांख्य तत्वज्ञान... और यूरोपीय तत्वज्ञानी, वे बहुत ज्यादा पसंद करते हैं इस सांख्य तत्वज्ञान को, क्योंकि सांख्य तत्वज्ञान में इन चौबीस तत्वों को बहुत ज्यादा स्पष्टतापूर्वक समझाया गया है । सांख्य तत्वज्ञान ।  
 
देहस तु सर्व-संघतो जगत । तो दो प्रकार के शरीर होते हैं, जगत अौर तस्थु: - चलते फिरते अौर स्थिर । लेकिन वे इन चौबीस तत्वों के संयोजन ही हैं । अत्रैव मृगय: परुषो नेति नेतीति । अब, इन चौबीस तत्वों से अात्मा का पता लगाना है नकारते हुए, "कहाँ आत्मा है, कहां आत्मा है, कहां आत्मा है ।" लिकिन इस तरह से पता लगाया जा सकता है अगर वह नियमों और विनियमों, और प्रक्रिया का पालन कर रहा है । यह संभव है ।


:अन्वया व्यतिरेकेण  
:अन्वया व्यतिरेकेण  
:विविकेनोशतात्मना  
:विविकेनोशतात्मना  
:स्वर्ग स्थान समाम्नायैर  
:स्वर्ग स्थान समाम्नायैर  
:विम्श्द्भिर असत्वरै:  
:विमृशद्भिर असत्वरै:  
 
तो आगे की समझ है, यह थोड़ा मुश्किल विषय है, लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है । प्रहलाद महाराज अपने राक्षसी दोस्तों को समझा रहे हैं । पांच साल का बालक, कैसे वह सांख्य तत्वज्ञान को समझा रहा है ? क्योंकि वह भक्त है, और उसने अधिकारियों से, नारद मुनि से, पूरा तत्वज्ञान सुना है । मूखम करोति वाचालम पंगुम लंघयते गिरिम । इसलिए, आध्यात्मिक गुरु की दया का वर्णन किया गया है, मूखम करोति वाचालम । मुखम का मतलब है गूंगा, जो बोल नहीं सकता है । वह एक महान व्याख्याता या वक्ता बन जाता है । हालांकि वह गूंगा है, लेकिन वह एक महान व्याख्याता बन सकता है, मूखम करोति वाचालम ।


तो आगे की व्याख्या, यह थोड़ा मुश्किल विषय है, लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है। प्रहलाद महाराज अपने राक्षसी दोस्तों को समझा रहे हैं । पांच साल का बालक, कैसे वह सांख्य दर्शन को समझा रहा है ? क्योंकि वह भक्त है, और उसने अधिकारियों से पूरा दर्शन सुना है, नारद मुनि । मूखम् करोति वाचालम् पंगुम् लंघायते गिरिम । इसलिए, आध्यात्मिक गुरु की दया का वर्णन किया गया है, मूखम करोति वाचालम । मुखम का मतलब है गूंगा, जो बोल नहीं सकता है । वह एक महान व्याख्याता या वक्ता बन जाता है । हालांकि वह गूंगा है, लेकिन वह एक महान व्याख्याता बन सकता है, मूखम करोति वाचालम । पंगुम लंघायते गिरिम, और हो नहीं चल सकता है, जो लंगड़ा है, वह पहाड़ों को पार कर सकता है । मुखम करोति वाचालम पंगुम् लंघायते ....यत कृपा तम अहम् वंदे, कि किसकी कृपा से ये सब संभव है, मैं अपना सम्मानपूर्वक दण्डवत करता हूँ । परम आनंद भवम, भगवानम, रसराज । श्री कृष्ण की कृपा से यह संभव है। भौतिक हिसाब से यह संभव नहीं है। भौतिक हिसाब से कोई कहेगा, " यह कैसे संभव है ? आप कहते हैं कि गूंगा बहुत अच्छी तरह से व्याख्यान दे रहा है? यह संभव नहीं है। " या, "यह लंगड़ा आदमी अब पहाड़ों को पार कर रहा है?" तो भौतिक दृष्टइ में यह संभव नहीं है। लेकिन श्री कृष्ण की कृपा से या उनके प्रतिनिधि ... जैसे प्रहलाद महाराज, पांच साल का बालक, वह आत्मा के स्थान के बारे में इतनी अच्छी तरह से समझा रहा है । क्यूँ? क्योंकि उसने नारद मुनि की कृपा प्राप्त की है, श्री कृष्ण के प्रतिनिधि । इसलिए यह संभव है ।
पंगुम लंघयते गिरिम, और जो चल नहीं सकता, जो लंगड़ा है, वह पहाड़ों को पार कर सकता है । मुखम करोति वाचालम पंगुम लंघयते... यत कृपा तम अहम वंदे, की जिसकी कृपा से ये सब संभव है, मैं अपना सम्मानपूर्वक दण्डवत प्रणाम करता हूँ । परम आनंद भवम, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, रसराज । कृष्ण की कृपा से यह संभव है । भौतिक हिसाब से यह संभव नहीं है । भौतिक हिसाब से कोई कहेगा, "यह कैसे संभव है ? आप कहते हैं कि गूंगा बहुत अच्छी तरह से व्याख्यान दे रहा है ? यह संभव नहीं है ।" या, "यह लंगड़ा आदमी अब पहाड़ों को पार कर रहा है?" तो भौतिक द्रष्टि में यह संभव नहीं है । लेकिन कृष्ण की कृपा से या उनके प्रतिनिधि की कृपा से... जैसे प्रहलाद महाराज, पांच साल का बालक, वह आत्मा के बंधारण के बारे में इतनी अच्छी तरह से समझा रहा है । क्यों ? क्योंकि उसने नारद मुनि की कृपा प्राप्त की है, कृष्ण के प्रतिनिधि । इसलिए यह संभव है ।  
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Latest revision as of 13:58, 20 October 2018



Lecture on SB 7.7.19-20 -- Bombay, March 18, 1971

यहाँ सांख्य तत्वज्ञान, वर्णन है सांख्य तत्वज्ञान का । चौबीस तत्व, चौबीस तत्व । आठ स्थूल और सूक्ष्म तत्व हैं, और फिर उनके उत्पादन, दस इन्द्रियॉ, कामेन्द्रियॉ, और ज्ञान इंद्रियॉ । आठ, दस, अठारह । फिर इन्द्रिय भोग की वस्तुऍ, पाँच । अठारह अौर पांच, तेईस । और फिर आत्मा । चौबीस तत्व, सांख्य दर्शन, उनका विश्लेषण किया गया हैं । सांख्य तत्वज्ञान... और यूरोपीय तत्वज्ञानी, वे बहुत ज्यादा पसंद करते हैं इस सांख्य तत्वज्ञान को, क्योंकि सांख्य तत्वज्ञान में इन चौबीस तत्वों को बहुत ज्यादा स्पष्टतापूर्वक समझाया गया है । सांख्य तत्वज्ञान ।

देहस तु सर्व-संघतो जगत । तो दो प्रकार के शरीर होते हैं, जगत अौर तस्थु: - चलते फिरते अौर स्थिर । लेकिन वे इन चौबीस तत्वों के संयोजन ही हैं । अत्रैव मृगय: परुषो नेति नेतीति । अब, इन चौबीस तत्वों से अात्मा का पता लगाना है नकारते हुए, "कहाँ आत्मा है, कहां आत्मा है, कहां आत्मा है ।" लिकिन इस तरह से पता लगाया जा सकता है अगर वह नियमों और विनियमों, और प्रक्रिया का पालन कर रहा है । यह संभव है ।

अन्वया व्यतिरेकेण
विविकेनोशतात्मना
स्वर्ग स्थान समाम्नायैर
विमृशद्भिर असत्वरै:

तो आगे की समझ है, यह थोड़ा मुश्किल विषय है, लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है । प्रहलाद महाराज अपने राक्षसी दोस्तों को समझा रहे हैं । पांच साल का बालक, कैसे वह सांख्य तत्वज्ञान को समझा रहा है ? क्योंकि वह भक्त है, और उसने अधिकारियों से, नारद मुनि से, पूरा तत्वज्ञान सुना है । मूखम करोति वाचालम पंगुम लंघयते गिरिम । इसलिए, आध्यात्मिक गुरु की दया का वर्णन किया गया है, मूखम करोति वाचालम । मुखम का मतलब है गूंगा, जो बोल नहीं सकता है । वह एक महान व्याख्याता या वक्ता बन जाता है । हालांकि वह गूंगा है, लेकिन वह एक महान व्याख्याता बन सकता है, मूखम करोति वाचालम ।

पंगुम लंघयते गिरिम, और जो चल नहीं सकता, जो लंगड़ा है, वह पहाड़ों को पार कर सकता है । मुखम करोति वाचालम पंगुम लंघयते... यत कृपा तम अहम वंदे, की जिसकी कृपा से ये सब संभव है, मैं अपना सम्मानपूर्वक दण्डवत प्रणाम करता हूँ । परम आनंद भवम, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान, रसराज । कृष्ण की कृपा से यह संभव है । भौतिक हिसाब से यह संभव नहीं है । भौतिक हिसाब से कोई कहेगा, "यह कैसे संभव है ? आप कहते हैं कि गूंगा बहुत अच्छी तरह से व्याख्यान दे रहा है ? यह संभव नहीं है ।" या, "यह लंगड़ा आदमी अब पहाड़ों को पार कर रहा है?" तो भौतिक द्रष्टि में यह संभव नहीं है । लेकिन कृष्ण की कृपा से या उनके प्रतिनिधि की कृपा से... जैसे प्रहलाद महाराज, पांच साल का बालक, वह आत्मा के बंधारण के बारे में इतनी अच्छी तरह से समझा रहा है । क्यों ? क्योंकि उसने नारद मुनि की कृपा प्राप्त की है, कृष्ण के प्रतिनिधि । इसलिए यह संभव है ।