HI/Prabhupada 0758 - उस व्यक्ति की सेवा करो जिसने कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है: Difference between revisions

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अगर कोइ श्री कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित करता हैं, यथा क्ṛष्णार्पित प्र​नस गूंथना-पुरुष​-निषेवया ([[Vanisource:SB 6.1.16|एसबी 6.1.16]])। जैसे-पुरुष, तुम ... श्री कृष्ण के लिए जीवन समर्पित करना असंभव है जब तक हम कृष्ण के भक्त की सेवा नहि करेन्ग़े टत्-पुरुष​-निषेवया। आप श्री कृष्ण को सीधे संपर्क नहीं कर सकते हैं। यह संभव नहीं है। आपको भक्त के माध्यम से जाना है। इसलिए श्री कृष्ण अपने भक्त को भेजते है "जाओ और उस्का उद्धार करो ।", बस ध्रुव महाराजा की तरह। उन्हे यह प्राप्त करने के लिए पता नहीं था की भग़वान का पक्श कैसे प्राप्त करे । परन्तु उन्कि उत्सुक्ता के कारण ... उन्हे भग़वान को देखना था । क्योंकि वे क्षत्रिय थे ... उन्कि माता ने कहा , कि " भगवान ही, तुम्हारी मदद कर सक्ते है, मेरे प्रिय पुत्र​। अगर तुम्हे अप्ने पिता के सिन्हासन का राजा बन्ना है , उन्ची उपाधि, तो केवल भगवान आपकी मदद कर सकते हैं। मैं मदद नहीं कर सकती। यह नहीं ... " तोह वह अटल थे , " मुजे भगवान को देख्न है"I तोह वे वन मे चले गये परन्तु भगवन्न तक कैसे पोहोचे यह उन्हे पतह नई था I पांच साल का लड़का है , उस्मे दृढ़ संकल्प है। तो श्री कृष्ण ने देखा कि "यह लड़का बहुत ही निर्धारित है।" इसलिए वह उनके प्रतिनिधि, नारद को भेजा: "वहा जायिये और उस्से सिखायिए I वह बहुत उत्सुक है।"
अगर कोइ कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित करता हैं, यथा कृष्णार्पित प्राणस तत-पुरुष​-निषेवया ([[Vanisource:SB 6.1.16|श्रीमद भागवतम ६..१६]]) । तत-पुरुष, तुम... जब तक हम कृष्ण के भक्त की सेवा नहीं करेंगे तब तक कृष्ण के लिए जीवन समर्पित करना असंभव है । तत-पुरुष​-निषेवया । आप कृष्ण का सीधा संपर्क नहीं कर सकते यह संभव नहीं है । आपको भक्त के माध्यम से जाना है । इसलिए कृष्ण अपने भक्त को भेजते है "जाओ और उसका उद्धार करो ।" जैसे ध्रुव महाराज की तरह । उन्हे यह पता नहीं था की पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की कृपा कैसे प्राप्त करे । परन्तु उनकी उत्सुक्ता के कारण... उन्हे भगवान को देखना था । क्योंकि वे क्षत्रिय थे... उनकी माता ने कहा, की "सिर्फ भगवान ही, तुम्हारी मदद कर सक्ते है, मेरे प्रिय पुत्र​ ।


इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, 'गुरु-क्ṛष्ण​-क्ṛपाय पाय भक्तिऌअता-बीज​ ([[Vanisource:CC Madhya 19.151|सीसी मध्य 19.151]])। आप भक्ति मे प्रवेश दुग्ग्ने दया से कर्ते है एक दया श्री कृष्ण की; एक और दया आध्यात्मिक गुरु की है। इसलिए यहां यह एक ही बात कहा जाता है , क्ṛष्णार्पित​-प्राणस तत्-पुरुष निषेवया, । एक मनुश्य क्ṛष्णार्पित प्राणह नहि हो सकता ,​ श्री कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित नहीं कर सकता, जब तक वह आध्यात्मिक गुरु की दया नही मिलति यहि रास्ता है । आपको सीधे नहीं मिल सकता। यह संभव नहीं है। इसलिए नरोत्तमदास ठाकुर केहते है, उन्के कई गीत है ... च​हाडिया व्ऐष्णव​-सेवा, निस्तार पायेछे केबा: "वैशनव की सेवा के बिना, किस्से मुक्ति मिली है? किसे भी नई ।" टाṅदेर चरण​-सेवि भक्त​-सने वास जनमे जनमे मोर एइ अभिलाष् नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं कि "मुजे गुरु कि सेवा कर्नि है , सनातन गोस्वामि , रूपा गोस्वामि , और भक्तों के संग​ में रहते हैं। " टाṅदेर चरण​-सेवि भक्त​-सने वास्.। नरोत्तमदास ठाकुर ने कहा, जनमे जनमे मोरा एई अभिलाष् । हमारी ... महत्वाकांक्षा यह होनी चहिये कि हम​ श्री कृष्ण कि सेवा कैसे करे परम्परा और गुरू के माध्यम से और भक्तों के संग​ में रहैं। यह प्रक्रिया है। इसलिए हम सभी दुनिया भर में इतने सारे केन्द्र खोल रहे हैं। यह नीति है , लोग इस्का मौका ले भक्तो का सन्ग़ और उन्कि सेवा कर्ने का मौका मिले तो यह सफल हो जाएगा। इसलिए यहां यह कहा जाता है, भक्ति-योग का अर्थ है, श्री कृष्ण के लिए जीवन समर्पित सिर्फ़ नहि कर्ना , लेकिन वैशनव के लिये भि , तत्-पुरुष​.तत्-पुरुष​ का मतलब है उस व्यक्ति की सेवा करे जिस्ने श्री कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है । दो बातें: श्री कृष्ण के प्रति और श्री कृष्ण के भक्त के प्रति समर्पण । हम अगर इस तरह से उन्न्ति कर्ते है तो, यह बहुत आसान हो जयेगा और हम भौतिक सन्क्रमन्न से मुक्त हो जायेन्ग़े I यही कहा गया है। ना तथा ह्य अघवान राजन पूयेत तप​-आदिभि ([[Vanisource:SB 6.1.16|एसबी 6.1.16]]) । तप​​-आदिभि , यह सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन यह विशेष रूप से इस युग​ में, बहुत, बहुत मुश्किल है। तो अगर हम् यह पाठ्यक्रम ले कि , हम केवल श्री कृष्ण के लिए जीवन समर्पित करे , और एक वैश्न्व को अप्नना जीवन समर्पित करे , तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा। बहुत बहुत धन्यवाद। भक्त: जया श्रील प्रभुपाद।
अगर तुम्हे अपने पिता के सिंहासन पर राजा बनना है, ऊंचा पद, तो केवल भगवान ही तुम्हारी मदद कर सकते हैं । मैं मदद नहीं कर सकती । यह नहीं... " तो वह अटल थे, "मुजे भगवान को देखना है I" तो वे वन मे चले गये परन्तु भगवान तक कैसे पहुंचे ये उन्हे पता नहीं था I पांच साल का लड़का है, उसमे दृढ़ संकल्प है । तो कृष्ण ने देखा की "यह लड़का बहुत ही द्रढ़ है।" इसलिए उन्होंने उनके प्रतिनिधि, नारद को भेजा: "वहा जाइए और उसे सिखाइए  I वह बहुत उत्सुक है ।"
 
इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, 'गुरु-कृष्ण कृपाय पाय भक्तिलता-बीज​ ([[Vanisource:CC Madhya 19.151|चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१५१]]) । आप दुगनी दया से भक्ति मे प्रवेश करते है | एक दया कृष्ण की; एक और दया है आध्यात्मिक गुरु की इसलिए यहां यह एक ही बात कही गई है, कृष्णार्पित​-प्राणस तत-पुरुष निषेवया । एक व्यक्ति कृष्णार्पित प्राण: नहीं हो सकता,​ कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित नहीं कर सकता, जब तक उसको आध्यात्मिक गुरु की दया नहीं मिलती यही रास्ता है । आपको सीधे नहीं मिल सकता । यह संभव नहीं है ।
 
इसलिए नरोत्तमदास ठाकुर कहते है, उनके कई गीत है... छाड़िया वैष्णव-सेवा, निस्तार पायेछे केबा: "वैष्णव की सेवा के बिना, किसे मुक्ति मिली है? किसीको नहीं ।" तांदेर चरण​-सेवि भक्त​-सने वास जनमे जनमे मोर एइ अभिलाष नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं की "मुझे गुरु की सेवा करनी है, सनातन गोस्वामी, रूप गोस्वामी, और भक्तों के संग​ में रहना हैं ।" तांदेर चरण​-सेवि भक्त​-सने वास । नरोत्तमदास ठाकुर ने कहा, जनमे जनमे मोर एई अभिलाष । हमारी... महत्वाकांक्षा यह होनी चाहिए की हम​ कृष्ण की सेवा कैसे करे परम्परा और गुरू के माध्यम से, और भक्तों के संग​ में रहैं । यह प्रक्रिया है । इसलिए हम सभी दुनिया भर में इतने सारे केन्द्र खोल रहे हैं ।
 
यह नीति है, लोग इसका लाभ ले भक्तो के संग का और उनकी सेवा करने का मौका मिले | तो यह सफल हो जाएगा । इसलिए यहां यह कहा जाता है, भक्ति-योग का अर्थ है, सिर्फ कृष्ण के लिए जीवन समर्पित नहीं करना, लेकिन वैष्णव के लिये भी, तत-पुरुष​ । तत-पुरुष​ का मतलब है उस व्यक्ति की सेवा करे जिसने कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है । दो बातें: कृष्ण के प्रति और कृष्ण के भक्त के प्रति समर्पण ।  
 
हम अगर इस तरह से उन्नति करते है तो, यह बहुत आसान हो जाएगा और हम भौतिक संक्रमण से मुक्त हो जाएंगे । यही कहा गया है । न तथा ही अघवान राजन पूयेत तप​-आदिभि: ([[Vanisource:SB 6.1.16|श्रीमद भागवतम ६..१६]]) । तप​​-आदिभि:, यह सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन यह विशेष रूप से इस युग​ में, बहुत, बहुत मुश्किल है । तो अगर हम् यह पाठ्यक्रम ले की, हम कृष्ण के लिए जीवन समर्पित करे, और वैष्णव को अपना जीवन समर्पित करे, तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



760516 - Lecture SB 06.01.16 - Honolulu

अगर कोइ कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित करता हैं, यथा कृष्णार्पित प्राणस तत-पुरुष​-निषेवया (श्रीमद भागवतम ६.१.१६) । तत-पुरुष, तुम... जब तक हम कृष्ण के भक्त की सेवा नहीं करेंगे तब तक कृष्ण के लिए जीवन समर्पित करना असंभव है । तत-पुरुष​-निषेवया । आप कृष्ण का सीधा संपर्क नहीं कर सकते । यह संभव नहीं है । आपको भक्त के माध्यम से जाना है । इसलिए कृष्ण अपने भक्त को भेजते है "जाओ और उसका उद्धार करो ।" जैसे ध्रुव महाराज की तरह । उन्हे यह पता नहीं था की पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की कृपा कैसे प्राप्त करे । परन्तु उनकी उत्सुक्ता के कारण... उन्हे भगवान को देखना था । क्योंकि वे क्षत्रिय थे... उनकी माता ने कहा, की "सिर्फ भगवान ही, तुम्हारी मदद कर सक्ते है, मेरे प्रिय पुत्र​ ।

अगर तुम्हे अपने पिता के सिंहासन पर राजा बनना है, ऊंचा पद, तो केवल भगवान ही तुम्हारी मदद कर सकते हैं । मैं मदद नहीं कर सकती । यह नहीं... " तो वह अटल थे, "मुजे भगवान को देखना है I" तो वे वन मे चले गये परन्तु भगवान तक कैसे पहुंचे ये उन्हे पता नहीं था I पांच साल का लड़का है, उसमे दृढ़ संकल्प है । तो कृष्ण ने देखा की "यह लड़का बहुत ही द्रढ़ है।" इसलिए उन्होंने उनके प्रतिनिधि, नारद को भेजा: "वहा जाइए और उसे सिखाइए I वह बहुत उत्सुक है ।"

इसलिए चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, 'गुरु-कृष्ण कृपाय पाय भक्तिलता-बीज​ (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१५१) । आप दुगनी दया से भक्ति मे प्रवेश करते है | एक दया कृष्ण की; एक और दया है आध्यात्मिक गुरु की । इसलिए यहां यह एक ही बात कही गई है, कृष्णार्पित​-प्राणस तत-पुरुष निषेवया । एक व्यक्ति कृष्णार्पित प्राण: नहीं हो सकता,​ कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित नहीं कर सकता, जब तक उसको आध्यात्मिक गुरु की दया नहीं मिलती । यही रास्ता है । आपको सीधे नहीं मिल सकता । यह संभव नहीं है ।

इसलिए नरोत्तमदास ठाकुर कहते है, उनके कई गीत है... छाड़िया वैष्णव-सेवा, निस्तार पायेछे केबा: "वैष्णव की सेवा के बिना, किसे मुक्ति मिली है? किसीको नहीं ।" तांदेर चरण​-सेवि भक्त​-सने वास जनमे जनमे मोर एइ अभिलाष नरोत्तमदास ठाकुर कहते हैं की "मुझे गुरु की सेवा करनी है, सनातन गोस्वामी, रूप गोस्वामी, और भक्तों के संग​ में रहना हैं ।" तांदेर चरण​-सेवि भक्त​-सने वास । नरोत्तमदास ठाकुर ने कहा, जनमे जनमे मोर एई अभिलाष । हमारी... महत्वाकांक्षा यह होनी चाहिए की हम​ कृष्ण की सेवा कैसे करे परम्परा और गुरू के माध्यम से, और भक्तों के संग​ में रहैं । यह प्रक्रिया है । इसलिए हम सभी दुनिया भर में इतने सारे केन्द्र खोल रहे हैं ।

यह नीति है, लोग इसका लाभ ले भक्तो के संग का और उनकी सेवा करने का मौका मिले | तो यह सफल हो जाएगा । इसलिए यहां यह कहा जाता है, भक्ति-योग का अर्थ है, सिर्फ कृष्ण के लिए जीवन समर्पित नहीं करना, लेकिन वैष्णव के लिये भी, तत-पुरुष​ । तत-पुरुष​ का मतलब है उस व्यक्ति की सेवा करे जिसने कृष्ण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है । दो बातें: कृष्ण के प्रति और कृष्ण के भक्त के प्रति समर्पण ।

हम अगर इस तरह से उन्नति करते है तो, यह बहुत आसान हो जाएगा और हम भौतिक संक्रमण से मुक्त हो जाएंगे । यही कहा गया है । न तथा ही अघवान राजन पूयेत तप​-आदिभि: (श्रीमद भागवतम ६.१.१६) । तप​​-आदिभि:, यह सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन यह विशेष रूप से इस युग​ में, बहुत, बहुत मुश्किल है । तो अगर हम् यह पाठ्यक्रम ले की, हम कृष्ण के लिए जीवन समर्पित करे, और वैष्णव को अपना जीवन समर्पित करे, तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।