HI/Prabhupada 0770 - मैं आत्मा से प्यार करता हूँ । आत्म तत्व वित । और क्यों मुझे आत्मा से प्यार है: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0770 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1974 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 6: Line 6:
[[Category:HI-Quotes - in France]]
[[Category:HI-Quotes - in France]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0769 - वैष्णव खुद बहुत खुश रहता है, क्योंकि उसका कृष्ण के साथ सीधा संबंध है|0769|HI/Prabhupada 0771 - एक भक्त, भौतिक आनंद और दिव्य आनंद में एक साथ समान रूप से रुचि नहीं रख सकता है|0771}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 14: Line 17:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|MwO5v7jsudg|मैं आत्मा से प्यार करता हूँ। यह तथ्य है।आत्म-तत्व-वित और क्यों मैं आत्मा से प्यार है <br/>- Prabhupāda 0770}}
{{youtube_right|pEwmWdHHev8|मैं आत्मा से प्यार करता हूँ । आत्म तत्व वित और क्यों मुझे आत्मा से प्यार है <br/>- Prabhupāda 0770}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<mp3player>File:740609SB-PARIS_clip1.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/740609SB-PARIS_clip1.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 26: Line 29:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
प्रभुपाद: हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन में, हम कुछ और विषय पर बात नहीं करते हैं। हम केवल कृष्ण की बात करते हैं। और अगर हम वर्तमान स्थिति में, कृष्ण की बात करते हैं, कम से कम, सौ वर्षों के लिए, फिर भी, हमारा भंडार समाप्त नहीं होगा। हमारे पास इतनी सारी किताबें हैं। एक सौ वर्षों के लिए, जो भी भंडार हमारे पास पहले से ही है, अगर हम इसे लगातार एक सौ वर्षों के लिए पढ़ें, और अगर श्रीमद-भागवत के एक शब्द को समझने की कोशिश करते हैं, तो उसे सौ वर्ष लगेंगे। यह एक शब्द जन्मादि अस्य यथा: ([[Vanisource:SB 1.1.1|भागवतम् १.१.१]]), इसे समझने की कोशिश करते हैं, तो आप एक सौ वर्षों तक इसे समझ सकते हैं। यह श्रीमद-भागवत इतना अच्छा है। हर दिन पढ़ते रहिए। आपको ... दोनों श्रीमद-भागवताम् , श्रीमद् भगवद् गीता समझ आ जाएगें। हर दिन, जैसे जैसे आपको और अधिक अनुभूति होगी, आत्मवित्, आप नया अर्थ, नया दृष्टिकॊण देखते हैं। श्रीमद-भागवत इतनी अच्छा है। अगर आप सिर्फ़ श्रीमद-भागवतम् पढ़तें हैं... विद्या भागवतावधी:एक विद्वान है ... विद्वता की सीमा क्या है? विद्वता की सीमा, जब आप श्रीमद-भागवतम् समझते हैं। वह सीमा है। बस और कुछ नहीं। इसके बाद और किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। इसलिए इसे शरोतावयादिसु यः परः ([[Vanisource:SB 2.1.1|भागवतम् २.१.१]]) कहा जाता है। परम, प्रथम श्रेणी।
प्रभुपाद: हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन में, हम कुछ और विषय पर बात नहीं करते हैं । हम केवल कृष्ण की बात करते हैं । और अगर हम वर्तमान स्थिति में, कृष्ण की बात करते हैं, कम से कम, सौ वर्षों के लिए, फिर भी, हमारा भंडार समाप्त नहीं होगा । हमारे पास इतनी सारी किताबें हैं । एक सौ वर्षों के लिए, जो भी भंडार हमारे पास पहले से ही है, अगर   हम इसे लगातार एक सौ वर्षों के लिए पढ़ें, और अगर श्रीमद-भागवत के एक शब्द को समझने की कोशिश करते हैं, तो उसे सौ वर्ष लगेंगे ।  


लेकिन अपशयताम्ं आत्म-तत्तवम् गृहेषु गृह-मेधीनाम् ([[Vanisource:SB 2.1.2|भागवतम् २.१.]])। गृहमेधी को यह पता नहीं होता कि आत्मा होती है और वह स्थायी है। और हम वास्तव में, हम खुशी के पीछे भाग रहे हैं। किसकी खुशी के लिए? यह आत्मा की खुशी है। यह कृष्ण की खुशी है। हम, हम इस शरीर की रक्षा करने के लिए प्रयास करते हैं। हम इस शरीर के बहुत ज्यादा शौकीन हैं। क्यों? क्योंकि वहाँ आत्मा है। हर कोई यह जानता है। जैसे ही इस शरीर से आत्मा चली जाती है, शरीर को बाहर फ़ेक दिया जाता है। सड़क पर इसे दूर फेंक दिया जाता है। कोई भी इसके लिए परवाह नहीं करता। मान लीजिए कि एक खूबसूरत आदमी और खूबसूरत लड़की, के शव सड़क पर पड़े हुए हैं- तो उनकी कोन परवाह करेगा। लेकिन जब तक आत्मा है, "ओह कितने अच्छे, सुदंर, कितने अच्छे, सुदंर लड़का, लड़की हैं।" आत्मा महत्वपूर्ण है। तो वास्तव में, हम इस शरीर को प्यार नहीं करते, क्योंकि वहाँ वही सुंदर शरीर है । आप क्यों परवाह नहीं करते? क्योंकि आत्मा नहीं है... इसलिए मैं आत्मा से प्यार है। यह तथ्य है। इसे आत्मवित, आत्म-तत्व-वित कहा जाता है।और क्यों मैं आत्मा से प्यार है? मैं श्री कृष्ण से प्यार करता हूँ। आत्मा कृष्ण का ही अंग है। तो, क्यों मुझे आत्मा से इतना लगाव है? क्योंकि वह कृष्ण का अंश है। तो अंत में, मैं कृष्ण से प्यार करता हूँ।यह निष्कर्ष है। और अगर मैं कृष्ण से प्यार नहीं करता तो वह मेरी असामान्य अवस्था होगी। और सामान्य अवस्था है कि मैं कृष्ण से प्रेम करू।इसलिए हम कृष्ण भावनामृतवकोजगाने की कोशिश कर रहे हैं। जैसे ही कोई कृष्ण भावनामृत मेें स्थिर हो जाता है और श्री कृष्ण से प्रेम करना आरंभ करता है, तब उसे किसी और को प्रेम करने की चाह नहीं होती है। स्वामिन् कृथार्थो अस्मि : "अब मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं।" तो अन्यथा, हमारे कई सवाल, कई जवाब होगें, तब तक जब तक हमें आत्म की अनुभूति नहीं हॊती, और हमारा समय नष्ट हॊ जाएगा तो, यह कृष्ण-प्रशंन, कृष्ण के बारे में पूछताछ, यह लगातार किया जाना चाहिए। और सभी उत्तर आपको भगवद् गीता और श्रीमद-भागवतम् में मिलेगा। और बस सवालों और जवाब से आपका जीवन सफल हो जाएगा।
यह एक शब्द जन्मादि अस्य यत: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रीमद भागवतम १.१.]]), इसे समझने की कोशिश करते हैं, तो आप एक सौ वर्षों तक इसे समझ सकते हैं । यह श्रीमद-भागवत इतना अच्छा है । हर दिन पढ़ते रहिए । आपको... दोनों श्रीमद-भागवतम, भगवद गीता । हर दिन, जैसे जैसे आपको और अधिक अनुभूति होगी, आत्मवित, आप नया अर्थ, नया दृष्टिकॊण देखते हैं । श्रीमद-भागवतम इतना अच्छा है । अगर आप सिर्फ़ श्रीमद-भागवतम पढ़तें हैं... विद्या भागवतावधी: । एक विद्वान है... विद्वता की सीमा क्या है ? विद्वता की सीमा, जब आप श्रीमद-भागवतम समझते हैं । वह सीमा है । बस और कुछ नहीं । इसके बाद और किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है । इसलिए इसे श्रोतव्यादिषु यः परः ([[Vanisource:SB 2.1.1|श्रीमद भागवतम २.१.१]]) कहा जाता है । परम, प्रथम श्रेणी ।  


बहुत बहुत धन्यवाद।
लेकिन अपश्यताम आत्म-तत्वम गृहेषु गृह-मेधीनाम ([[Vanisource:SB 2.1.2|श्रीमद भागवतम २.१.२]]) । गृहमेधी को यह पता नहीं होता की आत्मा होती है और वह स्थायी है । और हम वास्तव में, हम खुशी के पीछे भाग रहे हैं । किसकी खुशी के लिए ? यह आत्मा की खुशी है । यह कृष्ण की खुशी है । हम, हम इस शरीर की रक्षा करने के लिए प्रयास करते हैं । हम इस शरीर के बहुत ज्यादा शौकीन हैं । क्यों ? क्योंकि वहाँ आत्मा है । हर कोई यह जानता है । जैसे ही इस शरीर से आत्मा चली जाती है, शरीर को बाहर फ़ेक दिया जाता है । सड़क पर इसे दूर फेंक दिया जाता है । कोई भी इसके लिए परवाह नहीं करता ।


भक्त: जय प्रभुपाद।
मान लीजिए कि एक खूबसूरत आदमी और खूबसूरत लड़की, के शव सड़क पर पड़े हुए हैं - तो उनकी कोन परवाह करेगा । लेकिन जब तक आत्मा है, "ओह कितने अच्छे, सुदंर, कितने अच्छे, सुदंर लड़का, लड़की हैं ।" आत्मा महत्वपूर्ण है । तो वास्तव में, हम इस शरीर को प्यार नहीं करते, क्योंकि वहाँ वही सुंदर शरीर है । आप क्यों परवाह नहीं करते ? क्योंकि आत्मा नहीं है... इसलिए मुझे आत्मा से प्रेम है । यह तथ्य है । इसे आत्मवित, आत्म-तत्व-वित कहा जाता है । और क्यों मुझे आत्मा से प्रेम है ? क्योंकि मैं कृष्ण से प्यार करता हूँ । आत्मा कृष्ण का ही अंग है । तो, क्यों मुझे आत्मा से इतना लगाव है ? क्योंकि वह कृष्ण का अंश है ।
 
तो अंत में, मैं कृष्ण से प्यार करता हूँ । यह निष्कर्ष है । और अगर मैं कृष्ण से प्यार नहीं करता तो वह मेरी असामान्य अवस्था होगी । और सामान्य अवस्था है कि मैं कृष्ण से प्रेम करू । इसलिए हम कृष्ण भावनामृतव को जगाने की कोशिश कर रहे हैं । जैसे ही कोई कृष्ण भावनामृत मेें स्थिर हो जाता है और कृष्ण से प्रेम करना आरंभ करता है, तब उसे किसी और को प्रेम करने की चाह नहीं होती है । स्वामिन कृतार्थो अस्मि: "अब मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं ।" तो अन्यथा, हमारे कई सवाल, कई जवाब होगें, तब तक जब तक हमें आत्म की अनुभूति नहीं हॊती, और हमारा समय नष्ट हॊ जाएगा । तो, यह कृष्ण-प्रश्न, कृष्ण के बारे में पूछताछ, यह लगातार की जानी चाहिए । और सभी उत्तर आपको भगवद गीता और श्रीमद-भागवतम में मिलेंगे । और बस सवालों और जवाबों से आपका जीवन सफल हो जाएगा ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: जय प्रभुपाद ।
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 2.1.1 -- Paris, June 9, 1974

प्रभुपाद: हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन में, हम कुछ और विषय पर बात नहीं करते हैं । हम केवल कृष्ण की बात करते हैं । और अगर हम वर्तमान स्थिति में, कृष्ण की बात करते हैं, कम से कम, सौ वर्षों के लिए, फिर भी, हमारा भंडार समाप्त नहीं होगा । हमारे पास इतनी सारी किताबें हैं । एक सौ वर्षों के लिए, जो भी भंडार हमारे पास पहले से ही है, अगर हम इसे लगातार एक सौ वर्षों के लिए पढ़ें, और अगर श्रीमद-भागवत के एक शब्द को समझने की कोशिश करते हैं, तो उसे सौ वर्ष लगेंगे ।

यह एक शब्द जन्मादि अस्य यत: (श्रीमद भागवतम १.१.१), इसे समझने की कोशिश करते हैं, तो आप एक सौ वर्षों तक इसे समझ सकते हैं । यह श्रीमद-भागवत इतना अच्छा है । हर दिन पढ़ते रहिए । आपको... दोनों श्रीमद-भागवतम, भगवद गीता । हर दिन, जैसे जैसे आपको और अधिक अनुभूति होगी, आत्मवित, आप नया अर्थ, नया दृष्टिकॊण देखते हैं । श्रीमद-भागवतम इतना अच्छा है । अगर आप सिर्फ़ श्रीमद-भागवतम पढ़तें हैं... विद्या भागवतावधी: । एक विद्वान है... विद्वता की सीमा क्या है ? विद्वता की सीमा, जब आप श्रीमद-भागवतम समझते हैं । वह सीमा है । बस और कुछ नहीं । इसके बाद और किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है । इसलिए इसे श्रोतव्यादिषु यः परः (श्रीमद भागवतम २.१.१) कहा जाता है । परम, प्रथम श्रेणी ।

लेकिन अपश्यताम आत्म-तत्वम गृहेषु गृह-मेधीनाम (श्रीमद भागवतम २.१.२) । गृहमेधी को यह पता नहीं होता की आत्मा होती है और वह स्थायी है । और हम वास्तव में, हम खुशी के पीछे भाग रहे हैं । किसकी खुशी के लिए ? यह आत्मा की खुशी है । यह कृष्ण की खुशी है । हम, हम इस शरीर की रक्षा करने के लिए प्रयास करते हैं । हम इस शरीर के बहुत ज्यादा शौकीन हैं । क्यों ? क्योंकि वहाँ आत्मा है । हर कोई यह जानता है । जैसे ही इस शरीर से आत्मा चली जाती है, शरीर को बाहर फ़ेक दिया जाता है । सड़क पर इसे दूर फेंक दिया जाता है । कोई भी इसके लिए परवाह नहीं करता ।

मान लीजिए कि एक खूबसूरत आदमी और खूबसूरत लड़की, के शव सड़क पर पड़े हुए हैं - तो उनकी कोन परवाह करेगा । लेकिन जब तक आत्मा है, "ओह कितने अच्छे, सुदंर, कितने अच्छे, सुदंर लड़का, लड़की हैं ।" आत्मा महत्वपूर्ण है । तो वास्तव में, हम इस शरीर को प्यार नहीं करते, क्योंकि वहाँ वही सुंदर शरीर है । आप क्यों परवाह नहीं करते ? क्योंकि आत्मा नहीं है... इसलिए मुझे आत्मा से प्रेम है । यह तथ्य है । इसे आत्मवित, आत्म-तत्व-वित कहा जाता है । और क्यों मुझे आत्मा से प्रेम है ? क्योंकि मैं कृष्ण से प्यार करता हूँ । आत्मा कृष्ण का ही अंग है । तो, क्यों मुझे आत्मा से इतना लगाव है ? क्योंकि वह कृष्ण का अंश है ।

तो अंत में, मैं कृष्ण से प्यार करता हूँ । यह निष्कर्ष है । और अगर मैं कृष्ण से प्यार नहीं करता तो वह मेरी असामान्य अवस्था होगी । और सामान्य अवस्था है कि मैं कृष्ण से प्रेम करू । इसलिए हम कृष्ण भावनामृतव को जगाने की कोशिश कर रहे हैं । जैसे ही कोई कृष्ण भावनामृत मेें स्थिर हो जाता है और कृष्ण से प्रेम करना आरंभ करता है, तब उसे किसी और को प्रेम करने की चाह नहीं होती है । स्वामिन कृतार्थो अस्मि: "अब मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूं ।" तो अन्यथा, हमारे कई सवाल, कई जवाब होगें, तब तक जब तक हमें आत्म की अनुभूति नहीं हॊती, और हमारा समय नष्ट हॊ जाएगा । तो, यह कृष्ण-प्रश्न, कृष्ण के बारे में पूछताछ, यह लगातार की जानी चाहिए । और सभी उत्तर आपको भगवद गीता और श्रीमद-भागवतम में मिलेंगे । और बस सवालों और जवाबों से आपका जीवन सफल हो जाएगा ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय प्रभुपाद ।