HI/Prabhupada 0775 - कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है परिवारिक लगाव: Difference between revisions

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प्रभुपाद: आम तौर पर, लोग बहुत ज्यादा परिवारिक जीवन से जुड़े हैं । मैं कभी कभी कहता हूँ कि पश्चिमी देशों में युवा लड़के, वे कृष्ण भावनामृत में अाते हैं, उनकी केवल एक महान परिसंपत्ति है कि वे परिवार से जुड़े नहीं हैं । यह तो बहुत अच्छी योग्यता है। किसी न किसी तरह से, वे बन गए हैं । इसलिए श्री कृष्ण को उनका लगाव दृढ हो गया है । भारत में संगठित परिवार लगाव है। वे कोई दिलचस्पी नहीं कर रखते हैं । अब वे पैसे के पीछे हैं । मैंने अनुभव किया है । हाँ।
प्रभुपाद: आम तौर पर, लोग बहुत ज्यादा परिवारिक जीवन से जुड़े हैं । मैं कभी कभी कहता हूँ कि पश्चिमी देशों में युवा लड़के, वे कृष्ण भावनामृत में अाते हैं, उनकी केवल एक महान परिसंपत्ति है कि वे परिवार से जुड़े नहीं हैं । यह बहुत अच्छी योग्यता है । किसी न किसी तरह से, वे बन गए हैं । इसलिए कृष्ण से उनका लगाव दृढ हो गया है । भारत में संगठित परिवार लगाव है । उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं हैं । अब वे पैसे के पीछे हैं । मैंने अनुभव किया है । हाँ ।


इसलिए परिवारिक लगाव सबसे बड़ी बाधा है कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने में, लेकिन अगर पूरा परिवार श्री कृष्ण भावनाभावित है, तो यह बहुत अच्छा है । जैसे भक्तिविनोद ठाकुर की तरह । वे एक परिवारिक आदमी थे, लेकिन सभी - भक्तिविनोद ठाकुर, उनकी पत्नी, उनके बच्चे .. और सबसे अच्छे बच्चा हमारे गुरु महाराज, सबसे अच्छा बच्चा ... तो उन्होंने अपने अनुभव को गाया है ये दिन गृहे भगन देखि गृहेते गोलोक भय । अगर पूरा परिवार, हर कोई श्री कृष्ण की सेवा में लगा हुअा है, तो यह बहुत अच्छा है । यह साधारण परिवार नहीं है । यह लगाव साधारण लगाव नहीं है । लेकिन आम तौर पर लोग भौतिकता से जुड़े होते हैं । इसकी यहां निंदा की गई है । शेषम गृहेषु सक्तस्य प्रमत्तस्य अपयाति हि ([[Vanisource:SB 7.6.8|श्री भ ७।६।८]]) । उन्हे प्रमत्त कहा जाता है । हर कोई सोच रहा है, कि "मेरा परिवार, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा देश, मेरा समुदाय, यही सब कुछ है। श्री कृष्ण क्या हैं ? " यह माया द्वारा लगाया गया सबसे बड़ा भ्रम है । लेकिन कोई भी तुम्हे संरक्षण नहीं दे पाएगा ।  
इसलिए परिवारिक लगाव सबसे बड़ी बाधा है कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने में, लेकिन अगर पूरा परिवार कृष्ण भावनाभावित है, तो यह बहुत अच्छा है । जैसे भक्तिविनोद ठाकुर की तरह । वे एक परिवारिक आदमी थे, लेकिन, सभी - भक्तिविनोद ठाकुर, उनकी पत्नी, उनके बच्चे... और सबसे अच्छा बच्चा हमारे गुरु महाराज, सबसे अच्छा बच्चा... तो उन्होंने अपने अनुभव को गाया है, ये दिन गृहे भजन देखि गृहेते गोलोक भय । अगर पूरा परिवार, हर कोई कृष्ण की सेवा में लगा हुअा है, तो यह बहुत अच्छा है । यह साधारण परिवार नहीं है । यह लगाव साधारण लगाव नहीं है । लेकिन आम तौर पर लोग भौतिकता से जुड़े होते हैं । इसकी यहां निंदा की गई है । शेषम गृहेषु सक्तस्य प्रमत्तस्य अपयाति हि ([[Vanisource:SB 7.6.8|श्रीमद भागवतम ७.६.८]]) । उन्हे प्रमत्त कहा जाता है । हर कोई सोच रहा है, की "मेरा परिवार, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा देश, मेरा समुदाय, यही सब कुछ है । कृष्ण क्या हैं ?" यह माया द्वारा लगाया गया सबसे बड़ा भ्रम है । लेकिन कोई भी तुम्हे संरक्षण नहीं दे पाएगा ।  


:देहापत्य कलत्रादिष्व
:देहापत्य कलत्रादिशु
:अात्म सैन्येषु असत्स्व अपि  
:अात्म सैन्येषु असत्स्व अपि  
:तेषाम प्रमत्तो निधनम्
:तेषाम प्रमत्तो निधनम
:पश्यन्न अपि न पश्यति  
:पश्यन्न अपि न पश्यति  
:([[Vanisource:SB 2.1.4|श्री भ २।१।४]])
:([[Vanisource:SB 2.1.4|श्रीमद भागवतम २.१.४]])


सब कुछ खत्म हो जाएगा । कोई भी हमें श्सुरक्षा नहीं दे सकता है कृष्ण को छोड़कर । अगर हम माया के चंगुल से मुक्त होना चाहते हैं जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि ([[Vanisource:BG 13.9|भ गी १३।९]]) हमें श्री कृष्ण के चरण कमलों की शरण लेनी चाहिए, आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से, और भक्तों के साथ रहना चाहिए जो उसी उद्देश्य से लगे हुए हैं । यह कहा जाता है ... सही शब्द क्या है? सखी या कुछ और । अब मैं भूल रहा हूँ । लेकिन उसी श्रेणी में हमें रहना चाहिए और हमारे कृष्ण भावनामृत पर अमल करना चाहिए । तो फिर यह बाधाऍ, गृहेषु सक्तस्य प्रमत्तस्य । जो कोई भी,... सभी कर्मी, वे इस परिवार के जीवन से जुड़े होते हैं, लेकिन परिवारिक जीवन अच्छा है बशर्ते कृष्ण भावानमृत है । गृहे वा वनेते थाके, हा गौरणग बोले दाके । कोई बात नहीं, या तो वह परिवारिक जीवन में है या वह सन्यासी जीवन में है, अगर वह भक्त है, तो उसका जीवन सफल है ।  
सब कुछ खत्म हो जाएगा । कोई भी हमें सुरक्षा नहीं दे सकता है कृष्ण को छोड़कर । अगर हम माया के - जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि - के चंगुल से मुक्त होना चाहते हैं ([[HI/BG 13.8-12|भ.गी. १३.९]]) हमें कृष्ण के चरण कमलों की शरण लेनी चाहिए, आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से, और भक्तों के साथ रहना चाहिए जो उसी उद्देश्य से लगे हुए हैं । यह कहा जाता है... सही शब्द क्या है ? सखी या कुछ और । अब मैं भूल रहा हूँ । लेकिन उसी श्रेणी में हमें रहना चाहिए और हमारे कृष्ण भावनामृत पर अमल करना चाहिए । तो फिर यह बाधाऍ, गृहेषु सक्तस्य प्रमत्तस्य । जो कोई भी... सभी कर्मी, वे इस परिवार के जीवन से जुड़े होते हैं, लेकिन परिवारिक जीवन अच्छा है अगर कृष्ण भावानमृत है तो । गृहे वा वनेते थाके, हा गौरांग बोले दाके । कोई बात नहीं, या तो वह परिवारिक जीवन में है या वह सन्यासी जीवन में है, अगर वह भक्त है, तो उसका जीवन सफल है ।  


बहुत बहुत धन्यवाद ।  
बहुत बहुत धन्यवाद ।  


भक्त: जया प्रभुपाद ।
भक्त: जय प्रभुपाद ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Lecture on SB 7.6.8 -- New Vrindaban, June 24, 1976

प्रभुपाद: आम तौर पर, लोग बहुत ज्यादा परिवारिक जीवन से जुड़े हैं । मैं कभी कभी कहता हूँ कि पश्चिमी देशों में युवा लड़के, वे कृष्ण भावनामृत में अाते हैं, उनकी केवल एक महान परिसंपत्ति है कि वे परिवार से जुड़े नहीं हैं । यह बहुत अच्छी योग्यता है । किसी न किसी तरह से, वे बन गए हैं । इसलिए कृष्ण से उनका लगाव दृढ हो गया है । भारत में संगठित परिवार लगाव है । उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं हैं । अब वे पैसे के पीछे हैं । मैंने अनुभव किया है । हाँ ।

इसलिए परिवारिक लगाव सबसे बड़ी बाधा है कृष्ण भावनामृत में आगे बढ़ने में, लेकिन अगर पूरा परिवार कृष्ण भावनाभावित है, तो यह बहुत अच्छा है । जैसे भक्तिविनोद ठाकुर की तरह । वे एक परिवारिक आदमी थे, लेकिन, सभी - भक्तिविनोद ठाकुर, उनकी पत्नी, उनके बच्चे... और सबसे अच्छा बच्चा हमारे गुरु महाराज, सबसे अच्छा बच्चा... तो उन्होंने अपने अनुभव को गाया है, ये दिन गृहे भजन देखि गृहेते गोलोक भय । अगर पूरा परिवार, हर कोई कृष्ण की सेवा में लगा हुअा है, तो यह बहुत अच्छा है । यह साधारण परिवार नहीं है । यह लगाव साधारण लगाव नहीं है । लेकिन आम तौर पर लोग भौतिकता से जुड़े होते हैं । इसकी यहां निंदा की गई है । शेषम गृहेषु सक्तस्य प्रमत्तस्य अपयाति हि (श्रीमद भागवतम ७.६.८) । उन्हे प्रमत्त कहा जाता है । हर कोई सोच रहा है, की "मेरा परिवार, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा देश, मेरा समुदाय, यही सब कुछ है । कृष्ण क्या हैं ?" यह माया द्वारा लगाया गया सबसे बड़ा भ्रम है । लेकिन कोई भी तुम्हे संरक्षण नहीं दे पाएगा ।

देहापत्य कलत्रादिशु
अात्म सैन्येषु असत्स्व अपि
तेषाम प्रमत्तो निधनम
पश्यन्न अपि न पश्यति
(श्रीमद भागवतम २.१.४)

सब कुछ खत्म हो जाएगा । कोई भी हमें सुरक्षा नहीं दे सकता है कृष्ण को छोड़कर । अगर हम माया के - जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि - के चंगुल से मुक्त होना चाहते हैं (भ.गी. १३.९) हमें कृष्ण के चरण कमलों की शरण लेनी चाहिए, आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से, और भक्तों के साथ रहना चाहिए जो उसी उद्देश्य से लगे हुए हैं । यह कहा जाता है... सही शब्द क्या है ? सखी या कुछ और । अब मैं भूल रहा हूँ । लेकिन उसी श्रेणी में हमें रहना चाहिए और हमारे कृष्ण भावनामृत पर अमल करना चाहिए । तो फिर यह बाधाऍ, गृहेषु सक्तस्य प्रमत्तस्य । जो कोई भी... सभी कर्मी, वे इस परिवार के जीवन से जुड़े होते हैं, लेकिन परिवारिक जीवन अच्छा है अगर कृष्ण भावानमृत है तो । गृहे वा वनेते थाके, हा गौरांग बोले दाके । कोई बात नहीं, या तो वह परिवारिक जीवन में है या वह सन्यासी जीवन में है, अगर वह भक्त है, तो उसका जीवन सफल है ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय प्रभुपाद ।